
हरिद्वार में, हर की पौड़ी मंदिर के पास भगवान शिव की एक विशाल प्रतिमा स्थापित है। यह पूरी दुनिया में भगवान् शिव् की सबसे विशाल प्रतिमाओं में से एक है, जिसकी ऊँचाई 100.1 फीट है। यह प्रतिमा स्वामी विवेकानंद पार्क में स्थित है और पवित्र शहर हरिद्वार का एक प्रमुख आकर्षण है। रात के समय यह प्रतिमा खूबसूरती से जगमगाती भी है। आध्यात्मिक शांति की तलाश करने वाले भक्तों को इस प्रतिमा के दर्शन अवश्य करने चाहिए। इस प्रतिमा में भगवान् शिव एक विशालकाय त्रिशूल धारण किए हुए हैं!
त्रिशूल (जिसे अंग्रेज़ी में ट्राइडेंट कहते हैं) मूल रूप से एक तीन शूलों वाला भाला होता है। इसका उपयोग हज़ारों वर्षों से मछली पकड़ने और ऐतिहासिक रूप से एक हथियार के तौर पर किया जाता रहा है। साधारण भाले की तुलना में, इसके तीन शूल मछली को मारने की संभावना बढ़ा देते हैं और उसे आसानी से निकलने भी नहीं देते। साथ ही, ये इतने ज़्यादा भी नहीं होते कि भाले की भेदने की शक्ति कम हो जाए।
शास्त्रीय पौराणिक कथाओं में, त्रिशूल समुद्र के देवता पोसाइडन (ग्रीक) या नेपच्यून (रोमन) का शस्त्र माना जाता है, जिसका उपयोग वे समुद्री क्षेत्रों की रक्षा के लिए करते थे। अन्य समुद्री देवताओं जैसे एम्फिट्राइट या ट्राइटन को भी अक्सर शास्त्रीय कला में त्रिशूल के साथ दर्शाया गया है। बाद में, मध्ययुगीन प्रतीक चिन्हों में भी त्रिशूल का उपयोग किया गया। इसका संबंध सुपरहीरो एक्वामैन से भी जोड़ा जाता है। त्रिशूल एक महत्वपूर्ण सैन्य प्रतीक भी है, जैसा कि हेलेनिक नेवी, यूनाइटेड स्टेट्स नेवी सील्स, साइप्रस नेवी और नेपाली सेना जैसी सेनाओं में देखा जाता है। इसे मासेराती और क्लब मेड जैसे कॉर्पोरेट लोगो तथा मैनचेस्टर यूनाइटेड एफ.सी. और एरिजोना स्टेट यूनिवर्सिटी के खेल लोगो के रूप में भी शामिल किया गया है।
हिन्दू धर्म में, यह भगवान शिव का प्रमुख शस्त्र है और इसे त्रिशूल (संस्कृत अर्थ: "तीन शूलों वाला") कहा जाता है।
भगवान शिव, जिन्हें महादेव और शम्भू के नाम से भी जाना जाता है, हिन्दू पौराणिक कथाओं में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। त्रिशूल, उनसे जुड़े सबसे प्रमुख प्रतीकों में से एक है। यह उनकी दिव्य शक्ति और ब्रह्मांडीय अधिकार का प्रतिनिधित्व करता है। त्रिशूल का गहरा आध्यात्मिक महत्व है और हिन्दू धर्म में इसका विशेष प्रतीकात्मक अर्थ है।
भगवान शिव को त्रिशूल कैसे मिला?
हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय की बात है जब सूर्य देव का विवाह विश्वकर्मा (जिन्हें देवताओं का वास्तुकार माना जाता है) की पुत्री संजना से हुआ था। संजना के लिए अपने पति के अत्यधिक तेज के कारण उनके समीप रहना कठिन हो गया था। उन्होंने यह बात अपने पिता को बताई। तब विश्वकर्मा ने सूर्य देव से अनुरोध किया कि वे संजना की सुविधा के लिए अपना तेज थोड़ा कम कर लें। सूर्य देव सहमत हो गए। जब उन्होंने अपना तेज कम किया, तो उनकी ऊर्जा का कुछ अंश पृथ्वी पर गिर गया। विश्वकर्मा ने इसी ऊर्जा को एकत्रित किया और उससे तीन शूलों वाला एक शक्तिशाली शस्त्र बनाया, जिसे त्रिशूल कहा गया। उन्होंने यह त्रिशूल भगवान शिव को श्रद्धापूर्वक भेंट कर दिया।
आइए अब भगवान शिव के त्रिशूल के गहरे प्रतीकवाद को समझने की कोशिश करते हैं:
भगवान शिव के त्रिशूल का महत्व अत्यंत गहरा और बहुआयामी माना जाता है। यह हिन्दू धर्म की गहन दार्शनिक और आध्यात्मिक अवधारणाओं को दर्शाता है।
इसके विभिन्न पहलुओं की विस्तृत व्याख्या इस प्रकार है:
त्रिदेव का प्रतिनिधित्व: त्रिशूल की तीन नोंकें हिन्दू त्रिदेवों का प्रतीक हैं। इनमें ब्रह्मा, विष्णु और शिव (महेश) शामिल हैं। प्रत्येक नोंक त्रिदेव के एक पहलू का प्रतिनिधित्व करती है:
त्रिकाल का प्रतिनिधित्व: भगवान शिव को समय का स्वामी भी माना जाता है। वे भूत, वर्तमान और भविष्य के ज्ञाता हैं। त्रिशूल उनके इसी पहलू का प्रतीक है, जो समय पर शिव के नियंत्रण और जीवन-मृत्यु के निरंतर चक्र को दर्शाता है।
मानवीय गुण (गुणों का प्रतिनिधित्व): हिन्दू दर्शन में, मानवीय गुणों को तीन श्रेणियों में बांटा गया है – सत्व (पवित्रता, ज्ञान), रजस (क्रियाशीलता, जुनून), और तमस (जड़ता, अंधकार)।
त्रिशूल इन तीनों गुणों का भी प्रतिनिधित्व करता है:
ऊर्जा नाड़ियाँ: एक अन्य व्याख्या के अनुसार, त्रिशूल मानव शरीर की तीन प्रमुख ऊर्जा नाड़ियों (channels) का प्रतीक है:
क्या आप जानते हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा त्रिशूल नेपाल में हैं जो कि 81 क्विंटल 13 किलो वजनी और 41 फीट ऊंचा है। इसका उद्घाटन 14 दिसंबर 2014 को हुआ था। इसे बनाने में 15 लाख नेपाली रुपये की लागत आई थी। यह त्रिशूल नेपाल के डांग जिले में पांडवेश्वर महादेव मंदिर, धारापानी में स्थित है, जो घोराही शहर से लगभग 10 किलोमीटर दक्षिण में है। आज यह दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे भारी त्रिशूल है।
आइए चलते-चलते आपको भारत में भगवान् शिव की कुछ सबसे विशाल प्रतिमाओं से परिचित कराते हैं:
संदर्भ
https://tinyurl.com/2cce3qry
https://tinyurl.com/2da2kl6n
https://tinyurl.com/ccqjsla
https://tinyurl.com/29yqxo2y
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