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भारत एक ऐसा देश है, जहाँ हज़ारों साल पुरानी परंपराएँ आज भी जीवंत हैं। इस देश में नदियों को साक्षात देवी-देवताओं का दर्जा प्राप्त है। ‘गंगा आरती’ भारतीय संस्कृति की अद्भुत आध्यात्मिक परंपराओं में से एक है। यह एक पवित्र अनुष्ठान है, जिसे देवी स्वरूप पूजी जाने वाली गंगा नदी के तट पर किया जाता है। हरिद्वार को स्वयं भी हिमालय का प्रवेश द्वार माना जाता है। यह शहर प्राचीन पौराणिक कथाओं से ओतप्रोत है। इसे भारत के सबसे पवित्र स्थानों में गिना जाता है। हरिद्वार महज़ एक शहर नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक यात्रा का अनुभव है। हरिद्वार को और गहराई से जानना, इसकी उस महत्ता को समझना है जो इसे एक प्रमुख तीर्थस्थल बनाती है। यहाँ लाखों श्रद्धालु पवित्र गंगा में डुबकी लगाकर अपने पापों से मुक्ति की कामना करते हैं। शहर का आध्यात्मिक वातावरण और ऐतिहासिक महत्व इसे शांति और आत्म-जागरण की तलाश करने वालों की पहली पसंद बना देता है। हरिद्वार को जानना एक ऐसी दुनिया में प्रवेश करने जैसा है, जहाँ हर कोने में एक कहानी बसी है। यहाँ के हर रीति-रिवाज़ का अपना गहरा अर्थ है, और यहाँ की हर यात्रा आपको दिव्यता के और करीब ले जाती है।
हिंदू पौराणिक कथाओं में हरिद्वार का विशेष स्थान है। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार, इसे उन चार स्थानों में से एक माना जाता है, जहाँ समुद्र मंथन के समय अमृत की कुछ बूँदें छलक गई थीं। अमृत की ये बूँदें स्वर्गिक पक्षी गरुड़ द्वारा ले जाए जा रहे कलश से गिरी थीं, जब देव और दानव महासागर का मंथन कर रहे थे। मान्यता है कि इन्हीं अमृत बूँदों के कारण हरिद्वार एक अत्यंत आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र बन गया।
हर की पौड़ी स्थित ब्रह्म कुंड को हरिद्वार का सबसे पवित्र घाट माना जाता है। मान्यता है कि अमृत यहीं पर गिरा था। एक और कथा के अनुसार, हर की पौड़ी के निकट एक पत्थर की शिला पर भगवान विष्णु के पदचिह्न अंकित हैं। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय जब भगवान विष्णु ने देवताओं को असुरों से बचाया, तब उन्होंने यह पदचिह्न छोड़ा था। यह पदचिह्न आज भी भक्तों के लिए एक पवित्र प्रतीक है और इन्हें श्रद्धापूर्वक पूजा जाता है। पौराणिक आख्यान यह भी बताते हैं कि इसी घटना के कारण प्रत्येक तीन वर्ष में इन चारों स्थलों पर कुम्भ मेले का आयोजन होता है। और हर बारह वर्ष में हरिद्वार में महाकुम्भ का भव्य आयोजन किया जाता है।
धर्मग्रंथों में हरिद्वार को कपिलास्थान, गंगाद्वार और मायापुरी जैसे विभिन्न नामों से जाना गया है। संस्कृत में 'हरि' का अर्थ 'भगवान विष्णु' और 'द्वार' का अर्थ 'प्रवेश द्वार' होता है। इस प्रकार, 'हरिद्वार' का अर्थ 'भगवान विष्णु का द्वार' होता है। यह नाम इसलिए भी सार्थक है क्योंकि तीर्थयात्री प्रायः यहीं से भगवान विष्णु के प्रसिद्ध धाम बद्रीनाथ की यात्रा आरंभ करते हैं। इसी तरह, 'हर' का अर्थ 'भगवान शिव' भी होता है, इसलिए 'हरद्वार' का अर्थ 'भगवान शिव का द्वार' भी समझा जाता है। यह स्थान अक्सर कैलाश पर्वत या केदारनाथ जैसे शिव पूजा के महत्वपूर्ण स्थलों की तीर्थयात्रा का आरंभिक बिंदु होता है। ऐतिहासिक रूप से, 'आइन-ए-अकबरी' जैसे ग्रंथों में हरिद्वार को 'माया' या 'मायापुर' कहा गया है।
इसे हिंदुओं के सात पवित्र नगरों में से एक गिना जाता है। गरुड़ पुराण के अनुसार, हरिद्वार उन सात परम पवित्र हिन्दू स्थलों में से एक है, जिन्हें 'क्षेत्र' कहा जाता है। मान्यता है कि यहाँ आने से और गंगा स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। महाभारत में भी गंगाद्वार (हरिद्वार) और कनखल का उल्लेख महत्वपूर्ण तीर्थों के रूप में मिलता है। कहते हैं कि यहीं पर ऋषि कपिल का आश्रम हुआ करता था, जिस कारण इसका प्राचीन नाम 'कपिल' या 'कपिलास्थान' भी पड़ा। हरिद्वार ही वह स्थान है जहाँ पौराणिक राजा भगीरथ ने अपने साठ हज़ार पूर्वजों की मुक्ति के लिए कठोर तपस्या की थी। इन्हीं पूर्वजों को ऋषि कपिल ने श्राप दिया था, और उनकी मुक्ति के लिए भगीरथ स्वर्ग से गंगा को पृथ्वी पर लाए। यह परम्परा आज भी जीवंत है। हजारों हिन्दू अपने दिवंगत परिजनों की अस्थियाँ लेकर यहाँ आते हैं और गंगा में विसर्जित करते हैं, ताकि उन्हें मोक्ष मिल सके।
हरिद्वार में होकर बहने वाली गंगा नदी महज़ एक नदी नहीं है! इसे तो देवी माँ, आरोग्यदायिनी और मोक्षदायिनी माना जाता है। हिंदू धर्म में जल का विशेष पवित्र स्थान है, और गंगा को सबसे पवित्र माना गया है। गंगा के पावन जल में डुबकी लगाना एक पुण्य कर्म समझा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस नदी में पापों को मुक्त करने और जीवआत्मा को शुद्ध करने वाले गुण हैं। ये गुण आत्मा को निर्मल करते हैं और पापों का नाश करते हैं। श्रद्धालु आध्यात्मिक शांति की तलाश में, विशेष रूप से हरिद्वार में यह पवित्र डुबकी लगाने आते हैं। गंगा की शुद्धिकरण शक्तियों में यह आस्था हिंदू पौराणिक कथाओं में गहराई तक समाई हुई है। भगवद् गीता में कहा गया है, "नदियों में मैं गंगा हूँ।" यह कथन हिंदू संस्कृति में इस नदी की दिव्यता और इसके महत्व को दर्शाता है। गंगा आरती का अनुष्ठान मनुष्य और प्रकृति के बीच गहरे आध्यात्मिक संबंध को और मज़बूत करता है। यह हमें अपने प्राकृतिक संसार को सहेजने और उसका सम्मान करने की याद दिलाता है।
गंगा आरती एक भक्तिमय अनुष्ठान है। यह गंगा नदी के सम्मान में प्रतिदिन किया जाता है। इसकी जड़ें सदियों पुरानी हिंदू परंपरा में हैं। इसमें भजनों और प्रार्थनाओं का जाप करते हुए, दीयों के रूप में प्रकाश नदी को अर्पित किया जाता है। यह समारोह आभार व्यक्त करने, आशीर्वाद प्राप्त करने और मन एवं आत्मा को आध्यात्मिक रूप से शुद्ध करने का एक माध्यम है। यह अंधकार पर प्रकाश की, बुराई पर अच्छाई की और भय पर आस्था की विजय का प्रतीक है। सूर्यास्त के समय होने वाला यह अनुष्ठान अत्यंत मनमोहक है। इसमें आध्यात्मिकता, संस्कृति और समुदाय का अद्भुत संगम देखने को मिलता है। शंख ध्वनि, घंटियों की गूंज, संस्कृत मंत्र और जगमगाते दीयों का दृश्य एक ऐसा शक्तिशाली वातावरण बनाते हैं, जो हमें भौतिक दुनिया से परे ले जाता है।
समारोह में उपयोग की जाने वाली प्रत्येक वस्तु का अपना प्रतीकात्मक महत्व होता है। दीपक (दीये) प्रकाश और अंधकार को दूर करने का प्रतीक हैं। पुष्प, ईश्वर के प्रति सुंदरता और भक्ति अर्पित करते हैं। धूप और अग्नि शुद्धिकरण और आध्यात्मिक जागृति के प्रतीक हैं। मंत्र और जाप एक दिव्य वातावरण बनाते हैं और चेतना को उन्नत करते हैं। ये सभी घटक मिलकर एक ऐसा अनुभव प्रदान करते हैं जो हृदय को छू लेता है और आत्मा को शांति देता है।
गंगा आरती देखना एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव होता है। यह किसी भी धार्मिक पृष्ठभूमि के व्यक्ति में आंतरिक शांति और चिंतन की भावना जगा सकता है। यह भारत की जीवंत परंपराओं और आध्यात्मिक दर्शन की एक झलक प्रस्तुत करता है। विभिन्न पृष्ठभूमि और धर्मों के लोगों का एक साथ मिलकर इस आध्यात्मिक क्षण का हिस्सा बनना, एकता की गहरी भावना को बढ़ावा देता है। गंगा आरती का मुख्य उद्देश्य गंगा नदी के प्रति भक्ति और कृतज्ञता व्यक्त करना है। साथ ही, आध्यात्मिक आशीर्वाद प्राप्त करना भी इसका एक ध्येय है। यह समारोह केवल एक धार्मिक परंपरा से कहीं बढ़कर है। यह दिव्यता, प्रकृति और आंतरिक शांति का उत्सव है। यह इस बात का सशक्त स्मरण कराता है कि घोर अंधकार में भी प्रकाश की किरण मौजूद रहती है। और सामूहिक आस्था अद्भुत सौंदर्य को जन्म दे सकती है। ऐसी मान्यता है कि आरती के दर्शन मात्र से पापों का शमन होता है और व्यक्ति मोक्ष के और निकट पहुँच जाता है।
हरिद्वार केवल एक तीर्थ स्थल और गंगा आरती का स्थान ही नहीं है। यह तन, मन और आत्मा से थके-हारे लोगों के लिए एक सुकून भरा आश्रय भी रहा है। यह विभिन्न कलाओं, विज्ञान और संस्कृति को सीखने का एक प्रमुख आकर्षण केंद्र भी रहा है। हरिद्वार अपने अनूठे गुरुकुलों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ ऐसे संस्थान हैं जो वैदिक परंपराओं और गुरु-शिष्य परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। ये संस्थान हिंदू धर्मग्रंथों और गुरुकुल शिक्षा प्रणाली का कड़ाई से पालन करते हुए ज्ञान प्रदान करते हैं। हरिद्वार लंबे समय से आयुर्वेदिक औषधियों और जड़ी-बूटियों का भी एक बड़ा केंद्र रहा है। यह इस क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली औषधीय वनस्पतियों और जीव-जंतुओं पर आधारित है।
निष्कर्ष रूप में, हरिद्वार एक ऐसा शहर है जो आध्यात्मिक दर्शन और परंपराओं से गहराई तक रचा-बसा है। अमृत की पौराणिक कथाओं और देव-चरणों से जुड़े इसके उद्गम से लेकर, यहाँ रोज़ होने वाली गंगा आरती तक, हर एक पहलू पवित्रता से इसके गहरे संबंध को दर्शाता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yyjuoc2y
https://tinyurl.com/2xwcm5fp
https://tinyurl.com/27f2v9xf
https://tinyurl.com/2c9xv6e7