धार्मिक नगरी के साथ-साथ, औद्योगिक नगरी के रूप में भी मिसाल बनकर उभरा है, हरिद्वार शहर!

आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक
11-10-2025 04:00 PM
धार्मिक नगरी के साथ-साथ, औद्योगिक नगरी के रूप में भी मिसाल बनकर उभरा है, हरिद्वार शहर!

हरिद्वार, जिसे पारंपरिक रूप से एक पवित्र तीर्थ स्थल और 'भगवान का द्वार' माना जाता है, पिछले कुछ दशकों में एक बड़े बदलाव से गुज़रा है। यह शहर अपनी आध्यात्मिक पहचान को बनाए रखते हुए उत्तरी भारत के एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र के रूप में उभरा है। गहरी सांस्कृतिक जड़ों वाले इस शहर का एक आधुनिक औद्योगिक शक्ति के रूप में विकास, विशेष रूप से 1947 से आज तक बहुत स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

ऐतिहासिक रूप से हरिद्वार को अपनी रणनीतिक भौगोलिक स्थिति के लिए जाना जाता था। यह वही स्थान है जहाँ पवित्र गंगा नदी पहाड़ों से निकलकर मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है। इस कारण यहाँ प्रचुर मात्रा में जल संसाधन और उपजाऊ भूमि उपलब्ध है, जो विभिन्न प्रकार के खाद्यान्नों के उत्पादन के लिए उपयुक्त है।

प्रशासनिक रूप से, 1988 से पहले हरिद्वार उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के अधीन एक कस्बा था। इसके आधुनिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ 28 दिसंबर, 1988 को आया। इस दिन हरिद्वार को एक स्वतंत्र जिले के रूप में स्थापित किया गया। इस प्रकार यह उत्तर प्रदेश के भीतर एक जिला मुख्यालय बन गया।

यह जिला लगभग 2,360 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 249.7 मीटर है। इस जिले की सीमाएँ पश्चिम में सहारनपुर, उत्तर और पूर्व में देहरादून, पूर्व में पौड़ी गढ़वाल तथा दक्षिण में मुज़फ्फरनगर और बिजनौर से जुड़ी हुई हैं। इसका जिला मुख्यालय रेलवे स्टेशन से लगभग 12 किलोमीटर दूर रोशनाबाद में स्थित है। यहीं पर कलेक्ट्रेट, जिला न्यायालय और पुलिस लाइन जैसे प्रमुख सरकारी प्रतिष्ठान हैं।

हरिद्वार के इतिहास में एक और महत्वपूर्ण क्षण उत्तराखंड राज्य के गठन के साथ आया। उत्तर प्रदेश विधानसभा द्वारा 24 सितंबर, 1998 को 'उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक, 1998' पारित किया गया। इसके बाद, भारतीय संसद ने 'उत्तर प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम 2000' को मंजूरी दी।

परिणामस्वरूप, 9 नवंबर, 2000 को हरिद्वार नवगठित राज्य उत्तराखंड (तत्कालीन उत्तरांचल) का एक अभिन्न अंग बन गया। यह भारत गणराज्य का 27वां राज्य बना। इस नए राज्य में भी हरिद्वार ने एक जिला मुख्यालय के रूप में अपनी भूमिका जारी रखी। 2011 की जनगणना के अनुसार, हरिद्वार उत्तराखंड का सबसे अधिक आबादी वाला जिला बनकर उभरा। उस समय इसकी आबादी 18,90,422 (एक अन्य स्रोत के अनुसार 19,27,029) थी।

यद्यपि हरिद्वार मुख्य रूप से हिंदू धर्म के सात सबसे पवित्र स्थानों में से एक के रूप में विख्यात है, और यहाँ आने वाले तीर्थयात्री इसकी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, लेकिन इसके औद्योगिकीकरण की यात्रा बहुत पहले ही शुरू हो गई थी।

इसकी शुरुआत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) की स्थापना के साथ हुई। 1960 के दशक में केंद्र सरकार के स्वामित्व वाले हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड (Hindustan Antibiotics Limited) और भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (Bharat Heavy Electricals Limited - BHEL) जैसे प्लांट स्थापित किए गए।

भेल (BHEL), जो एक 'महारत्न' पीएसयू है, की स्थापना 1962 में रानीपुर क्षेत्र में हुई थी। इसकी स्थापना तत्कालीन सोवियत संघ (USSR - Union of Soviet Socialist Republics) के तकनीकी सहयोग से की गई थी। यह प्लांट 12 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है और यहाँ इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, उच्च क्षमता वाले जनरेटर और टरबाइन का निर्माण होता है। यह 8,000 से अधिक लोगों को सीधे रोजगार देता है और इसकी अपनी 43,000 निवासियों की कॉलोनी के कारण शहर पर इसका एक बड़ा अप्रत्यक्ष आर्थिक प्रभाव भी है।

हालांकि, 2000 में उत्तराखंड में शामिल होने के बाद हरिद्वार के औद्योगिक विकास की गति में नाटकीय रूप से तेजी आई। इसका मुख्य कारण भारत सरकार द्वारा प्रदान किया गया एक विशेष रियायती औद्योगिक योजना था। उत्तराखंड राज्य औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड (State Infrastructure and Industrial Development Corporation of Uttarakhand Limited - SIIDCUL), जिसे सिडकुल के नाम से जाना जाता है, इस तेज औद्योगिक विस्तार का मुख्य उत्प्रेरक बना।

सिडकुल का गठन 2002 में किया गया था। इसकी अधिकृत शेयर पूंजी ₹50 करोड़ और उत्तराखंड सरकार से प्राप्त चुकता पूंजी (Paid-up capital) ₹20 करोड़ (एक अन्य स्रोत के अनुसार ₹28.50 करोड़) थी। सिडकुल का मुख्य उद्देश्य राज्य में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना, वित्तीय सहायता प्रदान करना, बुनियादी ढांचे का विकास करना और निजी पहलों में सहायता करना था।

सिडकुल की प्रमुख परियोजना, रोशनाबाद स्थित एकीकृत औद्योगिक आस्थान (IIE - Integrated Industrial Estate) ने हरिद्वार में निवेश लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यह औद्योगिक क्षेत्र हरिद्वार शहर से लगभग 15 किलोमीटर दूर शिवालिक नगर के पास स्थित है। लगभग 2,034 एकड़ में फैला यह आस्थान, जनवरी 2003 में शुरू किए गए नए औद्योगिक योजना के तहत उत्तराखंड में अपनी तरह का पहला विकास था।


आईआईई (IIE) की स्थापना ने हरिद्वार को उत्तरी भारत का एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र बना दिया। यहाँ 5,596.72 करोड़ रुपये का भारी निवेश आकर्षित हुआ। आईटीसी (ITC) और महिंद्रा एंड महिंद्रा (Mahindra & Mahindra - M&M) जैसी बड़ी कंपनियों सहित लगभग 551 उद्योगों ने यहाँ अपनी इकाइयाँ स्थापित कीं।

कई औद्योगिक दिग्गजों ने यहाँ बड़ा निवेश किया है। हीरो होंडा (Hero Honda) ने अपनी नई विनिर्माण इकाई में 1,596 करोड़ रुपये का निवेश किया। इसके अलावा आईटीसी (ITC) ने 125 करोड़ रुपये और हिंदुस्तान यूनिलीवर लिमिटेड (Hindustan Unilever Limited - HUL) ने 102 करोड़ रुपये का निवेश किया। डाबर, हैवल्स (Havells), टाटा मोटर्स (Tata Motors) और रिलायंस (Reliance) जैसे अन्य प्रतिष्ठित उद्योग भी हरिद्वार में स्थापित हुए हैं। उद्योगों की इस बाढ़ ने रोजगार के बड़े अवसर पैदा किए। एक अनुमान के अनुसार, यहाँ लगभग एक लाख लोगों को रोजगार मिला है। आंकड़े बताते हैं कि 2011-12 तक, पंजीकृत फैक्ट्रियों की संख्या बढ़कर 998 हो गई, जिनमें 1,25,619 कर्मचारी काम कर रहे थे। इस दौरान जिले में औद्योगिक विकास दर 5% से बढ़कर 19% हो गई। अब हरिद्वार की अर्थव्यवस्था केवल तीर्थयात्रा और पर्यटन पर निर्भर नहीं है। यहाँ फार्मा, इंजीनियरिंग, खाद्य प्रसंस्करण और कपड़ा जैसे कई नए उद्योग विकसित हुए हैं। इस औद्योगिक विस्तार को सहारा देने के लिए आधुनिक बुनियादी ढांचा भी विकसित किया गया है।

इसमें लगभग 120 मेगावाट (megawatt) बिजली की जरूरत को पूरा करने के लिए एक अलग 220 केवी (kV - kilovolt) सबस्टेशन (substation) शामिल है। पर्यावरण के नियमों का ध्यान रखने के लिए एक सेंट्रल एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (Central Effluent Treatment Plant - CETP) भी स्थापित किया गया है। औद्योगिक क्षेत्रों में ऑफिस, शॉपिंग मॉल, होटल, बैंक और एटीएम जैसी सभी आधुनिक सुविधाएं भी प्रदान की गई हैं।

हाल के घटनाक्रम भी हरिद्वार के औद्योगिक विकास को दर्शाते हैं। राज्य सरकार, कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (Container Corporation of India Limited - CONCOR) के साथ मिलकर दो लॉजिस्टिक्स हब (logistics hub) स्थापित कर रही है। इनमें से एक हब हरिद्वार में बनेगा, जिससे उद्योगपतियों का समय और पैसा दोनों बचेगा। रानीपुर-सिडकुल क्षेत्र का माहौल पूरी तरह बदल गया है। नए उद्योग, होटल, मॉल और व्यावसायिक परिसरों ने यहाँ के जीवन स्तर में एक बड़ा बदलाव ला दिया है।

औद्योगीकरण को आधुनिक सभ्यता की एक पहचान माना जाता है। यह अपने साथ नई तकनीक और समृद्धि लाता है। लेकिन इसके कुछ सकारात्मक और नकारात्मक परिणाम भी होते हैं। हरिद्वार की औद्योगिक वृद्धि में ये दोनों पहलू साफ दिखते हैं।

हरिद्वार की सबसे बड़ी ताकतों में अच्छी परिवहन सुविधा और सिडकुल जैसे औद्योगिक टाउनशिप (township) की मौजूदगी शामिल है। यहाँ स्थायी आर्थिक विकास हुआ है और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार दर भी काफी ऊंची है। राज्य सरकार से पर्याप्त फंड मिलना भी एक बड़ी ताकत है। इसके अलावा, विकास के लिए अभी भी कई अवसर मौजूद हैं। इंटरनेट के जरिए प्रचार और निर्यात को बढ़ावा दिया जा सकता है। नए सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs - Micro, Small and Medium Enterprises) के लिए भी यहाँ एक अनुकूल माहौल है। पर्यटन, कृषि-आधारित उद्योग और इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में निवेश की अपार संभावनाएं हैं।

हालांकि, इस विकास के साथ कुछ कमजोरियां भी जुड़ी हैं। इनमें सूचना और मार्केटिंग की कमी, बुनियादी नागरिक सुविधाओं का अभाव और पर्यावरण का कुप्रबंधन प्रमुख हैं। इसके साथ ही कुछ बड़े खतरे भी हैं। इनमें संक्रामक रोगों के फैलने की आशंका, जैव विविधता का नुकसान और पर्यावरण का क्षरण आदि शामिल हैं। उद्योगों से होने वाला प्रदूषण एक गंभीर समस्या है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां बढ़ रही हैं। अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई भी एक बड़ी चिंता का विषय है।

हरिद्वार की यात्रा बेहद दिलचस्प है। यह शहर सहारनपुर के एक पवित्र कस्बे से उत्तराखंड का एक प्रमुख औद्योगिक केंद्र बन गया। खास बात यह है कि इसने अपनी आध्यात्मिक पहचान को भी बनाए रखा है। सिडकुल और सहायक औद्योगिक नीतियों ने इस बदलाव में बड़ी भूमिका निभाई है। इस परिवर्तन ने बड़े पैमाने पर निवेश आकर्षित किया और अर्थव्यवस्था को विविध बनाया। यह परिवर्तन परंपरा और प्रगति के बीच एक अनोखे तालमेल को दर्शाता है। हालांकि, इस ऐतिहासिक और औद्योगिक रूप से समृद्ध शहर के संतुलित भविष्य के लिए पर्यावरण संरक्षण और स्थायी प्रथाओं की निरंतर आवश्यकता है।
 

संदर्भ 
https://tinyurl.com/2a7rotxe
https://tinyurl.com/2ark9c7q
https://tinyurl.com/27kzm5bs
https://tinyurl.com/232rcv4x
https://tinyurl.com/255qo4uh 



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