चीनी यात्री ह्वेनसांग और ब्रिटिश अधिकारी अलेक्जेंडर कनिंघम ने हरिद्वार को कैसा देखा?

छोटे राज्य 300 ईस्वी से 1000 ईस्वी तक
11-10-2025 03:00 PM
चीनी यात्री ह्वेनसांग और ब्रिटिश अधिकारी अलेक्जेंडर कनिंघम ने हरिद्वार को कैसा देखा?

भारत की शानदार शिवालिक पर्वत श्रृंखलाओं की तलहटी में हरिद्वार शहर बसा है। यह केवल एक आधुनिक शहरी केंद्र नहीं है। बल्कि यह प्राचीन इतिहास और आध्यात्मिक परंपराओं का प्रवेश द्वार है। यहाँ की पहचान यहाँ के पहाड़ों और नदियों ने ही बनाई है। इस स्थान को सात सबसे पवित्र हिंदू स्थलों में से एक माना जाता है, जिन्हें 'सप्त पुरी' भी कहते हैं। हरिद्वार के नाम में ही इसका महत्व झलकता है। 'हरिद्वार' का अर्थ 'विष्णु का द्वार' होता है। वहीं, कुछ लोग इसे 'हरद्वार' भी कहते हैं, जिसका अर्थ 'शिव का द्वार' है। यह बद्रीनाथ और कैलाश पर्वत जैसे पवित्र पर्वतीय स्थलों की तीर्थयात्रा के लिए एक शुरुआती बिंदु है। इस प्राचीन शहर को कभी मायापुरी, कपिलास्थान या गंगाद्वार के नाम से भी जाना जाता था। इसका इतिहास पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक वृत्तांतों से भरा हुआ है, जो इसके गौरवशाली अतीत को दर्शाते हैं।

हरिद्वार की भौगोलिक स्थिति ही इसके ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व का आधार है। यह वही स्थान है जहाँ शक्तिशाली गंगा नदी पहली बार पहाड़ों से उतरकर विशाल गंगा के मैदान में प्रवेश करती है। गंगा नदी अपने उद्गम स्थल गंगोत्री ग्लेशियर से 253 किलोमीटर बहने के बाद यहाँ पहुँचती है।

यह शहर समुद्र तल से 314 मीटर (1,030 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। इसके उत्तर और उत्तर-पूर्व में शिवालिक की पहाड़ियाँ हैं। इस अनूठी स्थिति ने इसे सदियों से एक प्राकृतिक 'प्रवेश द्वार' और एक रणनीतिक व पवित्र स्थान बनाया है। पुरातात्विक खोजों से पता चलता है कि इस क्षेत्र में 1700 ईसा पूर्व में भी टेराकोटा (terracotta) संस्कृति मौजूद थी। यह यहाँ पर शुरुआती मानव बस्तियों का संकेत देता है।

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, अमृत की कुछ बूँदें गलती से चार स्थानों पर गिरी थीं। उनमें से एक स्थान हरिद्वार में हर की पौड़ी स्थित ब्रह्म कुंड है। इसी वजह से यह स्नान के लिए एक असाधारण पवित्र स्थल बन गया। यह भी कहा जाता है कि महान राजा भगीरथ ने पवित्र गंगा नदी को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के लिए वर्षों तक तपस्या की थी। यह वही ऐतिहासिक घटना थी जब गंगा पहली बार हरिद्वार में ही मैदानों में उतरी थीं। इस शहर का उल्लेख प्राचीन हिंदू महाकाव्य महाभारत में भी मिलता है। महाभारत में इसे 'गंगाद्वार' कहा गया है, और यहीं पर अगस्त्य ऋषि ने तपस्या की थी।

आसपास की पहाड़ियों से इसका आध्यात्मिक संबंध यहाँ के प्रमुख धार्मिक स्थलों में स्पष्ट दिखता है। मनसा देवी मंदिर बिल्व पर्वत की चोटी पर स्थित है। वहीं, चंडी देवी मंदिर नील पर्वत पर बना हुआ है। तीर्थयात्री इन मंदिरों तक पहुँचने के लिए ट्रैकिंग करते हैं या रोपवे का उपयोग करते हैं।

आज भी हरिद्वार जिले का एक बड़ा हिस्सा जंगलों से घिरा हुआ है। राजाजी नेशनल पार्क (Rajaji National Park), जो एक वन्यजीव अभयारण्य है, शहर से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर है। शिवालिक की पहाड़ियों में वन गुज्जर जैसी घुमंतू जनजातियाँ भी निवास करती हैं। यह इन प्राकृतिक परिदृश्यों के साथ मानव के निरंतर संपर्क को दर्शाता है।

सातवीं शताब्दी में चीन के एक प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु और विद्वान भारत आए थे। उनका नाम ह्वेनसांग (Xuanzang) था। वे राजा हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत की एक महान यात्रा पर निकले थे। उनका मुख्य उद्देश्य बौद्ध धर्मग्रंथों को प्राप्त करना था। वे बौद्ध धर्म के मूल स्रोत पर अध्ययन करना चाहते थे। ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा के अनुभवों को अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'सी-यू-की' (Si-Yu-Ki) (पश्चिम की यात्रा) में संकलित किया। यह पुस्तक उस दौर के भारत के इतिहास, संस्कृति और धर्म के बारे में अमूल्य जानकारी देती है।

ह्वेनसांग ने अपने लेखों में हरिद्वार का भी जिक्र किया है। उन्होंने इसे 'मो-यू-लो' यानी मायापुर कहा। उन्होंने बताया कि मायापुर के ठीक उत्तर में 'गंगाद्वार' स्थित है, जिसे "गंगा का प्रवेश द्वार" कहते हैं। उनके लेखों से सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल की एक अनूठी झलक मिलती है। उन्होंने हर्ष को एक कर्तव्यनिष्ठ राजा बताया, जिसके राज्य में शांति और सुशासन था। 

ह्वेनसांग के अनुसार, राजा हर्ष एक समर्पित बौद्ध थे। लेकिन वे हिंदू धर्म सहित सभी धर्मों के विद्वानों का भी संरक्षण करते थे। हर्ष ने भोजन के लिए पशुओं की हत्या पर प्रतिबंध लगाया था। उन्होंने कई मठों और स्तूपों का निर्माण भी करवाया। विशेष रूप से, ह्वेनसांग ने प्रयाग (इलाहाबाद) में भव्य कुंभ मेले को देखा था। यह इस विशाल धार्मिक समागम का सबसे पहला ज्ञात लिखित प्रमाण है, जो आज भी हर बारह साल में हरिद्वार में मनाया जाता है।

ह्वेनसांग की यात्रा के कई सदियों बाद 19वीं शताब्दी आई। इस दौरान एक ब्रिटिश सेना अधिकारी और सिविल इंजीनियर मेजर जनरल अलेक्जेंडर कनिंघम (Major General Alexander Cunningham) ने भारत के प्राचीन अतीत की समझ को पूरी तरह से बदल दिया। उन्हें अक्सर "भारतीय पुरातत्व का जनक" कहा जाता है। कनिंघम 1861 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI – Archaeological Survey of India) के पहले महानिदेशक बने। उनका काम अभूतपूर्व था, जिसने पूरे उपमहाद्वीप में व्यवस्थित पुरातात्विक खुदाई की नींव रखी थी।

कनिंघम की कार्यप्रणाली बहुत व्यवस्थित और नवीन थी। उन्होंने सर्वे पर आधारित दृष्टिकोण अपनाया। वे विशाल क्षेत्रों का सावधानीपूर्वक अन्वेषण करते थे और ऐतिहासिक स्थलों की पहचान करते थे। इसके लिए वे अक्सर प्राचीन भारतीय ग्रंथों और ऐतिहासिक शिलालेखों की मदद लेते थे। ह्वेनसांग के व्यापक चीनी विवरणों ने भी कनिंघम को प्राचीन स्थलों की पहचान करने में महत्वपूर्ण मदद की होगी।

कनिंघम शिलालेखों के अध्ययन यानी एपिग्राफी (Epigraphy) में अत्यधिक कुशल थे। इसी कुशलता के कारण वे ब्राह्मी और संस्कृत जैसी प्राचीन लिपियों को समझने में सक्षम हुए। यह कौशल पहले खोए हुए ऐतिहासिक वृत्तांतों को फिर से जोड़ने में बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ।

कनिंघम की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक भूले हुए बौद्ध स्थलों की पहचान और उनका दस्तावेजीकरण था। उनके अभियानों से प्रारंभिक बौद्ध धर्म के प्रमुख केंद्रों की फिर से खोज हुई। इनमें सारनाथ भी शामिल है, जहाँ बुद्ध ने अपना पहला उपदेश दिया था। उन्होंने बोधगया की भी खोज की, जहाँ बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसके अलावा, उन्होंने तक्षशिला की भी पहचान की, जो गांधार काल के दौरान शिक्षा और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।

कनिंघम के प्रयासों का विस्तार राजा अशोक के शिलालेखों की खोज और व्याख्या तक हुआ। ये शिलालेख पूरे भारत में स्तंभों, चट्टानों और गुफाओं पर बिखरे हुए हैं। इन शिलालेखों से सम्राट अशोक के शासनकाल (लगभग 268-232 ईसा पूर्व) के ठोस सबूत मिले। इनसे पता चला कि कलिंग युद्ध के बाद उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया था।

कनिंघम की खुदाई और अध्ययनों ने गुप्त काल (लगभग 320-550 ईस्वी) पर भी प्रकाश डाला, जिसे अक्सर "भारत का स्वर्ण युग" माना जाता है। इस प्रकार, हरिद्वार की ऐतिहासिक कहानी इसकी प्राचीन जड़ों, पहाड़ी परिवेश और पवित्र गंगा से गहराई से जुड़ी हुई है। ह्वेनसांग जैसे शुरुआती यात्रियों के विवरण और बाद में अलेक्जेंडर कनिंघम जैसे अग्रदूतों के पुरातात्विक कार्यों ने इस शहर के प्राचीन महत्व को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।


संदर्भ 
https://tinyurl.com/q4oqs3z
https://tinyurl.com/2dmr4a8r
https://tinyurl.com/y2gupk8k
https://tinyurl.com/yyjuoc2y
https://tinyurl.com/27ast7s2 



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