
उत्तराखंड, को अपनी शानदार प्राकृतिक सुंदरता और आध्यात्मिक महत्व के लिए जाना जाता है! लेकिन यह राज्य अपनी धरती के नीचे एक महत्वपूर्ण खनिज संपदा भी छिपाए हुए है। हालांकि, राज्य के पहाड़ी इलाके और जटिल भूवैज्ञानिक संरचना के कारण इन खनिज संसाधनों का पता लगाना और उनका उपयोग करना काफी मुश्किल साबित होता है। फिर भी, अगर गहराई से देखें तो यहाँ की भूवैज्ञानिक संपदा काफी समृद्ध है। इसमें खासकर हरिद्वार जैसे इलाकों के आसपास अच्छी आर्थिक संभावनाएं मौजूद हैं।
उत्तराखंड के दक्षिणी भूवैज्ञानिक हिस्सों में कई तरह की चट्टानें भरपूर मात्रा में पाई जाती हैं। इनमें नाइस (Gneiss), चूना पत्थर (Limestone), फाइलाइट्स (Phyllites), क्वार्टजाइट (Quartzite), सेरिसाइट-बायोटाइट शिस्ट (Sericite-Biotite Schist) और स्लेट (Slate) जैसी चट्टानें शामिल हैं। पूरे राज्य में कई महत्वपूर्ण खनिजों की पहचान की गई है, जो इसकी भूवैज्ञानिक पहचान और आर्थिक संभावनाओं, दोनों को मजबूती देते हैं। इनमें उच्च गुणवत्ता वाला चूना पत्थर (High-grade Limestone), मैग्नेसाइट (Magnesite), टैल्क/स्टेटाइट (जिसे सोपस्टोन भी कहते हैं), टंगस्टन (Tungsten), लोहा, एस्बेस्टस (Asbestos), बैराइट्स (Barytes), सीसा, जस्ता और तांबा जैसी कई बेस मेटल्स (Base Metals) शामिल हैं। इसके अलावा जिप्सम (Gypsum), संगमरमर, पाइराइट्स (Pyrites), सल्फर (Sulphur), फॉस्फोराइट (Phosphorite), सिलिका सैंड (Silica Sand), सोना ( प्लेसर गोल्ड सहित), ग्रेफाइट (Graphite), यूरेनियम (Uranium) और रॉक फॉस्फेट (Rock Phosphate) भी यहां मिलते हैं।
चमोली जिला अपने खास तौर पर समृद्ध खनिज संसाधनों के लिए सबसे अलग है। इस जिले को मध्यम से उच्च-ग्रेड (High-grade) की रूपांतरित चट्टानों (metamorphic rocks) के लिए जाना जाता है, जिनमें कभी-कभी ज्वालामुखी चट्टानों की परतें भी मिलती हैं। मैग्नेसाइट उत्तराखंड की खनिज संपदा का एक प्रमुख उदाहरण है। यह राज्य भारत में मैग्नेसाइट का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसके पास देश का 66% भंडार है और यह राज्य के कुल खनिज उत्पादन में 53% का योगदान देता है। इसी तरह, उत्तराखंड देश में स्टेटाइट, यानी सोपस्टोन का भी दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
इन महत्वपूर्ण खनिजों में, उच्च गुणवत्ता वाला चूना पत्थर (लाइमस्टोन) पूरे उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर फैला हुआ है। यह अल्मोड़ा, देहरादून, नैनीताल, पिथौरागढ़, पौड़ी गढ़वाल और टिहरी गढ़वाल जैसे जिलों में पाया जाता है। नैनीताल की पहाड़ियों की क्रोल बेल्ट (Krol Belt) और देहरादून-मसूरी सिंकलाइन में चूना पत्थर और डोलोमाइट (Dolomite), दोनों के बड़े भंडार मौजूद हैं। देहरादून क्षेत्र के सिसोली, भट्टा, हाथीपांव और झड़ीपानी जैसी जगहों पर मिले भंडार अपनी गुणवत्ता के लिए बहुत मूल्यवान माने जाते हैं।
इन भंडारों में कैल्शियम ऑक्साइड (Calcium Oxide) की मात्रा 50% से 57% तक होती है, जो काफी ज़्यादा है। साथ ही, इनमें मैग्नीशियम ऑक्साइड (Magnesium Oxide), आयरन ऑक्साइड (Iron Oxide), सिलिका (Silica) और एल्यूमिना (Alumina) जैसी अशुद्धियाँ (Impurities) भी बहुत कम होती हैं। सहस्त्रधारा के आसपास और लैंसडाउन के नज़दीक कालसी, डगुरा, तिला ग्वार और भड़सी के पास भी अच्छी गुणवत्ता वाला चूना पत्थर मिलता है। इसके अलावा, सोर स्लेट फॉरमेशन और जिरौली के पास सीमेंट-ग्रेड (Cement-grade) का लाइमस्टोन भी उपलब्ध है।
भले ही उत्तराखंड के खनिज संसाधनों का ब्यौरा देने वाले स्रोत सीधे तौर पर हरिद्वार जिले में चूना पत्थर के किसी बड़े भंडार का ज़िक्र नहीं करते, लेकिन चूना पत्थर से समृद्ध इलाकों से इसकी भौगोलिक निकटता इसके क्षेत्रीय महत्व को साफ तौर पर दर्शाती है। टिहरी और देहरादून से सटे इलाकों में, नीलकंठ के पास, और विशेष रूप से ऋषिकेश के पूर्व में चूना पत्थर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। ऋषिकेश की हरिद्वार से करीबी को देखते हुए, यह साफ़ है कि हरिद्वार के आस-पास के एक बड़े क्षेत्र में चूना पत्थर के संसाधन मौजूद हैं। इस बात की पुष्टि खुद हरिद्वार में चूना पत्थर के पाउडर के सक्रिय बाज़ार (active market) से भी होती है। यहाँ कई डीलर (dealer), निर्माता और सप्लायर (supplier) पंजीकृत हैं, जो इसकी स्थानीय आर्थिक प्रासंगिकता को साबित करता है।
चूना पत्थर एक बहुउपयोगी अवसादी चट्टान है। यह मुख्य रूप से कैल्शियम कार्बोनेट (Calcium Carbonate) से बनी होती है, जो कैल्साइट (calcite) के रूप में होता है और अक्सर इसमें क्वार्ट्ज (quartz) और मिट्टी जैसे अन्य खनिज भी मिले होते हैं। इसका उपयोग कई अलग-अलग क्षेत्रों में होता है, लेकिन निर्माण क्षेत्र में इसकी भूमिका शायद सबसे ज़्यादा जानी-पहचानी है।
निर्माण और वास्तुकला में, चूना पत्थर को खदानों से निकालकर स्लैब या ब्लॉक (slab or block) के रूप में काटा जाता है। इसका इस्तेमाल कई उत्पादों जैसे कि जटिल मूर्तियाँ, टिकाऊ फर्श टाइल्स, खिड़कियों की सिल और सीढ़ियों के पायदान आदि बनाने के लिए होता है। ऐतिहासिक रूप से यह एक मुख्य निर्माण सामग्री रही है; इसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण मिस्र के गीज़ा के महान पिरामिड हैं, जिन्हें बनाने में इसका इस्तेमाल हुआ था। जिस चूना पत्थर में मिट्टी मिली होती है, वह सीमेंट उत्पादन के लिए भी महत्वपूर्ण है।
निर्माण के अलावा, चूना पत्थर कृषि और कई उद्योगों में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब इसे बारीक पीसा जाता है, तो इसे 'एग्रीकल्चरल लाइम’ (Agricultural Lime) या ‘एगलाइम’ (Aglime) के रूप में बेचा जाता है। इसका उपयोग मिट्टी की अम्लता (acidity) को कम करने और फॉस्फेट जैसे खनिजों को पौधों के लिए अधिक सुलभ बनाने के लिए किया जाता है, जिससे खेती की पैदावार बढ़ती है। औद्योगिक क्षेत्र में, पाउडर चूना पत्थर का उपयोग कपड़ा, पेंट, कागज, रबर, कांच और प्लास्टिक के निर्माण में फिलर (filler) के रूप में किया जाता है। यह स्टील (steel) उद्योग के लिए भी बहुत ज़रूरी है, जहाँ यह उत्पादन प्रक्रिया के दौरान अशुद्धियों को हटाने में मदद करता है। इसके अलावा, चूना पत्थर में पाए जाने वाले खनिज दवाइयों, सौंदर्य प्रसाधनों (cosmetics), बेकिंग सोडा और टूथपेस्ट जैसे कई उत्पादों में भी इस्तेमाल होते हैं।
पर्यावरण प्रबंधन में भी चूना पत्थर के महत्वपूर्ण लाभ हैं। पिसा हुआ चूना पत्थर स्थल-पर सीवेज निपटान प्रणालियों में फिल्टर (filter) का काम करता है और इसका उपयोग कोयला खनन कार्यों में प्रदूषकों को सोखने या धूल को नियंत्रित करने के लिए भी किया जाता है। चूना (Lime), जो चूना पत्थर का एक उप-उत्पाद है, एसिड (acid) को बेअसर करने और कई तरह के अपशिष्ट पदार्थों के उपचार में प्रभावी ढंग से उपयोग किया जाता है, जिसमें औद्योगिक कीचड़, पशु अपशिष्ट, अपशिष्ट जल (wastewater) और यहाँ तक कि सार्वजनिक जल आपूर्ति (public water supplies) भी शामिल हैं।
उत्तराखंड के खनिज संसाधनों में अपार आर्थिक संभावनाएं हैं। यह बात राज्य की 2011 की खनिज नीति में भी दिखती है, जिसमें डोलोमाइट, सिलिका सैंड, और स्टेटाइट/टैल्क जैसे प्रमुख खनिजों के लिए नियम बनाए गए हैं। इस नीति में खनन पट्टों (mining leases), रॉयल्टी भुगतान और भूमि सुधार जैसे पहलुओं को शामिल किया गया है। इस ढांचे का उद्देश्य इन मूल्यवान संपत्तियों का जिम्मेदारी से खनन सुनिश्चित करना है।
नीचे हरिद्वार में उपलब्ध चूना पत्थर पाउडर से जुड़े कुछ प्रमुख उत्पादों, उनके आपूर्तिकर्ताओं और अन्य विवरणों को एक साफ और व्यवस्थित हिंदी तालिका के रूप में प्रस्तुत किया गया है:
क्रम | उत्पाद का नाम | आपूर्तिकर्ता (Supplier) | रेटिंग | व्यवसाय का अनुभव | स्थान | हरिद्वार में सेवा | संपर्क नंबर |
1 | केमिकल लाइमस्टोन रॉक पाउडर | Naresh Agencies | 4.1 | 21 वर्ष | दिल्ली | हाँ | 7411966257 |
2 | इंडस्ट्रियल लाइमस्टोन रॉक पाउडर | Rajan Lime Product | 4.8 | 35 वर्ष | लुधियाना | हाँ | 7041566226 |
3 | केमिकल लाइमस्टोन पाउडर | Daksha Enterprises | 5 | 6 वर्ष | अलवर | हाँ | 7411568442 |
4 | लाइमस्टोन कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड पाउडर | Jagdamba Chemicals | 4.2 | 6 वर्ष | गुड़गांव | हाँ | 8123658618 |
5 | लाइमस्टोन रॉक पाउडर | Daksha Enterprises | 4.8 | 6 वर्ष | भिवाड़ी | हाँ | 9725958062 |
6 | लाइमस्टोन ड्रायड पाउडर | New Minerals & Chemicals | 4.3 | 25 वर्ष | दिल्ली | हाँ | — (नंबर नहीं दिखाया गया) |
7 | लाइमस्टोन कैल्शियम पाउडर | Surendra Group | 5 | 9 वर्ष | अलवर | हाँ | 9972429274 |
8 | लाइमस्टोन पिगमेंट्स पाउडर | Bharat Moisture Solutions | 4.3 | 20 वर्ष | नागौर | हाँ | 8511092241 |
9 | केमिकल लाइमस्टोन रॉक पाउडर | Kaynaat Associates | 4.3 | 9 वर्ष | कोटा (राजस्थान) | हाँ | — (नंबर नहीं दिखाया गया) |
10 | इंडस्ट्रियल लाइमस्टोन रॉक पाउडर | Ankur Minerals Pvt Ltd | 3.9 | 34 वर्ष | जोधपुर | हाँ | — (नंबर नहीं दिखाया गया) |
हालांकि, खनिज संपदा को पाने की यह राह जटिलताओं और संभावित टकरावों से भरी है। इसका एक बड़ा उदाहरण देहरादून की दून घाटी में देखने को मिला, जो भौगोलिक रूप से हरिद्वार के काफी करीब है। मसूरी की पहाड़ियों में मौजूद चूना पत्थर के समृद्ध भंडार भारत के सुप्रीम कोर्ट में एक महत्वपूर्ण जनहित याचिका (public-interest litigation) का केंद्र बन गए। जहाँ एक तरफ खदान संचालक उच्च-ग्रेड के चूना पत्थर को व्यावसायिक और औद्योगिक उपयोग के लिए सबसे मूल्यवान मानते थे, वहीं स्थानीय निवासियों का नज़रिया एकदम अलग था। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि चूना पत्थर की यह पट्टी मिट्टी को स्थिर रखने और महत्वपूर्ण जल संसाधनों को बनाए रखने में एक अहम प्राकृतिक भूमिका निभाती है।
मसूरी की पहाड़ियों में हर साल भारी बारिश होती है, जिससे एक महत्वपूर्ण जल संसाधन बनता है, और इसका सीधा संबंध चूना पत्थर की पानी सहेजने की क्षमता से है। खनन द्वारा इस नाजुक जल-संतुलन को पहुँचाए गए नुकसान के गंभीर नकारात्मक परिणाम हुए। इससे कृषि, बागवानी, पर्यटन, पशुपालन और ज्ञान-आधारित उद्योगों जैसी स्थानीय आर्थिक गतिविधियाँ बुरी तरह प्रभावित हुईं, जो घाटी के निवासियों की आजीविका के लिए महत्वपूर्ण थीं। जब इस पर्यावरणीय क्षति को नियंत्रित करने के सरकारी प्रयास नाकाफी साबित हुए, तो निवासियों ने न्याय और अपने अस्तित्व के मौलिक अधिकार के लिए कानूनी हस्तक्षेप का सहारा लिया। यह मामला इस बात का एक सशक्त उदाहरण है कि हमें टिकाऊ प्रथाओं की कितनी ज़रूरत है, जो खनिज खनन के साथ-साथ स्थानीय समुदायों की दीर्घकालिक पारिस्थितिक अखंडता और भलाई को भी प्राथमिकता दें।
संदर्भ
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