हरिद्वार की भूमि कैसे बनी उपजाऊ खेती की मिसाल?

भूमि प्रकार (खेतिहर व बंजर)
11-10-2025 03:00 PM
हरिद्वार की भूमि कैसे बनी उपजाऊ खेती की मिसाल?

हरिद्वार, जिसे अक्सर "भगवान हरि का द्वार" कहा जाता है, ने अपनी आध्यात्मिक पहचान के पीछे एक और आकर्षक रहस्य छिपाया हुआ है। यह रहस्य है यहाँ की अविश्वसनीय रूप से विविध और उपजाऊ भूमि, जो सदियों से जीवन और खेती का आधार रही है। यह कोई मामूली ज़मीन नहीं है; यह प्राचीन नदियों और भूवैज्ञानिक शक्तियों से बना एक जीता-जागता कैनवास है, जिसने इसे "भारतीय सभ्यता का पालना" बनाया है। हरिद्वार को सही मायने में समझने के लिए, हमें इसकी भूमि और मिट्टी के प्रकारों की गहराई में उतरना होगा और यह जानना होगा कि वे कैसे हरे-भरे खेतों और यहाँ की जीवंत पारिस्थितिकी को बनाए रखते हैं।

हरिद्वार की कृषि संबंधी क्षमता, विशाल और उपजाऊ सिंधु-गंगा के मैदानों (Indo-Gangetic Plains) में इसकी लोकेशन (location) पर आधारित है। इन मैदानों को उत्तर भारत के विशाल मैदान (Great Plains of North India) भी कहा जाता है। हिमालय से लेकर बंगाल की खाड़ी तक फैला यह विशाल मैदान, सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी शक्तिशाली नदियों द्वारा लाए गए अवसादों के हज़ारों सालों तक लगातार जमा होने से बना है। इन नदियों ने उस गहरी खाई को भर दिया जो भारतीय-ऑस्ट्रेलियाई और यूरेशियाई टेक्टोनिक प्लेटों (Eurasian tectonic plates) के टकराने से बनी थी। इसके परिणामस्वरूप दुनिया का "सबसे बड़ा जलोढ़ मैदान" बना, जिसकी मिट्टी अविश्वसनीय रूप से समृद्ध और उपजाऊ है।

एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि हरिद्वार जिला तराई क्षेत्र का भी हिस्सा है। यह शिवालिक पहाड़ियों के दक्षिण और सिंधु-गंगा के मैदान के उत्तर में बसा एक अनोखा निचला इलाका है। "तराई" शब्द की जड़ें उर्दू, हिंदी और नेपाली में निहित हैं, जिसका अर्थ "किसी जलस्रोत के तल पर स्थित भूमि," "पानी से भरा निचला मैदान," या "दलदली ज़मीन," होता है, जो इसकी खास हाइड्रोलॉजिकल (hydrological) विशेषताओं की ओर इशारा करता है। इस पट्टी की प्राकृतिक पहचान ऊँची घास, झाड़ीदार सवाना, साल के जंगल और चिकनी मिट्टी वाले दलदल हैं। तराई और इस तरह हरिद्वार की भूवैज्ञानिक संरचना पुराने और नए जलोढ़ से बनी है—जिसमें रेत, चिकनी मिट्टी, गाद, बजरी और मोटे टुकड़ों का जमाव होता है। जहाँ नई जलोढ़ मिट्टी हर साल बहती धाराओं से ताज़ा होती है, वहीं पुरानी जलोढ़ मिट्टी नदी के रास्तों से दूर पाई जाती है।

हरिद्वार की मिट्टी इसकी कृषि पहचान का एक मुख्य हिस्सा है। जिले में मुख्य रूप से जलोढ़ से बनी मिट्टी पाई जाती है, जो स्वाभाविक रूप से बहुत उपजाऊ होती है। विशेष रूप से, इस क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण प्रकार की मिट्टी मौजूद है:

  • जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil): यह लक्सर और हरिद्वार में सबसे आम और महत्वपूर्ण मिट्टी है, जो सीधे गंगा नदी के जलोढ़ निक्षेपों से बनी है। यह जैविक पदार्थों (organic matter) से भरपूर होती है, जो इसे खेती के लिए अत्यधिक उपजाऊ और आदर्श बनाती है।
  • दोमट मिट्टी (Loamy Soil): रेत, गाद और चिकनी मिट्टी का एक संतुलित मिश्रण होने के कारण दोमट मिट्टी अपनी उच्च उर्वरता और बेहतरीन जल धारण क्षमता के लिए जानी जाती है। यह हरिद्वार जिले के विभिन्न हिस्सों में पाई जाती है।
  • लाल मिट्टी (Red Soil): यह मिट्टी भी यहाँ मौजूद है, जो क्रिस्टलीय चट्टानों के टूटने से बनती है। इसका लाल रंग और लोहे एवं एल्यूमीनियम ऑक्साइड (Al₂O₃) की प्रचुरता इसकी विशेषता है, लेकिन आमतौर पर यह जलोढ़ और दोमट मिट्टी की तुलना में कम उपजाऊ होती है।
  • रेतीली दोमट से दोमट मिट्टी (Sandy Loam to Loam): हरिद्वार के कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) की विवरणिका के अनुसार, जिले की मिट्टी मुख्य रूप से रेतीली दोमट से दोमट श्रेणी की है, जो अपनी उच्च सरंध्रता (high porosity) के लिए जानी जाती है।

इन सामान्य प्रकारों के अलावा, हरिद्वार को कवर करने वाले विशाल सिंधु-गंगा के मैदानों में कुछ खास भू-आकृतियाँ हैं जो भूमि के उपयोग को प्रभावित करती हैं:

  • भाबर: यह शिवालिक की तलहटी के साथ-साथ 8-16 किलोमीटर की एक संकरी पट्टी है, जो बजरी और कंकड़-पत्थरों जैसे बिना छांटे हुए अवसादों से बनी है। इसकी छिद्रपूर्ण (porous) प्रकृति के कारण, पानी की धाराएँ अक्सर भूमिगत हो जाती हैं, जिससे बारिश के मौसम को छोड़कर नदी के रास्ते सूखे रहते हैं। हरिद्वार का कृषि-जलवायु क्षेत्र का कुछ हिस्सा इसी भाबर क्षेत्र में आता है।
  • तराई: भाबर के ठीक दक्षिण में स्थित, यह 15-30 किलोमीटर चौड़ा क्षेत्र है जहाँ भूमिगत धाराएँ फिर से सतह पर आ जाती हैं। इससे यहाँ दलदली और नम भूमि बन जाती है। यह महीन जलोढ़ से बना है और ऐतिहासिक रूप से जंगलों से ढका था, हालांकि अब अधिकांश हिस्सों को कृषि भूमि में बदल दिया गया है। खानपुर और लक्सर जैसे क्षेत्रों में इसी कृषि-पारिस्थितिक स्थिति के कारण जल-जमाव देखा जाता है।
  • खादर: ये नदी के किनारों पर पाए जाने वाले अत्यधिक उपजाऊ बाढ़ के मैदान हैं, जहाँ हर साल ताज़ी, नई जलोढ़ मिट्टी जमा होती है। चूनेदार जमाव (calcareous deposits) की अनुपस्थिति इन्हें बड़े पैमाने पर खेती के लिए असाधारण रूप से उपयुक्त बनाती है।
  • बांगर (या भांगर): यह बाढ़ के मैदानों के ऊपर स्थित पुरानी जलोढ़ मिट्टी की परते हैं। यह पुरानी जलोढ़ मिट्टी से बनी होती है, इसलिए यह आम तौर पर कम उपजाऊ होती है। इसमें अक्सर "कंकर" के नाम से जाने जाने वाले चूनेदार जमाव पाए जाते हैं।

हरिद्वार की जलवायु यहाँ की खेती के लिए काफी मददगार साबित होती है, जो विविध फसलों का समर्थन करती है। हिमालय की तलहटी में बसे होने के कारण, यहाँ साल के ज़्यादातर समय मौसम सुहावना और संतुलित रहता है और तापमान शायद ही कभी बहुत ज़्यादा होता है। हालाँकि शहर में सालाना लगभग 2136.7 मिमी की भारी बारिश होती है, लेकिन पानी सहेजने के लिए पर्याप्त संरचना की कमी के कारण इसका बड़ा हिस्सा बह जाता है। इस क्षेत्र में मुख्य रूप से तीन मौसम गर्मी (मार्च-जून), बारिश (जुलाई-सितंबर), और सर्दी (अक्टूबर-फरवरी) होते हैं।

खेती के लिए पानी भरपूर मात्रा में उपलब्ध है। यह पानी सतही स्रोतों जैसे नहरों, नदियों, झरनों और जलाशयों से लिया जाता है, और साथ ही भूमिगत स्रोतों जैसे कुओं से भी निकाला जाता है। किसान स्थानीय रूप से जमा किए गए बारिश के पानी का भी उपयोग करते हैं। ये सभी परिस्थितियाँ खरीफ और रबी, दोनों तरह की फसलों की खेती के लिए बहुत अच्छी हैं। यहाँ की प्रमुख फसलों में बासमती, गेहूं, राजमा, सरसों, जई, मटर और गन्ना शामिल हैं। विशेष रूप से लक्सर क्षेत्र अपनी विविध कृषि, अनुकूल कृषि-जलवायु परिस्थितियों और भरपूर पानी की उपलब्धता के लिए जाना जाता है।

हरिद्वार के किसान अपने मेहनती और सहयोगी स्वभाव के लिए जाने जाते हैं। वे नई तकनीकों, खासकर जैविक खेती (organic farming) को अपनाने में गहरी रुचि दिखाते हैं। वे श्री (SRI) यानी 'सिस्टम ऑफ राइस इंटेन्सिफिकेशन' जैसी आधुनिक पद्धतियों और उत्पादन बढ़ाने के लिए कम्पोस्ट, जैव-कीटनाशक (bio-pesticides) और तरल खाद जैसे घर पर बने इनपुट का उपयोग करने के लिए तैयार रहते हैं।

नेचर बायो फूड्स (NBF) का लक्सर हरिद्वार प्रोजेक्ट इस प्रतिबद्धता का एक बेहतरीन उदाहरण है, जिसे राष्ट्रीय जैविक उत्पादन कार्यक्रम (NPOP) द्वारा प्रमाणित किया गया है। नेचर बायो फूड्स किसानों के साथ मिलकर काम करता है, उन्हें फसल चक्र, जैविक खाद के उपयोग और प्राकृतिक कीट नियंत्रण जैसी जैविक प्रथाओं पर ट्रेनिंग (training) और शिक्षा देता है। उनका "रिजेनरेटिव ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर" (Regenerative Organic Agriculture) पर ध्यान केंद्रित करने का लक्ष्य काली मिट्टी का निर्माण करना और खेती की प्रणाली को बेहतर बनाना है, जो टिकाऊ प्रथाओं और कम बर्बादी के प्रति उनकी गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

चुनौतीपूर्ण क्षेत्रों में भी बदलाव की क्षमता का एक जीता-जागता उदाहरण मनन अग्रवाल की सफलता की कहानी है। यह कहानी हरिद्वार की भगवानपुर तहसील की है। बी.टेक ग्रेजुएट (B.Tech graduate) मनन ने 2022 में फूलों की खेती (floriculture) में कदम रखा। शुरुआत में उन्हें स्थानीय भौगोलिक और जलवायु परिस्थितियों के साथ तालमेल बिठाने में संघर्ष करना पड़ा। लेकिन, लगातार सीखने, प्रयोग करने और राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (NHB) से मिली बड़ी मदद के दम पर, उन्होंने 2023 में जरबेरा की खेती के लिए एक पॉलीहाउस (polyhouse) स्थापित किया। इस पहल से न केवल उच्च गुणवत्ता वाले फूल और भारी मुनाफा मिला (2023-24 में 27,80,000.00 रुपये की शुद्ध आय), बल्कि यह भी साबित हुआ कि संरक्षित खेती (protected cultivation) बहुत लाभदायक हो सकती है और रोजगार पैदा कर सकती है, जिससे अन्य किसान भी प्रेरित हुए। मनन का सफर यह बताता है कि कैसे आधुनिक कृषि पद्धतियां, उच्च-मूल्य वाली फसलों पर ध्यान केंद्रित करना और निरंतर नवाचार, उन जमीनों पर भी आजीविका को बदल सकते हैं जिन्हें शायद कम उत्पादक माना जाता था।

अपनी प्राकृतिक खूबियों के बावजूद, हरिद्वार की कृषि कई चुनौतियों का सामना करती है। कई किसान छोटे और सीमांत हैं। कुछ क्षेत्रों में मिट्टी की उर्वरता में कमी, अच्छी क्वालिटी (quality) के बीजों का अभाव, अपर्याप्त ग्रामीण संरचना, भरोसेमंद जैव-कीटनाशकों और जैव-उर्वरकों की अनुपलब्धता, चारे की कमी और मार्केटिंग की मुश्किलें जैसी समस्याएं आम हैं। जंगली जानवरों का खतरा भी फसलों के लिए एक बड़ी चुनौती है। हालाँकि बारिश अच्छी होती है, लेकिन पानी सहेजने की सही व्यवस्था न होने के कारण कीमती पानी बह जाता है।

"फसलों तक पानी की पक्की पहुँच सुनिश्चित करना और भूमि प्रबंधन के तरीकों में सुधार करना" बहुत महत्वपूर्ण कदम हैं। समय पर कर्ज और कृषि संबंधी जानकारी तक पहुँच के साथ मिलकर, ये उपाय किसानों की आजीविका में काफी सुधार कर सकते हैं और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे सकते हैं। हरिद्वार सहित सिंधु-गंगा के मैदान भारत की खाद्य सुरक्षा और सांस्कृतिक विरासत के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। घटती उर्वरता, पानी की कमी और जनसंख्या वृद्धि जैसी चुनौतियों का टिकाऊ विकास के माध्यम से समाधान करना न केवल इस क्षेत्र के लिए, बल्कि पूरी दुनिया की पारिस्थितिक और सांस्कृतिक भलाई के लिए भी ज़रूरी है। हरिद्वार की समृद्ध और विविध भूमि, अपने मेहनती किसानों और नई सोच के साथ, कृषि क्षमता की एक मिसाल बनी हुई है।

 

संदर्भ 

https://tinyurl.com/25nyhmpz 

https://tinyurl.com/2b996qku 

https://tinyurl.com/289pylvg 

https://tinyurl.com/2bcs37xr 

https://tinyurl.com/2m679eyf 

https://tinyurl.com/23fem87a 



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