शैवाल की छाँव में गंगा नदी में पनप रहा है, जीवों का छोटा सा संसार!

बैक्टीरिया, प्रोटोज़ोआ, क्रोमिस्टा और शैवाल
29-10-2025 09:10 AM
शैवाल की छाँव में गंगा नदी में पनप रहा है, जीवों का छोटा सा संसार!

क्या आप जानते हैं कि धरती के कुछ सबसे प्राचीन जीव यहीं हरिद्वार में आज भी हमारी पवित्र गंगा की सेहत को खामोशी से संवार रहे हैं? अरबों वर्षों से, शैवाल (काई) के रूप में जाने जाने वाले ये सूक्ष्म जीव जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के बुनियादी वास्तुकार रहे हैं। वे भोजन श्रृंखला का आधार हैं, पानी के फेफड़े हैं, और स्वच्छ नदियों के गुमनाम नायक हैं। लेकिन, ये खलनायक भी बन सकते हैं और ऐसे जहरीले हालात पैदा कर सकते हैं जो उसी जीवन का गला घोंट देते हैं, जिसे वे सहारा देते हैं।

यह शैवाल की जटिल और आकर्षक कहानी है और उत्तराखंड की नदियों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाती है। इस गहरी पड़ताल में, हम उनकी दुनिया की यात्रा करेंगे। हम समझेंगे कि वे क्या हैं, वे गंगा के पानी की गुणवत्ता को कैसे प्रभावित करते हैं, और वे हमारी पर्यावरणीय लड़ाइयों के केंद्र में क्यों हैं। आइए, हमारे साथ शैवाल की इस छिपी हुई कहानी को उजागर करें।

शैवाल क्या हैं और वे इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं?
मूल रूप से, "शैवाल" शब्द प्रकाश-संश्लेषक जीवों (photosynthetic organisms) के एक बड़े और विविध समूह का वर्णन करता है। ये न तो पूरी तरह से पौधे होते हैं, न ही जानवर और न ही फफूंद। इस समूह में पानी में तैरने वाले एक-कोशिका वाले सूक्ष्म जीवों (phytoplankton) से लेकर नदियों के पत्थरों से चिपकी हुई जानी-पहचानी हरी काई तक सब कुछ शामिल है। वैसे तो ज़्यादातर शैवाल यूकेरियोटिक (eukaryotic) होते हैं (पौधों और जानवरों की तरह), लेकिन इसका एक सबसे महत्वपूर्ण समूह, सायनोबैक्टीरिया (Cyanobacteria) या "नील-हरित शैवाल", वास्तव में ऐसे बैक्टीरिया (bacteria) हैं जो सूरज की रोशनी से अपना भोजन बना सकते हैं। यही अनोखी बात उन्हें नदी की भोजन श्रृंखला में एक अहम कड़ी और उसके स्वास्थ्य का एक संवेदनशील सूचक बनाती है।

एक संतुलित माहौल में, शैवाल निश्चित रूप से फायदेमंद होते हैं। प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) के माध्यम से, वे घुलनशील ऑक्सीजन का एक मुख्य स्रोत हैं। यह ऑक्सीजन मछलियों, अकशेरुकीय (invertebrates) और अन्य जलीय जीवों के सांस लेने के लिए बेहद ज़रूरी है। वे भोजन श्रृंखला की बुनियाद होते हैं और अनगिनत छोटे-छोटे जीवों का महत्वपूर्ण भोजन बनते हैं, जिन्हें बाद में बड़े जानवर खाते हैं। कुछ प्रकार के शैवाल कुदरती सफाईकर्मी के तौर पर भी काम करते हैं और पानी से नाइट्रोजन (nitrogen) और फास्फोरस (phosphorous) जैसे अतिरिक्त पोषक तत्वों को सोख लेते हैं। इतना ही नहीं, इनके रेशेदार धागे छोटी मछलियों और जीवों को छिपने के लिए सुरक्षित जगह भी देते हैं। एक स्वस्थ और विविध शैवाल समुदाय से भरी नदी एक जीवंत और संपन्न पारिस्थितिकी तंत्र का संकेत है। शैवाल और पानी की गुणवत्ता के बीच का रिश्ता एक बहुत ही नाजुक संतुलन का खेल है। जहाँ एक स्वस्थ नदी के लिए वे ज़रूरी हैं, वहीं उनकी अत्यधिक वृद्धि तबाही भी ला सकती है। यहीं से कहानी एक स्याह मोड़ लेती है, खासकर गंगा जैसी पूजनीय और बोझ से दबी नदी के मामले में।

शैवाल की अत्यधिक वृद्धि के पीछे सबसे बड़ा कारण यूट्रोफिकेशन (Eutrophication) नामक प्रक्रिया है। यह तब होता है जब पानी में नाइट्रोजन और फास्फोरस जैसे पोषक तत्व बहुत ज़्यादा बढ़ जाते हैं। गंगा के किनारे प्रदूषण के ये स्रोत दुखद रूप से जाने-पहचाने हैं: फैलते शहरी क्षेत्रों से निकलने वाला अनुपचारित सीवेज (sewage (गंदा पानी) और उर्वरकों से भरे खेतों से बहकर आने वाला पानी। जब ये पोषक तत्व नदी में बाढ़ की तरह आते हैं, तो वे कुछ खास प्रकार के शैवाल के लिए एक सुपर-फर्टिलाइजर (super- fertilizer) की तरह काम करते हैं। इससे उनकी आबादी में एक विस्फोटक वृद्धि होती है, जिसे "एल्गल ब्लूम" (Algal Bloom) यानी शैवाल का विस्फोट कहा जाता है।

ये ब्लूम शैवाल का स्याह पक्ष हैं। ये पानी की गुणवत्ता को खराब कर सकते हैं, जिससे बदबू पैदा होती है, पानी की पारदर्शिता कम हो जाती है, और सतह पर चिपचिपी, भद्दी परत बन जाती है। इससे भी ज़्यादा खतरनाक बात यह है कि ये सूरज की रोशनी को नदी के तल में मौजूद दूसरे पौधों तक पहुँचने से रोक देते हैं, जिससे वे पौधे मर जाते हैं और पूरी भोजन श्रृंखला बाधित हो जाती है। जब एक ब्लूम में मौजूद शैवाल की भारी मात्रा आखिरकार मर जाती है, तो उनके सड़ने-गलने की प्रक्रिया में बैक्टीरिया भारी मात्रा में घुलनशील ऑक्सीजन की खपत करते हैं। इससे 'डेड ज़ोन' (Dead Zones) बन सकते हैं, यानी ऐसे क्षेत्र जहाँ ऑक्सीजन की भारी कमी (हाइपोक्सिक (hypoxic) हो जाती है या ऑक्सीजन पूरी तरह खत्म (एनोक्सिक (anoxic) हो जाती है। ऐसे में, मछलियाँ और अन्य जीव सचमुच दम घुटने से मर जाते हैं।

सबसे चिंताजनक प्रकार के एल्गल ब्लूम में वे हैं जो सायनोबैक्टीरिया के कारण होते हैं। ये जीव ठीक वैसी ही परिस्थितियों में पनपते हैं जो अक्सर नदी के प्रदूषित हिस्सों में पाई जाती हैं: जहाँ पोषक तत्व ज़्यादा हों और पानी गर्म और ठहरा हुआ हो। जलवायु परिवर्तन से ये स्थितियाँ और भी बदतर हो जाती हैं। सबसे अहम बात यह है कि सायनोबैक्टीरिया की कई प्रजातियाँ शक्तिशाली ज़हर (टॉक्सिन) पैदा करती हैं, जिन्हें "सायनोटॉक्सिन" (Cyanotoxins) कहा जाता है। ये टॉक्सिन (toxins) इंसानों के लिए हानिकारक और जानवरों के लिए जानलेवा हो सकते हैं, जिससे पानी के स्रोत दूषित हो जाते हैं और जनस्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा पैदा होता है। सायनोबैक्टीरिया ब्लूम की मौजूदगी इस बात का एक स्पष्ट और खतरनाक संकेत है कि नदी का पारिस्थितिक संतुलन खतरनाक रूप से बिगड़ चुका है।

इस संघर्ष का एक केंद्र बिंदु हरिद्वार में गंगा नदी बन रही है। यह नदी घरेलू और औद्योगिक, दोनों स्रोतों से आने वाले भारी प्रदूषण का बोझ झेल रही है। शहरों और कस्बों से निकलने वाला अनुपचारित सीवेज और कचरा सीधे नदी में डाला जाता है, जिससे एक ऐसा 'पोषक तत्वों का सूप' तैयार होता है जिसमें हानिकारक शैवाल फल-फूल सकते हैं। ये शैवाल शक्तिशाली बायो-इंडिकेटर (Bio Indicator) (जैविक संकेतक) के रूप में काम करते हैं। उनकी प्रजाति और उनका घनत्व पानी की रासायनिक स्थिति की कहानी बताते हैं। प्रदूषण को सहन करने वाली प्रजातियों की ओर झुकाव या अचानक किसी ब्लूम का दिखना, इस बात का एक स्पष्ट वैज्ञानिक संकेत है कि नदी संकट में है।

यह हमारी पवित्र नदी का विरोधाभास है: यह लाखों लोगों की जीवन रेखा है, फिर भी इसके साथ कचरा बहाने वाले एक नाले जैसा व्यवहार किया जाता है। यही प्रदूषण हानिकारक शैवाल की अत्यधिक वृद्धि को सीधे तौर पर बढ़ावा देता है, जो बदले में पानी की गुणवत्ता को गिराता है, जलीय जीवन को नुकसान पहुँचाता है, और उस जल की पवित्रता के लिए ही खतरा बन जाता है जिसका हम इतना सम्मान करते हैं।

हमारी नदियों को फिर से जीवित करना एक बहुत बड़ा काम है, लेकिन अब इसे आखिरकार राजनीतिक गति मिल रही है। हाल ही में, यहीं हरिद्वार में, यमुना नदी को भी गंगा के समान ही स्वच्छ बनाने का एक महत्वपूर्ण संकल्प लिया गया। यह इस बात की बढ़ती स्वीकृति को दर्शाता है कि हमारे प्रमुख जलमार्ग आपस में जुड़े हुए हैं और उन्हें बचाने के लिए एक संयुक्त प्रयास की आवश्यकता है। दिल्ली की मुख्यमंत्री, रेखा गुप्ता ने हर की पौड़ी में डुबकी लगाने के बाद जोर देकर कहा, "माँ गंगा का आशीर्वाद लेकर, हम माँ यमुना को स्वच्छ और सुंदर बनाने के लिए काम करेंगे।"

इस तरह के संकल्प, जिन्हें सीवेज सिस्टम (Sewage system) और जल अधोसंरचना में सुधार के लिए भारी धनराशि का समर्थन प्राप्त है, आगे की ओर एक महत्वपूर्ण कदम हैं। हालांकि, सफलता का असली पैमाना तो पानी में ही दिखेगा। और उस सफलता को समझने की कुंजी शैवाल के पास है। जैसे-जैसे हम गंगा और यमुना में प्रदूषकों के प्रवाह को कम करने के लिए काम करेंगे, हमें एक विविध और संतुलित शैवाल समुदाय की वापसी पर नज़र रखनी होगी और हानिकारक ब्लूम्स के गायब होने का इंतजार करना होगा।

हमारी नदियों में शैवाल की कहानी, असल में हमारी अपनी कहानी है। यह हमारे कार्यों, हमारी चुनौतियों और भविष्य के लिए हमारी आशाओं को दर्शाती है। इन सूक्ष्म वास्तुकारों की अनदेखी दुनिया को समझकर ही हम गंगा के नाजुक स्वास्थ्य को बेहतर ढंग से सराह सकते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए इसकी रक्षा करने के अपने संकल्प को और मजबूत कर सकते हैं।

संदर्भ 
https://tinyurl.com/gkw6quh 

https://tinyurl.com/26rcsff8 

https://tinyurl.com/25jer78v 

https://tinyurl.com/2bnhcxxg 

https://tinyurl.com/25o3m7b7 

https://tinyurl.com/2afyl67j 

https://tinyurl.com/26txqb43 



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