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क्या आप जानते हैं कि भारत के सबसे पूजनीय धर्मग्रंथों में से एक, श्रीरामचरितमानस, को सबसे पहले एक पेड़ की छाल पर लिखा गया था? यह कोई साधारण पेड़ नहीं था, बल्कि यह हिमालयी बर्च (Himalayan Birch) यानी भोजपत्र का पेड़ था, जिसे वैज्ञानिक भाषा में ‘बेटुला यूटिलिस’ (Betula utilis) कहते हैं। इतिहास की एक मूक साक्षी रही यह अद्भुत प्रजाति, हिमालय के दुर्गम और ऊंचाई वाले इलाकों में फलती-फूलती है।
इसकी कहानी सिर्फ़ इसके अस्तित्व की नहीं है, बल्कि यह प्राचीन ज्ञान, सांस्कृतिक विरासत और आज के दौर के सशक्तिकरण के धागों से बुनी एक समृद्ध गाथा है। हरिद्वार के लोगों के लिए, जो इन पहाड़ों का प्रवेश द्वार है, भोजपत्र की यह कहानी हमारे पर्यावरण, इतिहास और भविष्य के बीच के गहरे संबंध की याद दिलाती है। यह लेख आपको हिमालय के इस अनमोल पेड़ की आकर्षक दुनिया की यात्रा पर ले जाएगा। हम इसके अनोखे पारिस्थितिक तंत्र से लेकर मानव जीवन को आकार देने में इसकी स्थायी भूमिका तक, हर पहलू को जानेंगे। इस लेख की हर जानकारी दिए गए ज्ञान के स्रोतों पर ही आधारित है।
हमारी कहानी पश्चिमी हिमालय के ऊंचे पहाड़ों से शुरू होती है। यह भोजपत्र का खास और चुनौतीपूर्ण घर है, जो 4,500 मीटर तक की ऊंचाई पर मौजूद है। यहाँ यह पेड़ हल्की मानसूनी बारिश के सहारे नहीं जीता, बल्कि यह पूरी तरह से सर्दियों में गिरी बर्फ के धीरे-धीरे पिघलने वाले जीवनदायी पानी पर निर्भर रहता है। सर्दियों की भारी बर्फ का अत्यधिक दबाव अक्सर इस पेड़ को झुका हुआ और मुड़ा हुआ आकार दे देता है। यह इसका भौतिक प्रमाण है कि यह पेड़ कितने कठोर वातावरण में भी जीवित रहने की क्षमता रखता है।
वानस्पतिक रूप से, बेटुला यूटिलिस ‘बेटुलेसी’ (Betulaceae) परिवार का सदस्य है। इस परिवार में ऐसे पर्णपाती (पतझड़ी) पेड़ और झाड़ियाँ आती हैं, जिनमें अखरोट जैसे फल लगते हैं। इस परिवार में एल्डर (Alder) और हेज़ल (Hazel) जैसे जाने-माने पेड़ भी शामिल हैं। इनकी पहचान इनकी सख़्त और भारी लकड़ी से होती है। इन पर लगने वाले फूल हवा से परागित होते हैं। भोजपत्र अपने इस पारिस्थितिकी तंत्र की एक प्रमुख प्रजाति है। आमतौर पर इसके घने जंगल होते हैं या फिर देवदार (fir) और जुनिपर (juniper) जैसे शंकुधारी पेड़ों के साथ उगता है, जिनके नीचे सदाबहार बुरांश (Rhododendron) की झाड़ियाँ होती हैं। इसकी मौजूदगी ही जंगल की ऊपरी सीमा तय करती है। इसीलिए इसे एक ‘पारिस्थितिक प्रहरी’ भी कहा जाता है, जो चुपचाप इस हिमालयी क्षेत्र के नाजुक संतुलन की रक्षा करता है।
क्या आप जानते हैं कि इसका लैटिन (Latin) नाम ही ‘यूटिलिस’ (Utilis) है, जिसका अर्थ "उपयोगी" होता है। लेकिन यह नाम इस पेड़ के अमूल्य गुणों की पूरी कहानी नहीं बताता। भोजपत्र की सबसे खास खूबी इसकी छाल है, जो एक पतली, कागज़ जैसी परत जो चौड़ी, क्षैतिज पट्टियों में निकलती है। इस छाल का रंग हल्के लाल-भूरे से लेकर चमकदार सफ़ेद तक होता है। इसी छाल ने इस पेड़ का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज करा दिया।
उपमहाद्वीप में कागज़ के आने से सदियों पहले, यही छाल लिखने का मुख्य माध्यम हुआ करती थी। इसकी चिकनी, टिकाऊ और सड़न-रोधक सतह लंबे धर्मग्रंथों और लेखों को लिखने के लिए एकदम सही मानी जाती थी। कालिदास और सुश्रुत जैसे शुरुआती संस्कृत लेखकों और विद्वानों ने भी इसके उपयोग का उल्लेख किया है। सदियों तक, यह प्राचीन भारत के विशाल ज्ञान के भंडार को संरक्षित करने का माध्यम बना रहा। सोचिए, पवित्र ग्रंथों, कानूनी दस्तावेज़ों और शाही फरमानों से भरे पूरे पुस्तकालय, इन सभी को ऊंचे पहाड़ों से लाए गए इन प्राकृतिक पन्नों पर बड़ी मेहनत से लिखा गया था। इसकी एक बेजोड़ मिसाल भोजपत्र पर लिखा श्रीरामचरितमानस का एक संपूर्ण ग्रंथ है, जो 300 साल से भी ज़्यादा पुराना है और इस अविश्वसनीय परंपरा का जीवंत प्रमाण है।
प्राचीन कागज़ की भूमिका के अलावा, भोजपत्र सचमुच एक प्राकृतिक औषधालय (नैचुरल फार्मेसी - Natural Phramacy) भी है। आयुर्वेद सहित पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियों ने लंबे समय से इसके शक्तिशाली चिकित्सीय गुणों को पहचाना है। पेड़ की छाल का वैज्ञानिक विश्लेषण करने पर बेटुलिन (Betulin) और बेटुलिनिक एसिड (Betulinic Acid) जैसे कई गुणकारी तत्वों का पता चलता है, जो विभिन्न प्रकार के औषधीय लाभों के लिए जिम्मेदार हैं। यह छाल एक जानी-मानी एंटीसेप्टिक (antiseptic) है और पाचन में भी सहायक होती है। इसके अर्क ने शक्तिशाली सूजन-रोधी, रोगाणुरोधी और एंटीऑक्सीडेंट (antioxidant) गुण भी दिखाए हैं।
शोध ने तो आधुनिक चिकित्सा में भी इन यौगिकों की क्षमता की ओर इशारा किया है। अध्ययनों से पता चला है कि ये विभिन्न बीमारियों के खिलाफ प्रभावी हैं, जिसमें कुछ कैंसर (cancer) कोशिकाओं के विकास को रोकने की क्षमता और यहाँ तक कि एचआईवी-रोधी (anti-HIV) गतिविधि भी शामिल है। इसकी पत्तियों का उपयोग भी मूत्र पथ के संक्रमण (Urinary Tract Infections) के पारंपरिक उपचार में किया जाता रहा है। औषधीय गुणों का यह गहरा खजाना उन समुदायों के लिए इस पेड़ के संपूर्ण महत्व को बताता है जो पीढ़ियों से इसकी छांव में रहते आए हैं।
भोजपत्र की विरासत सिर्फ प्राचीन इतिहास या वैज्ञानिक पत्रिकाओं तक ही सीमित नहीं है; यह एक जीवंत परंपरा है जो आज भी विकसित हो रही है। उत्तराखंड के चमोली जिले में, जो भोजपत्र के मूल निवास स्थान के बीच बसा एक क्षेत्र है, सांस्कृतिक पुनरुत्थान और आर्थिक सशक्तिकरण की एक अनूठी कहानी सामने आ रही है। यहाँ, स्थानीय स्वयं सहायता समूहों (Self-Help Groups) की महिलाएँ भोजपत्र की छाल पर काम करने की प्राचीन कला को एक नया जीवन दे रही हैं। वे अब धर्मग्रंथ नहीं लिख रही हैं, बल्कि इसके बजाय वे अपनी सांस्कृतिक विरासत के सार को दर्शाने वाली उत्तम दस्तकारी, कलाकृतियाँ और यादगार वस्तुएँ बना रही हैं।
इस पहल को एक बड़ा प्रोत्साहन तब मिला, जब तिब्बत सीमा से पहले भारत के आखिरी गांव, माणा के एक स्वयं सहायता समूह की सदस्यों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भोजपत्र पर बनी एक कलाकृति भेंट की। प्रधानमंत्री ने भी अपने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में उनके इन प्रयासों की जमकर सराहना की। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे यह प्राचीन विरासत उत्तराखंड की महिलाओं के लिए नए अवसर ला रही है।
इस राष्ट्रीय पहचान मिलने के बाद उनके अनोखे उत्पादों की मांग में भारी उछाल आया है। तब से जिला प्रशासन भी इन महिलाओं की मदद के लिए आगे आया है। प्रशासन की ओर से उन्हें सुलेख (कैलीग्राफी - Calligraphy) और उन्नत कला तकनीकों का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसका मकसद उन्हें छाल पर बद्रीनाथ मंदिर के चित्र, पवित्र मंत्र और अन्य सांस्कृतिक प्रतीकों जैसी आकर्षक वस्तुएं बनाने में मदद करना है। इस प्रयास के माध्यम से, चमोली की महिलाएँ न केवल अपनी अमूल्य धरोहर को संरक्षित कर रही हैं, बल्कि वे आत्मनिर्भरता और आर्थिक स्वतंत्रता की राह पर भी आगे बढ़ रही हैं, और अपनी कला से एक नई पहचान बना रही हैं।

श्रीरामचरितमानस के पवित्र श्लोकों से लेकर चमोली की महिलाओं के कुशल हाथों तक, भोजपत्र की कहानी दृढ़ता, उपयोगिता और सांस्कृतिक निरंतरता की एक शक्तिशाली गाथा है। यह "वनस्पति और उसका परिवेश" (Flora by Habitat) का एक सटीक उदाहरण है।
हम हरिद्वार वासियों के लिए, जो इसके पहाड़ी घर की तलहटी में बसे हैं, भोजपत्र एक प्रेरणा का स्रोत है। यह इस बात का प्रतीक है कि प्रकृति हमें सिर्फ जीविका ही नहीं देती, बल्कि हमारे इतिहास के लिए एक पटल, हमारी बीमारियों के लिए एक औषधालय और हमारे भविष्य के लिए एक बुनियाद भी प्रदान करती है। इसकी जीवंत विरासत हमें याद दिलाती है कि हम भी अपने आस-पास के अनूठे परिवेश को देखें, अपने क्षेत्र की वनस्पतियों को समझें, और चमोली की महिलाओं की तरह, परंपरा को आधुनिक जीवन के साथ जोड़ने के नए-नए तरीके खोजें।
संदर्भ
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https://tinyurl.com/2ab6u4g2
https://tinyurl.com/28sz7zvy
https://tinyurl.com/24jjh6qk
https://tinyurl.com/2ycu9g83
https://tinyurl.com/2yea8owm