कोशिकीय जीवन कैसे बन रहा है, गंगा नदी की पवित्रता का वैज्ञानिक आधार?

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30-10-2025 09:10 AM
कोशिकीय जीवन कैसे बन रहा है, गंगा नदी की पवित्रता का वैज्ञानिक आधार?

हरिद्वार के निवासियों के लिए गंगा सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि जीवनदायिनी भी है। यह एक आध्यात्मिक शक्ति है और हमारे दैनिक जीवन की लय में हमेशा मौजूद रहती है। गंगा नदी के जल को इसकी पवित्रता के लिए पूजा जाता है! यह एक ऐसा गुण है जो प्राचीन आस्था और आधुनिक वैज्ञानिक जिज्ञासा दोनों का विषय रहा है। लेकिन क्या हो अगर इसकी यह प्रसिद्ध शुद्धता केवल एक पौराणिक कथा न होकर, एक जटिल जैविक सच्चाई हो, जिसे सूक्ष्म जीवों की एक अदृश्य दुनिया संचालित करती हो? 
गंगा के अनूठे पारिस्थितिकी तंत्र को समझने के लिए, हमें सबसे पहले जीव विज्ञान की एक मौलिक अवधारणा को समझना होगा! यह अवधारण है, कोशिकीय और अकोशिकीय जीवन के बीच का अंतर। हम आमतौर पर जिन जीवित प्राणियों के बारे में सोचते हैं - (छोटे-छोटे कीड़ों से लेकर विशाल हाथियों तक, और यहाँ तक कि हम इंसान भी) - कोशिकाओं से बने होते हैं।

कोशिका (Cell) सभी ज्ञात जीवों की मूल निर्माण इकाई है। यह एक सुसंगठित संरचना है जिसमें एक केंद्रक (Nucleus) होता है, जहाँ हमारी आनुवंशिक सामग्री (DNA) रहती है। इसके अलावा कोशिका में अन्य अंग होते हैं जो जीवन के कार्यों, जैसे विकास, चयापचय (metabolism) और प्रजनन को पूरा करने के लिए मिलकर काम करते हैं। इन्हें कोशिकीय जीव कहा जाता है।

हालाँकि, जैविक इकाइयों की एक और श्रेणी अकोशिकीय (non-cellular) भी मौजूद है। इन्हें पारंपरिक अर्थों में 'जीवित' नहीं माना जाता क्योंकि इनमें एक कोशिका की जटिल मशीनरी का अभाव होता है। ये अपने आप प्रजनन नहीं कर सकते, बल्कि अपनी संख्या बढ़ाने के लिए किसी मेजबान (host) की कोशिकीय मशीनरी पर कब्ज़ा कर लेते हैं।

अकोशिकीय इकाइयों का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण विषाणु (Virus) है। वे अनिवार्य रूप से न्यूनतम जैविक मशीनें हैं, जिनमें एक प्रोटीन के खोल में बंद आनुवंशिक सामग्री (जैसे DNA या RNA) होती है। यह अंतर अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यही वह मंच तैयार करता है जिस पर गंगा के पानी की हर बूंद में एक अद्भुत नाटक खेला जाता है।

सदियों से यह देखा गया है कि गंगा के जल में सड़न के प्रति एक गज़ब की प्रतिरोधक क्षमता है। यह कोई कोरी लोककथा नहीं है। हाल के वैज्ञानिक अनुसंधानों ने इन दावे की पुष्टि आश्चर्यजनक स्पष्टता के साथ की है। इकोनॉमिक टाइम्स (Economic Times) की एक रिपोर्ट के अनुसार, विशेषज्ञों ने पाया है कि गंगा दुनिया की एक अनूठी मीठे पानी की नदी है जहाँ रोगाणु दुनिया की किसी भी अन्य नदी की तुलना में 50 गुना तेजी से खत्म हो जाते हैं।

यह असाधारण रोगाणु-नाशक गुण एक विशेष प्रकार की अकोशिकीय इकाई - बैक्टीरियोफेज (Bacteriophage) - की उच्च सांद्रता के कारण है। बैक्टीरियोफेज, या जिन्हें केवल "फेज" भी कहा जाता है, ऐसे विषाणु हैं जो विशेष रूप से जीवाणुओं (bacteria) को संक्रमित करके उन्हें मार डालते हैं। इनके नाम का शाब्दिक अर्थ ही "जीवाणु-भक्षक" होता है। ये पृथ्वी पर सबसे प्रचुर जैविक इकाइयाँ हैं, और गंगा इन सूक्ष्म शिकारियों का एक विशेष रूप से समृद्ध भंडार है। उनकी उपस्थिति हानिकारक जीवाणुओं सहित अन्य बैक्टीरियल आबादी को नियंत्रित करने के लिए एक शक्तिशाली, प्राकृतिक तंत्र प्रदान करती है। बैक्टीरियोफेज की यही प्रचुरता नदी के पूजनीय स्व-शोधन गुण का वैज्ञानिक स्पष्टीकरण है।

गंगा के फेज-समृद्ध वातावरण का महत्व केवल इसके पारिस्थितिक स्वास्थ्य से कहीं बढ़कर है। एक ऐसी दुनिया में जो एंटीबायोटिक प्रतिरोध के बढ़ते संकट से जूझ रही है, जहाँ सामान्य बैक्टीरियल संक्रमण का इलाज करना भी मुश्किल होता जा रहा है, वहाँ बैक्टीरियोफेज आशा की एक किरण जगाते हैं।

ये अत्यधिक विशिष्ट होते हैं, जिसका अर्थ है कि एक विशेष प्रकार का फेज केवल एक ही विशेष प्रकार के बैक्टीरिया को संक्रमित करेगा, जबकि यह मानव कोशिकाओं और फायदेमंद बैक्टीरिया को कोई नुकसान नहीं पहुँचाएगा। यह विशिष्टता ब्रॉड-स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक (Broad-spectrum antibiotic) दवाओं की तुलना में एक महत्वपूर्ण लाभ है, जो अक्सर शरीर के प्राकृतिक माइक्रोबायोम (सूक्ष्मजीवों का तंत्र) को भी खत्म कर देती हैं।

वैज्ञानिक अध्ययनों ने फेज की प्रभावशीलता को बड़े पैमाने पर प्रमाणित किया है। उदाहरण के लिए, अमेरिकी राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन (National Library of Medicine) के पीएमसी (PMC - PubMed Central) के अभिलेखागार में प्रकाशित एक शोध ने हैजा के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया (विब्रियो कॉलेरी - Vibrio cholerae) को मारने की बैक्टीरियोफेज की शक्तिशाली क्षमता का प्रदर्शन किया। अध्ययन से पता चला कि ये फेज हैजा के बैक्टीरिया की वृद्धि को प्रभावी ढंग से नियंत्रित कर सकते हैं, जिससे उनकी चिकित्सीय क्षमता उजागर होती है। यह देखते हुए कि गंगा ऐतिहासिक रूप से हैजा के प्रकोप से जुड़ी रही है, इन प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले फेज की उपस्थिति, प्रकृति की अपनी सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का एक उल्लेखनीय उदाहरण है।

अब "फेज थेरेपी" (Phage Therapy) की क्षमता को एंटीबायोटिक दवाओं के एक व्यवहार्य विकल्प के रूप में गंभीरता से खोजा जा रहा है। जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च (Journal of Pharmaceutical Technology and Research) में प्रकाशित एक समीक्षा इस बात पर जोर देती है कि बैक्टीरियोफेज अपनी उच्च विशिष्टता और मनुष्यों, पौधों और जानवरों के लिए सुरक्षा के कारण एक आकर्षक चिकित्सीय एजेंट हैं। जैसे-जैसे मल्टीड्रग-प्रतिरोधी बैक्टीरिया (multidrug-resistant bacteria), यानी "सुपरबग्स" (Superbugs) उभरते रहेंगे, गंगा जैसे वातावरण में मौजूद फेज का विशाल और अछूता खजाना नए उपचार विकसित करने के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन बन सकता है।

कोशिका की मौलिक प्रकृति से लेकर अत्याधुनिक चिकित्सा अनुसंधान तक की यह यात्रा, हरिद्वार से एक सीधा और ठोस संबंध रखती है। यह शहर आईसीएमआर (ICMR) - राष्ट्रीय मलेरिया अनुसंधान संस्थान (NIMR) की एक फील्ड यूनिट (field unit) का घर है। यह संस्थान वेक्टर-जनित रोगों के अनुसंधान और नियंत्रण के लिए समर्पित एक प्रमुख संगठन है।

हालांकि उनका प्राथमिक ध्यान मलेरिया जैसी बीमारियों पर है, जो एक कोशिकीय परजीवी (प्रोटोजोआ - Protozoa) के कारण होता है, लेकिन हरिद्वार में इतने उच्च स्तरीय वैज्ञानिक निकाय की उपस्थिति, भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य और सूक्ष्मजैविक अनुसंधान के व्यापक परिदृश्य में इस शहर की भूमिका को रेखांकित करती है। एनआईएमआर (NIMR) की फील्ड यूनिट में वैज्ञानिकों द्वारा किया जा रहा कार्य, सूक्ष्म स्तर पर बीमारियों को समझने और उनसे निपटने के निरंतर प्रयास का एक प्रमाण है। गंगा के बैक्टीरियोफेज की जांच और एनआईएमआर द्वारा किया जा रहा अनुसंधान, एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दोनों ही मानव स्वास्थ्य की रक्षा के लिए कोशिकीय और अकोशिकीय जीवों की जटिल दुनिया में एक गहरी डुबकी हैं।


संदर्भ 

https://tinyurl.com/2bgveznu 

https://tinyurl.com/29jlwnsb 

https://tinyurl.com/25lzchx6 

https://tinyurl.com/2mnm45nb 

https://tinyurl.com/2bwxbn3v

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