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"देवताओं के द्वार" हरिद्वार के निवासियों के लिए जंगली जानवरों की हलचल और इंसानी दुनिया का साथ कोई नई बात नहीं है। हमने कई वीडियो देखे हैं, कई कहानियाँ सुनी हैं - कैसे रात के अँधेरे में कोई तेंदुआ हमारी जानी-पहचानी गलियों में घुस आता है। यह हमें उस अनछुई जंगली दुनिया की याद दिलाता है जो हमारे घरों के ठीक बाहर साँस ले रही है।
हाल ही में शहर में एक सोते हुए कुत्ते पर तेंदुए के हमले और फिर कुत्तों के झुंड द्वारा की गई जवाबी लड़ाई की घटना इस बात का जीता-जागता प्रमाण है कि कैसे प्रकृति का उन्मुक्त रूप हमारी भागदौड़ भरी जिंदगी के साथ-साथ मौजूद है। यह घटना, जो हमारे घरों के इतने करीब हुई, हमें एक बड़ी और भव्य कहानी की ओर ले जाती है। यह कहानी हमारे राज्य की ऊँची चोटियों पर, महान हिमालय के उस साम्राज्य में घटती है। यह कहानी है एक दूसरे, कहीं ज़्यादा मायावी शिकारी की - एक ऐसा जीव जो मिथकों और धुंध में लिपटा रहता है - हिम तेंदुआ।
बर्फीली चोटियों की ओर बढ़ने से पहले, आइए पहले स्तनधारी जीवों की विशाल और विविध दुनिया को समझते हैं। स्तनधारी (Mammals), जीवों का वह वर्ग है जिससे हम इंसान और हरिद्वार के तेंदुए ताल्लुक रखते हैं। यह वास्तव में एक असाधारण समूह है। इनकी पहचान अपने बच्चों को दूध पिलाने की क्षमता, गर्म खून, शरीर पर बाल या फर की उपस्थिति और एक जटिल मस्तिष्क से होती है। समंदर की गहराइयों में तैरती विशाल ब्लू व्हेल (Blue Whale) से लेकर सांझ के धुंधलके में उड़ते छोटे से भौंरा-चमगादड़ तक, स्तनधारी जीवों ने पृथ्वी के हर कोने पर अपना बसेरा बनाया है। वे बुद्धिमान और सामाजिक हैं, और उन्होंने इस ग्रह पर जीवन की दिशा को आकार दिया है। स्तनधारी जीवों की इसी विशाल दुनिया का हिस्सा है वह जीव, जो ऊँचे पहाड़ों की आत्मा का प्रतीक है “हिम तेंदुआ।”

"पहाड़ों का भूत" (Ghost of the Mountains) के नाम से मशहूर हिम तेंदुआ (पैंथेरा अनकिया) अद्भुत सुंदरता और रहस्य का प्रतीक है। इसका मोटा, धुएँ जैसे सलेटी रंग का फर, जिस पर गहरे धब्बों का पैटर्न होता है, इसे चट्टानी और बर्फ से ढकी ढलानों पर छिपने में पूरी मदद करता है। यह एक ऐसी बिल्ली है जो कड़ाके की ठंड के लिए ही बनी है। इसके बड़े, रोएँदार पंजे प्राकृतिक स्नोशू (snowshoes) का काम करते हैं, जो उसके वजन को फैलाकर उसे बर्फ में धँसने से रोकते हैं। शरीर जितनी ही लंबी और मोटी पूँछ खतरनाक चट्टानों पर संतुलन के लिए पतवार का काम करती है और कड़कड़ाती ठंड में शरीर से लिपटकर गर्मी भी देती है। यहाँ तक कि इसकी नाक भी खास तौर पर बनी है, जो बर्फीली हवा को फेफड़ों तक पहुँचने से पहले ही गर्म कर देती है।
हिम तेंदुआ अकेला रहने वाला जीव और एक मूक शिकारी है, जो हिमालय के विशाल, वीरान विस्तार में अपने शिकार-मुख्य रूप से भरल (नीली भेड़) और आइबेक्स (Ibex) - को दबे पाँव ढूँढता है। यह अपने पारिस्थितिकी तंत्र का सर्वोच्च शिकारी है, जो ऊँचाई वाले क्षेत्रों की खाद्य श्रृंखला का नाजुक संतुलन बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। इसकी उपस्थिति ही एक स्वस्थ पहाड़ी वातावरण का संकेत मानी जाती है।
लेकिन यह शानदार जीव भी एक खामोश संकट का सामना कर रहा है। अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने हिम तेंदुए को "असुरक्षित" (Vulnerable) की श्रेणी में सूचीबद्ध किया है। आज पूरी दुनिया के जंगलों में 10,000 से भी कम वयस्क हिम तेंदुए बचे हैं।
हिम तेंदुए के सामने मौजूद खतरे कई और जटिल हैं। इसकी खूबसूरत खाल और शरीर के अंगों के अवैध व्यापार के लिए किया जाने वाला अवैध शिकार आज भी एक बहुत बड़ा खतरा बना हुआ है। जैसे-जैसे इंसानी बस्तियाँ पहाड़ों की ओर फैल रही हैं, हिम तेंदुए का प्राकृतिक आवास भी सिकुड़ रहा है और टुकड़ों में बँट रहा है। इससे मानव-वन्यजीव संघर्ष में भी बढ़ोतरी हो रही है, जहाँ हिम तेंदुए के हाथों अपने मवेशी खोने वाले पशुपालक बदले की भावना से इन बड़ी बिल्लियों को मार देते हैं।
इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन का खतरा भी इन पर मंडरा रहा है। तापमान बढ़ने के कारण पेड़ों की कतार (tree line) पहाड़ों पर ऊपर की ओर खिसक रही है। इससे उन अल्पाइन घास के मैदानों का अतिक्रमण हो रहा है, जो हिम तेंदुए का पसंदीदा निवास स्थान हैं।
लेकिन इन चुनौतियों के बीच, आशा की एक किरण भी है, और यह किरण हमारे अपने राज्य उत्तराखंड से ही निकल रही है। भारत में हिम तेंदुए की आबादी पर हुए पहले व्यापक सर्वेक्षण में कुछ उत्साहजनक खबरें सामने आई हैं। साल 2019 से 2023 के बीच किए गए इस अध्ययन से अनुमान लगाया गया है कि भारत में 718 हिम तेंदुए हैं। इनमें से पूरे 124 हिम तेंदुए उत्तराखंड में हैं, जो हमारे राज्य को लद्दाख के बाद देश में इस दुर्लभ जीव की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला घर बनाता है।
यह सफलता राज्य के वन विभाग, वन्यजीव वैज्ञानिकों और स्थानीय समुदायों के समर्पित संरक्षण प्रयासों का सीधा प्रमाण है। इस सर्वेक्षण में हजारों किलोमीटर के दुर्गम इलाकों से गुजरना और सैकड़ों कैमरा ट्रैप (Camera Trap) लगाना शामिल था। इसने हमें हिम तेंदुए के वितरण और संख्या की एक नई और अधिक सटीक समझ दी है। इस अध्ययन में गंगोत्री नेशनल पार्क को इस प्रजाति के लिए एक महत्वपूर्ण गढ़ के रूप में पहचाना गया है, जो इस क्षेत्र के अन्य संरक्षित क्षेत्रों को जोड़ने वाला संरक्षण का एक अहम पड़ाव है।
लेकिन उत्तराखंड में हिम तेंदुए की कहानी में अब एक नया और हैरान करने वाला अध्याय जुड़ गया है। हाल के कुछ वर्षों में, अधिक ऊँचाई पर रहने वाले इन ज़बरदस्त शिकारियों को पहले के मुकाबले काफी कम ऊँचाई पर देखा गया है। साल 2020 में, नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व (Nanda Devi Biosphere Reserve) में एक हिम तेंदुए को 10,000 फीट की ऊँचाई पर देखा गया था। इसके अगले ही साल, फूलों की घाटी (Valley of Flowers) में कैमरा ट्रैप में एक हिम तेंदुए की तस्वीरें कैद हुईं, जो और भी कम, यानी 11,400 फीट की ऊँचाई पर था। यह उनके सामान्य निवास स्थान से हजारों फीट नीचे है।
आखिर उनके व्यवहार में इस बदलाव का कारण क्या है? विशेषज्ञों का मानना है कि यह कई कारकों का मिला-जुला असर हो सकता है। संभव है कि महामारी के कारण इन इलाकों में इंसानी चहल-पहल में आई कमी ने इन बिल्लियों को नए क्षेत्रों में घूमने की हिम्मत दी हो। मौसम का बदलता मिजाज, जिसमें ऊँची चोटियों पर लंबे समय तक बर्फबारी होना शामिल है, भी एक भूमिका निभा सकता है। हो सकता है कि हिम तेंदुए अपने शिकार, यानी नीली भेड़ों (भरल) का पीछा करते हुए भोजन की तलाश में कम ऊँचाई पर आ रहे हों। दिलचस्प बात यह है कि फूलों की घाटी में कैमरा ट्रैप ने उसी इलाके में एक आम तेंदुए (गुलदार) की तस्वीरें भी कैद कीं, जो इन दोनों प्रजातियों के इलाकों के आपस में मिलने का संकेत देता है।
हिम तेंदुए की यह गाथा अस्तित्व, अनुकूलन और उन बारीक रिश्तों की कहानी है जो सभी जीवित प्राणियों को एक-दूसरे से जोड़ते हैं। यह एक ऐसी कहानी है जो हमारे अपने राज्य के लुभावने परिदृश्यों में जन्म लेती है, एक ऐसी कहानी जिसका हिस्सा हरिद्वार के निवासी होने के नाते हम भी हैं। "पहाड़ों के इस भूत" का भविष्य उस नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने की हमारी सामूहिक इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है जिसमें वह रहता है। यह एक ऐसी ज़िम्मेदारी है जो हरिद्वार में गंगा के पवित्र तटों से लेकर हिमालय की बर्फीली चोटियों तक फैली हुई है। हिम तेंदुए की यह अनदेखी उपस्थिति उत्तराखंड की उस जंगली आत्मा की याद दिलाती है, जिसे हमेशा धड़कता हुआ बनाए रखने का प्रयास हम सभी को करना चाहिए।
सारांश