अच्छी सेहत और सफ़ल रोजगार देने वाली गोल्डन महाशीर आख़िर क्यों आज खुद विलुप्त होने को हैं?

मछलियाँ और उभयचर
30-10-2025 09:10 AM
अच्छी सेहत और सफ़ल रोजगार देने वाली गोल्डन महाशीर आख़िर क्यों आज खुद विलुप्त होने को हैं?

हरिद्वार की कहानी गंगा के बहते जल से अटूट रूप से जुड़ी हुई है। यह नदी न केवल एक आध्यात्मिक जीवन रेखा है, बल्कि जलीय जीवन की अद्भुत विविधता से भरा एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र भी है। इस पवित्र जल की सतह के नीचे अविश्वसनीय जैव विविधता की दुनिया है, जिसमें मछलियाँ और उभयचर उत्तराखंड की प्राकृतिक विरासत का एक अभिन्न अंग हैं। आज के इस लेख में हम पानी के नीचे के इसी संसार की पड़ताल करेंगे, जिसमें एक ऐसे शानदार जीव पर विशेष ध्यान दिया गया है जो इस राज्य का प्रतीक भी है और हिमालय की अदम्य आत्मा का प्रमाण भी। इस जीव का नाम है - “गोल्डन महाशीर (Golden Mahseer)।”

इससे पहले कि हम बेशकीमती महाशीर को खोजने की अपनी यात्रा शुरू करें, आइए पहले उस विशाल परिवार को समझें जिससे वह संबंध रखती है। 'मछली' शब्द रीढ़ की हड्डी वाले (vertebrate) जानवरों के एक विशाल और विविध समूह के लिए उपयोग होता है, जिन्होंने ऊँची पहाड़ी धाराओं से लेकर गहरे महासागरों तक, पृथ्वी के लगभग हर जलीय स्थान को सफलतापूर्वक अपना घर बना लिया है। मछलियों की 34,000 से अधिक ज्ञात प्रजातियाँ हैं, जो उन्हें सभी रीढ़ की हड्डी वाले जीवों में सबसे अधिक संख्या वाला समूह बनाती है।

मछलियाँ पृथ्वी पर 45 करोड़ वर्षों से भी अधिक समय से अस्तित्व में हैं, और इतने लंबे समय में, वे आश्चर्यजनक रूप से विभिन्न रूपों में विकसित हुई हैं। इनमें जबड़े-रहित लैम्प्रे जैसे प्राचीन जीव शामिल हैं, जो डायनासोर (Dinosaur) से भी पहले के हैं, तो वहीं शार्क और रे जैसी नरम हड्डी (cartilaginous) वाली मछलियाँ भी हैं। लेकिन इनका सबसे बड़ा और विविध समूह हड्डी वाली मछलियों का है। दुनिया की ज़्यादातर मछलियाँ इसी समूह में आती हैं, जिसमें साधारण कार्प मछली से लेकर शक्तिशाली महाशीर तक सब कुछ शामिल है। साइप्रिनिडे (Cyprinidae) परिवार, जिससे गोल्डन महाशीर आती है, दुनिया में मीठे पानी की मछलियों का सबसे बड़ा परिवार है।

इन जलीय जीवों ने पानी की दुनिया में फलने-फूलने के लिए खुद को अनोखे तरीकों से ढाला है। अधिकांश मछलियाँ असमतापी (cold-blooded) होती हैं, यानी उनके शरीर का तापमान आसपास के वातावरण के अनुसार बदलता है। वे साँस लेने के लिए गलफड़ों (gills) का उपयोग करती हैं, जो पानी से ऑक्सीजन (Oxygen) खींचने के लिए बनी एक जटिल संरचना है। इनका शरीर आमतौर पर तैरने के लिए सुव्यवस्थित (streamlined) होता है और एक सुरक्षात्मक परत के रूप में शल्कों (scales) से ढका रहता है। मछलियों का यही प्राचीन और सफल वंश हमारी कहानी की पृष्ठभूमि तैयार करता है।

उत्तराखंड की नदियों में पाई जाने वाली अनगिनत प्रजातियों के बीच एक मछली ऐसी है, जिसे खास सम्मान हासिल है। इसका नाम है - गोल्डन महाशीर (Tor putitora)। गोल्डन महाशीर को उत्तराखंड की 'राज्य मछली' घोषित किया गया है। यह मुख्य रूप से हिमालय क्षेत्र की तेज बहने वाली और पथरीली नदियों में पाई जाती है। अपने शानदार आकार और जबरदस्त ताकत के कारण, इसे 'पानी का बाघ' (tiger of the water) भी कहा जाता है। यही वजह है कि मछली पकड़ने के शौकीनों (anglers) के लिए यह किसी बेशकीमती खजाने से कम नहीं है।

गोल्डन महाशीर एक बेहद शानदार जीव है। इसके शरीर पर बड़े-बड़े शल्क (scales) होते हैं और इसका शक्तिशाली, मांसल शरीर सुनहरे रंगों से चमकता है। इस मछली ने लाखों वर्षों में खुद को हिमालय की नदियों की मुश्किल परिस्थितियों के लिए ढाला है, जहाँ तेज बहाव और पथरीले तल होते हैं। यह मछली इस क्षेत्र के जलीय पारिस्थितिकी तंत्र की अनछुई और जंगली सुंदरता का जीता-जागता सबूत है।

लेकिन, आज इस प्रतिष्ठित प्रजाति का भविष्य खतरे में है। अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) ने गोल्डन महाशीर को 'संकटग्रस्त' (Endangered) प्रजातियों की सूची में डाल दिया है। इसके अस्तित्व पर मंडरा रहे खतरे कई हैं और ज़्यादातर इंसान की गतिविधियों की देन हैं। बांधों और अन्य निर्माण कार्यों के कारण इसका प्राकृतिक आवास (habitat) खत्म हो रहा है, जिससे इनकी आबादी बिखर गई है और इनके प्रवास के रास्ते भी बंद हो गए हैं। फैक्ट्रियों और घरों से निकलने वाले प्रदूषण ने नदियों के पानी को खराब कर दिया है। इसके अलावा, गलत और विनाशकारी तरीकों से बहुत ज़्यादा मछली पकड़ने (overfishing) के कारण इनकी संख्या में भारी कमी आई है। आज इस शानदार मछली का अस्तित्व दांव पर लगा है, और इसके साथ ही पूरी नदी के पारिस्थितिकी तंत्र का स्वास्थ्य भी।

गंगा नदी, जो हरिद्वार और पूरे उत्तर भारत की पहचान है, गोल्डन महाशीर और कई अन्य जलीय प्रजातियों का मुख्य घर है। गंगा नदी पर हुए एक अध्ययन से पता चलता है कि यहाँ का पारिस्थितिकी तंत्र काफी जटिल है और लगातार बदल रहा है। नदी में जहाँ देसी मछलियों की भरमार है, वहीं अब विदेशी (exotic) यानी गैर-देशी प्रजातियों की संख्या भी बढ़ रही है। ये विदेशी प्रजातियाँ, जिन्हें अक्सर मछली पालन के लिए बाहर से लाया जाता है, भोजन और संसाधनों के लिए देसी मछलियों से मुकाबला करती हैं। इसका कई बार देसी आबादी पर बुरा असर पड़ता है। नदी में मत्स्य पालन के प्रभावी संरक्षण और प्रबंधन के लिए इन विभिन्न प्रजातियों के बीच के संतुलन को समझना बहुत ज़रूरी है।

उत्तराखंड में मछलियों की कहानी सिर्फ चुनौतियों की ही नहीं, बल्कि इंसानी सूझबूझ और मुश्किलों से लड़ने की क्षमता की भी है। हाल के वर्षों में, मत्स्य पालन और एक्वाकल्चर (aquaculture) के महत्व को तेजी से पहचाना गया है। यह अब सिर्फ भोजन का स्रोत नहीं, बल्कि स्थानीय समुदायों के लिए आजीविका और आर्थिक मजबूती का एक बड़ा साधन भी है।

इस बदलाव में हरिद्वार में दिए जा रहे मत्स्य पालन प्रशिक्षण कार्यक्रम एक अहम भूमिका निभा रहे हैं। ये कार्यक्रम किसानों को मछली पालन के वैज्ञानिक तरीके अपनाने के लिए ज़रूरी ज्ञान और कौशल दे रहे हैं, जिससे उनकी पैदावार और मुनाफा दोनों बढ़ रहा है। तालाब के प्रबंधन से लेकर बीमारियों की रोकथाम तक, हर पहलू पर प्रशिक्षण देकर ये पहल मछली किसानों की एक नई पीढ़ी तैयार कर रही है, जो स्थायी तरीकों से मछली की बढ़ती मांग को पूरा करने में सक्षम है।

सबसे प्रेरणादायक बात यह है कि इस नए अध्याय में महिलाएँ बढ़-चढ़कर नेतृत्व कर रही हैं। रूपम सिंह जैसी महिलाएँ मछली पालन में 'नारी शक्ति' का एक सशक्त उदाहरण पेश कर रही हैं। वे अपने परिवार के मछली पालन व्यवसाय की बागडोर संभालकर न केवल घर की आय बढ़ा रही हैं, बल्कि पारंपरिक लैंगिक भूमिकाओं को चुनौती देकर अपने समुदायों में एक नई पहचान भी बना रही हैं। ये महिलाएँ एक-एक तालाब के जरिए ग्रामीण उत्तराखंड के सामाजिक-आर्थिक ताने-बाने को बदलने में सबसे आगे हैं।


संदर्भ 

https://tinyurl.com/q4h2bj2 

https://tinyurl.com/2blyhnt9 

https://tinyurl.com/2x5vqko6 

https://tinyurl.com/2xhgtooy 

https://tinyurl.com/28zlqv9u 

https://tinyurl.com/2534qeed 

https://tinyurl.com/26r5bjet 

https://tinyurl.com/28mpwcpj 



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