विश्व पुस्तक दिवस पर चलिए भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे बड़े पुस्तकालय में

औपनिवेशिक काल और विश्व युद्ध : 1780 ई. से 1947 ई.
24-04-2024 09:24 AM
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विश्व पुस्तक दिवस पर चलिए भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे बड़े पुस्तकालय में

कोलकाता में स्थित 'नेशनल लाइब्रेरी' (National Library), पूर्वी भारत का पहला सार्वजनिक पुस्तकालय और पूरे भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा पुस्तकालय है। इस पुस्तकालय को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) द्वारा संरक्षण प्राप्त था। यह पुस्तकालय कोलकाता के बेल्वेडियर एस्टेट (Belvedere Estate) इलाके में स्थित है। इस पुस्तकालय में लगभग 22,71,000 पुस्तकों और पांडुलिपियों, पत्रिकाओं और समाचार पत्रों का विशाल संग्रह है। यह पुस्तकालय 'भारत सरकार' के 'पर्यटन और संस्कृति मंत्रालय' (Ministry of Tourism and Culture) के अंतर्गत राष्ट्रीय महत्व की एक संस्था है। राष्ट्रीय पुस्तकालय की स्थापना मूल रूप से देश के भीतर उत्पादित सामग्री को एकत्र करने, वितरित करने और संरक्षित करने के लिए की गई थी।आइए आज के इस लेख में नेशनल लाइब्रेरी और इसमें मौजूद पुस्तकों के विशाल संग्रह के विषय में और अधिक जानकारी प्राप्त करते हैं। नेशनल लाइब्रेरी की शुरुआत 21 मार्च 1836 को 'कलकत्ता पब्लिक लाइब्रेरी' (Calcutta Public Library) की स्थापना के साथ शुरू हुई थी। प्रचलित मान्यता के अनुसार नेशनल लाइब्रेरी के भवन का निर्माण अजीम-उस-शान द्वारा 1700 ईसवी में कराया गया था। 1850 में ब्रिटिश सरकार ने इस महलनुमा घर का कार्यभार अपने हाथों में ले लिया। यह बंगाल के उपराज्यपाल का आधिकारिक निवास बन गया।
कलकत्ता पब्लिक लाइब्रेरी का एक अद्वितीय स्थान था और जिसके पहले मालिक द्वारकानाथ टैगोर थे। पुस्तकालय द्वारा विशेषकर ब्रिटेन से भारतीय और विदेशी दोनों पुस्तकें खरीदीं गई। 1850 की रिपोर्ट में बताया गया कि पुस्तकालय में गुजराती, मराठी, पाली, पंजाबी के साथ-साथ सीलोनीज़ (Ceylonese) भाषा में भी पुस्तकें एकत्र की गई थी। बंगाल और उत्तर पश्चिमी प्रांतों की सरकारों द्वारा पुस्तकालय के कामकाज के लिए नियमित रूप से वित्त पोषण दिया जाता था।
1981 में सभी सचिवालय पुस्तकालयों को एकीकृत करके 'इंपीरियल सचिवालय लाइब्रेरी' (Imperial Secretariat Library) की स्थापना की गई। वर्ष 1902 में, लॉर्ड कर्जन (Lord Curzon) ने कलकत्ता पब्लिक लाइब्रेरी और इंपीरियल सेक्रेटेरियट लाइब्रेरी को एकीकृत करके इंपीरियल लाइब्रेरी की स्थापना की। भारत की स्वतंत्रता के बाद, 1948 में "इंपीरियल लाइब्रेरी अधिनियम" द्वारा इंपीरियल लाइब्रेरी का नाम बदलकर 'नेशनल लाइब्रेरी' रख दिया गया। इसे भारत के संविधान की अनुसूची 7 के अनुच्छेद 62 में राष्ट्रीय महत्व के संस्थान का विशेष दर्जा दिया गया और 1 फरवरी 1953 को आम जनता के लिए खोल दिया गया, जिसका उद्घाटन मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ने किया। श्री बी एस केसवन को राष्ट्रीय पुस्तकालय, कोलकाता के पहले पुस्तकालयाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। भारत में प्रकाशित सभी पुस्तकों, समाचार पत्रों और पत्रिकाओं को स्थायी रूप से नेशनल लाइब्रेरी में संग्रहीत किया जाता है। इस पुस्तकालय को "पुस्तकों और समाचार पत्रों के वितरण (सार्वजनिक पुस्तकालय) अधिनियम, 1954" (Delivery of Books and Newspapers (Public Libraries) Act, 1954) के प्रावधानों के तहत भारत में प्रकाशित सभी प्रकाशन प्राप्त होते हैं। इस अधिनियम में 1956 में संशोधन करके आवधिक प्रकाशनों, समाचार पत्रों और मानचित्रों को भी इसके दायरे में शामिल कर दिया गया है।
यह पुस्तकालय वर्ष के 362 दिनों के लिए खुला रहता है। पढ़ने, संदर्भ और ग्रंथ सूची सेवाओं के अलावा, किताबें सुरक्षा जमा राशि पर उधार दी जाती हैं। यहाँ माइक्रोफिल्म/माइक्रोफिश (microfiche) पढ़ने की सुविधा भी उपलब्ध है। पुस्तकालय द्वारा हर साल पुस्तकालय और सूचना विज्ञान से युवा स्नातकोत्तरों को इंटर्नशिप कार्यक्रम प्रदान किया जाता है। पुस्तकालय द्वारा यहाँ संग्रहित पुराने, दुर्लभ, भंगुर और महत्वपूर्ण दस्तावेजों से लगभग 80,00,000 पृष्ठों (25,000 पुस्तकों) को डिजिटलीकृत किया जा चुका है, जो संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार के तहत भारतीय संस्कृति पोर्टल (https:// Indianculture.gov.in/) के माध्यम से पाठकों के लिए उपलब्ध हैं।
पुस्तकालय में भारतीय और विदेशी भाषा की पुस्तकों और प्रकाशनों के विशेष प्रभाग हैं। भारतीय भाषा प्रभाग में गुजराती, मराठी, पंजाबी, कन्नड़, तमिल, तेलुगु आदि सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं की पुस्तकों, पत्रिकाओं और पांडुलिपियों का एक समृद्ध संग्रह है। संस्कृत भाषा प्रभाग में दुर्लभ पाली और प्राकृत पांडुलिपियाँ हैं। विदेशी भाषा प्रभाग को जर्मन प्रभाग, पूर्वी एशियाई प्रभाग, रोमन प्रभाग, पश्चिम एशिया, स्लावोनिक प्रभाग और अफ्रीकी प्रभाग जैसे वर्गों में वर्गीकृत किया गया है। ये सभी प्रभाग पुस्तकों, पांडुलिपियों और ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के शुरुआती दिनों से लेकर आज तक के भारतीय आधिकारिक दुर्लभ दस्तावेजों के संग्रह से भरे हुए हैं। राष्ट्रीय पुस्तकालय होने के कारण इस पुस्तकालय द्वारा कई महत्वपूर्ण कार्य भी किए जाते हैं जो निम्न प्रकार हैं:
➼ अल्पकालिक संग्रह को छोड़कर देश में उत्पादित सभी महत्वपूर्ण मुद्रित सामग्रियों का अधिग्रहण और संरक्षण;
➼ देश से संबंधित मुद्रित सामग्रियों का संग्रह, जहां भी प्रकाशित हो, और ऐसी सामग्रियों के फोटोग्राफिक रिकॉर्ड का अधिग्रहण, जो देश के भीतर उपलब्ध नहीं हैं;
➼ राष्ट्रीय महत्व वाली पांडुलिपियों का अधिग्रहण और संरक्षण;
➼ देश के लिए आवश्यक विदेशी सामग्रियों का नियोजित अधिग्रहण;
➼ सामान्य और विशिष्ट दोनों प्रकार की पूर्वव्यापी सामग्रियों की ग्रंथ सूची और दस्तावेज़ीकरण सेवा का प्रतिपादन;
➼ ग्रंथ सूची संबंधी गतिविधियों के सभी स्रोतों का पूर्ण और सटीक ज्ञान प्रदान करने वाले अभिनिर्देशन केंद्र के रूप में कार्य करना;
➼ फोटोकॉपी और प्रतिलिपिकरण सेवाओं का प्रावधान; और
➼ अंतर्राष्ट्रीय पुस्तक विनिमय और अंतर्राष्ट्रीय ऋण के केंद्र के रूप में कार्य करना।
राष्ट्रीय पुस्तकालय को संयुक्त राष्ट्र (United Nations) और उसकी एजेंसियों द्वारा एक भंडार पुस्तकालय होने का सम्मान प्राप्त है। इस कारण राष्ट्रीय पुस्तकालय संयुक्त राष्ट्र के सभी प्रकाशन निःशुल्क प्राप्त कर सकता है। राष्ट्रीय पुस्तकालय में न केवल पुस्तकों और लेखों का उल्लेखनीय भंडार है बल्कि यह एक ऐसा माध्यम भी है, जिसका उपयोग पिछली पीढ़ियों के साथ पत्राचार के लिए एक कड़ी के रूप में किया जाता है। पुस्तकें हमारी आवश्यकताएं हैं और इस उद्देश्य से राष्ट्रीय पुस्तकालय का न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय मामलों में भी बहुत बड़ा योगदान है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/yk94ep2p
https://tinyurl.com/2p6cedz7

चित्र संदर्भ

1. कोलकाता में स्थित 'नेशनल लाइब्रेरी को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. सामने से नेशनल लाइब्रेरी" को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. नेशनल लाइब्रेरी की प्रयोगशाला को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. एक पुस्तकालय के भीतर के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)



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