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जौनपुर अपनी मस्जिदों के लिए विश्व विख्यात है। यहाँ की मस्जिदों ने इसे एक अलग पहचान दी है। शर्कियों से ले कर मुगलों तक ने यहाँ अपनी वास्तुकला के अनुपम उदाहरणों की प्रस्तुति की है। अकबर ने यहाँ पर कई निर्माण करवाए जिनमें शाही पुल, शाही किले का अग्र भाग व एक मस्जिद प्रमुख हैं। जौनपुर शहर के बीचो-बीच स्थित खालिस मुखलिस या चार अंगुल मस्जिद अपने आप में ही शर्की कला व जौनपुर के मस्जिद निर्माण कला का जीता जागता उदहारण है।
इस मस्जिद का निर्माण इब्राहिम शाह शर्की के शासन काल 1417 ईस्वी में मलिक खालिसी और इब्राहिम शर्की के मलिक मुखल भाइयों द्वारा करवाया गया। तत्कालीन सूफी संत शेख उस्मान शिराजी को श्रद्धांजलि देने के लिए इसे बनवाया गया था। आकार के अनुसार यह मस्जिद जौनपुर की अन्य मस्जिदों से छोटी है। यह मस्जिद वर्तमान में अपने पूर्ण रूप में नहीं है परन्तु इसके आतंरिक व बाह्य रूप को देखकर आसानी से यह बताया जा सकता है कि यह मस्जिद अन्दर व बाहर से अत्यधिक अलंकृत थी। इस मस्जिद का केंद्र भाग एक गुम्बद है जिसके नीचे प्रमुख मेहराब है। वर्तमान काल में इस मस्जिद में कोई मीनार नहीं है तथा इसकी छत की ऊंचाई 30 फुट की है जो 10 मजबूत खम्बों पर टिकी हुयी है। मस्जिद का प्रमुख द्वार 64 फुट चौड़ा है। हुसैन शाह शर्की को परास्त करने के बाद सिकंदर लोदी ने इस मस्जिद को भी तोड़ा था।
इस मस्जिद के साथ एक रोचक कथन यह भी है कि इसका नाम चार अंगुल मस्जिद इस लिए पड़ा क्यूंकि इसके मेहराब के बांयी तरफ एक पत्थर उपस्थित है जो किसी भी प्रकार से नाप में मात्र चार अंगुल का ही होता है। लोक कथा के अनुसार यदि बच्चा भी अपने हाँथ के पंजे से इसको नापे तो भी यह 4 अंगुल की ही दिखाई देती है।
1. द शर्की सल्तनत ऑफ़ जौनपुर, मियां मुहम्मद सईद
2. शर्की आर्किटेक्चर ऑफ़ जौनपुर, फ्यूहरर ए.