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जौनपुर शहर से निकलते ही कलीचाबाद के पास राष्ट्रीय राजमार्ग के समीप एक कुँआ दिखाई देता है जिसकी बनावट अन्य कुँओं से भिन्न है। यह कुआँ दो मंजिला है, तल मंजिल पर कमरों आदि का निर्माण किया गया है जो कि कपड़े आदि बदलने के लिये था। जौनपुर एक प्राचीन शहर है तथा यहाँ का इतिहास महाजनपद काल तक जाता है। मध्यकाल में यह शहर व्यापार का गढ़ बन गया था जिसका पूरा श्रेय तुगलक व शर्कीयों को जाता है। व्यापार की अधिकता के कारण गोमती व सई नदी व्यापार के लिये प्रयोग में लायी जाती थी परन्तु भू-मार्ग का भी प्रयोग यहाँ पर होता था। जौनपुर से लखनऊ (राष्ट्रीय राजमार्ग 65) एवं बदलापुर से इलाहाबाद राजमार्ग, जौनपुर से विन्ध्याचल (मिर्जापुर वाया भदोही), जौनपुर से शाहगंज मार्ग व जौनपुर से वाराणसी (राष्ट्रीय राज्यमार्ग 67) नये मार्ग बनाये गये हैं। ये सभी वास्तविकता में प्राचीन व्यापार मार्ग हैं जिनकी पुष्टि एक निश्चित अंतराल पर बनाये गये कुएं करते हैं।
इन मार्गों पर कई प्राचीन कुएं व उनके पास बने सराय दिखाई देते हैं जिनको बनाने में प्रयुक्त लाखौरी ईंट यह इंगित करती है कि ये मध्यकाल से सम्बन्धित हैं। कुएं प्रमुखतः राष्ट्रीय राजमार्ग पर ज्यादा संख्या में पाये जाते हैं जिनमें लखौंवा, शिवगुलामगंज, बदलापुर आदि हैं। ये यह दर्शाते हैं कि जौनपुर वास्तविकता में व्यापार का एक महत्वपूर्ण केन्द्र रहा है तथा यहाँ बहुत बड़े पैमाने पर व्यापार होता रहा है। वर्तमान काल में यहाँ पर बहुतायत में बनाये गये राजमार्ग पुराने मार्गों पर ही स्थित हैं। जौनपुर में पाये जाने वाले प्राचीन पुल भी यहाँ पर भू मार्ग पर किये जाने वाले व्यापार की पुष्टि करते हैं। ये कुएं मध्यकाल में ही नहीं अपितु ब्रिटिश काल के दौरान भी प्रयोग में लाये जा रहे थे। अभी भी गाँव के बुज़ुर्गों आदि से इसकी पुष्टि हो जाती है तथा यह भी पता चलता है कि इन कुओं की महत्ता क्या थी। प्राचीन काल में व्यक्ति ऊँट, बैल या पैदल सफर करता था जिस कारण वह ज्यादा दूरी एक बार में तय नहीं कर सकता था और इसी वजह से यहाँ ये कुँयें अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका का वहन करते थे।
1. द हिस्ट्री ऑफ इंडिया, एडिटेड बॉय केनेथ प्लेचर
2. एन एग्रेरियन हिस्ट्री ऑफ साउथ एशिया, पार्ट 4, वाल्युम 4, डेविड लडेन