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क्या आप जानते हैं कि हमारे शहर को ऐतिहासिक रूप से "भारत का शिराज" भी कहा जाता है? दरअसल “शिराज” ईरान का एक ऐतिहासिक शहर था , जिसे इसकी समृद्ध कला, साहित्य, शिक्षा और सूफ़ी परंपरा के लिए जाना जाता था। जौनपुर को शिराज की उपाधि शर्की सल्तनत (1394-1479) के दौरान मिली थी। उस समय जौनपुर भी शिक्षा, संस्कृति और फ़ारसी प्रभाव का एक प्रमुख केंद्र हुआ करता था। यह उपाधि जौनपुर की समृद्ध ऐतिहासिक धरोहर और ज्ञान की ओर यहाँ के लोगों की अटूट जिज्ञासा को दर्शाती है। जौनपुर की भव्य इमारतें आज भी अपने निर्माण काल की उत्कृष्ट कला और वास्तुशैली को दर्शाती हैं! हालांकि आज भी जौनपुर के लोगों में वही जिज्ञासा बरकरार है। यहाँ के लोग ज़िंदगी के असली मायनों और इसके गहरे पहलुओं को समझने की कोशिश करते हैं। लेकिन इस ऐतिहासिक शहर की विरासत केवल प्राचीन इमारतों और स्मारकों तक ही सीमित नहीं है। जौनपुर की संस्कृति पर बौद्ध धर्म से जुड़े प्रतीकों का भी गहरा प्रभाव देखा जा सकता है।
हर प्रतीक का अपना आध्यात्मिक महत्व होता है। उदाहरण के तौर पर, धर्म चक्र भगवान् बुद्ध की शिक्षाओं और आत्मज्ञान के मार्ग का प्रतीक है। इसी तरह, कमल का फूल शुद्धता और आध्यात्मिक जागरूकता दर्शाता है, क्योंकि यह कीचड़ में रहकर भी निर्मलता और सौंदर्य के साथ खिलता है। यह हमें सिखाता है कि विपरीत परिस्थितियां में भी मानव चेतना का उत्थान संभव है। बौद्ध धर्म से जुड़े ये सभी प्रतीक केवल सजावट के लिए नहीं हैं, बल्कि जीवन के गहरे सबक सिखाते हैं। ये हमें आंतरिक शांति, सत्य और ज्ञान की राह दिखाते हैं। इसलिए आज बुद्ध पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर हम बौद्ध धर्म के आठ शुभ प्रतीकों, उनके अर्थ और बौद्ध परंपराओं में उनकी अहमियत को समझेंगे। इसके बाद, हम उन पाँच मुख्य रंगों के बारे में जानेंगे, जो आत्मज्ञान के अलग-अलग पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। अंत में, हम मंडल तथा उसके प्रतीकात्मक महत्व को भी समझेंगे, जो जीवन के संतुलन का संदेश देता है।
किवदंतियों के अनुसार, भगवान बुद्ध ने आत्मज्ञान प्राप्त करने के बाद सात सप्ताह तक बोधि वृक्ष के नीचे ध्यान किया था। इस दौरान उन्होंने निश्चित रूप से उपवास भी किया। ध्यान में बैठे बुद्ध के चित्रों में आपने उन्हें अक्सर एक स्वस्थ और शांत शरीर के रूप में देखा होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान् बुद्ध की कुछ दुर्लभ मूर्तियां ऐसी भी हैं, जो उनकी वास्तविक तपस्या को दर्शाती हैं, जिनमें उनका शरीर भूख के कारण पूरी तरह क्षीण और दुर्बल दिखता है। गांधार के प्राचीन क्षेत्र से प्राप्त एक मूर्ति, जिसे "क्षीण बुद्ध" के रूप में जाना जाता है, इस कठिन तपस्या का प्रतीक है। इस मूर्ति में चौथी शताब्दी के दौरान उपवास परंपरा और बुद्ध के भूखे, कमज़ोर रूप को दर्शाया गया है। मूर्ति में उनका शरीर हड्डियों का ढांचा प्रतीत होता है, जो पीड़ा पर विजय पाने की उनकी अविश्वसनीय शक्ति को दर्शाता है। यह मूर्ति बुद्ध की अदम्य इच्छा शक्ति और समर्पण का प्रतीक है। बौद्ध उपासकों और अनुयायियों के लिए यह मूर्ति आत्म-सशक्तिकरण और आध्यात्मिक साधना का प्रेरणा स्त्रोत है। इन मूर्तियों की भांति बौद्ध धर्म में कई अन्य प्रतीक ऐसे भी हैं, जो सामान्य होने के बावजूद गहरे अर्थ रखते हैं।
आइए अब बौद्ध धर्म से जुड़े आठ शुभ प्रतीकों और उनकी अहमियत को समझने की कोशिश करते हैं?
1. दाहिनी ओर मुड़ा हुआ सफ़ेद शंख: बौद्ध धर्म में दाहिनी ओर मुड़ा हुआ सफ़ेद शंख, धर्म की गहरी, मधुर और दूर तक पहुंचने वाली ध्वनि का प्रतीक है। इसकी दिव्य ध्वनि उस आध्यात्मिक आह्वान का प्रतीक है, जो सोए हुए शिष्यों को अज्ञान की गहरी नींद से जगाकर कल्याण के मार्ग पर भेजती है। यह ध्वनि मानव चेतना को झकझोरती है, उसे जाग्रत करती है और सत्य की ओर अग्रसर करती है।
2. मूल्यवान छत्र: बौद्ध धर्म में मूल्यवान छत्र को दुःख, रोग, बाधाओं और नकारात्मक शक्तियों से रक्षा के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है। इसकी शीतल छाया में आश्रय पाकर जीव सुख, शांति और आनंद का अनुभव करते हैं।
3. विजय पताका: बौद्ध धर्म में विजय पताका आत्म-प्रेरणा और संकल्प का प्रतीक है। यह उस आंतरिक विजय का प्रतिनिधित्व करती है, जो हम अपने शरीर, वाणी और मन की बाधाओं पर पाते हैं। यह दर्शाता है कि धर्म के मार्ग पर चलने वाला साधक अंततः सभी नकारात्मक शक्तियों पर जीत हासिल कर लेता है।
4. स्वर्णिम मछली: स्वर्णिम मछलियां जीवन में निर्भयता और स्वतंत्रता का प्रतीक हैं। जैसे मछलियां जल में निर्भीक होकर आगे बढ़ती हैं, वैसे ही धर्म के अनुयायी भी संसार के दुखों के सागर में डूबे बिना अपने लक्ष्य की ओर स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ते हैं।
5. धर्म चक्र: बुद्ध के उपदेशों का प्रतीक यह धर्म चक्र निरंतर घूमता है, मानो यह हमें कह रहा हो कि ज्ञान का प्रवाह कभी रुकता नहीं। यह घूमता चक्र दर्शाता है कि बुद्ध का ज्ञान हर युग में, हर दिशा में, हर हृदय में प्रकाश फैलाता रहता है। यह हमें धर्म के मार्ग पर निरंतर चलने का प्रेरक प्रतीक है।
6. शुभ चित्रण: शुभ चित्रण जीवन और धर्म की अविभाज्य एकता को दर्शाता है। यह ज्ञान और करुणा के मिलन का प्रतीक है, जो साधक को मुक्ति की ओर ले जाता है। इसमें सांसारिक और आध्यात्मिक जीवन की सुंदर संगति झलकती है।
7. कमल का फूल: कमल की पंखुड़ियां कीचड़ में खिलती हैं, फिर भी निर्मल और पवित्र बनी रहती हैं। यह दर्शाता है कि हम संसार की कठिनाइयों में रहते हुए भी निर्मलता और पवित्रता को कायम रख सकते हैं। यह प्रतीक हमें सिखाता है कि कठिन परिस्थितियों में भी हम अपने कर्मों की पवित्रता और सच्चाई से मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
8. खज़ाने से भरा कलश: खज़ाने से भरा कलश केवल धन-समृद्धि का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह आध्यात्मिक समृद्धि और आंतरिक संपदा का भी प्रतीक है। यह कलश दर्शाता है कि जो व्यक्ति धर्म के पथ पर चलता है, वह सांसारिक लाभ के साथ-साथ अंततः मोक्ष रूपी अमृत को भी प्राप्त करता है।
बौद्ध धर्म से जुड़े इन आठ प्रतीकों के पश्चात् आइए अब हम “बौद्ध धर्म के पाँच मुख्य रंगों” के बारे में जानते हैं, जो जीवन के तत्वों का प्रतीक माने जाते हैं:
इन सभी रंगों के अलावा बौद्ध धर्म में रंगों का भी विशेष महत्व होता है। मंडला एक ज्यामितीय, गोलाकार कलाकृति होती है। बौद्ध और हिंदू धर्म में इसका आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक महत्व, विशेष रूप से उल्लेखनीय माना जाता है। इसका उपयोग अक्सर धार्मिक अनुष्ठानों में ध्यान, चिंतन और दृश्य सहायता के लिए किया जाता है। मंडला दो या तीन आयामों में हो सकता है। जैसे कि पेंटिंग और रेखाचित्र में यह (दो आयामी) होता है और मूर्तियों तथा इमारतों में यह (तीन आयामी) होता है। इसे ईश्वर और आत्मा के बीच संवाद का माध्यम माना जाता है। यह ब्रह्मांड की एकता को दर्शाता है।
बौद्ध धर्म में मंडला का कुछ उद्देश्य इस प्रकार हैं:
संदर्भ
मुख्य चित्र में विभिन्न गुणों वाली गुआनयिन की मूर्ति (चिंतामणि, चक्र, कमल, प्रार्थना माला) का स्रोत : Wikimedia