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जौनपुर को केवल इत्र और इमामबाड़ों के शहर के तौर पर देखना काफ़ी नहीं है! एक समय था जब इस शहर की गलियाँ ज्ञान, व्यापार और शानदार तहज़ीब से गुलज़ार हुआ करती थीं! जब यहाँ शार्की सुल्तानों का राज था, तब इसे यूँ ही नहीं 'शिराज़-ए-हिन्द' का खिताब मिला था! यह एक ऐसा शहर था जहाँ कला, संस्कृति और कारोबार एक साथ फल-फूल रहे थे। हाँ, आज शायद अतीत की वो चहल-पहल थोड़ी थम गई है, मगर भारत के दूसरे हिस्सों की तरह, यहाँ भी इतिहास की तहों में कई ऐसी जगहें छिपी हैं, जो अपने पुराने गौरव की कहानी कहती हैं।
अरीकेमेडु भी ठीक ऐसी ही एक भूली-बिसरी जगह है! यह एक पुराना बंदरगाह है, जो आज के पुडुचेरी के नज़दीक था। करीब दो हज़ार साल पहले, यही वो ठिकाना था जहाँ से भारत और ताक़तवर रोमन साम्राज्य के बीच व्यापार का बड़ा सिलसिला चलता था! वहाँ खुदाई में जो रोमन मिट्टी के बर्तन, मोती और सिक्के मिले हैं, वे इस बात के पक्के सबूत हैं कि दुनिया के साथ भारत का व्यापार कितना पुराना और समृद्ध रहा है। आज के इस लेख में, हम अरीकेमेडु के इसी गहरे ऐतिहासिक मायने को परत-दर-परत खोलेंगे और पता लगाएंगे कि इसकी खोज कैसे हुई, यहाँ कौन-सी बेशकीमती चीज़ें मिलीं, और इस विरासत को बचाने के लिए क्या क़दम उठाए गए हैं।
अरीकामेडु की पुनः खोज-
सदियों पहले अरिकामेडु (Arikamedu), भारत और प्राचीन रोम के बीच व्यापार के प्रमुख केंद्रों में से एक हुआ करता था। यहाँ पर की गई खुदाई में एम्फ़ोरा (खास तरह के रोमन मटके), लैंप और कांच के बर्तन प्राप्त हुए हैं। साथ ही यहाँ पर पत्थर, कांच और सोने से बने मोती व क़ीमती रत्न भी खोजे गए हैं। ये सभी साक्ष्य इस बात की ओर इशारा करते हैं कि "दूसरी सदी ईसा पूर्व से लेकर आठवीं सदी ईस्वी के बीच इस बंदरगाह से भारत और बाइज़ेंटाइन (Byzantine) साम्राज्य के बीच बड़े पैमाने पर व्यापार होता था।” चोल साम्राज्य के दौरान भी अरिकामेडु को एक महत्वपूर्ण बंदरगाह के रूप में जाना जाता था।
जब हम 'व्यापार' शब्द सुनते हैं, तो आमतौर पर चीज़ों की ख़रीद-फ़रोख़्त में ही अटक जाते हैं। लेकिन, अरिकामेडु बंदरगाह वास्तव में विचारों और संस्कृति के आदान-प्रदान का भी एक अहम केंद्र हुआ करता था। इस जगह पर रोमन संस्कृति से प्रभावित कलाकृतियाँ मिली हैं। साथ ही ऐसे दस्तावेज़ी सबूत भी हैं जिनसे पता चलता है कि "शायद रोमन के कारीगर खुद भी अरिकामेडु की कार्यशालाओं में काम करते थे।"
इस स्थल पर हुई खुदाई से यहाँ एक रोमन व्यापारिक बस्ती होने के पुख़्ता सबूत मिले हैं। इनमें एम्फ़ोरा, लैंप, कांच के बर्तन, सिक्के, पत्थर, कांच और सोने से बने मोती व रत्न शामिल हैं। इन खोजों के आधार पर ऐसा लगता है कि इस बस्ती का रोमन और बाद में बाइज़ेंटाइन दुनिया के साथ दूसरी सदी ईसा पूर्व से लेकर आठवीं सदी ईस्वी के बीच बड़े पैमाने पर व्यापार होता था।
इस व्यापार के अलावा, अरिकामेडु अपने आप में एक विनिर्माण केंद्र भी था। जी हाँ! यहाँ पर कपड़ा, विशेष रूप से सूती मलमल, गहने और मोती भी बनाए जाते थे। यह बस्ती पत्थर, कांच और सोने के मोतियों के उत्पादन के लिए ख़ास तौर पर प्रसिद्ध थी।
यहाँ कई ऐसी विशिष्ट चीज़ें भी मिली हैं जो साफ़ तौर पर रोमन व्यापार से पहले की प्रतीत होती हैं। इनमें स्थानीय रूप से बने उत्पाद जैसे शंख, मोती और मिट्टी के बर्तन शामिल हैं। ये चीज़ें दिखाती हैं कि विदेशी प्रभाव आने से पहले भी यहाँ स्थानीय शिल्पकला की एक समृद्ध परंपरा मौजूद थी। इस स्थल से रेशम मार्ग से जुड़े व्यापार से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण खोजों में इंडो-पैसिफ़िक मोती, लाल और काले रंग के मिट्टी के बर्तन, तथा कब्रों पर निशान लगाने के लिए इस्तेमाल किए गए बड़े पत्थर शामिल हैं। ये सभी चीज़ें इस जगह के एक व्यापारिक केंद्र के रूप में स्थपित होने से पहले के दौर की मानी जाती हैं।
अरीकामेडु की पुनः खोज-
1930 के दशक में फ्रांस के एक पुरातत्वविद् और मुद्राशास्त्री, जौवे-डब्रूइल (Jouveau-Dubreuil), ने इस प्राचीन शहर के ऐतिहासिक महत्व को उजागर करने का काम शुरू किया। अरिकामेडु से पुरातात्विक वस्तुएँ इकट्ठा करते समय उन्हें एक इंटैग्लियो (नक्काशीदार रत्न) मिला, जिस पर एक व्यक्ति का चित्र बना हुआ था। उन्होंने उस व्यक्ति की पहचान रोमन सम्राट ऑगस्टस के रूप में की। अपनी इस महत्वपूर्ण खोज से उत्साहित होकर, जौवे-डब्रूइल ने पांडिचेरी के तत्कालीन गवर्नर को पत्र लिखा और यहाँ एक रोमन शहर होने की संभावना जताई!
इस जानकारी के सामने आने के बाद कई लोगों का ध्यान इस स्थल पर गया। फिर 1940 के दशक की शुरुआत में यहाँ खुदाई हुई और खुदाई में मिली कलाकृतियों को भारत के विभिन्न संग्रहालयों में भेजा गया। इसी दौरान, ब्रिटिश पुरातत्वविद् मॉर्टिमर व्हीलर (Mortimer Wheeler) को पांडिचेरी संग्रहालय में कुछ खास चीजें मिलीं। जब उन्होंने वहाँ रोमन एम्फ़ोरा (Roman amphorae), दीपक और चमकदार लाल मिट्टी के बर्तनों (red-glazed pottery) के टुकड़े देखे, तो उन्हें समझने में देर न लगी कि ये इटली के टस्कनी (Tuscany) क्षेत्र में स्थित रोमन शहर एरेज़ो (Arezzo) के प्रसिद्ध मिट्टी के बर्तन थे। इसके बाद 1945 में अरिकामेडु में व्हीलर के नेतृत्व में और खुदाई की गई, जिसने इस प्राचीन बंदरगाह शहर के अस्तित्व की पुष्टि करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
साल 1982 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने स्थल की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए। ए एस आई ने आवश्यक भूमि का अधिग्रहण किया और इसकी व्यवस्थित खुदाई तथा संरक्षण के लिए एक मास्टर प्लान भी तैयार किया। हालांकि, इन गंभीर प्रयासों के बावजूद यह ऐतिहासिक स्थल आज भी काफ़ी हद तक उपेक्षित है। इसे पर्यटकों और स्थानीय लोगों के लिए सुलभ बनाने और इसके महत्व को प्रदर्शित करने के लिए बहुत कम प्रगति हुई है। यहाँ तक कि एक प्रस्तावित संरक्षण परियोजना और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में इसके नामांकन का मामला भी रुका हुआ है। परिणामस्वरूप, यह महत्वपूर्ण स्थल काफ़ी हद तक भुला दिया गया है, जिसे अधिकारियों और आम जनता, दोनों ने ही अनदेखा कर दिया है।
संदर्भ
मुख्य चित्र में अरिकामेडु के प्रवेश द्वार और रेवेना के प्राचीन बंदरगाह का स्रोत : Wikimedia
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