जकार्ता से वाराणसी तक: भारत और इंडोनेशिया के बीच रचा-बसा सांस्कृतिक सेतु

धर्म का उदयः 600 ईसापूर्व से 300 ईस्वी तक
08-07-2025 09:21 AM
जकार्ता से वाराणसी तक: भारत और इंडोनेशिया के बीच रचा-बसा सांस्कृतिक सेतु

भारत और इंडोनेशिया के बीच संबंध केवल राजनीतिक या व्यापारिक नहीं हैं, बल्कि इनकी जड़ें उस सांस्कृतिक विरासत में हैं जो सदियों से दोनों देशों को जोड़ती रही है। हिंद महासागर के दोनों ओर बसे ये राष्ट्र न केवल समुद्री मार्गों से जुड़े रहे, बल्कि विचारों, विश्वासों, कला और शिक्षा के माध्यम से भी एक-दूसरे से गहराई से प्रभावित हुए हैं। इंडोनेशिया के मंदिरों में बसी भारतीय मूर्तिकला, वहां की कठपुतली परंपरा में जीवित रामायण, और संस्कृत में उकेरे गए अभिलेख—ये सब इस अटूट सांस्कृतिक रिश्ते की अमिट छाप हैं। आज जबकि दोनों देश आर्थिक और रणनीतिक साझेदार के रूप में साथ आ रहे हैं, यह ज़रूरी है कि हम उनके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों की गहराई को फिर से जानें और समझें।

इस लेख में हम पढ़ेंगे कि भारत और इंडोनेशिया के सांस्कृतिक संबंध कैसे हजारों साल पुराने हैं। हम देखेंगे कि प्राचीन मूर्तियों, शिलालेखों और मंदिरों के ज़रिए भारतीय प्रभाव कैसे स्थापित हुआ। हम जानेंगे कि शिक्षा और दर्शन में नालंदा जैसे संस्थानों से कैसे बौद्धिक आदान-प्रदान हुआ। हम अनुभव करेंगे कि इंडोनेशियाई नृत्य, कठपुतली और मंदिरों में भारतीय संस्कृति की झलक कैसे आज भी जीवित है। अंत में, हम समझेंगे कि दोनों देशों के बीच व्यापार, निवेश और रणनीतिक साझेदारी कैसे लगातार मज़बूत हो रही है।

भारत-इंडोनेशिया सांस्कृतिक संबंधों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

भारत और इंडोनेशिया के बीच सांस्कृतिक संपर्क की शुरुआत केवल कुछ शताब्दियों पहले नहीं, बल्कि लगभग दो हजार साल पुरानी है। इसका सबसे पहला ऐतिहासिक प्रमाण पश्चिमी जावा के 'उजंग कुलोन नेशनल पार्क' में पाई गई प्रथम शताब्दी की गणेश प्रतिमा है। इसी प्रकार, कालीमंतन क्षेत्र में पल्लवी लिपि में खुदे शिलालेख यह बताते हैं कि वहां भारत से आए ब्राह्मण पुजारी सक्रिय थे। 450 ईसवी में राजा पूर्णवर्ण द्वारा बनवाया गया 'बाटू तुलिस' (Batu Tulis) शिलालेख यह दर्शाता है कि भारतीय संस्कृति का प्रभाव केवल धार्मिक नहीं, बल्कि शासकीय और प्रशासनिक व्यवस्था में भी था। संस्कृत भाषा में अंकित यह लेख आज भी उतनी ही स्पष्टता से पढ़ा जा सकता है, जितना उस समय में। इसके अतिरिक्त, इंडोनेशिया की प्राचीन शैलियों – जैसे संजयवंश और श्रीविजय साम्राज्य – में भी भारतीय परंपराओं, संस्कृत भाषा, और धर्मशास्त्र का प्रभाव देखने को मिलता है। श्रीविजय साम्राज्य (7वीं से 13वीं शताब्दी) तो बौद्ध धर्म का अंतरराष्ट्रीय केंद्र बन गया था, जहाँ से कई भारतीय भिक्षु और विद्वान आते-जाते थे।

प्रम्बानन इंडोनेशिया के दक्षिणी जावा में योग्याकार्ता के विशेष क्षेत्र में 9वीं शताब्दी का एक हिंदू मंदिर है|
बोरोबुदुर मंदिर इंडोनेशिया के मध्य जावा में एक बौद्ध मंदिर है। 

प्राचीन मंदिरों और धार्मिक स्थापत्य में भारतीय दर्शन की झलक

अगर भारत में खजुराहो और कोणार्क जैसे भव्य मंदिरों की पहचान है, तो इंडोनेशिया में बोरोबुदुर और प्रम्बानन जैसे मंदिर भारतीय स्थापत्य कला और धार्मिक प्रभाव के प्रमाण हैं। मध्य जावा स्थित प्रम्बानन मंदिर, हिंदू धर्म के त्रिमूर्ति – ब्रह्मा, विष्णु और महेश को समर्पित है और यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में भी शामिल है। बोरोबुदुर, जो कि दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप है, बौद्ध ब्रह्मांड विज्ञान और ध्यान की संरचना को दर्शाता है। इसमें बने छोटे और बड़े स्तूप, तांत्रिक मंडल के रूप में निर्मित हैं और यह 9वीं शताब्दी की स्थापत्य कुशलता का श्रेष्ठ उदाहरण है। इन मंदिरों का निर्माण भारतीय धर्मों – विशेषकर बौद्ध और हिंदू – के विस्तार और स्थानीय समाज में उनकी स्वीकार्यता को दर्शाता है।

बाली में आज भी सैकड़ों हिंदू मंदिर हैं, जो भारतीय स्थापत्य और देवी-देवताओं के पूजन से जुड़े हैं। वहां के समाज में गंगा, सरस्वती, राम, लक्ष्मण, हनुमान जैसे नाम आम हैं, जो सांस्कृतिक निरंतरता को दर्शाते हैं। इसके अलावा, तंत्र और वास्तुशास्त्र जैसे भारतीय ज्ञान भी इंडोनेशियाई मंदिर निर्माण में परिलक्षित होते हैं। 'Candi' शब्द जो इंडोनेशिया में मंदिर के लिए प्रयुक्त होता है, 'चैत्य' या 'चंडी' से लिया गया है। यही नहीं, बाली के 'पुरी' या 'मंदिर' भी पारंपरिक हिंदू वास्तुशास्त्र के आधार पर ही निर्मित होते हैं।

शिक्षा और बौद्धिक आदान-प्रदान के ऐतिहासिक प्रमाण

10वीं शताब्दी में इंडोनेशियाई विद्यार्थी बड़ी संख्या में भारत स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए आते थे। यह आदान-प्रदान केवल धार्मिक अध्ययन तक सीमित नहीं था, बल्कि यह दर्शन, व्याकरण, खगोलशास्त्र और चिकित्सा जैसे विषयों तक विस्तृत था। सुरबाया के जोको डोलोग शिलालेख और बाली के लौह स्तंभ पर संस्कृत में लिखे अभिलेख यह सिद्ध करते हैं कि भारत और इंडोनेशिया के बौद्धिक संबंध एक मजबूत बुनियाद पर आधारित थे। यह साझेदारी केवल भारत से इंडोनेशिया की ओर नहीं थी, बल्कि एक द्विपक्षीय विचारों और ज्ञान के आदान-प्रदान का स्वरूप रखती थी। इसके अतिरिक्त, 5वीं-6वीं शताब्दी में भारत से आए बौद्ध गुरु जैसे – धर्मपाल, कुमारजीव और अतिश दीपंकर – इंडोनेशिया और सुमात्रा के बौद्ध शिक्षण केंद्रों से जुड़े रहे। वहीं इंडोनेशियाई विद्वान भी अपनी शिक्षा पूर्ण कर भारत के बौद्ध तीर्थों की यात्रा करते थे।

योग्यकर्ता के पास स्थित प्रांबनन के शिव मंदिर के चबूतरे पर बने शिल्पचित्र

कलात्मक और सांस्कृतिक परंपराओं में भारतीय प्रभाव

इंडोनेशियाई संस्कृति में रामायण और महाभारत जैसे भारतीय महाकाव्य आज भी जीवंत हैं। बाली में किया जाने वाला ‘केकक’ नृत्य इसका सजीव प्रमाण है, जिसमें पुरुष कलाकार ‘काक-काक’ ध्वनि करते हुए रामायण के युद्ध प्रसंग को मंचित करते हैं। यह नृत्य, जिसे “वानर मंत्रोच्चार” के नाम से भी जाना जाता है, 1930 के दशक में प्रारंभ हुआ और अब यह बाली की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है। इसमें श्रीराम, सीता, हनुमान और रावण जैसे चरित्रों को स्थानीय कलाकारों द्वारा अत्यंत भावपूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया जाता है।

इसी प्रकार, इंडोनेशिया की पारंपरिक कठपुतली कला 'वेयांग कुलित' (Wayang Kulit) में भी महाभारत और रामायण की कहानियां प्रमुख रहती हैं। इन प्रस्तुतियों में स्थानीय भाषा और शैली का मिश्रण भारतीय कथा शास्त्रों के साथ किया जाता है, जिससे दोनों संस्कृतियों का अद्वितीय संगम देखने को मिलता है। इसके अलावा, इंडोनेशिया की पारंपरिक नृत्य शैलियों – जैसे कि 'लेगोंग', 'बारोंग' और 'तोपेंग' – में भी शिव, विष्णु और दुर्गा जैसे देवी-देवताओं के कथानकों का चित्रण किया जाता है। इंडोनेशिया का राष्ट्रीय प्रतीक ‘गरुड़’ स्वयं हिंदू पौराणिक कथा से लिया गया है, जो विष्णु का वाहन है।

द्विपक्षीय व्यापार के प्रमुख क्षेत्र और वस्तुएँ

इतिहास में जितने प्रगाढ़ भारत-इंडोनेशिया के सांस्कृतिक संबंध रहे हैं, उतनी ही तेजी से आधुनिक समय में व्यापारिक रिश्ते भी बढ़े हैं। 2021 में भारत-इंडोनेशिया के बीच कुल व्यापार में 48.48% की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई। इसके बाद 2022 और 2023 में भी यह वृद्धि जारी रही और वित्तीय वर्ष 2023 में यह व्यापार 38 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।

भारत से इंडोनेशिया को निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुएं:

  • पेट्रोलियम उत्पाद (3.87 बिलियन डॉलर)
  • मोटर वाहन और कारें (523 मिलियन डॉलर)
  • चीनी (435 मिलियन डॉलर)
  • जहाज और फ्लोटिंग संरचनाएं (400 मिलियन डॉलर)
  • लोहा और इस्पात (389 मिलियन डॉलर)

इंडोनेशिया से भारत में आयात होने वाली वस्तुएं:

  • कोयला, कोक और ब्रिकेट (14.58 बिलियन डॉलर)
  • वनस्पति तेल (5.63 बिलियन डॉलर)
  • खनिज और अयस्क (969 मिलियन डॉलर)
  • सौंदर्य प्रसाधन (632 मिलियन डॉलर)

भारत-इंडोनेशिया के बीच व्यापार का तेज़ी से विकास भारत-आसियान मुक्त व्यापार समझौते (India-ASEAN FTA) की वजह से संभव हो पाया है। साथ ही, हाल के वर्षों में दोनों देश लिथियम, इलेक्ट्रिक वाहन तकनीक, डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर और फार्मास्यूटिकल्स जैसे क्षेत्रों में भी साझेदारी के नए रास्ते तलाश रहे हैं।

रणनीतिक साझेदारी और निवेश संबंध

इंडोनेशिया, भारत के लिए आसियान क्षेत्र में सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और भारत, इंडोनेशिया के लिए चौथा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है। इस द्विपक्षीय संबंध को और मज़बूत करने के लिए दोनों देशों ने 2025 तक 50 बिलियन डॉलर व्यापार का लक्ष्य रखा है। भारत में इंडोनेशिया के निवेश की बात करें तो 2000 से 2023 तक केवल 647 मिलियन डॉलर का निवेश हुआ है, जो अपेक्षाकृत कम है, लेकिन विभिन्न क्षेत्रों – जैसे कि खाद्य, बुनियादी ढांचा, बैंकिंग – में इंडोनेशियाई कंपनियों ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है। वहीं, इंडोनेशिया में भारत का निवेश कहीं अधिक (54 बिलियन डॉलर) है और टाटा, रिलायंस, अदानी और एलएंडटी जैसी बड़ी कंपनियां वहां बुनियादी ढांचे, ऊर्जा, टेक्सटाइल और खनन क्षेत्रों में कार्यरत हैं।

नवीन पहल:

  • भारत की भागीदारी इंडोनेशिया की नई राजधानी 'नुसंतारा' के विकास में बढ़ रही है।
  • दोनों देश रक्षा क्षेत्र, समुद्री सुरक्षा, और साइबर सुरक्षा में भी सहयोग बढ़ा रहे हैं।
  • इंडोनेशिया ने भारत को 'प्राथमिक रणनीतिक साझेदार' का दर्जा दिया है।

यह गहराई से जुड़ी साझेदारी आने वाले वर्षों में एशिया की क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि में केंद्रीय भूमिका निभा सकती है।

संदर्भ-
https://tinyurl.com/mryd4sdc 

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