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                                            उत्तर प्रदेश के मध्य-पूर्वी भाग में स्थित जौनपुर, न केवल ऐतिहासिक धरोहरों के लिए जाना जाता है, बल्कि इसकी मृदा विविधता भी इस जनपद की कृषि समृद्धि की रीढ़ है। गोमती नदी के किनारे बसा यह क्षेत्र अनेक प्रकार की मिट्टियों का मिश्रण है, जो इसे अन्य जिलों से विशिष्ट बनाते हैं। यहाँ की मिट्टियाँ अपने पोषक गुणों, जलधारण क्षमता और अनुकूल पीएच स्तर के कारण विभिन्न प्रकार की खाद्य व नकदी फसलों के लिए आदर्श मानी जाती हैं। जौनपुर की मिट्टी की विविधता इसे एक विशेष कृषि क्षेत्र बनाती है, जहाँ भिन्न-भिन्न प्रकार की मिट्टियाँ अपनी भौगोलिक स्थिति और जलवायु के अनुसार विभिन्न फसलों की उपज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जौनपुर की मिट्टी विविध प्रकार की है, जो इसकी स्थलाकृति, गोमती नदी और जलवायु से प्रभावित होती है। यहाँ प्रमुख रूप से जलोढ़, दोमट, रेतीली और क्षारीय मिट्टियाँ पाई जाती हैं। इन मिट्टियों की संरचना और गुणधर्म कृषि प्रणाली को सीधे प्रभावित करते हैं। अलग-अलग मिट्टियाँ भिन्न-भिन्न फसलों के लिए उपयुक्त होती हैं। यह लेख पाँच उपविषयों में इन पहलुओं का विश्लेषण करता है। इस लेख में हम जानेंगे कि जौनपुर की मिट्टी किस प्रकार की है, कैसे इसकी भौगोलिक बनावट, जलवायु और गोमती नदी जैसे प्राकृतिक तत्वों ने इसकी मृदा संरचना में विविधता उत्पन्न की है, और किस प्रकार अलग-अलग प्रकार की मिट्टियाँ यहाँ की कृषि प्रणाली को प्रभावित करती हैं।
इस लेख में हम जानेंगे कि जौनपुर की मिट्टी आखिर क्यों इतनी खास मानी जाती है और इसका खेती-बाड़ी से क्या गहरा रिश्ता है। सबसे पहले बात करेंगे गोमती नदी के आसपास पाई जाने वाली उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी की, जो यहाँ की प्रमुख खाद्यान्न फसलों की रीढ़ है। इसके बाद जानेंगे दोमट मिट्टी की बनावट और उसमें होने वाली सब्ज़ियों और नकदी फसलों की खेती को लेकर किसानों के अनुभव। फिर एक नज़र डालेंगे उन क्षेत्रों पर जहाँ क्षारीय या रेतीली मिट्टी पाई जाती है — जो भले ही चुनौतीपूर्ण हो, लेकिन सही तकनीकों से फसल उगाने के लिए तैयार की जा सकती है। अंत में बात करेंगे कि मिट्टी की प्रकृति के अनुसार फसल का चुनाव कैसे किया जाता है और जौनपुर के किसान किस तरह से दोहरी फसल प्रणाली अपनाकर अपनी आय और भूमि की उर्वरता दोनों को बनाए रखते हैं।

जौनपुर की मृदा विविधता: जलवायु, स्थलाकृति और नदियों का प्रभाव
जौनपुर की मृदा संरचना को समझने के लिए इसके भौगोलिक और पर्यावरणीय संदर्भ को जानना आवश्यक है। यह जिला गोमती नदी के किनारे बसा हुआ है, जिसकी सहायक नदियाँ भी क्षेत्र की मृदा को निरंतर पोषित करती हैं। मैदानी स्थलाकृति, उपजाऊ तलछटों का प्रवाह और शीतोष्ण जलवायु — ये तीनों कारक मिलकर यहाँ की मिट्टी को विशेष बनाते हैं। यहाँ जलोढ़, दोमट, रेतीली और क्षारीय दोमट मिट्टियाँ प्रमुख रूप से पाई जाती हैं। गोमती नदी के आसपास जलोढ़ मिट्टी की बहुलता देखी जाती है, जबकि दक्षिण-पश्चिमी इलाकों में हल्की रेतीली दोमट मिट्टी पाई जाती है। वहीं, कुछ क्षेत्रों में अधिक क्षारीयता वाली मिट्टी भी मौजूद है, जो जल जमाव और उचित प्रबंधन के अभाव में बनती है। जलवायु की बात करें तो मानसून आधारित वर्षा और गर्मियों की तीव्रता मिट्टी की जलधारण क्षमता और सूक्ष्मजीवों की सक्रियता को प्रभावित करते हैं। इसके अलावा, लंबे समय से चली आ रही कृषि परंपराओं और फसल चक्रों का भी मिट्टी के वर्तमान स्वरूप पर असर पड़ा है। लगातार गेहूं-धान की खेती से कुछ क्षेत्रों में मिट्टी की उर्वरता घटी है, जबकि जैविक खेती वाले क्षेत्रों में दोमट मिट्टी अब भी समृद्ध बनी हुई है।
जलोढ़ मिट्टी: जौनपुर की प्रमुख कृषि भूमि और इसकी विशेषताएँ
जौनपुर की गोमती घाटी जलोढ़ मिट्टी की समृद्ध परतों से आच्छादित है। यह मिट्टी जल द्वारा बहाकर लाई जाती है और नदी किनारे एकत्रित होती है। इसमें गाद, बालू, चिकनी मिट्टी और थोड़ी बजरी का मिश्रण होता है। यह मिश्रण इसे हल्का-फुल्का बनाता है, जिससे इसमें जड़ें आसानी से फैलती हैं और फसलें अच्छे से पनपती हैं। इस मिट्टी का पीएच स्तर 6.6 से 8 के बीच रहता है, जो सामान्यतः तटस्थ से थोड़ा क्षारीय माना जाता है। इसमें नाइट्रोजन (nitrogen) की मात्रा थोड़ी कम होती है, परंतु पोटाश (potash), फॉस्फोरिक एसिड (phosphoric oxide) और सूक्ष्म पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में होते हैं। यही कारण है कि यह मिट्टी गेहूं, चावल, सरसों, दलहन, जौ, जूट, मक्का, तिल, मूंगफली जैसी फसलों के लिए आदर्श मानी जाती है। गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदानों की तरह, जौनपुर की जलोढ़ मिट्टी भी भारत की सबसे उत्पादक मृदाओं में गिनी जाती है। यहाँ की नमी संरक्षित करने की क्षमता इसे सिंचाई आधारित खेती के लिए आदर्श बनाती है। जौनपुर के मछलीशहर, करंजाकला, बदलापुर जैसी तहसीलों में यह मिट्टी अधिक पाई जाती है।

दोमट मिट्टी: बनावट, उपप्रकार और खेती में भूमिका
जौनपुर की दोमट मिट्टी को ‘आदर्श कृषि मृदा’ कहा जाता है क्योंकि इसमें रेत, गाद और चिकनी मिट्टी का संतुलित मिश्रण होता है। यह संतुलन इसे नमी बरकरार रखने, जल निकासी देने और पौधों की जड़ों को ऑक्सीजन (oxygen) पहुंचाने में मदद करता है। इसके अलावा, इसमें जैविक ह्यूमस की मात्रा अधिक होती है, जिससे यह उर्वरता में अग्रणी रहती है। इस मिट्टी का पीएच (pH) स्तर 7.5 से 8.5 तक होता है, जो विभिन्न प्रकार की फसलों के लिए अनुकूल रासायनिक वातावरण बनाता है। जलधारण क्षमता अच्छी होने के कारण यह मिट्टी गर्मियों में भी नमी बनाए रखती है और फसलों को जलसंकट से बचाती है। दोमट मिट्टी के भी उपप्रकार होते हैं जैसे —
जौनपुर में रामपुर, सुजानगंज, सिकरारा जैसे क्षेत्रों में यह दोमट मिट्टी अधिक देखी जाती है। वैज्ञानिक दृष्टि से, यह मिट्टी पौधों की वृद्धि को स्थायित्व देती है और पोषक तत्त्वों को लंबे समय तक संरक्षित रखती है।

जौनपुर की प्रमुख फसलें: मिट्टी के अनुसार फसल चयन की समझ
जौनपुर की कृषि प्रणाली मिट्टी के अनुसार फसल चयन पर आधारित है। जलोढ़ मिट्टी में चावल, गेहूं, सरसों, तिलहन, दलहन जैसी पारंपरिक फसलें बखूबी उगाई जाती हैं। वहीं दोमट मिट्टी में गन्ना, मक्का, आलू, प्याज, मूंगफली, टमाटर जैसी नकदी फसलें भी सफलतापूर्वक होती हैं। सब्ज़ियों की बात करें तो दोमट मिट्टी में टमाटर, भिंडी, बैंगन, गाजर, मूली, हरी मिर्च, सेम और पालक जैसी फसलें प्रमुख हैं। जड़ वाली सब्जियों जैसे गाजर, मूली के लिए रेतीली दोमट उत्तम है क्योंकि यह जड़ों को फैलने की पर्याप्त जगह और नमी देती है। वहीं, पालक और बथुआ जैसी पत्तेदार सब्जियों को गाद मिश्रित दोमट मिट्टी पसंद है क्योंकि इसमें जल और पोषक तत्व लंबे समय तक टिके रहते हैं। किसान अक्सर दोमट और जलोढ़ मिट्टी की विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए दोहरी फसल प्रणाली अपनाते हैं — जैसे एक फसल मुख्य खाद्यान्न और दूसरी नकदी या सब्ज़ी आधारित।
क्षारीय और रेतीली मिट्टी: जौनपुर में इनकी उपस्थिति और कृषि पर प्रभाव
जौनपुर के कुछ क्षेत्रों, विशेषकर सीमावर्ती या पुराने जल जमाव वाले क्षेत्रों में क्षारीय मिट्टी भी पाई जाती है। यह मिट्टी अधिक पीएच (8.5 से ऊपर) वाली होती है, जिससे इसमें सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता कम हो जाती है। इसे सुधारने के लिए जैविक पदार्थ, जिप्सम और गहरी जुताई का सहारा लिया जाता है।रेतीली मिट्टी, विशेष रूप से गोमती की बाढ़ रेखा से दूर वाले इलाकों में मिलती है। यह जल को जल्दी छोड़ देती है और नमी अधिक समय तक नहीं रोक पाती। इसी कारण, इसमें जड़ वाली सब्जियाँ जैसे गाजर, मूली, शलजम अच्छी तरह उगाई जाती हैं, बशर्ते पर्याप्त जैविक खाद मिलाया जाए। इन दोनों प्रकार की मिट्टियों में खेती करना चुनौतीपूर्ण है, लेकिन उचित तकनीकों, फसल चक्र और जैविक पोषण प्रणाली अपनाकर इन्हें कृषि उपयोगी बनाया जा सकता है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/4df8dnbz 
https://tinyurl.com/5yah54af 
https://tinyurl.com/4df8dnbz  
 
                                         
                                         
                                        