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जैसे ही जौनपुर की ज़मीन पर मानसून की पहली फुहार गिरती है, मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू हवाओं में घुल जाती है और गोमती किनारे हरियाली नई जान से भर उठती है। लेकिन इसी खूबसूरत मौसम के साथ एक ख़ामोश ख़तरा भी हमारे आस-पास पलने लगता है, मच्छरों का। बारिश के बाद जौनपुर की गलियों, छतों, टूटी नालियों और पुराने बर्तनों में जो पानी जमा हो जाता है, वहीं मच्छर अपना साम्राज्य खड़ा कर लेते हैं। यही मच्छर डेंगू (dengue), मलेरिया (malaria) और चिकनगुनिया जैसी बीमारियों का कारण बनते हैं, जो हर साल सैकड़ों ज़िंदगियों पर असर डालते हैं। जौनपुर जैसे शहरों में, जहाँ जनसंख्या घनत्व और जलनिकासी की समस्याएँ आम हैं, वहाँ यह दिन और भी ज़्यादा प्रासंगिक हो जाता है। मानसून का मौसम जौनपुर के लिए सौंदर्य और संपदा लाता है, लेकिन तभी तक जब तक हम उसके साथ जिम्मेदारी और सतर्कता भी निभाएँ।
इस लेख में हम मच्छरों से जुड़ी पाँच महत्वपूर्ण बातों पर विस्तार से चर्चा करेंगे। सबसे पहले, हम जानेंगे कि मानसून के दौरान मच्छर किस प्रकार डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया और ज़िका (Zika) जैसी बीमारियाँ फैलाते हैं। फिर, हम समझेंगे कि मच्छरों की शारीरिक रचना और उनका व्यवहार उन्हें बीमारियों के वाहक कैसे बनाता है। इसके बाद, हम पढ़ेंगे कि कुछ लोग मच्छरों को दूसरों की तुलना में अधिक क्यों आकर्षित करते हैं, इसमें रक्त समूह, गंध और गर्मी जैसी बातें शामिल हैं। आगे, हम चर्चा करेंगे कि आज के वैज्ञानिक मच्छरों को नियंत्रित करने के लिए जेनेटिक इंजीनियरिंग (genetic engineering) और बैक्टीरिया (bacteria) जैसी तकनीकों का कैसे उपयोग कर रहे हैं। अंत में, हम जानेंगे कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी में मच्छरों से बचने के व्यावहारिक उपाय कौन-कौन से हैं, जो हर घर और गली में अपनाए जा सकते हैं।

मानसून में मच्छरों से फैलने वाली बीमारियाँ और उनका बदलता स्वरूप
मानसून आते ही जैसे ही पानी गड्ढों, नालियों या छतों पर जमा होता है, मादा मच्छर अंडे देने के लिए जगह तलाशने लगती है। कुछ ही दिनों में ये अंडे नए मच्छरों में बदल जाते हैं और बीमारियों का चक्र शुरू हो जाता है। डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया और ज़िका जैसी बीमारियाँ मच्छरों द्वारा फैलती हैं और इनका प्रभाव केवल बुखार तक सीमित नहीं होता। डेंगू में प्लेटलेट्स (platelets) गिरने लगते हैं, मलेरिया मस्तिष्क तक को प्रभावित कर सकता है, चिकनगुनिया जोड़ों में महीनों तक दर्द पैदा करता है, और ज़िका वायरस गर्भवती महिलाओं के लिए घातक हो सकता है क्योंकि यह भ्रूण के विकास को नुकसान पहुँचाता है। इन बीमारियों का इलाज समय पर न हो तो स्थिति जानलेवा भी हो सकती है। यही कारण है कि हर बारिश के मौसम में हमें मच्छरों को हल्के में नहीं लेना चाहिए।
मच्छरों की बनावट, व्यवहार और संक्रमण फैलाने की क्षमता
मच्छर केवल एक उड़ने वाला कीट नहीं है, यह एक परिष्कृत संक्रमण यंत्र है। मादा मच्छर खून चूसती है क्योंकि उसे अंडों के विकास के लिए प्रोटीन (protein) की ज़रूरत होती है, और इसी प्रक्रिया में वह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक वायरस या परजीवी फैला सकती है। जब वह संक्रमित व्यक्ति का खून चूसती है और फिर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटती है, तो संक्रमण फैलता है। दिन में मच्छर परदे, फर्नीचर (furniture) या अंधेरी जगहों में छुपते हैं और शाम को सबसे अधिक सक्रिय होते हैं। इनडोर रेजिडुअल स्प्रेइंग (आई.आर.एस.) (Indoor Residual Spraying - IRS) जैसी विधियों से मादा मच्छरों की आबादी को कम किया जा सकता है। लेकिन जब तक उनके प्रजनन के ठिकानों को नष्ट नहीं किया जाता, तब तक यह समस्या हर मानसून दोहराई जाती रहेगी।
क्यों कुछ लोग मच्छरों के लिए 'ज़्यादा स्वादिष्ट' होते हैं?
यह सवाल सबके मन में आता है कि मच्छर कुछ लोगों को ज़्यादा क्यों काटते हैं। विज्ञान बताता है कि इसके पीछे कई वजहें हो सकती हैं। सबसे पहले - रक्त समूह। जिन लोगों का ब्लड ग्रुप (blood group) O होता है, उन्हें मच्छर A या B ग्रुप वालों की तुलना में ज़्यादा काटते हैं। इसके अलावा, शरीर से निकलने वाली गंध, जैसे पसीना, बैक्टीरिया की उपस्थिति, और शरीर की गर्मी - ये सभी मच्छरों को आकर्षित करते हैं। जो लोग अधिक एक्सरसाइज़ (exercise) करते हैं, गर्भवती महिलाएँ या शराब का सेवन करने वाले व्यक्ति, इनकी चयापचय दर ज़्यादा होती है और ये अधिक कार्बन डाइऑक्साइड (carbon dioxide) छोड़ते हैं, जिससे मच्छर इन्हें जल्दी पहचान लेते हैं। साथ ही, गहरे रंग के कपड़े पहनना भी मच्छरों को आकर्षित करता है। इन बातों को समझकर हम खुद को बचाने के और ज़्यादा प्रभावी उपाय अपना सकते हैं।
मच्छरों पर काबू पाने की आधुनिक वैज्ञानिक तकनीकें
आज मच्छरों से निपटने के लिए केवल दवाओं या जालों पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं है। वैज्ञानिकों ने अब जेनेटिक इंजीनियरिंग और माइक्रोबायोलॉजी (microbiology) की मदद से ऐसे मच्छर विकसित किए हैं जो मादा मच्छरों से प्रजनन नहीं कर पाते। चीन और सिंगापुर में स्थापित "मच्छर फैक्ट्रियों" में ऐसे नर मच्छरों को तैयार किया जाता है जो वोल्बाचिया (Wolbachia) नामक बैक्टीरिया से संक्रमित होते हैं। जब ये मादा मच्छरों से मिलते हैं तो वे अंडे नहीं दे पातीं, जिससे आने वाली पीढ़ी ही समाप्त हो जाती है। यह तकनीक ज़िका और डेंगू जैसे वायरस के प्रसार को रोकने में बड़ी भूमिका निभा रही है। हालांकि ये प्रयास अभी सीमित स्तर पर हैं, लेकिन इनके नतीजे बहुत आशाजनक हैं और भविष्य में व्यापक स्तर पर इस्तेमाल हो सकते हैं।
रोज़मर्रा की ज़िंदगी में मच्छरों से बचाव के व्यावहारिक और प्राकृतिक उपाय
मच्छरों से बचने के लिए सबसे पहला कदम है ,उनके प्रजनन को रोकना। अपने घर और आस-पास पानी को जमा न होने दें, गमलों में पानी न ठहरे, टायर (tire) या पुराने डिब्बों को उल्टा रखें, और छतों की नियमित सफाई करें। खिड़कियों और दरवाज़ों पर मच्छर जाल लगवाएं और रात में सोते समय मच्छरदानी का उपयोग करें। हल्के रंग के ढीले कपड़े पहनें जो शरीर को ढकें और गहरे रंगों से बचें। सिट्रोनेला (Citronella), नीम का तेल और थाइम जैसे प्राकृतिक सुगंधित तेलों का प्रयोग करें जो मच्छरों को दूर रखते हैं। DEET, IR3535 जैसे रसायन भी शरीर पर लगाने के लिए सुरक्षित और प्रभावशाली माने जाते हैं। सबसे बड़ी बात, सुबह और शाम के समय विशेष सावधानी बरतें क्योंकि यह मच्छरों की सबसे सक्रिय अवधि होती है।