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जौनपुर उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख जिला है, जिसकी पहचान उसकी उपजाऊ भूमि और कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था से जुड़ी हुई है। यहाँ के खेतों में गेहूँ, धान और गन्ना जैसी फसलें बड़े पैमाने पर उगाई जाती हैं। लेकिन इन फसलों के लिए समय पर और पर्याप्त जल आपूर्ति होना अत्यंत आवश्यक है। वर्षा पर आधारित खेती अक्सर असंतुलित रहती है - कभी अत्यधिक बारिश से फसलें नष्ट हो जाती हैं तो कभी लंबे सूखे से किसान परेशान हो जाते हैं। ऐसे में नहर प्रणाली जौनपुर के किसानों के लिए जीवनरेखा साबित होती है, क्योंकि यह खेतों तक निरंतर पानी पहुँचाकर कृषि को स्थिरता और मजबूती प्रदान करती है। जौनपुर सहित पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराने के लिए शारदा नहर प्रणाली का विकास किया गया। इसका निर्माण कार्य 1918 में शुरू हुआ और 1928 तक इसे पूर्ण कर लिया गया। शारदा नदी पर बने बनबसा बैराज से निकलने वाली यह नहर प्रणाली अपने विशाल नेटवर्क (network) के कारण उत्तर प्रदेश की सबसे महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजनाओं में गिनी जाती है। इसकी मुख्य नहर और उससे निकलने वाली शाखाएँ जैसे - बिलासपुर, निगोहा, हरदोई और खीरी - कृषि भूमि को सिंचित करती हैं और हजारों किसानों को सहारा देती हैं। यही कारण है कि शारदा नहर प्रणाली को केवल एक तकनीकी उपलब्धि नहीं, बल्कि ग्रामीण विकास और कृषि समृद्धि की रीढ़ भी माना जाता है।
इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि जौनपुर जैसे कृषि प्रधान जिले में नहर प्रणाली की आवश्यकता और महत्व क्या है। इसके बाद हम शारदा नहर प्रणाली का इतिहास और विस्तार देखेंगे, जिससे पूरे उत्तर प्रदेश के खेतों को पानी मिलता है। आगे हम नेपाल रेगुलेटर (Nepal Regulator) और अंतर्राष्ट्रीय जल समझौते की चर्चा करेंगे, जो इस परियोजना को वैश्विक स्तर पर भी महत्वपूर्ण बनाते हैं। इसके साथ ही हम शारदा सहायक परियोजना और उसके जौनपुर की खेती पर पड़े प्रभाव का अध्ययन करेंगे। अंत में, हम जानेंगे कि नहर सिंचाई वास्तव में होती क्या है और इसकी प्रमुख विशेषताएँ किस तरह किसानों और ग्रामीण समाज के लिए उपयोगी हैं।
जौनपुर में नहर प्रणाली की आवश्यकता और महत्व
जौनपुर सदियों से एक कृषि प्रधान जिला रहा है, जहाँ की अधिकांश जनसंख्या खेती-बाड़ी पर निर्भर है। यहाँ की उपजाऊ मिट्टी गेहूँ, धान, गन्ना और दलहन जैसी फसलों के लिए आदर्श मानी जाती है। लेकिन खेती की असली चुनौती है नियमित जल आपूर्ति। मानसून पर पूरी तरह निर्भर रहना किसानों के लिए हमेशा जोखिम भरा रहा है - कभी भारी बारिश से खेत डूब जाते हैं तो कभी लंबे सूखे से फसलें बर्बाद हो जाती हैं। यही कारण है कि जौनपुर में नहर प्रणाली की आवश्यकता गहराई से महसूस की जाती है। नहरें किसानों को समय पर और बराबर मात्रा में पानी उपलब्ध कराती हैं, जिससे फसलें स्वस्थ रहती हैं। यह न सिर्फ उत्पादन बढ़ाती हैं बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को स्थिर भी करती हैं। खासतौर पर सूखे के दिनों में जब बारिश का कोई भरोसा नहीं होता, तब नहरों का पानी किसानों के लिए संजीवनी का काम करता है। हरियाली से भरे खेत जौनपुर की पहचान हैं और इसके पीछे नहर प्रणाली का बड़ा योगदान है।
शारदा नहर प्रणाली का इतिहास और विस्तार
शारदा नहर प्रणाली उत्तर प्रदेश के सिंचाई इतिहास में एक मील का पत्थर है। इसकी शुरुआत अंग्रेज़ी हुकूमत के दौर में 1918 में हुई और करीब दस वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद 1928 में इसे पूरा किया गया। इसका मुख्य स्रोत है बनबसा बैराज, जो नैनीताल के खटीमा तहसील के पास शारदा नदी पर बना हुआ है। इस प्रणाली की मुख्य नहर लगभग 44.3 किलोमीटर लंबी है और इसकी वहन क्षमता 11,500 क्यूसेक (cusec) रखी गई है, जो इसे देश की सबसे बड़ी नहर प्रणालियों में शामिल करती है। इस नहर से अनेक शाखाएँ निकलती हैं - जैसे बिलासपुर शाखा, निगोहा जल शाखा, हरदोई जल शाखा और खीरी जल शाखा - जो उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों को सिंचाई सुविधा प्रदान करती हैं। जौनपुर जैसे जिलों तक जब इस प्रणाली का पानी पहुँचता है तो यह केवल खेतों को ही नहीं, बल्कि वहाँ के पूरे ग्रामीण जीवन को ऊर्जा और स्थिरता प्रदान करता है।
नेपाल रेगुलेटर और अंतर्राष्ट्रीय जल समझौता
शारदा नहर प्रणाली की सबसे खास बात यह है कि यह केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि पड़ोसी देश नेपाल के लिए भी उपयोगी है। बनबसा बैराज के बाईं ओर स्थित नेपाल रेगुलेटर इस सहयोग का प्रतीक है। भारत और नेपाल के बीच हुए एक ऐतिहासिक समझौते के तहत नेपाल को रबी की फसल के समय 180 क्यूसेक और खरीफ़ की फसल के लिए 250 क्यूसेक पानी उपलब्ध कराया जाता है। यह व्यवस्था दोनों देशों के किसानों के लिए लाभकारी है। नेपाल के सीमावर्ती इलाकों के खेत इस पानी से सींचे जाते हैं और भारतीय किसानों को भी इसका फायदा मिलता है। इस तरह शारदा नहर प्रणाली केवल एक इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट (Engineering Project) नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और साझा संसाधनों के न्यायपूर्ण बंटवारे का उदाहरण भी है। इससे यह संदेश मिलता है कि नदियाँ और जल संसाधन सीमाओं से बंधे नहीं होते, बल्कि इन्हें मिल-जुलकर साझा करने से ही समृद्धि संभव है।
शारदा सहायक परियोजना और जौनपुर पर उसका प्रभाव
पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसानों की बढ़ती जल आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए 1968-69 में शारदा सहायक परियोजना शुरू की गई। यह परियोजना खासतौर पर गंगा-गोमती दोआब क्षेत्र के जिलों को ध्यान में रखकर बनाई गई थी। 1974 में पहली बार इसके जरिए पानी खेतों तक पहुँचा और धीरे-धीरे इसका दायरा बढ़ता गया। इसका कमांड (command) क्षेत्र लगभग 20 लाख हेक्टेयर (hectare) में फैला है, जहाँ खरीफ़ में 67% और रबी में लगभग 48% क्षेत्र को सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। जौनपुर जैसे जिलों के किसानों को इस परियोजना से सीधा लाभ मिला। पहले जहाँ सूखा और जल संकट आम था, वहीं अब खेतों को पर्याप्त पानी मिलने लगा। इससे न केवल उत्पादन में वृद्धि हुई, बल्कि किसानों का आत्मविश्वास भी बढ़ा। गन्ना और धान जैसी अधिक पानी वाली फसलें अब सुरक्षित बोई जाने लगीं और ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हुई।
नहर सिंचाई क्या है और इसकी प्रमुख विशेषताएँ
नहर सिंचाई एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें नदियों या बड़े जलाशयों से पानी लाकर कृत्रिम चैनलों या नहरों के माध्यम से खेतों तक पहुँचाया जाता है। यह प्रणाली खेती के लिए बेहद उपयोगी है क्योंकि यह मिट्टी की नमी बनाए रखती है और फसल को समय पर पानी देती है। नहरें चार स्तरों में विभाजित होती हैं - मुख्य नहर, शाखा नहर, प्रमुख वितरिका और लघु वितरिका। मुख्य नहर से पानी बड़ी मात्रा में निकलता है, फिर यह शाखाओं में बँटकर छोटे-छोटे खेतों तक पहुँचता है। नहर सिंचाई का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यह बड़े क्षेत्र को एक साथ सींच सकती है। साथ ही, इसका प्रभाव केवल कृषि तक सीमित नहीं है। नहरें भूजल स्तर को बढ़ाती हैं, तालाबों और कुओं को भरती हैं, जिससे पीने के पानी की समस्या भी काफी हद तक हल होती है। इसके अलावा यह मत्स्य पालन, ग्रामीण पेयजल आपूर्ति और यहाँ तक कि जलविद्युत उत्पादन में भी सहायक है।
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