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जौनपुरवासियो, क्या आपने कभी मानसून के दौरान शहर के कुछ इलाके ऐसे देखे हैं जहाँ सड़कें, गलियाँ और खाली मैदान पूरी तरह पानी में डूब जाते हैं और यह पानी कई दिनों तक जमा रह जाता है? यह सिर्फ बारिश का असर नहीं है, बल्कि इसे हम वॉटरलॉगिंग (Waterlogging) कहते हैं - एक ऐसी समस्या जो केवल जलजमाव तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारे जीवन, स्वास्थ्य, कृषि और पर्यावरण पर गहरा असर डालती है। जब जमीन में पानी का संतुलन बिगड़ जाता है और मिट्टी पूरी तरह पानी से संतृप्त हो जाती है, तो पौधों की जड़ें आवश्यक ऑक्सीजन (Oxygen) नहीं पा पातीं, मिट्टी की उर्वरता कम हो जाती है और आसपास के क्षेत्रों में जीवन चलना मुश्किल हो जाता है। शहरी क्षेत्रों में यह समस्या और भी गंभीर रूप ले लेती है। भारी बारिश, बाढ़, बंद नालियाँ और अव्यवस्थित निर्माण कार्य मिलकर शहर के मार्गों, पार्किंग क्षेत्रों (Parking Areas), फुटपाथों (Footpath) और निर्माण स्थलों पर पानी जमा कर देते हैं। इसके परिणामस्वरूप न केवल लोगों की रोज़मर्रा की जिंदगी प्रभावित होती है, बल्कि स्वास्थ्य पर खतरा, आर्थिक नुकसान और शहर की बुनियादी अवसंरचना पर दबाव भी बढ़ जाता है।
इस लेख में हम पांच महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान देंगे। सबसे पहले, हम जानेंगे कि वॉटरलॉगिंग वास्तव में है क्या और मिट्टी, पौधों और जीवन पर इसका क्या असर होता है। फिर, हम देखेंगे कि इसके पीछे कौन-कौन से प्राकृतिक और मानवजनित कारण जिम्मेदार हैं। इसके बाद, हम वॉटरलॉगिंग के विभिन्न प्रकारों को समझेंगे और जानेंगे कि ये अलग-अलग परिस्थितियों में कैसे अलग ढंग से प्रभावित करते हैं। उसके बाद, हम इसके मानव, कृषि और पर्यावरणीय प्रभावों पर चर्चा करेंगे। अंत में, हम देखेंगे कि इस समस्या से निपटने के लिए तकनीकी और प्राकृतिक उपाय क्या हैं और कैसे इन्हें अपनाकर हम इस संकट को कम कर सकते हैं।
शहरी वॉटरलॉगिंग क्या है?
शहरी क्षेत्रों में वॉटरलॉगिंग वह स्थिति है जब भारी बारिश, अचानक बाढ़, या जलनिकासी प्रणाली में अवरोध के कारण शहर की सड़कों, गलियों, फुटपाथों, पार्किंग क्षेत्रों, खेल मैदानों और निर्माण क्षेत्रों में पानी जमा हो जाता है। जब पानी लंबे समय तक जमा रहता है, तो न केवल लोगों का दैनिक जीवन प्रभावित होता है, बल्कि शहर की बुनियादी अवसंरचना भी अस्थिर हो जाती है। सड़कों पर पानी जमा होने से वाहन फंस सकते हैं, यातायात बाधित हो जाता है और लोग अपने कार्यस्थल, स्कूल या मेडिकल सुविधाओं (medical facilities) तक पहुँचने में कठिनाई महसूस करते हैं। इसके अलावा, जमा पानी शहर की अर्थव्यवस्था पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है क्योंकि बाजार, परिवहन, और दैनिक गतिविधियाँ बाधित हो जाती हैं। शहरी वॉटरलॉगिंग केवल जलजमाव की समस्या नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक समस्या है जो मानव जीवन, स्वास्थ्य, आर्थिक स्थिरता, पर्यावरण और आसपास की कृषि भूमि पर भी असर डालती है। इससे शहर की सामाजिक संरचना भी प्रभावित होती है क्योंकि आपातकालीन सेवाएँ जैसे एम्बुलेंस (ambulance) और फायर ब्रिगेड (Fire Brigade) समय पर अपनी सेवाएँ नहीं दे पाती हैं, जिससे जीवन पर भी खतरा बढ़ जाता है।
शहरी वॉटरलॉगिंग के कारण
शहरों में वॉटरलॉगिंग के पीछे कई प्राकृतिक और मानवजनित कारण होते हैं। प्राकृतिक कारणों में सबसे प्रमुख है लगातार और भारी बारिश, जो शहर की जलनिकासी क्षमता से अधिक होती है। अचानक बाढ़, उच्च जल स्तर (High Water Table) और भूगर्भीय संरचनाएँ भी जलजमाव को बढ़ाती हैं। मानवजनित कारणों में अधिक सिंचाई, जंगलों की कटाई, अतिक्रमण और असंगठित निर्माण कार्य शामिल हैं। शहरों में नालियों और सीवर लाइनों की सफाई न होना, अवैध कचरा फेंकना, और प्राकृतिक ढलानों या जलनिकासी चैनलों में अवरोध डालना भी पानी के जमाव का मुख्य कारण है। इसके अलावा, कंक्रीट (concrete) और एस्फाल्ट (asphalt) की बनी सतहें और गैर-पारगम्य फ्लोरिंग वर्षा (Non-permeable flooring showers) के पानी को मिट्टी में अवशोषित नहीं होने देतीं, जिससे सतही जलजमाव और बढ़ जाता है। इन सभी प्राकृतिक और मानवजनित कारणों का सम्मिलित प्रभाव शहर में वॉटरलॉगिंग की गंभीरता और अवधि को लंबा कर देता है। उदाहरण के लिए, मेट्रो शहरों में जहां अधिक भवन और सड़कों के निर्माण ने प्राकृतिक जल निकासी को बाधित किया है, वहाँ वर्षा के पानी के कारण कई बार मुख्य मार्गों और आवासीय क्षेत्रों में जलजमाव हो जाता है।
शहरी वॉटरलॉगिंग के प्रकार
शहरी वॉटरलॉगिंग मुख्यतः तीन प्रकार की होती है। पहला प्रकार है सतही (Surface Waterlogging), जिसमें बारिश या बाढ़ का पानी सीधे सड़क, पार्किंग स्थल, फुटपाथ, खेल मैदान और खुले मैदानों पर जमा हो जाता है। यह प्रकार तुरंत दिखाई देता है और आम जनता को तुरंत असुविधा पहुँचाता है, जैसे कि वाहन फंस जाना, पैदल चलना मुश्किल हो जाना और बच्चों के खेल पर प्रभाव पड़ना। दूसरा प्रकार है भूमिगत (Subsurface Waterlogging), जिसमें पानी मिट्टी के भीतर जाकर भवनों की नींव, पाइपलाइन (pipeline) और भूमिगत संरचनाओं को प्रभावित करता है। यह प्रकार दीर्घकालिक समस्याएँ उत्पन्न करता है क्योंकि यह निर्माण कार्यों और संरचनाओं की स्थायित्व क्षमता को कमजोर करता है। तीसरा प्रकार है जल स्तर आधारित (Groundwater / High Water Table Waterlogging), जिसमें भूजल का स्तर बढ़कर शहर के निचले इलाकों, बोरवेल और भूमिगत संरचनाओं तक पहुँच जाता है। यह दीर्घकालिक जलजमाव का कारण बनता है और शहर के लिए स्थायी अवसंरचनात्मक खतरा उत्पन्न करता है। इन प्रकारों के प्रभाव अलग-अलग होते हैं और इनके निवारण के लिए भी स्थिति, भूगोल और अवसंरचना के अनुसार अलग-अलग उपाय करने पड़ते हैं।
शहरी जीवन, स्वास्थ्य और पर्यावरण पर प्रभाव
शहरी वॉटरलॉगिंग का प्रभाव केवल जलजमाव तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह शहरवासियों के जीवन, स्वास्थ्य और पर्यावरण पर गंभीर असर डालता है। जब सड़कें और गलियां जलमग्न हो जाती हैं, तो सार्वजनिक और निजी परिवहन बाधित हो जाता है। लोग अपने कार्यस्थल, स्कूल, कॉलेज और अस्पताल समय पर नहीं पहुँच पाते। स्वास्थ्य पर इसका सबसे बड़ा असर मच्छरों के प्रजनन और जलजनित रोगों के फैलाव के रूप में देखा जाता है। जमा हुआ पानी मलेरिया (malaria), डेंगू (dengue), चिकनगुनिया, हैजा, टाइफाइड (typhoid) और अन्य जलजनित रोगों का मुख्य कारण बनता है। इसके अलावा, वॉटरलॉगिंग शहर की अवसंरचना को कमजोर करता है। इमारतों, पुलों और सड़क संरचनाओं पर लंबे समय तक जमा पानी का दबाव बढ़ता है, जिससे नींव कमजोर होती है और मरम्मत की लागत बढ़ जाती है। पर्यावरणीय दृष्टि से यह कचरे और प्रदूषित पानी के जमाव को बढ़ाता है, जिससे जलप्रदूषण और बायोडायवर्सिटी (biodiversity) पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। लंबे समय तक जलजमाव शहर की हरितभूमियों, पार्कों और झीलों को भी प्रभावित करता है, जिससे शहर का वातावरण दूषित होता है और प्राकृतिक सौंदर्य कम हो जाता है।
शहरी वॉटरलॉगिंग से बचाव और समाधान
शहरी वॉटरलॉगिंग से निपटने के लिए तकनीकी और प्राकृतिक उपायों का संयोजन सबसे प्रभावी होता है। तकनीकी उपायों में उन्नत जल निकासी तंत्र (drainage system) जैसे सीवर लाइन (sewer line), नालियाँ, पंपिंग स्टेशन (pumping station), उपयुक्त ढलान बनाए रखना और जल निकासी की नियमित जाँच शामिल हैं। इसके साथ ही, ऊँची सड़कें और पैदलपथ बनाए जा सकते हैं ताकि सतही जलजमाव रोका जा सके। भूजल स्तर नियंत्रित करने के लिए परकोलेशन पिट्स (percolation pits), रिचार्ज वेल्स (recharge wells) और भूमिगत जल भंडारण टैंक (underground storage tanks) बनाए जा सकते हैं। प्राकृतिक और स्थायी उपायों में वनीकरण और हरित क्षेत्र (green space) बढ़ाना, वर्षा जल संचयन करना, शहरी आर्द्रभूमि, तैरते बगीचे, ऊँचे क्यारियाँ और छोटे तालाब शामिल हैं। सामुदायिक प्रयास भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं; नागरिकों को नालियों की सफाई, जल संरक्षण और जलभराव की समस्या के प्रति जागरूक करना आवश्यक है। जब तकनीकी और प्राकृतिक उपाय एक साथ अपनाए जाते हैं, तो शहर की जीवनशैली सुरक्षित रहती है, स्वास्थ्य बेहतर होता है और पर्यावरणीय संतुलन भी बना रहता है। उदाहरण के लिए, यदि शहर के निवासी और नगर निगम मिलकर वर्षा जल संचयन और नालियों की सफाई करते हैं, तो पानी जल्दी निकल जाता है और शहर की सड़कों व घरों में जलभराव की समस्या नहीं होती।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/5n75zjpr
https://tinyurl.com/fkhbekh8
https://tinyurl.com/3daepudy
https://tinyurl.com/4786r3zp
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