जौनपुरवासियों जानिए, कैसे भारत के अनाज गोदाम हमारी खाद्य सुरक्षा और उपज को बचाते हैं?

वास्तुकला II - कार्यालय/कार्य उपकरण
16-10-2025 09:22 AM
Post Viewership from Post Date to 16- Nov-2025 (31st) Day
City Readerships (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
2033 69 2 2104
* Please see metrics definition on bottom of this page.
जौनपुरवासियों जानिए, कैसे भारत के अनाज गोदाम हमारी खाद्य सुरक्षा और उपज को बचाते हैं?

जौनपुरवासियो, क्या आप जानते हैं कि हमारे देश में अनाज भंडारण का नेटवर्क कितना विशाल और जटिल है? गेहूँ और अन्य खाद्यान्न न केवल हमारे रोज़मर्रा के भोजन का आधार हैं, बल्कि यह किसानों की मेहनत, हमारी खाद्य सुरक्षा और समाज के लिए स्थिरता का प्रतीक भी हैं। इन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रखना इसलिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत में इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए भारतीय खाद्य निगम (FCI), केंद्रीय भंडारण निगम (CWC), राज्य भंडारण निगम और निजी गोदाम मालिक जैसे कई संगठन दिन-रात सक्रिय रहते हैं। ये संस्थाएँ सिर्फ अनाज संग्रहित नहीं करतीं, बल्कि इसके भंडारण की गुणवत्ता पर लगातार निगरानी रखती हैं, जिससे फसल बर्बाद न हो और उपज पूरी तरह सुरक्षित रहे। इस लेख में हम जौनपुरवासियों के लिए विस्तार से जानेंगे कि भारत में अनाज भंडारण की प्रणाली कैसी है, इसे संचालित करने के तरीके क्या हैं, और इस प्रक्रिया में आने वाली चुनौतियाँ और समस्याएँ क्या हैं, ताकि हम समझ सकें कि हमारे देश में खाद्य सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाती है।
आज हम विस्तार से जानेंगे कि भारत में अनाज भंडारण कैसे होता है। सबसे पहले, हम समझेंगे कि वर्तमान में देश में अनाज भंडारण की स्थिति और एफसीआई के द्वारा संचालित गोदामों के आँकड़े क्या हैं। इसके बाद, हम यह देखेंगे कि प्रमुख सरकारी एजेंसियाँ जैसे एफसीआई, केंद्रीय और राज्य भंडारण निगम इस प्रक्रिया में कैसे योगदान देती हैं। फिर, हम चर्चा करेंगे कि एफसीआई गोदामों का चयन और प्रबंधन कैसे करता है और अनाज की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए कौन-कौन से उपाय अपनाए जाते हैं। अंत में, हम पारंपरिक और आधुनिक भंडारण प्रणालियों के बीच अंतर और भारत में अनाज भंडारण से जुड़ी प्रमुख समस्याओं और चुनौतियों को समझेंगे।

भारत में अनाज भंडारण की वर्तमान स्थिति और आँकड़े
भारत में खाद्यान्न भंडारण का एक विशाल नेटवर्क मौजूद है, जो देश की खाद्य सुरक्षा से सीधे जुड़ा हुआ है। वर्ष 2022 तक भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) पूरे देश में 2,199 गोदाम का प्रबंधन कर रहा था। इनमें से कुछ गोदाम एफसीआई के स्वामित्व में हैं, जबकि कई गोदाम निजी मालिकों से किराए पर लिए गए हैं, जिससे भंडारण की क्षमता और लचीलापन बढ़ता है। उत्तर प्रदेश में लगभग 248 गोदाम संचालित होते हैं - और जौनपुर जैसे कृषि-केंद्र वाले जिले इन व्यवस्था का हिस्सा हैं। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश मिलकर पूरे देश की भंडारण क्षमता का बड़ा हिस्सा संभालते हैं। इसके बावजूद, व्यवस्था हमेशा संतोषजनक नहीं रहती - अनेक बार अनाज को खुले स्थानों पर रखना पड़ता है और बारिश, नमी तथा अन्य परिस्थितियाँ खुले भंडारण को जोखिमपूर्ण बना देती हैं, जिससे अनाज का नुकसान और गुणवत्ता गिरावट जैसी समस्याएँ सामने आती हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए आधुनिक साइलो, बेहतर गोदाम प्रबंधन और समयबद्ध भंडारण नीतियाँ आवश्यक हैं।

अनाज भंडारण में शामिल प्रमुख सरकारी एजेंसियाँ
अनाज को लंबे समय तक सुरक्षित रखना एक बड़ी चुनौती है और इस चुनौती से निपटने के लिए कई सरकारी संस्थाएँ सक्रिय रूप से काम करती हैं। इनमें सबसे प्रमुख है भारतीय खाद्य निगम, जिसकी स्थापना 1965 में संसद के एक अधिनियम के तहत की गई थी। एफसीआई पूरे देश में गोदामों, साइलो और कवर-एंड-प्लिंथ (CAP) संरचनाओं का संचालन करता है और खाद्यान्न प्रबंधन का सबसे बड़ा स्तंभ माना जाता है। इसके साथ ही केंद्रीय भंडारण निगम भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 1962 में गठित यह संस्था कृषि उपज और विशेष वस्तुओं के भंडारण की सुविधा देती है। हर राज्य में राज्य भंडारण निगम स्थापित किए गए हैं, जो राज्य स्तर पर भंडारण कार्यों का नियंत्रण करते हैं। इसके अतिरिक्त रेलवे, वेयरहाउस डेवलपमेंट रेगुलेटरी अथॉरिटी (WDRA) और राज्यों के नागरिक आपूर्ति विभाग भी खाद्यान्न को सुरक्षित रखने और समय पर वितरित करने में सहयोग करते हैं। इन सभी संस्थाओं का सामूहिक प्रयास ही अनाज भंडारण प्रणाली को मजबूती देता है।

एफसीआई द्वारा गोदामों के चयन और प्रबंधन की प्रक्रिया
एफसीआई, अनाज भंडारण के मामले में बेहद संगठित प्रक्रिया अपनाता है। सबसे पहले यह संस्था देशभर की भंडारण ज़रूरतों का आकलन करती है और ज़रूरत के अनुसार नए स्थानों की पहचान करती है। इसके बाद निर्णय लिया जाता है कि वहाँ नया गोदाम बनाया जाए या फिर निजी मालिकों से किराए पर लिया जाए। एफसीआई ने समय-समय पर भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए कई योजनाएँ चलाई हैं। इनमें निजी उद्यमी गारंटी (PEG) योजना, केंद्रीय क्षेत्र योजना, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल के तहत साइलो निर्माण और निजी भंडारण योजना शामिल हैं। इन सभी योजनाओं का उद्देश्य है किसानों की उपज को सुरक्षित रखना, वितरण प्रणाली को मज़बूत बनाना और देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना। इस प्रक्रिया से यह भी तय होता है कि भंडारण संरचना आधुनिक हो, टिकाऊ हो और लंबे समय तक अनाज की गुणवत्ता को बनाए रख सके।

गेहूँ की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए अपनाए जाने वाले उपाय
अनाज भंडारण का मतलब सिर्फ़ अनाज को किसी जगह रखना नहीं है, बल्कि उसकी गुणवत्ता और पोषक तत्वों को लंबे समय तक बनाए रखना भी ज़रूरी है। गेहूँ को गोदाम में रखने से पहले उसकी नमी की जाँच की जाती है, क्योंकि नमी ही सबसे बड़ा कारक है जिससे अनाज खराब हो सकता है। यह जाँच हर दो सप्ताह में दोहराई जाती है और अनाज निकालने से पहले भी इसकी जाँच होती है। गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए हर पखवाड़े गेहूँ के नमूने लिए जाते हैं और फीके, खराब या घुन लगे दानों को अलग किया जाता है। संक्रमण की संभावना को देखते हुए हर महीने कीटों की जाँच की जाती है और इसके लिए ढेर के किनारों से नमूने लिए जाते हैं। इसके अलावा, हर महीने 1,000 दानों का वज़न मापा जाता है ताकि गुणवत्ता स्थिर बनी रहे। कृंतकों, पक्षियों और बंदरों से बचाव के लिए नियमित निरीक्षण किए जाते हैं। अनाज को सुरक्षित रखने के लिए मैलाथियान का स्प्रे (Malathion Spray) और धूम्रीकरण समय-समय पर किया जाता है। गिरा हुआ अनाज हर पंद्रह दिन में इकट्ठा कर विशेष बैग में रखा जाता है। चोरी, माइक्रोबियल लोड (Microbial Load) और माइकोटॉक्सिन (Mycotoxin) की जाँच जैसी प्रक्रियाएँ भी अपनाई जाती हैं। इन सभी उपायों से सुनिश्चित होता है कि गेहूँ अपनी गुणवत्ता लंबे समय तक बनाए रखे।

भारत में पारंपरिक बनाम आधुनिक भंडारण प्रणालियाँ
भारत जैसे कृषि प्रधान देश में अनाज भंडारण के दो बड़े तरीके मौजूद हैं - पारंपरिक और आधुनिक। आज भी देश के लगभग 60–70% छोटे किसान अपने घरों में ही अनाज को संग्रहित करते हैं। इसके लिए वे मोराई, मिट्टी कोठी और अन्य पारंपरिक भंडारण साधनों का इस्तेमाल करते हैं। ये तरीके आसान और सस्ते तो हैं, लेकिन लंबे समय तक अनाज को सुरक्षित नहीं रख पाते। दूसरी ओर, आधुनिक भंडारण प्रणालियाँ जैसे गोदाम और साइलो बेहतर तकनीक से लैस होते हैं। इनमें नमी नियंत्रण, तापमान प्रबंधन और कृंतकों से बचाव की वैज्ञानिक व्यवस्था होती है। यही वजह है कि धीरे-धीरे किसानों और सरकार दोनों का ध्यान पारंपरिक तरीकों से हटकर आधुनिक प्रणालियों की ओर बढ़ रहा है। यह बदलाव न केवल भंडारण की गुणवत्ता को बेहतर बनाएगा, बल्कि किसानों की उपज की बर्बादी को भी रोक पाएगा।

खाद्यान्न भंडारण से जुड़ी प्रमुख समस्याएँ और चुनौतियाँ
भारत की भंडारण प्रणाली बड़ी होने के बावजूद कई चुनौतियों से भरी हुई है। सबसे बड़ी समस्या है भंडारण क्षमता का असंतुलन। अधिकतर गोदाम खरीद राज्यों जैसे पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में केंद्रित हैं, जबकि उपभोक्ता राज्यों में भंडारण की भारी कमी है। इस असंतुलन की वजह से अनाज का सही वितरण मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा, कई बार पर्याप्त जगह न होने पर अनाज को खुले स्थानों पर रखना पड़ता है। ऐसे में बारिश, नमी और बाढ़ जैसी परिस्थितियाँ अनाज को जल्दी खराब कर देती हैं। कई गोदामों की संरचना भी कमज़ोर है, जिनमें न तो उचित तापमान नियंत्रण है और न ही नमी नियंत्रण। इससे अनाज पर कीट और फफूँद का खतरा बढ़ जाता है। सीएजी की रिपोर्टों ने बार-बार यह चेतावनी दी है कि खराब भंडारण के कारण केंद्रीय पूल में रखा गया अनाज बर्बाद हो रहा है। इन समस्याओं से यह साफ़ है कि भारत को बेहतर, आधुनिक और संतुलित भंडारण संरचनाओं की सख्त ज़रूरत है।

संदर्भ-
https://shorturl.at/M18rZ 



Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Readerships (FB + App) - This is the total number of city-based unique readers who reached this specific post from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Messaging Subscribers - This is the total viewership from City Portal subscribers who opted for hyperlocal daily messaging and received this post.

D. Total Viewership - This is the Sum of all our readers through FB+App, Website (Google+Direct), Email, WhatsApp, and Instagram who reached this Prarang post/page.

E. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.