समय - सीमा 270
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1043
मानव और उनके आविष्कार 809
भूगोल 266
जीव-जंतु 308
जौनपुरवासियों, क्या आपने कभी सोचा है कि जिस मोबाइल फ़ोन से आप रोज़ाना बातें करते हैं, जिस कंप्यूटर पर आप काम या पढ़ाई करते हैं, या जिस कार में सफ़र करते हैं - उसकी असली शक्ति एक नन्हीं सी चिप में छिपी होती है? यही सूक्ष्म अर्धचालक चिप्स (Semiconductor Chips) आज की डिजिटल दुनिया की रीढ़ हैं। ये चिप्स हमारे आधुनिक जीवन के हर पहलू को संचालित करती हैं - चाहे वह स्मार्टफ़ोन (smartphone) की तेज़ प्रोसेसिंग (processing) हो, अस्पतालों के उन्नत चिकित्सा उपकरण हों, या फिर कारों में लगने वाली स्वचालित ब्रेक प्रणाली।आज भारत भी इस तकनीकी क्रांति का अहम हिस्सा बनने की दिशा में मज़बूती से आगे बढ़ रहा है। सरकार की नई सेमीकंडक्टर नीति (New Semiconductor Policy), वैश्विक साझेदारियों, और देश के युवाओं की नवाचार-शक्ति के साथ, भारत आने वाले वर्षों में “डिजिटल आत्मनिर्भरता” की ओर कदम बढ़ा रहा है। यह न केवल देश की आर्थिक ताकत को बढ़ाएगा, बल्कि जौनपुर जैसे उभरते शहरों के युवाओं के लिए भी नए रोज़गार और तकनीकी अवसर लेकर आएगा।
आज इस लेख में हम सबसे पहले जानेंगे कि अर्धचालक चिप्स क्या हैं और ये आधुनिक तकनीक की रीढ़ क्यों मानी जाती हैं। इसके बाद देखेंगे कि कोविड-19 (Covid-19) और वैश्विक संकट ने चिप उत्पादन को कैसे प्रभावित किया। आगे बढ़ते हुए भारत की सेमीकंडक्टर नीति और उसकी चुनौतियों पर चर्चा करेंगे। फिर वैश्विक बाजार में उद्योग की लाभप्रदता और क्षेत्रीय असमानताओं को समझेंगे। अंत में जानेंगे कि नवाचार और साझेदारी के ज़रिए भारत इस क्षेत्र में भविष्य की एक बड़ी शक्ति कैसे बन सकता है।
अर्धचालक चिप्स: आधुनिक तकनीकी दुनिया की रीढ़
आज की डिजिटल दुनिया में अर्धचालक चिप्स ही वह मूल तत्व हैं, जो हर इलेक्ट्रॉनिक (electronic) उपकरण को जीवंत बनाते हैं। इन्हें तकनीकी जगत का "नर्वस सिस्टम" (nervous system) कहा जा सकता है। ये चिप्स लाखों सूक्ष्म ट्रांजिस्टरों (transistors) से निर्मित होते हैं, जो सिग्नल, डेटा और ऊर्जा के प्रवाह को नियंत्रित करते हैं। इनका निर्माण अत्यंत जटिल और सटीक प्रक्रिया है - पहले रेत से सिलिकॉन (Silicon) निकाला जाता है, जिसे पिघलाकर ठोस सिलेंडर (Ingot) के रूप में ढाला जाता है। फिर इस सिलेंडर को पतले वेफर्स (wafers) में काटकर माइक्रोस्कोपिक (microscopic) सटीकता के साथ परिपथ मुद्रित किए जाते हैं। एक चिप के निर्माण में लगभग 300 चरण होते हैं, और इसे तैयार होने में तीन से चार महीने तक लग सकते हैं। इन अर्धचालक चिप्स की शक्ति ही है जो हमारे स्मार्टफोन को तेज़ बनाती है, हमारे कंप्यूटर को सोचने में सक्षम बनाती है, हमारी कारों को स्वचालित दिशा देती है, और अस्पतालों के जीवन-रक्षक उपकरणों को सुचारू रूप से चलाती है। यही कारण है कि अर्धचालक चिप्स आज केवल औद्योगिक उत्पाद नहीं, बल्कि मानव सभ्यता की तकनीकी धड़कन बन चुके हैं।

वैश्विक चिप संकट और महामारी का प्रभाव
साल 2020 में जब कोविड-19 महामारी ने पूरी दुनिया को ठहरने पर मजबूर कर दिया, तब एक ऐसी स्थिति पैदा हुई जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी - “वैश्विक चिप संकट”। घर से काम करने और ऑनलाइन शिक्षा (Online Education) के कारण लैपटॉप, मोबाइल, और टैबलेट की मांग अचानक बढ़ गई। वहीं, कार निर्माताओं ने यह सोचकर अपने चिप ऑर्डर घटा दिए कि महामारी के कारण वाहन बिक्री घटेगी। लेकिन हुआ उल्टा-मांग तो बढ़ी, जबकि आपूर्ति रुक गई। इस बीच, चीन और अमेरिका के बीच व्यापारिक तनाव ने सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन को और जटिल बना दिया। ताइवान और दक्षिण कोरिया, जो वैश्विक स्तर पर चिप उत्पादन के प्रमुख केंद्र हैं, वहां भी उत्पादन पर भारी दबाव पड़ा। साथ ही, वैश्विक लॉजिस्टिक्स संकट और बंद फैक्टरियों के कारण उत्पादन लागत में इज़ाफा हुआ। परिणामस्वरूप, मोबाइल से लेकर ऑटोमोबाइल (automobile) तक हर उद्योग को भारी नुकसान झेलना पड़ा। इस संकट ने यह स्पष्ट कर दिया कि अर्धचालक उद्योग केवल तकनीकी नहीं, बल्कि आर्थिक सुरक्षा से भी जुड़ा हुआ क्षेत्र है।
भारत की सेमीकंडक्टर नीति और निर्माण चुनौतियाँ
भारत ने इस वैश्विक संकट से सीख लेते हुए दिसंबर 2021 में 76,000 करोड़ रुपये की प्रोत्साहन योजना (Semiconductor Mission) की घोषणा की, जिसका उद्देश्य देश को एक वैश्विक चिप निर्माण केंद्र के रूप में विकसित करना है। इस पहल के तहत सरकार विदेशी निवेश आकर्षित करने, घरेलू निर्माण को प्रोत्साहन देने और अनुसंधान एवं विकास (R&D) में सहयोग बढ़ाने पर ज़ोर दे रही है। हालांकि, चुनौतियाँ कम नहीं हैं। एक सेमीकंडक्टर फैब यूनिट (Fab Unit) स्थापित करने में अरबों डॉलर का निवेश, अत्यधिक शुद्ध पानी की बड़ी मात्रा, और 24x7 निर्बाध बिजली आपूर्ति की आवश्यकता होती है। भारत में यह बुनियादी ढांचा अभी शुरुआती अवस्था में है। साथ ही, विशेषज्ञ मानव संसाधन की कमी और आयातित मशीनरी पर निर्भरता ने प्रगति को धीमा किया है। फिर भी, "मेक इन इंडिया" (Make in India) और "डिजिटल इंडिया" (Digital India) जैसी नीतियाँ इस दिशा में नई ऊर्जा भर रही हैं। यदि राज्य सरकारें भी उद्योगों को भूमि, बिजली और कर रियायतें प्रदान करें, तो भारत अगले दशक में सिलिकॉन वैली ऑफ एशिया (Silicon Valley of Asia) बनने की दिशा में बड़ा कदम उठा सकता है।

वैश्विक बाजार में सेमीकंडक्टर उद्योग की लाभप्रदता और क्षेत्रीय अंतर
अर्धचालक उद्योग ने बीते दो दशकों में जो विकास किया है, वह वैश्विक अर्थव्यवस्था के सबसे बड़े चमत्कारों में से एक माना जाता है। 2000 के दशक में जहां लाभ सीमित था, वहीं आज यह उद्योग तकनीकी निवेश और लाभ दोनों में अग्रणी है। मेमोरी चिप्स, फैबलेस कंपनियाँ (जो खुद डिज़ाइन करती हैं लेकिन निर्माण आउटसोर्स (outsource) करती हैं) और कॉन्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स (Contract Manufacturing Units) जैसे टीएसएमसी (TSMC) और सॅमसंग (Samsung) इस उद्योग की रीढ़ हैं। क्षेत्रीय स्तर पर, उत्तरी अमेरिका अनुसंधान और डिज़ाइन का केंद्र बना हुआ है - यहां एनव्हीडिया (Nvidia), इंटेल (Intel) और क्वालकॉम (Qualcomm) जैसी कंपनियाँ फैबलेस मॉडल (Fabless Model) से अरबों डॉलर का मुनाफा कमा रही हैं। वहीं, एशिया - खासकर ताइवान, चीन और दक्षिण कोरिया - ने अनुबंध निर्माण के ज़रिए वैश्विक उत्पादन का 70% हिस्सा अपने नियंत्रण में ले लिया है। इस तरह, पश्चिम में डिज़ाइन और पूंजी का प्रवाह है, जबकि पूर्व में निर्माण की दक्षता और लागत नियंत्रण। यही विभाजन आने वाले वर्षों में भी वैश्विक आर्थिक शक्ति संतुलन को प्रभावित करेगा।

भविष्य की दिशा: नवाचार, साझेदारी और भारत के अवसर
अर्धचालक उद्योग अब एक निर्णायक मोड़ पर है। विश्वभर की कंपनियाँ स्वायत्त वाहनों (Self-driving Cars), कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और 5जी नेटवर्क जैसी अत्याधुनिक तकनीकों के लिए नई पीढ़ी की चिप्स तैयार कर रही हैं। इन क्षेत्रों में विकास के लिए लगातार नवाचार, अनुसंधान और वैश्विक सहयोग आवश्यक है। भारत के लिए यह समय अवसर और चुनौती दोनों लेकर आया है। देश के पास विशाल उपभोक्ता बाजार, युवा इंजीनियरिंग प्रतिभा, और डिजिटल बुनियादी ढांचा है। यदि सरकार निजी क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय भागीदारों के साथ एक दीर्घकालिक रणनीति तैयार करे - जिसमें अनुसंधान केंद्र, फैब यूनिट्स, और कौशल प्रशिक्षण का एकीकृत ढांचा हो - तो भारत इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकता है। आने वाले वर्षों में, “मेड इन इंडिया” माइक्रोचिप्स न केवल घरेलू जरूरतों को पूरा करेंगे बल्कि वैश्विक सप्लाई चेन का एक प्रमुख हिस्सा भी बनेंगे।
संदर्भ-
https://bit.ly/3NnZSGw
https://bit.ly/3NpAqAA
https://bit.ly/3LFJ38S
https://tinyurl.com/2nz6ff2z
A. City Readerships (FB + App) - This is the total number of city-based unique readers who reached this specific post from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Messaging Subscribers - This is the total viewership from City Portal subscribers who opted for hyperlocal daily messaging and received this post.
D. Total Viewership - This is the Sum of all our readers through FB+App, Website (Google+Direct), Email, WhatsApp, and Instagram who reached this Prarang post/page.
E. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.