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प्रतीक सदैव ही एक अनूठी पहचान प्रदान करने में कारगर साबित होते हैं और यही कारण है कि जब हम अपने आस पास उपस्थित प्रतीकों को देखते हैं तो आसानी से हमें ज्ञात हो जाता है कि यह किस से सम्बंधित है। विभिन्न धर्मों में भी प्रतीकों के अपने नए मायने होते हैं जो इनको अन्य धर्मों से पृथक करते हैं। कई ऐसे भी प्रतीक हैं जो कि कई धर्मों में एक से ही पाए जाते हैं जैसे कि स्वास्तिक। स्वास्तिक का प्रयोग हम मात्र सनातनी धर्म में ही नहीं बल्कि अन्य कई धर्मों में भी देखते हैं। स्वास्तिक के प्रतीक का प्रयोग हिटलर ने भी किया था। जिस कारण से नाज़ी सेना का यह प्रतीक बना।
अक्सर जब हम मस्जिदों या अन्य कुछ इस्लामिक इमारतों को देखते हैं तो एक विशेष प्रकार का चिह्न हमें दिखाई देता है। यह एक षड्रेखीय (छः रेखा वाली) आकृति है जिसे स्टार ऑफ़ डेविड (Star of David) भी कहा जाता है। यह आकृति किसी सितारे की तरह प्रतीत होती है। यह मात्र मुस्लिम नहीं अपितु हिन्दू व फ्रीमेसन (Freemason) के भी प्रतीकों में आता है।
अफगान और मुग़ल जो मध्य युग के दौरान उत्तर भारत के अधिकांश क्षेत्र प्रभुत्व रखते थे, ने हेक्साग्राम (Hexagram) का एक वास्तुशिल्प तत्व के रूप में व्यापक उपयोग किया। विशेष रूप से जब उपमहाद्वीप में उपनिवेशित हिंदू जनसंख्या (जिसने कार्य बल का एक बड़ा हिस्सा गठित किया और इस्लामी संरचनाओं में मूल तत्वों का योगदान दिया जो कि इंडो-इस्लामी वास्तुकला के रूप में जाना जाता है) ने विभिन्न इमारतों का निर्माण किया तो वहां पर इस प्रतीक का भी उपयोग किया। यह 'छः छोरों वाला सितारा आमतौर पर एक यंत्र, शुद्धिकरण प्रतीक, या मूर्तियों के लिए उपयोग किया जाता है। हिंदू संस्कृति के दौरान इस आकार के विभिन्न समय और स्थानों पर विभिन्न प्रकार से उपयोग किये गए हैं।
यह आकार दो एक दूसरे से जुड़े त्रिकोणों से बना है, इसका ऊपरी भाग 'पुरुष' (पुरुष ऊर्जा) और आग शक्ति के लिए तथा निचला भाग 'प्रकृति' (मादा शक्ति) और पानी को प्रदर्शित करता है। इन दोनों का एकीकरण ऋषि संताकुमार का जन्म देता है। शिव को विनाशक और सर्वोच्च चेतना के रूप में भी जाना जाता है और शिव शक्ति से अपनी महानता प्राप्त करते हैं। दूसरे शब्दों में भगवान शक्ति के बिना बेकार हैं। यह प्रतीक शक्ति को प्रदर्शित करता है। इसी प्रकार से यहूदी और फ्रीमेसन में भी इसका प्रयोग दिखाई देता है। यह यहाँ भी आध्यात्म से जुड़ा हुआ है। यदि हम जौनपुर की बात करें तो यहाँ की भी शर्की और मुग़ल कालीन इमारतों में हम आसानी से इस चिन्ह को देख सकते हैं जैसे दिए गए चित्र में बाईं ओर पर दिल्ली के पुराने किले पर इस चिह्न को दिखाया गया है और वहीँ दायीं ओर जौनपुर की शर्की वास्तुकला वाली ईमारत पर दिखाया गया है। यह इस बात का द्योतक है कि यह कला बड़े पैमाने पर प्रचलित थी।
1.http://farbound.net/the-star-of-david-or-the-hindu-shanmukha/
2.https://www.chabad.org/library/article_cdo/aid/788679/jewish/Star-of-David-The-Mystical-Significance.htm
3.https://www.quora.com/What-is-the-meaning-of-the-Star-of-David-sign-in-Hinduism