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जौनपुरवासियों, आज हम एक ऐसे विषय पर बात करने जा रहे हैं जो भले ही हमारे शहर की ऐतिहासिक धरोहर, सांस्कृतिक परंपराओं या स्थानीय उद्योगों से सीधे तौर पर न जुड़ा हो, लेकिन आने वाले कल में आपकी रोज़मर्रा की यात्रा, सड़क सुरक्षा और जीवनशैली को गहराई से प्रभावित कर सकता है। यह विषय है - स्वचालित वाहन, यानी ऐसी गाड़ियाँ जो बिना किसी चालक के खुद निर्णय लेकर सड़क पर चल सकती हैं। दुनिया की बड़ी कंपनियाँ और विकसित देश तेजी से इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं, और आने वाले वर्षों में यह तकनीक वैश्विक परिवहन प्रणाली को पूरी तरह बदल सकती है। इसलिए यह समझना हमारे लिए भी उतना ही ज़रूरी है कि ये वाहन कैसे काम करते हैं, इनके पीछे कौन-कौन सी अत्याधुनिक तकनीकें होती हैं, और भविष्य में इनका हमारे समाज, हमारे बच्चों की सुरक्षा और हमारे शहरों के ट्रैफिक पर कैसा असर पड़ सकता है।
इस लेख में हम सबसे पहले, हम जानेंगे कि स्वचालित वाहनों की तकनीक क्या है और यह किन सेंसरों व एआई सिस्टम (Artificial Intelligence System) पर आधारित होती है। इसके बाद, हम देखेंगे कि दुनिया भर में यह तकनीक किस गति से विकसित हो रही है और आज इसकी वास्तविक स्थिति क्या है। फिर, हम भारत और खासकर भारतीय सड़कों की चुनौतियों के संदर्भ में स्वचालित वाहनों की दिशा को समझेंगे। अंत में, हम यह भी जानेंगे कि इस तकनीक से समाज, सुरक्षा और भविष्य की जीवनशैली पर क्या सकारात्मक व नकारात्मक प्रभाव पड़ सकते हैं।
स्वचालित वाहनों की अवधारणा और तकनीकी आधार
स्वचालित वाहन वे हैं जो बिना किसी मानव चालक के स्वयं सड़कों पर चल सकते हैं। इनका संचालन पूरी तरह उन्नत तकनीकों जैसे कैमरा, सेंसर, राडार, लाइडार (LIDAR) और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पर आधारित होता है। ये उपकरण वाहन के चारों ओर के माहौल का लगातार विश्लेषण करते हैं - सड़क की स्थिति, ट्रैफिक सिग्नल, पैदल यात्री, और अन्य वाहनों की गति व दूरी को समझकर निर्णय लेते हैं। इस तकनीक की रीढ़ मशीन लर्निंग (Machine Learning) और डेटा प्रोसेसिंग (Data Processing) है। हर यात्रा के साथ वाहन नई परिस्थितियों से सीखता है, और अगली बार उसी परिस्थिति में और सटीक निर्णय लेने की क्षमता प्राप्त करता है। नेविगेशन सिस्टम (Navigation System), जीपीएस (GPS), और क्लाउड कनेक्टिविटी (Cloud Connectivity) जैसे घटक इसे और अधिक स्मार्ट बनाते हैं। भविष्य में यह तकनीक न केवल मानव चालक का विकल्प बनेगी, बल्कि सड़क सुरक्षा और परिवहन दक्षता को भी पूरी तरह बदल सकती है।

वैश्विक स्तर पर स्वचालित वाहनों का विकास और वर्तमान स्थिति
दुनिया में स्वचालित गाड़ियों की शुरुआत 2010 के दशक की शुरुआत में हुई जब टेस्ला (Tesla), वेमो (Waymo) और उबर (Uber) जैसी कंपनियों ने ड्राइवरलेस (Driverless) तकनीक पर प्रयोग शुरू किए। टेस्ला की "ऑटोपायलट" (Autopiolet) कारें आंशिक स्वचालन का उदाहरण हैं - जो खुद चलने, ब्रेक लगाने और लेन बदलने जैसे कार्य कर सकती हैं। हालाँकि, अब तक हुई कई दुर्घटनाओं ने यह स्पष्ट किया कि पूरी तरह स्वचालित तकनीक तक पहुँचना अभी भी एक चुनौती है। विश्वभर में इस क्षेत्र में अब तक 100 अरब डॉलर से अधिक निवेश हो चुका है, और लगभग हर विकसित देश ने इस दिशा में प्रयोगात्मक सेवाएँ शुरू कर दी हैं। अमेरिका में फीनिक्स (Phoenix) और सैन फ्रांसिस्को जैसे शहरों में सीमित क्षेत्र में ड्राइवरलेस टैक्सी चल रही हैं, वहीं जापान, जर्मनी और चीन इस तकनीक को सार्वजनिक परिवहन में जोड़ने की तैयारी कर रहे हैं। इन प्रयासों से यह स्पष्ट है कि स्वचालित वाहन अब सिर्फ कल्पना नहीं, बल्कि आने वाले दशक की सच्चाई बनते जा रहे हैं।
भारत में स्वचालित वाहनों की दिशा और प्रमुख पहलें
भारत में स्वचालित वाहनों की दिशा अभी शुरुआती दौर में है, लेकिन इसकी गति आशाजनक है। टाटा मोटर्स (Tata Motors), महिंद्रा एंड महिंद्रा, और आईआईटी मद्रास (IIT Madras) जैसी संस्थाएँ इस तकनीक पर सक्रिय रूप से शोध कर रही हैं। विशेष रूप से भारतीय स्टार्टअप माइनस जीरो (Minus Zero) ने दावा किया है कि वे जल्द ही ऐसी कार बनाएँगे जिसे स्टीयरिंग (steering) या एक्सीलरेटर (accelerator) की आवश्यकता नहीं होगी। फिर भी, भारत की सड़कों की जटिलता इस क्षेत्र के लिए सबसे बड़ी परीक्षा है। हर राज्य की ट्रैफिक प्रणाली अलग है, सड़कों पर स्पष्ट लेन-मार्किंग (lane-marking) और डिजिटल सिग्नल की कमी है। इन सबके बावजूद, भारत में तकनीकी उत्साह कम नहीं है - इंजीनियरिंग संस्थान और युवाओं के स्टार्टअप इस क्षेत्र में तेजी से प्रयोग कर रहे हैं। अगर सरकार उचित नीतियाँ और परीक्षण संरचना तैयार करे, तो भारत अगले दशक में स्वचालित वाहनों का एक उभरता हुआ केंद्र बन सकता है।

स्वचालन के छह स्तर — तकनीकी प्रगति की रूपरेखा
‘सोसाइटी ऑफ ऑटोमोटिव इंजीनियर्स (SAE)’ ने वाहनों के स्वचालन को छह स्तरों (0 से 5) में बाँटा है -
आज की टेस्ला और वेमो जैसी गाड़ियाँ लेवल 2 और 3 तक पहुँची हैं। शोधकर्ता अब लेवल 4 और 5 की दिशा में काम कर रहे हैं, जहाँ वाहन पूरी तरह से स्वयं-निर्णायक (Self-Decisive) बन सके। यह स्तर प्राप्त करना तकनीकी, नैतिक और कानूनी - तीनों दृष्टि से सबसे बड़ी चुनौती है।

भारतीय सड़कों की चुनौतियाँ और नियामक बाधाएँ
भारत में स्वचालित वाहनों की सबसे बड़ी समस्या सड़क संरचना और अनुशासन की कमी है। हमारे अधिकांश शहरों में सड़कें संकरी हैं, लेन-मार्किंग असमान है और ट्रैफिक सिग्नलिंग में एकरूपता नहीं है। साथ ही, पैदल यात्री, साइकिल चालक और दोपहिया वाहन अनियमित ढंग से चलते हैं, जिससे सेंसर आधारित तकनीक के लिए निर्णय लेना कठिन हो जाता है। इसके अलावा, भारत में अभी तक स्वचालित वाहनों से जुड़े कानून, बीमा नीतियाँ और सुरक्षा दिशा-निर्देश स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किए गए हैं। इनकी अनुपस्थिति में कंपनियों के लिए बड़े पैमाने पर परीक्षण और सार्वजनिक उपयोग शुरू करना जोखिम भरा हो सकता है। सरकार अगर इस क्षेत्र के लिए एक राष्ट्रीय स्वचालित वाहन नीति (National Autonomous Vehicle Policy) लाए, तो अनुसंधान, परीक्षण और नियमन की प्रक्रिया अधिक सुगम हो जाएगी।

स्वचालित वाहनों से जुड़े अवसर और सामाजिक प्रभाव
स्वचालित वाहनों के आगमन से समाज में बड़े परिवर्तन संभव हैं। सबसे बड़ा लाभ सड़क दुर्घटनाओं में कमी के रूप में देखा जा सकता है - क्योंकि इन वाहनों में मानवीय भूल की संभावना लगभग समाप्त हो जाती है। इससे न केवल हजारों जानें बचेंगी बल्कि ट्रैफिक जाम और प्रदूषण में भी सुधार होगा। ऊर्जा दक्षता बढ़ेगी, ईंधन की बचत होगी और ड्राइविंग थकान जैसी समस्याएँ समाप्त होंगी। विकलांग और बुजुर्ग व्यक्तियों के लिए यह तकनीक आत्मनिर्भरता का नया द्वार खोल सकती है। इसके अतिरिक्त, शेयर्ड ऑटोनॉमस व्हीकल सिस्टम (Shared Autonomous Vehicle System) से शहरों में निजी वाहनों की संख्या घटेगी, जिससे पर्यावरणीय दबाव भी कम होगा। हालाँकि, इन सबके साथ रोजगार, गोपनीयता और साइबर सुरक्षा जैसे नए प्रश्न भी उठेंगे - जिन पर समाज और नीति निर्माताओं को गंभीरता से विचार करना होगा।
संदर्भ-
https://bit.ly/3ZvbVHP
https://bit.ly/41aWp5p
https://bit.ly/3KqWfRE
https://tinyurl.com/3pabvbz5
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