जौनपुर में उर्दू भाषा का अपना एक शानदार इतिहास

ध्वनि II - भाषाएँ
16-08-2018 01:02 PM
जौनपुर में उर्दू भाषा का अपना एक शानदार इतिहास

उर्दू तहजीब और मिठास की भाषा है। इतिहास में एक ऐसा समय था जब जौनपुर अपनी उर्दू शिक्षा के लिये प्रसिद्ध था और उस समय हमारे समुदाय में हर घर में इस्लाम की मूलभूत शिक्षाओं को महत्व दिया जाता था। जौनपुर पुराने समय से ही उर्दू, सूफी ज्ञान और संस्कृति का एक प्रमुख केंद्र था। शारकी वंश के दौरान ये मुसलमानों और हिंदुओं के बीच अपने उत्कृष्ट सांप्रदायिक संबंधों के लिए जाना जाता था। 1480 में सुल्तान सिकंदर लोदी ने इस पर विजय प्राप्त की और कई शारकी स्मारकों को नष्ट कर दिया।

लेकिन कई महत्वपूर्ण मस्जिद बच गई, विशेष रूप से अटाला मस्जिद, जामा मस्जिद और लाल दरवाजा मस्जिद। जौनपुर की ये मस्जिदें एक अद्वितीय वास्तुशिल्प शैली प्रदर्शित करती हैं, जिसमें परंपरागत हिंदू और मुस्लिम प्रारूपों का संयोजन देखने को मिलता हैं। परंतु देश की आजादी के बाद धीरे-धीरे स्थिति बदलने लगी और उर्दू शिक्षा का स्तर घटना शुरू हो गया। इसका सीधा सीधा प्रभाव उर्दू पत्रकारिता पर पड़ा। उर्दू पत्रकारिता जिसने देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में एक बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, अब देश के विभाजन, संकीर्ण सोच, राज्यों में उर्दू की बुनियादी और प्राथमिक शिक्षा के लिए सुविधाओं की कमी के कारण पतन की ओर अग्रसर है।

जी.डी चंदन (प्रमुख उर्दू पत्रकार) ने भारत सरकार को प्रस्तुत एक रिपोर्ट में बताया है कि आजादी के बाद भी प्रतिकूल परिस्थितियों में उर्दू समाचार पत्रों की संख्या में चार गुना वृद्धि हुई थी और लगभग 1990 के अंत तक इनके प्रकाशन में लगभग सात गुना वृद्धि हुई, लेकिन 1997 के बाद उर्दू पत्रकारिता में कमी आई। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2001 में उर्दू समाचार पत्रों का प्रकाशन घटकर 51,6,182 हो गया, जबकि यह 2000 में 61,20,317 था। रोजगार की दृष्टि से भी आधुनिक भारत में हर रोज उर्दू भाषा के पढ़ने/लिखने के उपयोग में कमी आई है। क्योकि देश में भाषा-संबंधी नौकरी पर ध्यान कम केंद्रित होने के कारण उर्दू जानने वाले अपना करियर नहीं बना पा रहे हैं।

उर्दू शिक्षा में गिरावट के बावजूद भी भारत में कई उर्दू समाचार पत्र आज भी प्राकाशित होते हैं। देश में उर्दू प्रिंट प्रकाशनों का तीसरा सबसे ज्यादा प्रसार उत्तर प्रदेश में होता है। यहां आज भी उर्दू पत्रकारिता की विरासत के रूप में जौनपुर शहर के दिल में "उर्दू बाजार" (किताबों को समर्पित एक बाजार। जहां किताबें विशेष रूप से उर्दू भाषा में होती हैं।) नामक बाज़ार है।

संदर्भ:

1.https://www.jaunpurcity.in/2014/03/jaunpur-was-then-major-center-of-urdu.html
2.http://www.milligazette.com/Archives/2005/01-15July05-Print-Edition/011507200560.htm
3.https://scroll.in/article/809102/the-death-of-urdu-in-india-is-greatly-exaggerated-the-language-is-actually-thriving