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भारत में हमेशा से ही संस्कृति, धर्म, परंपरा और साहित्य में विज्ञान से जुड़े कई तथ्य शामिल रहे हैं। हालांकि ये भी सही है कि इनको हमेशा से ही विज्ञान से ज्यादा धार्मिक भावनाओं से जोड़ा गया है, इसलिये हम अपनी गौरवमय संस्कृति को जाने बिना ही बड़े हो गए हैं। हाल के वर्षों में आपने काफी सुना होगा कि भौतिक वैज्ञानिक ब्रह्मांड उत्पत्ति के बारे में जानने के लिये निरंतर प्रयास कर रहे हैं और वे काफी हद तक सफल भी हुए हैं।
अलबर्ट आइंस्टीन के द्रव्यमान ऊर्जा संबंध या द्रव्यमान-ऊर्जा समतुल्यता (E=mc2) के सिद्धान्त को भौतिकी के क्षेत्र में बेहतरीन खोजों में से एक माना जाता है। इस सिद्धान्त के माध्यम से ही हम आज ब्रह्मांड उत्पत्ति के बारे में जान पाए हैं। परंतु क्या आपको पता है कि भारत में अलबर्ट आइंस्टीन के जन्म से 2800 वर्ष पहले ही द्रव्यमान ऊर्जा संबंध का ज्ञान अस्तित्व में आ गया था।
आइंस्टीन के द्रव्यमान ऊर्जा संबंध और नटराज के ब्रह्मांडीय नृत्य के बीच एक अतुल्यनिय समानता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के नटराज मुद्रा की प्रतिमा असल में ब्रह्मा के लिये उनके द्वारा किए गए सृजन और संहार के ब्रह्मांडीय नृत्य को दर्शाता है। यह ब्रह्मांडीय नृत्य ब्रह्मांड के निर्माण को समझाने वाले दो सिद्धान्तों बिग बैंग सिद्धान्त (ब्रह्मांड का जन्म एक महाविस्फोट के परिणामस्वरूप हुआ था।) और द्रव्यमान ऊर्जा संबंध की एक स्पष्ट तस्वीर देता है।
एक तमिल अवधारणा के अनुसार शिव को सबसे पहले प्रसिद्ध चोल कांस्य और चिदंबरम की मूर्तियों में नटराज के रूप में चित्रित किया गया था। भगवान शिव के ऊपरी दाहिने हाथ में छोटे डमरू की ध्वनि निर्माण या उत्पत्ति का प्रतीक है और बाएं हाथ में अग्नि विनाश की प्रतीक है। फ्रीद्जऑफ कापरा (प्रसिद्ध ऑस्ट्रियाई भौतिक वैज्ञानिक) के अनुसार भगवान शिव का यह ब्रह्मांडीय नृत्य वास्तव में भौतिक शास्त्रियों द्वारा खोजे जाने वाले उप-परमाण्विक तत्वों के नृत्य को दर्शाता है। उन्होंने बताया कि आधुनिक भौतिकी में प्रत्येक उप-परमाण्विक न केवल ऊर्जा नृत्य करता है बल्कि इनमें ऊर्जा का प्रवाह भी होता है अर्थात ऊर्जा एक से दूसरे में परिवर्तित हो जाती है, यह निर्माण और विनाश की एक स्पंदन प्रक्रिया है। यही प्रक्रिया शिव के ब्रह्मांडीय नृत्य में भी होती है, इसमें ऊर्जा का निरंतर प्रवाह होता रहता है, जो सृजन और विनाश के रूप में निरंतर परिवर्तित होती रहती है।
नटराज का एक एक अंश प्रतीकात्मक रूप से कुछ न कुछ शिक्षा प्रदान करता है। तो आइये समझें नटराज के भिन्न हिस्सों को इन 9 बिन्दुओं के ज़रिये विस्तार से:
ब्रह्मांडीय नृत्य का यह रूप इस प्रकार भारतीय पौराणिक कथाओं, धार्मिक कला और आधुनिक भौतिकी को जोड़ता है। यही कारण है कि, यूरोप की परमाणु अनुसंधान प्रयोगशाला CERN में भगवान शिव के रूप नटराज की प्रतिमा रखी गयी है। भारत सरकार ने यह 2 फीट की प्रतिमा को CERN के साथ अपने लंबे अनुसंधान सहयोग संबंध का जश्न मनाने के लिए भेंट की थी।
संदर्भ:
1.https://mysteriesexplored.wordpress.com/2011/08/21/einsteins-mass-energy-equivalence-and-the-creation-of-universe-the-big-bang-theory-all-in-one-2800-years-before-einstein-and-modern-science/
2.http://www.fritjofcapra.net/shivas-cosmic-dance-at-cern/
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Big_Bang