कागज में सजोंया हुआ कागज का इतिहास

अवधारणा I - मापन उपकरण (कागज़/घड़ी)
27-10-2018 02:02 PM
कागज में सजोंया हुआ कागज का इतिहास

मन ने सोचा आज कागजों को
कलम की सहायता से रंग दूं।
कोरे कागज पर ज्यादा तो कुछ नहीं
परंतु बात कागज की ही लिख दूं।।

लेखन सामग्रियों की बात करें तो आज के समय में मनुष्य की भाषा और विचारों को लिपिबद्ध करने का सबसे अच्छा साधन है कागज। वर्तमान में कागज, स्कूल के बच्चे हों या ऑफिस के कर्मचारी, हर व्याक्ति के द्वारा प्रयोग किया जाता है। कागज हमारे जीवन में काम आने वाली एक बहुत ही महत्वपूर्ण वस्तु है, कागज नहीं होता तो शायद आज के समय में हमें हमारे इतिहास के बारे में पूर्ण जानकारी भी नहीं मिल पाती। हमें सिर्फ किसी चीज के चित्र या उसके जीवाश्म ही मिल पाते। कागज ने हमारे इतिहास को संजो कर रखने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

हालांकि कागज के आविष्कार से पहले भी मनुष्य लिखने की कला को जानता था। उस समय में भिन्न-भिन्न देशों की सभ्यताओं के मनुष्य लिखने के लिये भिन्न-भिन्न वस्तुओं का उपयोग करते थे। वैदिक सिद्धांत के अनुसार भारतीय ऋषि मुनियों ने सुनने और समझने की क्रिया के माध्यम से वेदों की ऋचाओं को कंठस्थ किया और इस प्रक्रिया को श्रुति नाम दिया। उस समय ज्ञान को फैलाने और बढ़ाने के लिए यह माध्यम पर्याप्त नहीं था, इसी कारण से लिपि का अविष्कार हुआ और तब मनुष्य ने पत्थरों व वृक्षों की छालों तथा ताम्रपत्रों और भोजपत्रों पर लिखना प्रारम्भ किया।

अंग्रेज़ी के ‘पेपर’ (Paper) शब्द की उत्पत्ति असल में लैटिन के ‘पेपिरस’ (Papyrus) से हुई है। पेपिरस एक मोटी, पेपर जैसी सामग्री है जो साइप्रस पेपिरस (Cyperus papyrus) पेड़ के गूदे से उत्पादित होती थी। जिसका उपयोग प्राचीन मिस्र और अन्य भूमध्यसागरीय समाजों में चीन में कागज के इस्तेमाल से पहले से ही लिखने के लिए किया जाता था। ऊपर प्रस्तुत किये गए चित्र में एक रोमन व्यक्ति को हाथ में पेपिरस पकडे दर्शाया गया है।

परंतु इतिहासकारों के मतानुसार सबसे पहले लुगदी बनाकर और उस लुगदी से कागज बनाने का कार्य चीन के हान वंश के राज काल (202 ईसा पूर्व - 220 ईस्वी) के एक अधिकारी साई लून नामक व्यक्ति ने 105 ई. में किया था। उन्होंने पेड़ों की छाल, शहतूत और अन्य प्रकार के रेशों की सहायता से कागज का निर्माण किया था। कागज ने जल्द ही चीन में व्यापक रूप ले लिया और देखते ही देखते कई सारे देशों में इसको बनाने की विधि का प्रचार प्रसार हुआ। चीन से कागज बनाने की विधि के विस्तार की बात करें, तो ऐसा कहा जाता है कि रेशम मार्ग और बौद्ध भिक्षुओं ने एशियाई देशों में इसकी शुरुआती तकनीक के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस प्रकार कागज अंततः भारत पहुंचा, ऐसा माना जाता है कि भारत में कागज का पहला उत्पादन सागौन या टीकवुड से किया गया था। जल्द ही भारतीय कागज को पश्चिम एशिया, यूरोप और तुर्की में निर्यात किया जाने लगा था।

हालाँकि भारत में कागज उद्योगों की बात करें तो मुख्य तौर पर इस तकनीक की शुरुआत मुग़ल सल्तनत के दौर में हुई, जब कश्मीर के सुल्‍तान ज़ैन-उल-अबिदीन (1417-1467 ई0) ने कागज की मिल की स्थापना की। मुगलों के शासनकाल में तैयार किये गए कश्मीरी कागज की बड़ी मांग थी और उस कागज को दोबारा प्रयोग में लाया जा सकता था। इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये देश के विभिन्न हिस्सों जैसे उत्तर प्रदेश के ज़ाफराबाद (जौनपुर), पंजाब के सियालकोट, अहमदाबाद, मुर्शिदाबाद और हुगली (बंगाल) और दक्षिण में औरंगाबाद और मैसूर आदि स्थानों पर कागज बनाने के केंद्र स्थापित किए गए।

ऐसा माना जाता है कि उस समय के दौरान ज़ाफराबाद (जौनपुर) कागज के निर्माण का एक प्रमुख केंद्र बन गया था। जिसे पुराने समय में ‘काघदी शहर’ (पेपर सिटी) के नाम से जाना जाता था। वहाँ का कागज बहुत टिकाऊ और बांस का बना होता था। चमकदार और चिकना होने के कारण इसने अपनी एक अलग पहचान बना ली थी। यहां पर आम तौर पर कागज की दो किस्मों का उत्पादन किया गया था, पहला पॉलिश कागज (Polished paper) था, जो अत्यधिक चमकदार था, और दूसरा अनपॉलिश कागज (Unpolished paper)।

फिर धीरे-धीरे इस कागज को बनाने की तकनीक में समय-समय पर कई सुधार हुए तथा आज आप जिस कागज पर लिखते हैं या लिखा हुआ पढ़ते हैं वो शुरूआती समय से आज कई तकनीकी उतार-चढ़ाव देख चुका है। तो ये था कागज़ के लंबे चौड़े इतिहास का एक संक्षिप्त सफरनामा।

1925 में, बैम्बू पेपर इंडस्ट्री (प्रोटेक्शन) एक्ट (Bamboo Paper Industry (Protection) Act) और 1931 में, इंडियन फाइनेंस (सप्लीमेंट्री एंड एक्सटेंडिंग) एक्ट (Indian Finance (Supplementary and Extending) Act) अस्तित्व में आये, जिन्होंने मिलों को सुरक्षा प्रदान की। 1925 में भारत में कागज उत्पादन की कुल क्षमता 33,000 टन थी और वहीं 1930-1931 तक ये बढ़कर 45,600 टन हो गई थी, अर्थात राष्ट्रीय उपभोग में स्वदेशी उत्पादन का हिस्सा जो 1925 में 54% था वो अब बढ़कर 71% हो गया। बाद में 1950 में कागज उत्पादन की कुल क्षमता 1.093 लाख टन हो गयी, और तब से अब तक ये क्षमता प्रतिवर्ष बढ़ती ही जा रही है।

संदर्भ:
1.https://www.infinityfoundation.com/mandala/t_es/t_es_tiwar_paper_frameset.htm
2.http://archive.aramcoworld.com/issue/199903/revolution.by.the.ream-a.history.of.paper.htm
3.https://en.wikipedia.org/wiki/History_of_paper