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भारत में विभिन्न शासकों ने शासन किया है, और उन शासकों द्वारा अपने राज्य काल के दौरान अपनी सभ्यता के अनुरूप कई ऐतिहासिक स्मारकों और मूर्तियों की स्थापना की गयी। लेकिन समय के साथ ये ऐतिहासिक स्मारक और मूर्तियां खंडित होने लगी और विशेष देखरेख की मांग करने लगी। इनके लिए भारत में ब्रिटिश राज के दौरान एक विशेष विभाग का आयोजन किया गया।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की स्थापना सन 1861 में अलेक्जेंडर कनिंघम (जो इसके पहले महानिदेशक भी बने) द्वारा की गयी थी और यह पर्यटन एवं संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत संस्कृति विभाग के संलग्न कार्यालय के रूप में कार्य करता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का प्रमुख कार्य राष्ट्रीय महत्व के प्राचीन स्मारकों तथा पुरातत्वीय स्थलों और अवशेषों का रखरखाव करना है। जौनपुर के भी कई प्राचीन स्थलों के रखरखाव की ज़िम्मेदारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की है जैसे, कालिच खान का मक़बरा, खालिस मुखलिस (चार अंगुल मस्जिद), शाह फ़िरोज़ का मक़बरा आदि।
अलेक्जेंडर कनिंघम ने वाइसराय चार्ल्स जॉन कैनिंग की सहायता से इसकी स्थापना पहले पुरातात्विक सर्वेक्षक के रूप में कानून में एक अधिनियम पारित करके की थी। वहीं 1871 में सर्वेक्षण के लिए एक अलग विभाग की स्थापना की गयी और अलेक्जेंडर कनिंघम को महानिदेशक नियुक्त किया गया। आज भी अलेक्जेंडर कनिंघम को "भारतीय पुरातत्व के पिता" के रूप में सम्मानित किया जाता है।
1885–1901
वहीं 1885 में कनिंघम सेवानिवृत्त हुए और जेम्स बर्गेस को महानिदेशक के पद पर नियुक्त किया गया। बर्गेस ने भारतीय पुरातन में वार्षिक पत्रिका "द इंडियन एंटीक्विरी (1872)" और वार्षिक अनुलेख प्रकाशन "एपिग्राफिया इंडिका (1882)" को शुरू किया। 1889 में महानिदेशक पद को कोष में कमी के कारण स्थायी रूप से निलंबित कर दिया गया और 1902 तक इस पद पर किसी की भी पुनर्नियुक्ती नहीं की गयी।
1901–1947
1902 में लॉर्ड कर्जन द्वारा महानिदेशक पद को पुनर्नियुक्त कर दिया गया, कर्ज़न ने जॉन मार्शल नामक कैम्ब्रिज में शास्त्रीय अध्ययन के 26 वर्षीय प्रोफेसर का सर्वेक्षण के लिए महानिदेशक के रूप में चयन किया। मार्शल ने अपने कार्य अवधि में सर्वेक्षण की गतिविधियों को तेज किया और सर्वेक्षण की पुन: पूर्ति करी। हालांकि, उनके कार्यकाल की सबसे महत्वपूर्ण परिणाम 1921 में हड़प्पा और मोहनजोदड़ो में सिंधु घाटी सभ्यता की खोज थी। इस खोज की सफलता ने यह सुनिश्चित करा दिया कि मार्शल के कार्यकाल में हुई प्रगति बेमिसाल रहेगी। 1928 में मार्शल के बाद हेरोल्ड हरग्रेव्स को नियुक्त किया गया। जॉन मार्शल के सहायक के रूप में दयाराम साहनी नें 1921-22 में हड़प्पा में खुदाई का नेतृत्व किया और हरग्रेव्स के बाद ये पहले भारतीय थें जो 1931 में सर्वेक्षण के महानिदेशक नियुक्त हुए।
साहनी के बाद जे.एफ.ब्लैकिस्टन और के.एन.दीक्षित को नियुक्त किया गया, इन्होंने हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई में सम्मिलित हुए थे। वहीं 1944 में, एक ब्रिटिश पुरातत्वविद और सेना अधिकारी, मोर्टिमर व्हीलर ने महानिदेशक के पद को संभाला। महानिदेशक के रूप में इन्होंने काफी कार्य किए और अरिकमेडु के लौह युग स्थान और दक्षिण भारत में ब्रह्मगिरी, चंद्रवल्ली और मास्की के पषाण युग स्थानों की खुदाई करी।
1947–1956
1948 में व्हीलर के बाद एन. पी. चक्रवर्ती को महानिदेशक नियुक्त हुए। 15 अगस्त 1949 में भारतीय राष्ट्रीय संग्रहालय का नई दिल्ली में उद्घाटन किया गया। बाद में माधो सरूप वत्स और अमलानंद घोष एन. पी. चक्रवर्ती के उत्तराधिकारी के रूप में नियुक्त किये गये। घोष का कार्यकाल 1968 तक चला जिसमें इन्होंने सिंधु घाटी स्थल कालीबंगन, लोथल और धोलावीरा आदि की खुदाई में सराहनीय भूमिका निभाई। घोष और बी.बी. लाल द्वारा आयोध्या के बाबरी मस्जिद में पुरातात्विक खुदाई के माध्यम से यह जानने का प्रयास किया गया कि वास्तव में मस्जिद बनने से पूर्व यहां पर कोई राम मंदिर था। लाल नें अपने कार्यकाल के दौरान पुरातनता और कला निधि अधिनियम 1972 तहत प्राचीन स्मारकों को राष्ट्रीय महत्व प्रदान कर केन्द्रीय संरक्षण देने की सिफारिश की। 1981 में बी. के. थापर की सेवानिवृत्ति के पश्चात देबाला मित्रा को पुरातात्विक महानिदेशिका नियुक्त किया गया, जो पहली महिला महानिदेशिका नियुक्त हुयी। इसी कालक्रम में कई महानिदेशिक नियुक्त किये गये। 1992 में बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर दिया गया जिस कारण तत्कालीन पुरातत्वविद जोशी को अपने पद से बर्खास्त कर दिया गया।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के मुख्य कार्य निम्न है:
• विश्व विरासत स्मारकों और पुरातनता सहित केंद्रीय संरक्षित स्मारकों और स्थानों के संरक्षण, रखरखाव और पर्यावरण विकास की देखरेख।
• केंद्रीय संरक्षित स्मारकों और स्थानों के आस-पास के बगीचों के रखरखाव और नए बगीचों का निर्माण।
• प्राचीन स्थलों की खोज और उत्खनन।
• शिलालेख और भारतीय वास्तुकला के विभिन्न चरणों का विशेष अध्ययन।
• पुरातात्विक स्थल संग्रहालयों का रखरखाव।
• पुरातनता और कला निधि अधिनियम का संचालन।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को राष्ट्रीय महत्व के प्राचीन स्मारकों तथा पुरातत्वीय स्थलों तथा अवशेषों के रखरखाव के लिए कुल 29 मंडलों में विभाजित किया गया है, और प्रत्येक मंडल को उप-मंडलों में विभाजित किया गया है। एएसआई के 29 मंडल निम्नलिखित है:
1. आगरा
2. अइज़ोल
3. अमरावती
4. औरंगाबाद
5. बैंगलोर
6. भोपाल
7. भुवनेश्वर
8. चंडीगढ़
9. चेन्नई
10. देहरादून
11. दिल्ली
12. धारवाड़
13. गोवा
14. गुवाहाटी
15. हैदराबाद
16. जयपुर
17. जोधपुर
18. कोलकाता
19. लखनऊ
20. मुंबई
21. नागपुर
22. पटना
23. रायपुर
24. रांची
25. सारनाथ
26. शिमला
27. श्रीनगर
28. तृश्शूर
29. बड़ोदरा
एएसआई दिल्ली, लेह और हम्पी के तीन "लघु मंडलों" का भी प्रबंधन करता है।
भारत का पहला संग्रहालय 1814 में कलकत्ता में एशियाटिक सोसायटी (Asiatic Society) द्वारा स्थापित किया गया था। इसके अधिकांश संग्रह को भारतीय संग्रहालय में भेज दिया गया था, जिसे 1866 में कोलकाता में ही स्थापित किया गया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग का तब तक कोई स्वयं का संग्रहालय नहीं था। जॉन मार्शल (1902−1928) द्वारा जगह- जगह विभिन्न संग्रहालयों की स्थापना शुरू करवाई गयी जैसे कि - सारनाथ (1904), आगरा (1906), अजमेर (1908), दिल्ली का किला (1909), बीजापुर (1912), नालंदा (1917) और सांची (1919)।
एएसआई के संग्रहालय प्राप्त किए गए एतिहासिक स्थानों के पास ही स्थित होते हैं, ताकि उनका अध्ययन उनके प्राकृतिक परिवेश के बीच में रह कर ही किया जा सके। मॉर्टिमर व्हीलर द्वारा 1946 में एक समर्पित संग्रहालय शाखा की स्थापना की गई, जो अब पूरे देश में फैले कुल 44 संग्रहालयों का रखरखाव करती है।
संदर्भ:
1.http://121.242.207.115/asi.nic.in/about-us/history/
2.https://www.gktoday.in/gk/archaeological-survey-of-india/
3.https://en.wikipedia.org/wiki/Archaeological_Survey_of_India