समय के साथ बदले हमारी व्‍यक्तिगत पहचान के माप

अवधारणा I - मापन उपकरण (कागज़/घड़ी)
01-02-2019 02:26 PM
समय के साथ बदले हमारी व्‍यक्तिगत पहचान के माप

किसी व्‍यक्ति विशेष की पहचान को प्रमाणित और संरक्षित रखने की समस्‍या आज से नहीं वरन् सदियों पुरानी है। क्‍योंकि इनके संरक्षण हेतु प्रयोग किये जाने वाले साधन जैसे मुहर, हस्ताक्षर, फोटो, पासवर्ड या पिन आसानी से चोरी या हैक कर दिया जाता हैं। इस प्रकार की समस्‍याओं से निजात दिलाने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा विभिन्‍न अध्‍ययन किये गये, जिसमें इन्‍होंने व्‍यक्ति के जीवमितीय या बायोमेट्रिक्स (biometrics) संकेतकों (अंगुलीछाप, चेहरे की पहचान और रेटिना, डीनए आदि) का उपयोग प्रारंभ कर दिया। यह व्‍यक्ति वह अद्वीतीय विशेषताऐं हैं जिनकी ना नकल की जा सकती है और ना ही चोरी किया जा सकता है। व्‍यक्ति की विशिष्‍ट पहचान को सं‍रक्षित रखने के लिए अंगुलीछाप का प्रयोग प्रारंभ किया गया।

सत्रहवीं शताब्‍दी से ही राजसी समुदाय के आवश्‍यक कागजातों में अंगुलीछाप का उपयोग देखा गया है, 19 वीं सदी तक आते आते इनका उपयोग व्‍यापक हो गया। 19 वीं शताब्दी की शुरुआत में एक ब्रिटिश उत्कीर्णक ने अपनी अपनी किताबों पर अपनी उंगलियों के निशान के सहित हस्ताक्षर किए थे। 19 वीं सदी की कानूनी पहचान के एक साधन के रूप में अंगुलीछाप का उपयोग किया गया। जिसकी शुरूआत औपनिवेशिक बंगाल से हुयी, अब भूमि का एक टुकड़ा खरीदने, पेंशन प्राप्त करने इत्‍यादि के लिए अंगुलीछाप का प्रयोग किया जाने लगा, साथ ही अपराधिक गतिविधियों में संलग्‍न व्‍यक्तियों की पहचान के लिए अंगुलीछाप का प्रयोग किया जाने लगा। पिछले कुछ दशकों में अंगुलीछाप की प्रमाणिकता पर प्रश्‍न उठाये गये, किंतु जब इस पर शोध किये गये तो ज्ञात हुआ कि अंगुलीछाप की नकल की संभावना शुन्‍य है। यह सब अमेरिका में किया गया। हाल ही में प्राप्‍त हुए साक्ष्‍यों में यह स्पष्ट है कि फिंगरप्रिंटिंग पहचान का एक अत्यंत उपयोगी तरीका है, किंतु फिर भी यह उतना प्रभावी नहीं है जितनी कानूनी न्‍यायालयों में स्‍वीकार किया गया है।

वर्तमान स्थिति को देखते हुए बायोमेट्रिक्स संकेतक हमारे जीवन का अभिन्‍न अंग बनने वाले हैं। अक्‍सर हम अपनी व्‍यक्तिगत चीजों को संरक्षित रखने के लिए पासवर्ड या पिन का प्रयोग करते हैं, जो हमारे अतिरिक्‍त किसी को पता नहीं होते हैं। मानव मस्तिष्क पासवर्ड और पिन हेतु प्रयोग किये जाने वाले अक्षरों और संख्याओं को संरक्षित रखने का सबसे अच्‍छा स्‍त्रोत होता है। किंतु यह अक्षर और संख्याएं आसानी से हैक किये जा सकते हैं साथ यदि कभी इनकी विस्‍मृति हो जाए तो हमें समस्‍या का सामना करना पड़ जाता है। इन समस्‍याओं से निजात दिलाने के लिए नई-नई तकनीकों का इजात किया जा रहा है, जिससे आपको किसी विशेष पासवर्ड या पिन याद रखने की आवश्‍यकता भी नहीं होगी और आपके व्‍यक्तिगत उपकरण (मोबाइल, कंप्‍युटर इत्‍यादि) या डाटा संरक्षित भी रह जाएंगें। इसके लिए हमारे अंगुलीछाप, चेहरे की पहचान और रेटिना का उपयोग किया जा रहा है, यह आपकी वे विशेषताऐं हैं जो आपके अतिरिक्‍त दुनिया में किसी अन्‍य के पास नहीं हैं, और ना ही इन्‍हें चुराया जा सकता है। साथ ही हमारी इन अद्भूत विशेषताओं में से एक रेटीना का उपयोग बैंक से पैसे निकालने के लिए कैश मशीन द्वारा, किसी विशेष इमारत में प्रवेश करते समय, हवाई अड्डे इत्‍यादि में भी किया जा रहा है। मानव नेत्र की परितारिका में रंजकता का विशिष्ट पहचान पैटर्न होता है जिसकी नकल (चेहरे के विपरीत) या परिवर्तन नहीं किया जा सकता है तथा इन्हें स्कैन और डिजिटाइज़ (digitized) किया जा सकता है। एक विशेष परितारिका पैटर्न को एक विशिष्ट पहचान वाले संख्यात्मक कोड में परिवर्तित किया जा सकता है, जिससे डेटाबेस से जुड़ा कैमरा किसी व्यक्ति को पहचानने में सक्षम हो जाता है।

वैज्ञानिक आज तक मानव मस्तिष्‍क को पूरी तरह से नहीं समझ पाये हैं, वे इसकी जितनी परत खोलते जाते हैं एक नया तथ्‍य उभरकर सामने आ जाता है। मस्तिष्‍क पर किये गये कुछ शोधों से ज्ञात हुआ है कि एक समान तस्‍वीर को देखने या संगीत को सूनने पर अलग-अलग व्‍यक्तियों की भिन्‍न भिन्‍न प्रतिक्रिया होती है। जिन्‍हें शोधकर्ताओं या चिकित्सीय विशेषज्ञों द्वारा व्‍यक्ति के सिर पर लगाए गए विद्युत सेंसर के माध्‍यम से मापा गया। एक और रोचक तथ्‍य यह है कि व्‍यक्ति जितनी बार भी उस तस्‍वीर को देखेगा उसका मस्तिष्‍क समान प्रक्रिया करेगा यह प्रक्रिया स्वचालित और अचेतन है, इसलिए कोई भी व्‍यक्ति मस्तिष्‍क की प्रतिक्रिया पर नियंत्रण नहीं कर सकता है। मस्तिष्‍क की इस अद्भूत प्रतिक्रिया को "ब्रेन पासवर्ड" के रूप में ही इंगित किया जा रहा है। ब्रेन पासवर्ड का उपयोग व्‍यक्ति के व्‍यक्तिगत पासवर्ड सेट करने के लिए किया जाएगा। एक व्यक्ति का मस्तिष्क पासवर्ड छवियों की एक श्रृंखला को देखते हुए उनकी मस्तिष्क गतिविधि की एक डिजिटल रीडिंग है। यदि पासवर्ड में विभिन्न प्रकार के रूप - वर्ण, संख्या और विराम चिह्नों का उपयोग किया जाए तो वे अधिक सुरक्षित हो जाते हैं एक मस्तिष्क पासवर्ड अधिक सुरक्षित होगा यदि इसमें विभिन्न प्रकार के चित्रों के संग्रह को देखने वाले व्यक्ति की मस्तिष्क तरंग रीडिंग शामिल हो।

संदर्भ :

1.https://www.business-standard.com/article/technology/get-over-fingerprint-retina-and-face-your-brain-may-soon-be-your-password-118102900080_1.html
2.अंग्रेज़ी पुस्तक: Robinson, Andrew (2007). The Story of Measurement. Thames & Hudson