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गिरमिटिया श्रम भारत में 18 वीं और 19 वीं सदी के बीच का सबसे चर्चित विषय है, जिसमें लाखों भारतीयों को एक समझौते के तहत ब्रिटिश साम्राज्य के उपनिवेशों में श्रम के लिए भेजा गया था। यह एक प्रकार की गुलामी ही थी जो लोगों ने अपनी खराब परिस्थितियों के कारण स्वयं ही चुनी थी और इसका परिणाम इन लोगों के लिए बहुत ही भयानक था। भारतीय लोगों को गन्ना बागानों में काम करने, रेल निर्माण आदि के लिये कई ब्रिटिश उपनिवेशों जैसे कैरिबियन, नटाल, रियूनियन, मॉरीशस, श्रीलंका, मलेशिया, म्यांमार, आदि भेजा गया। इन देशों में फिजी भी शामिल था। 60,965 भारतीय श्रमिकों को गन्ना बागानों में काम करने के लिये फिजी भेजा गया।
फिजी जाने वाले ये श्रमिक विभिन्न प्रांतों काबुल, लद्दाख, तिब्बत आदि से थे, लेकिन यहां जाने वाले श्रमिकों में उत्तरप्रदेश, बिहार और उत्तराखंड के लोगों की संख्या सबसे अधिक थी। इन लोगों में बच्चे, बूढ़े, महिला और पुरुष के साथ-साथ हर तबके के लोग शामिल थे। गरीबी, आवास अभाव और अकाल की परिस्थितियों के कारण इन लोगों को ये मार्ग चुनना पड़ा था। उत्तर भारत के करीब 31,456 पुरुषों और 13,696 महिलाओं को गिरमिटिया श्रम के लिये फिजी भेजा गया था। उत्तर प्रदेश के विभिन्न स्थानों से फिजी भेजे गए श्रमिकों का विवरण निम्नलिखित है:
इसके अतिरिक्त गोरखपुर, इलाहाबाद, जौनपुर, शाहबाद और रायबरेली से भी लोगों को फिजी में गन्ना बागानों में काम करने के लिए ले जाया गया। उत्तर प्रदेश और बिहार के गिरमिटिया श्रमिकों के वंशज आज भी वहां रहते हैं और इन्हें इंडो-फ़िज़ियन नाम से जाना जाता है। 1879 और 1916 के बीच कुल 42 जहाजों से 87 बार भारतीय गिरमिटिया मजदूरों को फिजी ले जाया गया जिनमें कलकत्ता, मद्रास और मुंबई के श्रमिक भी शामिल थे। 1882 में गन्ना बागानों में काम के लिए फिजी जाने वाले पंद्रह लोगों ने मातृभूमि से असहनीय अलगाव महसूस किया और वे समुद्र में डूब गए। फिजी जाने के लिए 60,965 लोगों को पंजीकृत किया गया था किन्तु कठोर यातनाओं और बीमारियों के कारण सैंकड़ों यात्रा के दौरान ही मर चुके थे। कुल 60,965 श्रमिक भारत से भेजे गए किंतु लेकिन 60,553 ही फिजी पहुंचे।
झूठे दिलासे और छल के साथ ले जाए गए इन श्रमिकों (विशेषकर गर्भवती महिला श्रमिकों) के साथ क्रूर व्यवहार किया गया जो असहनीय था। 4 नवंबर 1912 में हेन्ना डडली (जिसने नौसौरी में गिरमिटिया महिलाओं के साथ काम किया था) ने एक पत्र भारतीय नेताओं को लिखा जिसमें उन्हें बचाने और इस प्रणाली को समाप्त करने की मांग की गयी थी। 1916 में इस योजना को रोकने का निर्णय लिया गया तथा 1919 में, बड़े पैमाने पर भारत में सार्वजनिक दबाव के कारण, गिरमिटिया श्रमिकों की यह प्रणाली समाप्त हो गई। 1 जनवरी 1920 को सभी मौजूदा गिरमिटिया समझौतों को रद्द कर दिया गया। ब्रिटेन के पूर्व उपनिवेशों में स्वदेशी राष्ट्रवादियों को प्रेरित करके 1972 में, युगांडा के ईदी अमीन (Idi Amin) ने भारतीय मूल के लोगों को सफलतापूर्वक निर्वासित किया और औपनिवेशिक राज्य की राजनीतिक विरासत को उजागर किया।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2Hs8e0U
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Indo-Fijians
3. https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_Indian_indenture_ships_to_Fiji
4. https://himalmag.com/girmit-fiji/
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