समय - सीमा 271
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1044
मानव और उनके आविष्कार 810
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जीव-जंतु 308
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मानव समाज वन और उसकी जैव विविधता पर अत्यधिक निर्भर है। कम और उच्च आय वाले देशों और सभी जलवायु क्षेत्रों में जंगलों के भीतर रहने वाले समुदाय भोजन, चारा, आश्रय, ऊर्जा, चिकित्सा, आय उपार्जन आदि के लिए मुख्य रूप से वनों की जैव विविधता पर ही निर्भर हैं। वन 860 लाख से अधिक हरित रोजगार प्रदान करते हैं और कई लोगों की आजीविका का माध्यम बनते हैं। लगभग 8800 लाख लोग ईंधन के लिए लकड़ी इकट्ठा करने या लकड़ी से कोयला बनाने के लिए वनों पर निर्भर हैं। वनों की जैव विविधता के द्वारा होने वाला मनोरंजन और पर्यटन ग्रामीण क्षेत्रों की अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ाता है। वन सूर्य के प्रकाश और विकिरण, वायु तापमान, हवा, वायुमंडलीय आर्द्रता, वर्षा, वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन आदि को प्रभावित करते हैं। वनों में पेड़-पौधों की मौजूदगी से वायु की आर्द्रता अपेक्षाकृत अधिक हो जाती है। वनों में मौजूद पेड़-पौधों के विभिन्न भाग जब जमीन पर गिरते हैं, तब अपघटक उनका अपघटन कर ह्यूमस निर्माण करते हैं, तथा मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाते हैं। इसके अलावा वन में रहने वाले जीव जंतुओं के मरने के बाद उनके शरीर का भी सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटन किया जाता है, जो पुनः मिट्टी की उर्वरता शक्ति को बढ़ाने में सहायक है। इस प्रकार वन मिट्टी के भौतिक और रासायनिक गुणों को संशोधित करने का भी काम करते हैं। वनों को जल आपूर्ति का भी अच्छा स्रोत माना जाता है। वन पहाड़ी क्षेत्रों के साथ-साथ मैदानी भागों में बाढ़ को कम करने का भी काम करते हैं। जल, वायु और ध्वनि प्रदूषण जैसे विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों को कम करके वन पर्यावरण की सफाई करने में सहायक हैं। वनों का जीवों द्वारा ग्रहण की जाने वाली वायु या ऑक्सीजन (Oxygen) से भी सीधा-सीधा सम्बन्ध है। वन में मौजूद पेड़-पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा ऑक्सीजन उत्पन्न करते हैं, जो धरती पर जीवन को संभव बनाता है। इसके अलावा वन वायुमंडल में मौजूद कार्बन डाई-ऑक्साइड (Carbon dioxide) गैस को अवशोषित करके पृथ्वी के तापमान को कम करने में भी सहायक हैं। एक एकल वृक्ष लगभग 48 पाउंड (Pound) कार्बन डाइऑक्साइड को एक वर्ष में अवशोषित कर सकता है। इस प्रकार वन में मौजूद पेड़-पौधे प्रदूषकों को अवशोषित करके हवा को साफ़ करने का भी काम करते हैं।
वन मानव जीवन के लिए अत्यंत बहुमूल्य हैं, और इसलिए वर्तमान समय में इनका दोहन अपने चरम पर है। हर साल वनों की कटाई के कारण एक बड़े पैमाने पर जंगल खाली होते जा रहे हैं। शहरी विकास और कृषि, लकड़ी और अन्य उत्पादों के लिए मानव द्वारा की गयी विभिन्न गतिविधियों के कारण वनों का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है। वनों की कटाई से वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा निरंतर कम होती जा रही है, तथा कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि के साथ-साथ ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) बढ़ता जा रहा है। वनों की कटाई वायु को शुष्क बनाती है और मृदा क्षरण को बढ़ावा देती है। लगभग एक दर्जन अलग-अलग प्रजातियां हर दिन विलुप्त हो रही हैं तथा वैज्ञानिकों का अनुमान है कि, 21 वीं सदी के मध्य तक सभी प्रजातियों का 30 से 50 प्रतिशत हिस्सा विलुप्त हो सकता है। इस प्रकार वनों की कटाई पर्यावरण पर प्रतिकूल रूप से अपना प्रभाव डाल रही है। वन पारिस्थितिकी तंत्र को प्रबंधित करने के लिए कई तरीके अपनाये जा रहे हैं, जो वनों की जैव विविधता के संरक्षण और स्थायी उपयोग को बढ़ावा दे रहे हैं। इसके लिए कई संरक्षित क्षेत्रों के निर्माण के साथ अनेकों संरक्षण उपाय किये जा रहे हैं। हालांकि वनों के उचित संरक्षण और प्रबंधन के लिए अभी अनेकों कार्य किये जाने बाकी हैं।
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