देश भक्ति से ओथप्रोथ अकबर इलाहाबादी की नज़्म

आधुनिक राज्य : 1947 ई. से वर्तमान तक
26-01-2018 09:20 AM
देश भक्ति से ओथप्रोथ अकबर इलाहाबादी की नज़्म

अकबर ने सैय्यद हुसैन अकबर के नाम से 1846 में इलाहाबद की बस्ती बारा में एक सम्मानजनक परिवार में जन्म लिया| अकबर ने अपनी प्राथमिक शिक्षा मिशन स्कूल इलाहबाद से पूरी की| उसके बाद वकालत की शिक्षा पूरी की उसके बाद सरकारी कर्मचारी का कार्य किया| अकबर एक अनिवार्य रूप से जीवंत, आशावादी कवि थे| उनकी कविता हास्य की एक उल्लेखनीय भावना के साथ कविता की पहचान थी। वो चाहे गजल, नजम, रुबाई या क़ित हो उनका अपना ही एक अलग अन्दाज़ था। भारत के दिल्ली राज्य में राज्सीय दिल्ली दरबार होता था| ब्रिटिश काल में तीन दरबार सन (1877,1903,1911) में लगाये गये| उसी में आधारित अकबर इलाहाबादी की कविता दिल्ली दरबार 1911 बहुत मशहूर हैं | देख आए हम भी दो दिन रह के देहली की बहार, हुक्म-ए-हाकिम से हुआ था इजतिमा-ए-इंतिशार। आदमी और जानवर और घर मुज़य्यन और मशीन, फूल और सब्ज़ा चमक और रौशनी रेल और तार। केरोसिन और बर्क़ और पेट्रोलियम और तारपीन, मोटर और एरोप्लेन और जमघटे और इक़्तिदार। मशरिक़ी पतलूँ में थी ख़िदमत-गुज़ारी की उमंग, मग़रिबी शक्लों से शान-ए-ख़ुद-पसंदी आश्कार। शौकत-ओ-इक़बाल के मरकज़ हुज़ूर-ए-इमपरर, ज़ीनत-ओ-दौलत की देवी इम्प्रेस आली-तबार। बहर-ए-हस्ती ले रहा था बे-दरेग़ अंगड़ाइयाँ, थेम्स की अमवाज जमुना से हुई थीं हम-कनार। इंक़िलाब-ए-दहर के रंगीन नक़्शे पेश थे, थी पए-अहल-ए-बसीरत बाग़-ए-इबरत में बहार। ज़र्रे वीरानों से उठते थे तमाशा देखने, चश्म-ए-हैरत बन गई थी गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार। जामे से बाहर निगाह-ए-नाज़-ए-फ़त्ताहान-ए-हिन्द, हद्द-ए-क़ानूनी के अंदर ऑनरेबलों की क़तार। ख़र्च का टोटल दिलों में चुटकियाँ लेता हुआ, फ़िक्र-ए-ज़ाती में ख़याल-ए-क़ौम ग़ाएब फ़िल-मज़ार। दावतें इनआम स्पीचें क़वाइद फ़ौज कैम्प, इज़्ज़तें ख़ुशियाँ उम्मीदें एहतियातें एतिबार। पेश-रौ शाही थी फिर हिज़-हाईनेस फिर अहल-ए-जाह, बअद इस के शैख़ साहब उन के पीछे ख़ाकसार।