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लोकगीत किसी भी स्थान के इतिहास को जानने के लिये रामबाण साबित होते हैं। यदि देखा जाये तो सम्पूर्ण भारत में विभिन्न प्रकार के लोकगीत मौजूद हैं जैसे की आल्हा-ऊदल, बिरहा, रामलीला, बिहुला आदि प्रत्येक उल्लिखित गीतों का एक स्थान व जाति या सम्प्रदाय से जोड़ होता है जो किसी शौर्य, विरह या उल्लास का सूचक होता है। अवधी भाषा में वैसे तो कई लोकगीत उपरस्थित हैं उन्ही गीतों में से एक है बिरहा। अवधी गीत साधारणतया किसी ना किसी जाति के अन्तर्गत बंधे होते हैं जैसे की कुम्हारों का अलग लोकगीत, अहिरों का अलग, गड़रियों का अलग। बिरहा यदुवंशी, यादव या अहिरों का मुख्य गान माना गया है। वैसे बिरहा आजकल अनेक जातियों द्वारा गाया जाने लगा है। अहीर एक महत्वपूर्ण जाति है जो अपनी वीरता, पराक्रम तथा शौर्य के लिए प्रसिद्ध है। बिरहा शब्द की व्युत्पति विरह से मानी जाती है। ऐसा अनुमान है कि प्रारम्भ में विरह में वियोग श्रृंगार के ही गीत गाये जाते थे, परन्तु आजकल इनमें सभी प्रकार के विषयों का समावेश हो गया है। लोकगीत के अनुसार ना बिरहा कर खेती भइया, ना बिरहा फरे डार। बिरहा बसे हिरदय में रामा, जब उमगे तब गाव। अवधी क्षेत्र में बिरहा के दो प्रकार पाये जाते हैं – 1. चार कड़ी वाला बिरहा 2. रामायण, महाभारत इत्यादि कथाओं वाला बिरहा। बिरहा का मुख्य विषय है लोक जीवन की अनुभूति। अवध में बिरहा गायन (बिरहा के दंगल) की परम्परा बहुव्याप्त है। गायक कहता है- हुकुम तोरा पाई तो बिरहा बनाई। बिरहा बनाय दंगल मा सुनाई। एक बिरहा की कुछ पंक्तियां दृष्टव्य है जिनमें हनुमान जी द्वारा सीता जी के पता लगाने का वर्णन है – न खबरि लेय सीता के चले हनुमान। पल मा फाँदि गये सात समन्दर। पहुँचे जाय लंका के अन्दर। सिया मात जहाँ बिलखे महान। खबरि दइके मुंदरी सीस क नावा। रघुबर के सन्देस सुनावा। जौनपुर में बिरहा गान अत्यन्त मशहूर है तथा यह विभिन्न अवसरों पर गया जाता है। बिरहा गीतों के अध्ययन से यह भी पता चलता है कि किस प्रकार से समाज में बदलाव आया, मछलीशहर काण्ड व अन्य कई बिरहा खण्ड हैं जो जौनपुर में बिरहा प्रसार को प्रदर्शित करते हैं। 1. राजभाषा पत्रिका, जातीय कोष्ठकों में बन्द अवधी लोकगीतों के रंग, अशोक (अज्ञानी), रामपुर