समय - सीमा 269
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प्रसिध्द विज्ञान-लेखक कार्ल सागन कहते हैं "नटराज का नृत्य मतलब तांडव लौकिक सृष्टी के क्रमागत उत्क्रांति एवं विनाश के चक्र का प्रतीक है जिसे वैज्ञानिक 'बिग बँग' (पृथ्वी निर्माण के महाविस्फोट का सिध्दांत) के नाम से जानते हैं। यह भगवान के कार्यकलाप का एक बेहद विशद चित्रण है एवं यह किसी भी धर्म तथा कला के लिए प्रतिष्ठा और अभिमान की बात है।" यूरोपीय परमाणुवीय अनुसंधान संस्था के सर्न (सीईआरएन-कौन्सिल युरोपियन फॉर द रीसर्च न्युक्लेअर) मुख्यालय में जो जिनिव्हा, स्वित्झर्लंड मे स्थित है वहां नटराज की मूर्ती विराजमान है। ऑस्ट्रियन भौतिकज्ञ फ़्रीतोज कापरा का मानना है की शिव का तांडव यह सृष्टी का नृत्य है, मानो जैसे ऊर्जाओं का एक निरंतर प्रवाह जो असीम विविधता के प्रतिमानो से गुजरते हूए एक दुसरे में लुप्त हो जाता है। वे कहते हैं की "अर्वाचीन भौतिक विज्ञान ने यह प्रमाणित किया है की उपपरमाण्विक(अणू-रेणू) कण ना ही सिर्फ यह ऊर्जा-नृत्य करता है अलबत खुद्द में ही एक ऊर्जा-नृत्य है।" आधुनिक भौतिकविदों का मानना है कि शिव का तांडव यह उपपरमाण्विक नृत्य है। भारतीय पुराणशास्रो के अनुसार शिव तांडव यह विश्व निर्माण और विनाश का एक निरंतर चलने वाला नृत्य है जिसमे पूर्ण ब्रह्मांड शामिल है, सबके अस्तित्व और प्राकृतिक घटनाओं का आधार। सैकड़ों सालों पहले, भारतीय कलाकारोने शिव तांडव का अतीव सुंदर प्रत्यक्षिकरण किया जिसके अंतर्गत शिव तांडव की अदभूत प्रतिमा शृंखला पितल में बनाई गयी। आधुनिक काल मे भौतिकविदों ने इस विश्व-नृत्य को आलेखित करने के लिए अत्यंत उन्नत प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया है। प्रस्तुत सभी चित्र नॅशनल म्युझियम मे रखे गए चोल काल की पितल की एक ही शिव नटराज मूर्ती के हैं जिसमे शिव भगवान तांडव नृत्य मुद्रा मे दिखाए गए हैं। नटराज मुद्रा मे शिव के चार हातों को देखीये। उनका पहला दाहिना हात अभय मुद्रा मे है जो दर्शक को संरक्षण का वादा करता है। प्रथम बायां हात, उनके दाहीने पैर के नीचे कुचले हुये मुयलक मतलब अपस्मार पुरुष को दिखाता है। अपस्मार का मतलब है अज्ञान। उनके पिच्छले दाहीने हात मे डमरू है जो ध्वनी (विश्व निर्माण ध्वनी ओम) को प्रतिबिंबित करता है तथा उनके पिच्छले बाये हात मे अग्नी दिखाया है जो विनाश का प्रतीक है। उनके मस्तक पर अर्धचंद्र और कपाल है तथा उनके प्रथम दाहीने हात से एक सर्प उतरते हुये दिखाया है।