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                                              हमारे जौनपुर जिले को पूर्वी उत्तर प्रदेश में 'तालों का जिला (Lake District)' भी कहा जा सकता है। ऐसा इसलिए क्यों कि यहां पर कई ताल हैं, जिनमें से 'गुजर ताल' सबसे बड़ी (लगभग 200 हेक्टेयर), और 4.5 मीटर गहरी है। वर्तमान ताल या झील जौनपुर शहर से लगभग  28 किमी दूर और खेतासराय नगर क्षेत्र से पश्चिम में 1.5 किमी दूर, सर्वोदय इंटर कॉलेज, खुदौली के पास मौजूद है।
 जौनपुर जिले में मौजूद इस तरह की आर्द्रभूमियाँ (Wetlands), हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं, क्यों कि यह जलीय पौधों के साथ-साथ वन्य जीव संपदा और प्रवासी पक्षियों को भी पोषित करती हैं।
 जलीय पौधों, मछलीयों, पक्षियों और वन्य जीवन सहित जैव विविधता की एक विस्तृत श्रृंखला को पोषित करने के अलावा, ये आर्द्रभूमियाँ पानी को फ़िल्टर (Filter) करने, बाढ़ को नियंत्रित करने और कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित करने में भी अहम् भूमिका निभाती हैं।
हालांकि दुर्भाग्य से, अनियंत्रित विकास, प्रदूषण और अत्यधिक मछली पकड़ने जैसी मानवीय गतिविधियों के कारण, आर्द्रभूमियाँ खतरनाक दर से गायब हो रही हैं। आपको जानकार हैरानी होगी कि पिछली शताब्दी में भारत में आर्द्रभूमियों की संख्या में 50% से अधिक की गिरावट दर्ज की गई है।
जैसा कि हमने ऊपर पढ़ा, गुजर ताल, जौनपुर जिले की कई आर्द्रभूमियों में से एक है। गुजर ताल जलीय पौधों की एक समृद्ध विविधता को भी पोषित करती हैं, जिनमें ओरिज़ा रूफिपोगोन (Oryza Rufipogon), कमल, और जलीय पालक जैसे जलीय पौधे भी शामिल हैं।  इस तरह की वनस्पति आधारित ताल, हमारे पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना को समझने के लिए आवश्यक मानी जाती है, साथ ही यह हमारी पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। 
हालांकि आप सभी को यह भी अवश्य पता होना चाहिए कि हमारे जौनपुर जिले की कई आर्द्रभूमियाँ जलकुंभी (इचोर्निया क्रैसिप्स (Eichhornia Crassipes) जैसे आक्रामक जलीय खरपतवारों (Aquatic Weeds) से जुड़े संकट का भी सामना कर रही हैं। ये खरपतवार पानी की सतह पर फ़ैल जाती है, और इसे पूरी तरह से ढक देती है, जिस कारण सूरज की रोशनी भी पानी की सतह तक नहीं पहुच पाती है। इसके परिणाम स्वरूप देशी पौधों की वृद्धि भी रुक जाती है।
 वानस्पतिक विविधता के अलावा गुजर ताल के क्षेत्र में मछलियों, घोंघे, केकड़ों और पौधों की समृद्ध विविधता देखने को मिलती है। कुछ स्थानीय लोगों ने गुजर ताल के किनारे बत्तख जैसे पक्षियों को पालना भी शुरू कर दिया है। ये पक्षी झील में जंगली चावल के दाने, कीड़े-मकोड़े, मेंढक और छोटी मछलियों को खाते हैं। यहां के स्थानीय लोग, इन पक्षियों के अंडे और मांस बेचकर अपना गुज़ारा करते हैं। हालाँकि कानूनी प्रतिबंधों के बावजूद, गुजर ताल में अवैध रूप से मछली पकड़ना, शिकार करना और प्रवासी पक्षियों को पकड़ना अभी भी जारी है। 
वर्तमान में इस ताल पर गंभीर खतरा बना हुआ है। मानव गतिविधियों के कारण ताल का क्षेत्र सिकुड़ता जा रहा है, जिससे बड़े पैमाने पर खरपतवारों में वृद्धि हो रही है। साथ ही यहाँ पर पानी की गहराई भी कम होती जा रही है। एक समय में गूजर ताल प्रवासी पक्षियों के शोर से गुंजायमान रहता था, लेकिन अब इस क्षेत्र में सर्दियां शुरू होने के बावजूद भी सन्नाटा पसरा हुआ है। भारत को विभिन्न प्रकार के प्रवासी पक्षियों का पसंदीदा घर माना जाता है। 2019 तक देश में 1,349 से अधिक प्रवासी पक्षियों की प्रजातियाँ दर्ज की गई थी। ये प्रवासी पक्षी भारतीय पारिस्थितिकी तंत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए कीट नियंत्रण एजेंट (Pest Control Agent) के रूप में कार्य करते हैं, बीज फैलाते हैं और पौधों को परागित करते हैं।
हालाँकि, आधुनिक समय में इन शानदार मेहमानों को भी कई गंभीर खतरों का सामना करना पड़ रहा है।  इनके निवास स्थान के नुकसान, जलवायु परिवर्तन और अंधाधुंध शिकार के कारण, तालाब में विदेशी मेहमानों का आगमन लगातार कम हो रहा है। नवंबर का महीना शुरू हो चुका है। सुबह-शाम ठंड भी बढ़ने लगी है। लेकिन इसके बावजूद मेहमान पक्षी यहां से नदारद नजर आ रहे हैं। दरसल मछली पकड़ने के लिए तालाब में हर समय नावें चलती रहती हैं। जिससे पक्षियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसलिए ताल में विदेशी मेहमानों का आगमन कम हो रहा है। 
गूजर ताल को वर्ष 1957 में मत्स्य प्रक्षेत्र (Fishery Zone) घोषित किया गया था। इस ताल में ठंड के मौसम में साइबेरियन पक्षियों की आवक होती रहती थी। एक समय में यह पूरा ताल कैमर, लहक्षन, टिकई, चैता, पोछार, साइबेरियन बगुला जैसी विभिन्न प्रजाति के प्रवासी पक्षियों से 
गुलज़ार रहता था। तीन माह ठंड के मौसम में प्रवास करने के बाद ये पक्षी मार्च के महीने में अपने देश लौट जाते थे, लेकिन शिकारियों की कुदृष्टि के चलते मेहमान परिंदों ने अपना रास्ता ही बदल दिया है। इसलिए जौनपुर जिले की आर्द्रभूमि और यहां आने वाले प्रवासी पक्षियों की रक्षा तथा आक्रामक जलीय खरपतवारों के प्रबंधन के लिए टिकाऊ प्रबंधन प्रथाओं को जल्द से जल्द लागू किया जाना चाहिए।
इन प्रथाओं में शामिल हो सकते हैं:
१.  जलीय खरपतवारों की मशीनों से सफाई।
२. कीड़ों या अन्य जीवों का उपयोग करके जलीय खरपतवारों का जैविक नियंत्रण।
३. शाकनाशियों का उपयोग करके जलीय खरपतवारों का रासायनिक नियंत्रण।
४. इस ताल को शुद्ध रखने के लिये किनारो को साफ रखना भी जरूरी है।
५. नियंत्रित मछली पालन।
६. शिकारियों पर नजर रखने के लिए आधुनिक निगरानी प्रणाली का प्रयोग करना।
संदर्भ
https://tinyurl.com/5xhysa2t
https://tinyurl.com/3xv8rauc
https://tinyurl.com/mr2v8ted
https://tinyurl.com/4dc53ud8
https://tinyurl.com/msxrenrd
चित्र संदर्भ
1. जौनपुर शहर से लगभग 28 किमी दूर गुजर ताल को संदर्भित करता एक चित्रण (Youtube)
2. आर्द्रभूमि में उड़ते पक्षियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. गुजर ताल को दर्शाता एक चित्रण (Youtube)
4. जलकुम्भी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. सूख रही आर्द्रभूमि को दर्शाता एक चित्रण (Flickr)
6. पानी में पक्षी को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)