क्या होता है जापानी इंसेफ़ेलाइटिस और कैसे बच सकते हैं, लखनऊ के लोग, इस रोग से ?

बैक्टीरिया, प्रोटोज़ोआ, क्रोमिस्टा और शैवाल
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क्या होता है जापानी इंसेफ़ेलाइटिस और कैसे बच सकते हैं, लखनऊ के लोग, इस रोग से ?

गर्मियों में लखनऊ की उमस भरी फ़िज़ा और घनी आबादी के बीच मच्छरों को पनपने का भरपूर मौका मिलता है। नतीजतन शहर में वेक्टर जनित बीमारियों का ख़तरा भी कई गुना बढ़ जाता है! इसकी वजह से हर साल कई ज़िंदगियां प्रभावित होती हैं। इन्हीं ख़तरनाक बीमारियों में से एक है, - "जापानी इंसेफ़ेलाइटिस (Japanese Encephalitis)"! यह मच्छर से होने वाला एक जानलेवा संक्रमण रोग होता है, जो ख़ासतौर पर एशिया और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्रों में तबाही मचाता है। यह वायरस मस्तिष्क में सूजन (एन्सेफ़ेलाइटिस) पैदा कर सकता है, जिससे तेज़ बुखार, सिरदर्द और गंभीर मामलों में दौरे, कोमा या यहां तक कि मौत भी हो सकती है।
साल 2024 में, भारत में  इस वायरल रोग के 1,548 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से सबसे अधिक 925 मामले असम में पाए गए। उत्तर प्रदेश भी इस बीमारी से अछूता नहीं रहा। इसलिए आज के इस लेख में हम जानेंगे कि  ये रोग फैलता कैसे है, इसके प्रमुख लक्षण क्या हैं, और इससे बचने के लिए कौन-कौन से उपाय किए जा सकते हैं। साथ ही, हम इस घातक बीमारी के इलाज और रोकथाम के तरीक़ों पर भी विस्तार से चर्चा करेंगे।

जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस (जेईवी) एक चक्र के माध्यम से फैलता है जिसमें प्राकृतिक मेजबान के रूप में पानी में रहने वाले और पानी के पक्षी शामिल होते हैं। क्यूलेक्स और एडीज मच्छर पक्षियों और अन्य प्रजातियों के बीच जेईवी संचारित करते हैं। | चित्र स्रोत : Wikimedia 

क्या है जापानी इंसेफ़ेलाइटिस ?

जापानी इंसेफ़ेलाइटिस एक  वायरल रोग होता है, जो मुख्य रूप से मच्छरों (विशेष रूप से क्यूलेक्स प्रजाति) द्वारा जापानी इंसेफेलाइटिस वायरस (जे ई वी)   के फैलने से होता है। यह मच्छर, संक्रमित पक्षियों या सूअरों का ख़ून चूसते हैं और फिर मनुष्यों को काटकर वायरस स्थानांतरित कर देते हैं। हालांकि, अधिकतर मामलों में संक्रमित व्यक्ति को इसका एहसास भी नहीं होता! वास्तव में 100 में से केवल 4 से भी कम लोगों में इसके लक्षण नज़र आते हैं। लेकिन अगर लक्षण विकसित होते हैं, तो यह आमतौर पर संक्रमण के 5 से 15 दिनों के भीतर दिखाई देते हैं।

गंभीर मामलों में क्या होता है ?

यह वायरस मस्तिष्क और उसके आस-पास के ऊतकों में सूजन (इंसेफ़ेलाइटिस या मेनिन्जाइटिस (meningitis)) पैदा कर सकता है, जिससे स्वास्थ्य से संबंधित गंभीर समस्याएँ पैदा हो सकती हैं।
ऐसे मामलों में निम्नलिखित लक्षण दिख सकते हैं:

तेज़ बुखार।

सिरदर्द और गर्दन में अकड़न।

उल्टी आना।

दौरे पड़ना या अनियंत्रित कंपन।

मांसपेशियों में कमज़ोरी या लकवे की स्थिति।

अत्यधिक थकान या कोमा में चले जाना।

मानसिक भ्रम और बेचैनी।

 
उत्तर प्रदेश में, हाल के वर्षों में, जापानी इंसेफ़ेलाइटिस के कितने मांमले सामने आए हैं ?

साल 2024 में उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य क्षेत्र ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की! दरअसल इस साल राज्य में जापानी इंसेफ़ेलाइटिस से एक भी मौत दर्ज नहीं की गई। यह सफलता इसलिए भी ख़ास है, क्योंकि 2005 तक राज्य के हालात बेहद गंभीर थे। साल 2005 में, जापानी इंसेफ़ेलाइटिस (JE) और एक्यूट इंसेफ़ेलाइटिस सिंड्रोम (Acute Encephalitis Syndrome (AES)) के प्रकोप ने 6,000 से अधिक बच्चों को संक्रमित किया था, और इस  खतरनाक बीमारी की वजह से 1,400 से ज़्यादा मासूमों की जान चली गई थी। साल 2005 में गोरखपुर इस महामारी का सबसे बड़ा केंद्र बन चुका था। हालात इतने भयावह थे कि सरकार को तत्काल  कदम उठाने पड़े। लेकिन 2017 तक भी स्थिति चिंताजनक बनी रही। 2017 तक, जापानी इंसेफ़ेलाइटिस और एक्यूट इंसेफ़ेलाइटिस सिंड्रोम के कारण 50,000 से अधिक मौतें हो चुकी थीं! यह आँकड़ा बताता है कि यह बीमारी कितनी घातक थी और इससे निपटने के लिए ठोस क़दम उठाने की कितनी ज़रूरत थी।

ऑर्थोफ्लेविवायरस विरिअन (40-60 एनएम) में ई डिमर (ई1, ई2), एक कैप्सिड प्रोटीन और संरचनात्मक (सी, पीआरएम, ई) और गैर-संरचनात्मक प्रोटीन (एनएस1-एनएस5) के साथ एक आरएनए जीनोम (11 केबी) होता है, जो 5'- और 3'-एनटीआर से घिरा होता है | चित्र स्रोत : wikimedia 

अब सवाल यह उठता है कि इतनी गंभीर स्थिति में सुधार कैसे हुआ ?
2018 से इंसेफ़ेलाइटिस के मामलों और मौतों में नाटकीय रूप से गिरावट दर्ज की गई।

2018: ए ई एस से 149 मौतें हुईं, लेकिन 2024 तक यह आँकड़ा शून्य हो गया।

2018: जे ई से 12 मौतें दर्ज की गईं, जो 2024 तक यह आँकड़ा भी शून्य हो गया।

2018: ए ई एस के 1,472 मामले सामने आए थे, जो 2024 में घटकर सिर्फ 116 रह गए।

2018: जे ई के 174 मामले थे, जो 2024 में  सिर्फ़ 5 रह गए।

इस अवधि में उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल क्षेत्र इंसेफ़ेलाइटिस से सबसे अधिक प्रभावित रहा। विशेष रूप से गोरखपुर, बस्ती, महाराजगंज, कुशीनगर, सिद्धार्थनगर और संत कबीर नगर ज़िले इस महामारी के केंद्र थे। 2005 से 2017 के बीच इन्हीं ज़िलों में 50,000 से अधिक बच्चों की जान चली गई थी। इस लिहाज़ से उत्तर प्रदेश में जेई और एईएस पर नियंत्रण पाना वाक़ई में एक सराहनीय उपलब्धि है।

  जापानी इंसेफ़ेलाइटिस को फैलने से रोकने के लिए निम्नलिखित सावधानियाँ बरतें:
✔ रक्तदान से बचें: यदि किसी व्यक्ति को हाल ही में यह संक्रमण हुआ है, तो उसे 120 दिनों तक रक्त या अस्थि मज्जा दान नहीं करना चाहिए।
✔ संक्रमित जानवरों से दूरी बनाए रखें: मृत जानवरों को नंगे हाथों से न छूएँ।
✔ सुरक्षित तरीके से निपटान करें: यदि आपको किसी मृत जानवर को हटाना हो, तो दस्ताने पहनें या दो प्लास्टिक बैग की मदद से उसे कूड़ेदान में डालें।

जापानी इंसेफेलाइटिस वैक्सीन | चित्र स्रोत : wikimedia

इसका इलाज कैसे किया जाता है?
अभी तक वैज्ञानिक इस बीमारी का कोई ठोस और सीधा इलाज नहीं खोज पाए हैं। डॉक्टर सिर्फ़ लक्षणों को कम करने और मरीज़ की हालत को स्थिर रखने पर ध्यान देते हैं। इसके इलाज के दौरान बुखार को कम करने, मस्तिष्क की सूजन को नियंत्रित करने और शरीर को मज़बूत बनाए रखने पर ध्यान दिया जाता है। इसके अलावा मरीज़ को आरामदायक और सुरक्षित माहौल देना भी ज़रूरी होता है, ताकि उसका शरीर वायरस के साथ पूरी क्षमता से लड़ सके।

ठीक होने में कितना समय लगता है ?
अगर कोई व्यक्ति इस जानलेवा बीमारी से बच भी जाता है, तो उसके पूरी तरह ठीक होने में लंबा समय लग सकता है। कई मरीज़ों को कमज़ोरी दूर करने और शरीर की क्षमता वापस हासिल करने के लिए पुनर्वास (rehabilitation) की ज़रूरत पड़ती है। कुछ मामलों में यह बीमारी मरीज़ को लंबे समय तक प्रभावित कर सकती है! इस स्थिति को 'सीक्वेले (sequelae)' कहा जाता है। इसका असर पीड़ित व्यक्ति की सेहत, शिक्षा, सामाजिक जीवन और रोज़मर्रा की ज़िंदगी पर पड़ सकता है।  खासकर ग़रीब और मध्यम आय वाले देशों में, सही इलाज और मदद मिलना आसान नहीं होता।

मस्तिष्क को संक्रमित करने वाला वायरस | चित्र स्रोत : wikimedia

अगर किसी को विकलांगता हो जाए तो क्या करें ?
लेकिन अगर आपके आसपास कोई व्यक्ति इस बीमारी के कारण किसी तरह की विकलांगता से जूझ रहा है, तो निराश न हों। दरअसल इंसेफ़ेलाइटिस से जूझ रहे   मरीज़ोंकी मदद करने के लिए कई स्थानीय और राष्ट्रीय संगठन निरंतर कार्य कर रहे हैं। विकलांग व्यक्तियों के संगठन (Organizations of Disabled People (ODP)) और अन्य नेटवर्क कानूनी सहायता, इन लोगों के लिए रोज़गार के अवसर पैदा करने और सामाजिक जुड़ाव कायम करने में मदद कर सकते हैं। इन संसाधनों और उपायों की मदद से इंसेफ़ेलाइटिस से प्रभावित लोग भी एक बेहतर और सार्थक जीवन जी सकते हैं।

 

संदर्भ

https://tinyurl.com/29g5hygs 

https://tinyurl.com/2b9hssvx 

https://tinyurl.com/25ylpq95  

https://tinyurl.com/wqfgj5d 

मुख्य चित्र में  जापानी इंसेफ़ेलाइटिस के मरीज और मच्छर का स्रोत : Wikimedia