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आज बुद्ध पूर्णिमा का पावन अवसर है। यह पर्व न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि शांति, करुणा और आत्मज्ञान की अमूल्य शिक्षाओं का प्रतीक भी है। लखनऊ में यह दिन श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है। रिसालदार रोड पर स्थित बुद्ध विहार मंदिर और बुद्ध धर्मंकुर सभा जैसे ऐतिहासिक स्थलों श्रद्धालुओं से भरे रहते हैं है। लोग भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को आत्मसात करने और आध्यात्मिक शांति प्राप्त करने के लिए यहाँ एकत्र होते हैं।
बुद्ध धर्मंकुर सभा, लखनऊ का सबसे पुराना और ऐतिहासिक बौद्ध केंद्र माना जाता है। यह मंदिर वर्षों से बौद्ध संस्कृति और परंपराओं का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। इस दिन हम गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण को स्मरण करते हैं। यह पर्व सिर्फ़ बौद्ध अनुयायियों के लिए ही नहीं, बल्कि उन सभी के लिए प्रेरणादायक है, जो शांति, अहिंसा और करुणा के मार्ग पर चलना चाहते हैं। इस अवसर पर भक्त मंदिरों में जाकर प्रार्थना करते हैं, ध्यान साधना करते हैं और परोपकार के कार्यों में भाग लेते हैं।
इस लेख में हम बुद्ध पूर्णिमा के ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व को समझेंगे। आगे हम जानेंगे कि इसका गौतम बुद्ध के जीवन से क्या संबंध है, इसे मनाने की प्रमुख परंपराएँ क्या हैं और बुद्ध की शिक्षाएँ हमारे समाज और संस्कृति को कैसे प्रभावित करती हैं। साथ ही, हम यह भी देखेंगे कि आधुनिक समय में बुद्ध के विचार कितने प्रासंगिक हैं और वे हमारी जीवनशैली को कैसे एक नई दिशा दे सकते हैं।
बुद्ध पूर्णिमा को 'वेसाक' के नाम से भी जाना जाता है। आज का दिन हमें गौतम बुद्ध की शिक्षाओं और उनके जीवन के मूल सिद्धांतों की याद दिलाता है, जिनमें करुणा, अहिंसा और सत्य की खोज भी शामिल है। यह दिन हमें अपने वास्तविक अस्तित्व को खोजने एवं अपने जीवन में बुद्ध के मार्गदर्शन को अपनाने की प्रेरणा देता है। हिंदू और बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बुद्ध पूर्णिमा का दिन बेहद ख़ास होता है। इस दिन को भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़ी तीन महत्वपूर्ण घटनाओं "उनके जन्म, ज्ञान प्राप्ति और परिनिर्वाण" के प्रतीक के तौर पर मनाया जाता है।
आइए अब उनके जीवन की इन प्रमुख घटनाओं के पीछे छिपे सार को समझने की कोशिश करते हैं:
1. भगवान बुद्ध का जन्म: - भगवान बुद्ध के जन्म को मात्र एक राजकुमार के जन्म के तौर पर नहीं देखा जाता। वास्तव में इसे आध्यात्मिकता की ओर एक नई शुरुआत माना जाता है। उन्होंने सम्पूर्ण संसार को एक ऐसा मार्ग दिखाया, जो आज भी करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा पुंज के रूप में काम करता है।
2. ज्ञान प्राप्ति: - भगवान् बुद्ध ने जो ज्ञान (आत्मज्ञान) प्राप्त किया, वह दर्शाता है कि हर व्यक्ति के पास अपने जीवन को बेहतर बनाने की शक्ति होती है। वह एक संपन्न राज घराने में जन्में राजकुमार थे। उस समय की सभी सांसारिक सुख-सुविधाएं उनके क़दमों में पड़ी थी। लेकिन इसके बावजूद वह सब कुछ त्यागकर परम सत्य की खोज पर निकल गए। एक भिक्षु के रूप में भटकते हुए उन्होंने न केवल खुद जीवन के गूढ़ रहस्यों को समझा, साथ ही उन्होंने पूरी दुनिया को नैतिकता, करुणा और सत्य के महत्व को समझाया। उनके द्वारा अर्जित ज्ञान न केवल उन्हें, बल्कि अनगिनत लोगों को जन्म और पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति पाने का मार्ग प्रदर्शित किया है।
3. परिनिर्वाण: भगवान् बुद्ध के जीवन के साथ-साथ उनकी मृत्यु भी असाधारण और प्रेरणादायक रही। उनकी मृत्यु को उनके अंतिम निर्वाण, अर्थात् परिनिर्वाण के रूप में देखा जाता है। यह घटना हमें जीवन की नश्वरता को समझने और आत्मज्ञान की तलाश हेतु निरंतर प्रयास करते रहने की सीख देती है।
बुद्ध पूर्णिमा का इतिहास हमें गौतम बुद्ध के जीवन की उन महत्वपूर्ण घटनाओं की याद दिलाता है, जिन्होंने मानवता को शांति, करुणा और ज्ञान का मार्ग दिखाया। हालांकि भगवान बुद्ध के जन्म और मृत्यु की सटीक तिथियाँ अज्ञात हैं, लेकिन इतिहासकार उनके जीवनकाल का अनुमान 563-483 ईसा पूर्व के बीच का बताते हैं। उनका जन्म नेपाल के लुम्बिनी नामक क्षेत्र में हुआ था। मात्र 35 वर्ष की आयु में उन्होंने ज्ञान (निर्वाण) प्राप्त किया, जिससे उनकी आत्मिक यात्रा एक नई दिशा में प्रवाहित हुई।
बुद्ध पूर्णिमा को बौद्ध धर्म के मूल सिद्धांतों "शांति, करुणा और ज्ञानोदय" पर चिंतन के अवसर के रूप में मनाया जाता है। यह दिन हमें आंतरिक शांति को खोजने और दूसरों के प्रति दया भाव अपनाने की प्रेरणा देता है।
दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में, बुद्ध पूर्णिमा के पर्व को वेसाक के रूप में मनाया जाता है।
बौद्ध धर्म में पूर्णिमा का अत्यधिक महत्व है क्योंकि भगवान बुद्ध के जीवन की तीन महत्वपूर्ण घटनाएँ इसी दिन घटी थीं:
१. जन्म: मई माह की पूर्णिमा को राजकुमार सिद्धार्थ का लुम्बिनी ग्रोव में जन्म हुआ था।
२. ज्ञान प्राप्ति: इसी दिन उन्होंने बोधगया में पीपल वृक्ष के नीचे ध्यान साधना करते हुए ज्ञान प्राप्त किया।
३. परिनिर्वाण: 45 वर्षों तक सत्य और करुणा का उपदेश देने के बाद, 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर में उनका निधन हुआ, जहाँ उन्होंने परिनिर्वाण (अर्थात पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति) प्राप्त किया। बुद्ध पूर्णिमा केवल एक उत्सव नहीं है, बल्कि यह बुद्ध की शिक्षाओं का एक महत्वपूर्ण अनुस्मारक भी है, जिसने समाज और व्यक्तियों के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला है।
बुद्ध जयंती कई गूढ़ संदेशों और शिक्षाओं से ओतप्रोत नज़र आती है। इनमें से कुछ प्रमुख संदेश निम्नवत दिए गए हैं:
इस दिन सक्रिय रूप से व्यक्त किए जाने वाले ये बौद्ध मूल्य समाज और व्यक्तियों पर गहरा प्रभाव डालते हैं, चलिए जानते हैं कैसे?
संदर्भ
मुख्य चित्र में गौतम बुद्ध और पांच अनुयायी का स्रोत : Wikimedia
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