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लखनऊ की पहचान नवाबी तहज़ीब, चिकनकारी और इत्र के साथ-साथ दशहरी आम से भी होती है। दशहरी सिर्फ एक फल नहीं, बल्कि अवध की सांस्कृतिक और स्वादिष्ट विरासत का प्रतीक है। लखनऊ के मलिहाबाद क्षेत्र में पैदा होने वाला यह आम, अपनी खास सुगंध, गूढ़ मिठास और रेशम जैसे गूदे के कारण देश-विदेश में प्रसिद्ध है। यह आम न केवल स्वाद में अद्वितीय है, बल्कि इसकी खेती और संरक्षण भी एक समृद्ध परंपरा का हिस्सा हैं।इस लेख में हम दशहरी आम के ऐतिहासिक उद्भव से लेकर इसके स्वाद की विशेषताएं, वैश्विक व्यापार, लखनऊ की अर्थव्यवस्था में योगदान, इसके जियो टैगिंग स्टेटस और बदलते समय में किसानों की चुनौतियों पर चर्चा करेंगे। यह लेख दशहरी आम को एक फल नहीं, बल्कि एक परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में प्रस्तुत करता है, जो समय के साथ और भी प्रासंगिक होती जा रही है।
दशहरी आम की ऐतिहासिक शुरुआत
दशहरी आम की शुरुआत 18वीं शताब्दी में लखनऊ के काकोरी क्षेत्र के दशेरी गांव में हुई मानी जाती है। कहा जाता है कि यहां के एक बाग में सबसे पहले यह खास किस्म का आम उगा, जिसने अपने अनूठे स्वाद और बनावट से लोगों का ध्यान खींचा। बाद में नवाबों के संरक्षण में यह आम मलिहाबाद और आसपास के क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर उगाया जाने लगा।नवाबी दौर में दशहरी आम की मांग दरबारों में बढ़ी और यह राजसी भोजनों का हिस्सा बन गया। इसकी पहचान धीरे-धीरे स्थानीय सीमाओं को पार कर देश के अन्य हिस्सों तक फैलने लगी। दशहरी आम की इस ऐतिहासिक यात्रा में कृषि ज्ञान, परंपरागत विधियों और समाजिक स्वीकृति ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दशेरी गांव की मिट्टी, जलवायु और किसानों की पीढ़ी दर पीढ़ी की मेहनत ने इस आम को विश्वप्रसिद्ध बनाया।
दशहरी आम की विशेषताएं
दशहरी आम की सबसे बड़ी खासियत इसका स्वाद और सुगंध है। इसके छिलके को हटाकर सीधे खाया जा सकता है क्योंकि इसका गूदा बिना रेशों के बेहद मुलायम होता है। इसका स्वाद संतुलित मिठास लिए होता है जो न तो अत्यधिक मीठा होता है और न ही फीका। आमतौर पर यह जून के मध्य से जुलाई के मध्य तक बाजारों में उपलब्ध रहता है।इस आम का रंग पीलेपन की ओर झुकता है और पकने के बाद यह हल्की हरियाली लिए सुनहरा दिखाई देता है। इसकी खुशबू इतनी तीव्र और विशिष्ट होती है कि यह बिना काटे ही अपनी उपस्थिति दर्ज करा देता है। दशहरी आम का आकार आमतौर पर लंबा और थोड़े नुकीले सिरे वाला होता है, जो इसे बाकी किस्मों से भिन्न बनाता है। यही विशेषताएं इसे देश के अन्य आमों से अलग और सबसे प्रिय बनाती हैं।
वैश्विक पहचान और निर्यात
दशहरी आम की लोकप्रियता अब केवल भारत तक सीमित नहीं रही। यह अमेरिका, खाड़ी देश, यूरोप और सिंगापुर जैसे देशों में भी निर्यात किया जाता है। भारत सरकार और राज्य सरकारों की सहायता से दशहरी आम को अंतरराष्ट्रीय मंच पर बढ़ावा देने के लिए कई प्रदर्शनियों और मेलों में शामिल किया जाता है।
निर्यात प्रक्रिया में विशेष देखभाल की जाती है—फल को समय से पहले तोड़ा जाता है, वैज्ञानिक ढंग से पैक किया जाता है, और फिर एयर फ्रेट द्वारा भेजा जाता है ताकि उसकी ताजगी बनी रहे। दशहरी आम की मांग प्रवासी भारतीयों के बीच विशेष रूप से अधिक है जो अपनी मिट्टी के स्वाद को विदेशों में ढूंढ़ते हैं। इसके अलावा, GI टैग मिलने के बाद विदेशी आयातकों के लिए इसकी गुणवत्ता और स्रोत की प्रामाणिकता भी सुनिश्चित होती है, जिससे इसका बाजार और अधिक विस्तृत हुआ है।
लखनऊ की अर्थव्यवस्था में योगदान
मलिहाबाद क्षेत्र में हजारों एकड़ भूमि पर दशहरी आम की खेती होती है। यहां के सैकड़ों किसान दशहरी आम की बागवानी पर निर्भर हैं। आम की पैकिंग, ट्रांसपोर्ट, निर्यात और स्थानीय बिक्री से जुड़ी पूरी एक आर्थिक श्रंखला लखनऊ और आसपास के इलाकों में रोज़गार का स्रोत बनी हुई है।
हर साल आम के मौसम में अस्थायी श्रमिकों को भी काम मिलता है जो पेड़ से फल तोड़ने, साफ करने, छांटने और ट्रकों में लोड करने जैसे कार्यों में लगे रहते हैं। लखनऊ और विशेषकर मलिहाबाद के छोटे व्यवसायी इस आम से जुड़ी औद्योगिक गतिविधियों—जैसे जैम, स्क्वैश, ड्राय फ्रूट्स वगैरह—से भी लाभ कमाते हैं। आम पर्यटन, यानी “मैंगो टूरिज्म”, एक नया क्षेत्र है जो पर्यटकों को बागों में ले जाकर आम का स्वाद चखवाने और अनुभव प्रदान करने की दिशा में विकसित हो रहा है।
जियो टैगिंग का महत्व
2010 में मिले GI (Geographical Indication) टैग के बाद दशहरी आम की पहचान और मजबूत हुई। इस टैग का अर्थ है कि दशहरी आम की यह किस्म केवल मलिहाबाद क्षेत्र में ही पाई जाती है और वहीं की मिट्टी, जलवायु और पारंपरिक विधियों से इसकी असली गुणवत्ता प्राप्त होती है।GI टैग ने नकली या अन्य क्षेत्रों के आमों को “दशहरी” नाम से बेचने पर रोक लगाई, जिससे मूल उत्पादकों को लाभ मिला। इसके साथ ही यह टैग किसानों को बाज़ार में अपनी उपज के लिए बेहतर मूल्य दिलाने का एक कानूनी उपकरण भी बन गया है। कई अंतरराष्ट्रीय खरीदार विशेष रूप से GI टैग वाले उत्पादों को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि वे गुणवत्ता और प्रामाणिकता की गारंटी देते हैं। इससे न केवल किसानों को फायदा हुआ है, बल्कि दशहरी आम की साख भी विश्व स्तर पर मजबूत हुई है।
बदलती परिस्थितियों में चुनौतियां
दशहरी आम की खेती अब नई चुनौतियों का सामना कर रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण असमय बारिश और बढ़ते तापमान ने आम के फूलने और फलने की प्रक्रिया को प्रभावित किया है। इसके अलावा कीट और फफूंद का प्रकोप भी उत्पादन को घटा रहा है, जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान होता है।बाजार में उचित मूल्य न मिलना, बिचौलियों का हस्तक्षेप, और भंडारण व प्रसंस्करण की सुविधाओं की कमी भी किसानों के सामने बड़ी समस्या है। कई युवा किसान अब आम की परंपरागत खेती छोड़कर अन्य विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं। सरकार की ओर से चल रही योजनाएं जैसे शीतगृहों का निर्माण, जैविक खेती को प्रोत्साहन, और ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों से सीधा उपभोक्ता तक पहुंच—अगर सही ढंग से लागू हों, तो दशहरी आम की खेती को फिर से नई ऊर्जा मिल सकती है।
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