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भारत एक ऐसा देश है जो भौगोलिक, जलवायु और पारिस्थितिक विविधताओं से भरपूर है। यहां के घने वनों, ऊँचे हिमालयी क्षेत्रों, विस्तृत रेगिस्तानों, समुद्री तटों और मैदानी क्षेत्रों में अद्वितीय जैव विविधता पाई जाती है। भारत में विश्व की कुल जैव विविधता का लगभग 8% हिस्सा पाया जाता है, जिसमें हजारों प्रकार की पशु, पक्षी, कीट, वनस्पतियाँ और सूक्ष्मजीव शामिल हैं। खास बात यह है कि इनमें से अनेक प्रजातियाँ केवल भारत में ही पाई जाती हैं, जिन्हें स्थानिक प्रजातियाँ (Endemic Species) कहा जाता है। ये प्रजातियाँ भारत की पारिस्थितिकी और सांस्कृतिक धरोहर का अहम हिस्सा हैं।
इस लेख में हम सबसे पहले भारत की जैव विविधता की विशेषताओं और स्थानिक प्रजातियों की अहमियत को समझेंगे। फिर हम लखनऊ चिड़ियाघर की संरचना और उसकी भूमिका की चर्चा करेंगे। उसके बाद हम कुछ प्रसिद्ध स्थानिक प्रजातियों की सूची देखेंगे, इनके विलुप्त होने के कारणों को जानेंगे, भारत के अन्य प्रमुख चिड़ियाघरों की विशेषताओं पर विचार करेंगे और अंत में चिड़ियाघरों की सामाजिक, शैक्षणिक और पारिस्थितिकीय भूमिका को समझेंगे।

भारत की जैव विविधता और स्थानिक प्रजातियों की महत्ता
भारत को "मेगाडायवर्स देश" (Megadiverse Country) के रूप में जाना जाता है क्योंकि यहां 4 जैव विविधता हॉटस्पॉट हैं—हिमालय, पश्चिमी घाट, पूर्वोत्तर भारत और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह। ये क्षेत्र ऐसे पारिस्थितिकी तंत्र को जन्म देते हैं जहाँ जीवों की बहुतायत और विशिष्टता दोनों देखने को मिलती हैं। स्थानिक प्रजातियाँ, जैसे कि नीलगिरी तहर या मलाबार सिवेट, केवल एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में सीमित होती हैं। इनका महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि यदि ये विलुप्त हो जाती हैं, तो वैश्विक स्तर पर उनका कोई विकल्प नहीं होता। इनके संरक्षण से न केवल उस विशेष पारिस्थितिकी तंत्र को बल मिलता है, बल्कि जैव विविधता का संतुलन भी बना रहता है। भारत में कई वन्यजीव राष्ट्रीय प्रतीकों के रूप में भी प्रतिष्ठित हैं—जैसे कि बाघ (राष्ट्रीय पशु), मोर (राष्ट्रीय पक्षी), और नीम/पीपल जैसे वृक्ष जो सांस्कृतिक और औषधीय दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण हैं। इन प्रजातियों का संरक्षण, हमारे देश की सामाजिक-धार्मिक पहचान को भी सुदृढ़ करता है।

लखनऊ चिड़ियाघर: जीव-जंतुओं का अद्भुत संसार
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित नवाब वाजिद अली शाह प्राणी उद्यान (पूर्व नाम: प्रिंस ऑफ वेल्स जूलॉजिकल गार्डन), 1921 में स्थापित हुआ था। यह देश के सबसे सुंदर और सुव्यवस्थित चिड़ियाघरों में से एक है, जो लगभग 72 एकड़ में फैला हुआ है। यह चिड़ियाघर भारत सरकार की "जन-जागरूकता एवं संरक्षण मिशन" का अहम हिस्सा है। यहाँ पर लगभग 100 से अधिक प्रजातियों के 1000+ जीव-जंतु पाए जाते हैं, जिनमें शेर, बाघ, दरियाई घोड़ा, हिमालयी काला भालू, घड़ियाल, कछुए और अनेक विदेशी पक्षी शामिल हैं। चिड़ियाघर में वनस्पति उद्यान, नक्षत्र वाटिका, और भू-विज्ञान संग्रहालय भी हैं, जो इसे सामान्य चिड़ियाघरों से अलग बनाते हैं। लखनऊ चिड़ियाघर बच्चों और युवाओं के लिए शिक्षा का केंद्र भी है। यहाँ वाइल्डलाइफ फिल्म शो, प्रदर्शनी, और विज्ञान कार्यशालाएं नियमित रूप से आयोजित की जाती हैं। यह चिड़ियाघर स्थानीय प्रजातियों की प्रजनन योजना और पुनर्स्थापन में भी सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
केवल भारत में पाई जाने वाली प्रमुख स्थानिक प्रजातियाँ
भारत में पाई जाने वाली कुछ प्रमुख स्थानिक प्रजातियाँ इस प्रकार हैं:
इन स्थानिक प्रजातियों की रक्षा न केवल भारत की जैव विविधता के लिए, बल्कि वैश्विक पारिस्थितिकी के लिए भी जरूरी है।

स्थानिक प्रजातियों के विलुप्त होने के खतरे और कारण
स्थानिक प्रजातियाँ अत्यंत संवेदनशील होती हैं क्योंकि वे केवल एक सीमित क्षेत्र में पाई जाती हैं। इनके विलुप्त होने के पीछे कई प्रमुख कारण हैं:
अगर समय रहते उपाय नहीं किए गए, तो आने वाले दशकों में भारत कई अमूल्य प्रजातियों को खो सकता है।
भारत के प्रमुख चिड़ियाघर और उनकी विशेषताएँ
भारत में लगभग 150 से अधिक चिड़ियाघर हैं, जिन्हें केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (Central Zoo Authority (CZA)) द्वारा मान्यता प्राप्त है। ये न केवल जैव विविधता को दिखाने का माध्यम हैं, बल्कि संरक्षण, शिक्षा और अनुसंधान के लिए भी कार्यरत हैं। कुछ प्रमुख चिड़ियाघर:

चिड़ियाघरों की भूमिका: संरक्षण, शिक्षा और जन-जागरूकता
आज के चिड़ियाघर केवल जीवों को पिंजरे में देखने तक सीमित नहीं हैं। इनका दायित्व व्यापक है:
संदर्भ-