समय - सीमा 261
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1054
मानव और उनके आविष्कार 829
भूगोल 241
जीव-जंतु 305
| Post Viewership from Post Date to 09- Aug-2025 (31st) Day | ||||
|---|---|---|---|---|
| City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Messaging Subscribers | Total | |
| 2005 | 93 | 0 | 2098 | |
| * Please see metrics definition on bottom of this page. | ||||
लखनऊवासियों, आप जिस धरती पर खेती करते हैं, जिस पर पेड़-पौधे उगते हैं और जिस पर हमारी संस्कृति की जड़ें टिकी हुई हैं, उसकी असली पहचान उसकी मिट्टी से होती है। यह मिट्टी केवल एक भौगोलिक तत्व नहीं, बल्कि हमारे जीवन, जीविका और जैविक संतुलन का मूल आधार है। हमारे लखनऊ की मिट्टी न केवल कृषि को जीवन देती है, बल्कि यहाँ की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था को भी मज़बूती से थामे हुए है। क्या आपने कभी सोचा है कि हमारी यह उपजाऊ ज़मीन किन कारणों से इतनी खास है? क्यों यहाँ के खेतों में गन्ना, गेहूं और सब्जियाँ इतनी भरपूर उपज देती हैं? इसका उत्तर छिपा है – दोमट मिट्टी में, जो लखनऊ की सबसे प्रमुख और प्रभावशाली मिट्टी मानी जाती है। यह मिट्टी केवल खेतों की उत्पादकता नहीं बढ़ाती, बल्कि लखनऊ के हजारों किसानों के जीवन और आशाओं की धुरी भी है। इसी मिट्टी से उगती हर फसल, इस धरती की उर्वरता और हमारे पर्यावरण की समृद्धि का प्रमाण बनती है।
इस लेख में हम जानेंगे कि लखनऊ में कौन-कौन सी मिट्टियाँ पायी जाती हैं और वे एक-दूसरे से किस प्रकार भिन्न होती हैं। फिर हम चर्चा करेंगे दोमट मिट्टी की संरचना, उसके निर्माण और उसमें मौजूद रासायनिक तत्वों की। इसके बाद कृषि में दोमट मिट्टी की भूमिका को समझेंगे, जिससे इसकी उपजाऊ क्षमता स्पष्ट होगी। फिर जानेंगे कि लखनऊ में इस मिट्टी में किन-किन फसलों और सब्जियों की खेती की जाती है। अंत में, हम दोमट मिट्टी के फायदों और सीमाओं पर भी विचार करेंगे।

लखनऊ में मिट्टी के प्रमुख प्रकार और उनकी विशेषताएँ
लखनऊ में मुख्य रूप से चार प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती हैं – बलुआ, सिल्ट, मटियार और दोमट। बलुआ मिट्टी में रेत जैसे कण होते हैं जो बड़े होते हैं और पानी को शीघ्रता से पारित कर देते हैं। इसके कारण इसमें पोषक तत्वों का ठहराव कम होता है। दूसरी ओर, मटियार मिट्टी में अति सूक्ष्म कण होते हैं जो एक-दूसरे से चिपकते हैं और पानी व पोषक तत्वों को रोक कर रखते हैं, जिससे यह अत्यधिक नमी वाली हो जाती है। सिल्ट मिट्टी इन दोनों के बीच होती है – इसके कण मध्यम आकार के होते हैं और यह थोड़ी-थोड़ी जलधारण क्षमता के साथ अच्छी पारगम्यता भी रखती है।
लखनऊ में इन मिट्टियों के विभिन्न मिश्रण जैसे बलुआ-दोमट, सिल्टी-दोमट आदि भी पाए जाते हैं। इन मिश्रित रूपों के कारण मिट्टी की बनावट और उपयोगिता दोनों में सुधार होता है। यह विविधता न केवल पौधों की वृद्धि के लिए लाभकारी है, बल्कि यह कृषि विकल्पों को भी व्यापक बनाती है। बलुआ मिट्टी आमतौर पर गंगा के किनारे या नदी के तल में पाई जाती है, जबकि मटियार और सिल्टी मिट्टी निचले इलाकों में मिलती है। इन सभी मिट्टियों का क्षेत्रीय वितरण लखनऊ की खेती को बहुआयामी बनाता है, जिससे हर प्रकार की फसल को एक उपयुक्त आधार मिलता है। मिट्टी की इस जैविक विविधता ने लखनऊ को पूर्वी उत्तर प्रदेश के कृषि केंद्र के रूप में पहचान दिलाई है।
दोमट मिट्टी का निर्माण, संरचना और रासायनिक गुण
दोमट मिट्टी को बलुआ, सिल्ट और मटियार मिट्टी के संयोजन से तैयार किया जाता है। इसमें बलुआ मिट्टी की मात्रा अधिकतम 52% तक होती है, सिल्ट 28% से 50% तक और मटियार 7% से 27% तक होती है। इन तीनों का उचित अनुपात इसे संतुलित बनाता है। इसके अलावा, इसमें ह्यूमस नामक जैविक तत्व की भी कुछ मात्रा होती है जो मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाता है।
रासायनिक दृष्टि से देखें तो दोमट मिट्टी में कैल्शियम की मात्रा अच्छी होती है और इसका pH स्तर तटस्थ से थोड़ा क्षारीय होता है, जो पौधों की वृद्धि के लिए आदर्श माना जाता है। यह मिट्टी हवा, पानी और पोषक तत्वों का संतुलन बनाकर रखती है जिससे यह पौधों की जड़ों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करती है। इसके अलावा इसमें मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, और नाइट्रोजन जैसे सूक्ष्म पोषक तत्त्व भी अपेक्षाकृत संतुलित मात्रा में पाए जाते हैं। दोमट मिट्टी की संरचना लचीली होती है जिससे जड़ें आसानी से फैलती हैं और पौधों की वृद्धि तीव्र होती है। यही गुण इसे सबसे अनुकूल कृषि मिट्टी बनाते हैं, खासकर जब सिंचाई सीमित हो या भूमि उबड़-खाबड़ हो।

कृषि में दोमट मिट्टी की भूमिका और इसकी उपजाऊ क्षमता
दोमट मिट्टी को अक्सर "कृषि की रानी" कहा जाता है क्योंकि इसमें उपजाऊता, जलधारण क्षमता और संतुलित जल निकासी – तीनों का उत्कृष्ट संयोजन होता है। यह मिट्टी न तो अधिक कठोर होती है और न ही अधिक ढीली, जिससे इसे जोतना, बोना और सिंचाई करना आसान होता है।
यह मिट्टी सूखा प्रतिरोधी होती है, यानी जब पानी की कमी होती है तब भी पौधों को जीवित रखने में सक्षम होती है। इसके कारण वर्षा-आधारित खेती के लिए भी यह उपयुक्त बन जाती है। यही कारण है कि लखनऊ के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिकतर खेतों में दोमट मिट्टी पायी जाती है, जिससे वहां की कृषि उत्पादकता ऊंची रहती है। इसके अलावा, दोमट मिट्टी में कीट और रोग नियंत्रण की क्षमता भी अधिक होती है क्योंकि यह अत्यधिक नमी या सूखे की स्थितियों को संतुलित कर पाती है। यह मिट्टी मौसम के बदलावों को भी अच्छी तरह झेल सकती है और इससे किसान को पूरे वर्ष फसल उगाने का अवसर मिलता है। इन विशेषताओं ने दोमट मिट्टी को स्मार्ट कृषि विकल्पों के लिए भी उपयुक्त बना दिया है।
लखनऊ में दोमट मिट्टी में उगाई जाने वाली प्रमुख फसलें और सब्जियाँ
लखनऊ की दोमट मिट्टी में गेहूं, गन्ना, कपास, चना, मसूर, सरसों आदि प्रमुख फसलें उगाई जाती हैं। इन फसलों को बढ़ने के लिए जिन गुणों की आवश्यकता होती है – जैसे पोषण, जल नियंत्रण और मिट्टी की गहराई – वे सब दोमट मिट्टी में मौजूद होते हैं।
इसके अलावा इस मिट्टी में टमाटर, मिर्च, खीरा, पालक, भिंडी, बैंगन, गाजर, मूली जैसी सब्जियाँ भी अच्छी उपज देती हैं। यहां तक कि कुछ विदेशी फल जैसे स्ट्रॉबेरी, ब्लैकबेरी, और ब्लूबेरी भी इस मिट्टी में सफलतापूर्वक उगाए जा सकते हैं। यह विविधता लखनऊ की कृषि को आर्थिक रूप से भी समृद्ध बनाती है। इसके अतिरिक्त कुकुरमुत्ता, अदरक, और हल्दी जैसी औषधीय फसलें भी इसमें उगाई जा सकती हैं। इससे लखनऊ में जैविक और वैकल्पिक खेती की संभावनाएं भी बढ़ती जा रही हैं। इससे किसानों को बाजार की मांग के अनुसार विविध उत्पादन करने में सहायता मिलती है, जिससे उनकी आय में वृद्धि और जोखिम में कमी आती है।

दोमट मिट्टी के फायदे और सीमाएँ: उपयोगी और चुनौतीपूर्ण पहलू
जहाँ दोमट मिट्टी अत्यधिक उपजाऊ, संतुलित, और सरल उपयोगी होती है, वहीं इसकी कुछ सीमाएँ भी हैं। जैसे, इसमें कणों की पारगम्यता सीमित होती है, जिसके कारण अपक्षरण की संभावना अधिक होती है। तेज बारिश या हवा की स्थिति में इसके सिल्ट और मटियार कण आसानी से बह जाते हैं।
कुछ क्षेत्रों में दोमट मिट्टी में पत्थर भी होते हैं जो बुवाई या कटाई को प्रभावित कर सकते हैं। साथ ही, जो पौधे शुष्क, हल्की मिट्टी में बेहतर उगते हैं (जैसे नागफनी), वे इसमें विकसित नहीं हो पाते। फिर भी, दोमट मिट्टी की संपूर्ण गुणवत्ता इसे लखनऊ की कृषि रीढ़ बनाती है। इसकी एक और चुनौती है – गहन उपयोग के कारण जैविक पदार्थों की कमी और मिट्टी की थकान, जिसे अगर समय-समय पर खाद और ह्यूमस से पोषित न किया जाए तो उत्पादकता घट सकती है। साथ ही, इस मिट्टी को यदि अधिक सिंचित किया जाए तो यह अवसादन (sedimentation)की समस्या भी उत्पन्न कर सकती है। इसलिए दोमट मिट्टी का संतुलित और वैज्ञानिक उपयोग ही इसकी दीर्घकालीन उत्पादकता सुनिश्चित कर सकता है।
संदर्भ-
https://tinyurl.com/nhdj9fdj
https://tinyurl.com/2s49bkym
https://tinyurl.com/msjarf88