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रेगिस्तान को सामान्यतः निर्जन, बंजर और जीवन के लिए प्रतिकूल माना जाता है। परंतु यह धारणा केवल सतही समझ पर आधारित है। वास्तव में, रेगिस्तान जीवन की अदम्य शक्ति और जैविक अनुकूलन का जीवंत उदाहरण हैं। भारत के रेगिस्तानी क्षेत्रों की बात करें तो थार मरुस्थल इसका सबसे सशक्त प्रतिनिधित्व करता है। यह क्षेत्र जहाँ दिन में अत्यधिक गर्मी और रात में तीव्र ठंड होती है, वहाँ जल की भारी कमी और सीमित वनस्पति के बावजूद हजारों प्रकार के जीव, पौधे और सूक्ष्मजीव पनपते हैं। यह विस्मयकारी तथ्य है कि ऐसी कठिन परिस्थितियों में भी जीवन न केवल मौजूद है, बल्कि उसने अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए अनूठे जैविक अनुकूलन विकसित किए हैं। थार मरुस्थल में रहने वाले जीव अपने शरीर, व्यवहार और जीवन शैली को इस हद तक ढाल चुके हैं कि वे बिना पानी के कई दिनों तक जीवित रह सकते हैं, गर्मी और धूल से स्वयं की रक्षा कर सकते हैं, और न्यूनतम संसाधनों में भी ऊर्जा संरक्षण कर सकते हैं। यह रेगिस्तानी पारिस्थितिकी तंत्र हमें यह सिखाता है कि जीवन, चाहे कितनी भी प्रतिकूल परिस्थिति क्यों न हो, मार्ग तलाश ही लेता है।
इस लेख में हम रेगिस्तान की परिभाषा और उसकी भौगोलिक विशेषताओं से आरंभ करेंगे, फिर जानेंगे कि यहाँ के जीव किन जैविक विशेषताओं के माध्यम से अस्तित्व बनाए रखते हैं। इसके बाद थार मरुस्थल में पाए जाने वाले प्रमुख स्तनधारी, पक्षी और शिकारी प्रजातियों का परिचय होगा, और अंततः हम समझेंगे कि ये जीव इस कठिन पारिस्थितिकी तंत्र में कैसे संतुलन बनाए रखते हैं।
रेगिस्तान: जीवन के लिए असंभव लेकिन जीवंत स्थान
रेगिस्तान पृथ्वी के वे भाग हैं जहाँ वार्षिक वर्षा 250 मिमी से भी कम होती है, जिससे जल की अत्यधिक कमी रहती है। यहाँ का तापमान अत्यंत अस्थिर होता है – दिन में 50 डिग्री सेल्सियस (Celsius) से अधिक और रात में शून्य के नीचे तक जा सकता है। इस विषम जलवायु में जीवन की कल्पना करना कठिन प्रतीत होता है, क्योंकि न तो पानी पर्याप्त है और न ही हरियाली। इसके बावजूद, रेगिस्तान एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र को आश्रय प्रदान करते हैं। थार मरुस्थल, जो भारत के राजस्थान, गुजरात, पंजाब और हरियाणा में फैला है, इसका प्रमुख उदाहरण है। यह क्षेत्र अपनी कठोरता के लिए जाना जाता है, जहाँ बादल आते तो हैं, पर रुकते नहीं। लेकिन इस सूखे भूभाग में भी जीव और वनस्पति की ऐसी विविधता देखने को मिलती है, जो किसी भी उष्णकटिबंधीय क्षेत्र से कम नहीं। रेगिस्तान में जीवन एक प्रकार की "जिजीविषा" की मिसाल है – जहाँ हर जीव अपने ढंग से प्राकृतिक बाधाओं से जूझते हुए टिकता है। यहां के जीव जल संरक्षण, ऊष्मा सहनशीलता और व्यवहारिक अनुकूलन की बेहतरीन मिसाल हैं। इसीलिए रेगिस्तान केवल बंजर भूमि नहीं, बल्कि जीव विज्ञान की प्रयोगशाला हैं।
रेगिस्तानी जीवों के विशेष जैविक अनुकूलन (Adaptations of Xerocoles)
रेगिस्तानी जीवों को "ज़ीरोकोल" कहा जाता है, जो ऐसी प्रजातियाँ होती हैं जो शुष्क, गर्म और जलविहीन परिवेश में भी टिकाऊ जीवन जीने में सक्षम हैं। इन जीवों की जैविक संरचना विशेष रूप से इस वातावरण के लिए अनुकूलित होती है। उदाहरणस्वरूप, ऊँट अपनी कोशिकाओं में जल संग्रहित कर सकता है और कई दिनों तक बिना पानी के जीवित रह सकता है। चिंकारा और काला हिरन जैसे जीव पौधों से प्राप्त ओस से जल प्राप्त करते हैं। इनका पसीना बहना सीमित होता है और शरीर की ऊष्मा कम करने के लिए इनकी त्वचा में तेलीय तत्व पाए जाते हैं। कई जीव रात में सक्रिय होते हैं जिससे दिन की तीव्र गर्मी से बचा जा सके।
इनके मल और मूत्र अत्यधिक सघन और जलरहित होते हैं, जिससे शरीर में जल की हानि नहीं होती। पक्षी प्रजातियाँ अपने शरीर को ठंडा रखने के लिए अपने पैरों पर मूत्र त्याग करते हैं। कुछ जीव जैसे डेजर्ट कैट और लोमड़ी अपने गुप्त ठिकानों में दिनभर छिपे रहते हैं। इन जैविक अनुकूलनों से यह स्पष्ट होता है कि प्रकृति ने रेगिस्तानी जीवों को जीवित रहने की विशेष योग्यता प्रदान की है, जो उन्हें सबसे कठिन पर्यावरण में भी पनपने योग्य बनाती है।
थार मरुस्थल की विषम परिस्थितियाँ और जीव विविधता
थार मरुस्थल भारत का सबसे बड़ा शुष्क क्षेत्र है, जो पाकिस्तान की सीमा से सटा हुआ है और 'ग्रेट इंडियन डेजर्ट' के नाम से प्रसिद्ध है। यह त्रिकोणीय क्षेत्र अरावली पर्वत, सतलुज और लूनी नदियों तथा कच्छ के रण से घिरा है। यहां की जलवायु अत्यंत चरम और कठोर है – ग्रीष्मकाल में तापमान 50°C से अधिक और शीतकाल में 0°C से नीचे चला जाता है। यहाँ वार्षिक वर्षा 100 से 150 मिमी के बीच ही होती है और वह भी बहुत अनियमित होती है। धूलभरी आँधियाँ, लू और चक्रवात जैसे मौसमी प्रकोप इस क्षेत्र को और अधिक कठिन बना देते हैं। इन विषम स्थितियों के बावजूद थार जीवों के लिए आश्रय स्थल बना हुआ है।
यहां की वनस्पतियाँ भी विशेष प्रकार की होती हैं – जैसे बेर, आक, कैक्टस और खेजड़ी – जो जल की कमी में भी पनपती हैं। यही वनस्पतियाँ जीवों के लिए भोजन और छाया का स्रोत बनती हैं।
थार में अनेक संकटग्रस्त और स्थानिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जो केवल इसी क्षेत्र में जीवित रह सकती हैं। इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी संरचना यह दर्शाती है कि जीवन अनुकूलन के बल पर किसी भी वातावरण में पनप सकता है।
थार में पाए जाने वाले प्रमुख स्तनधारी और पक्षी प्रजातियाँ
थार मरुस्थल जैव विविधता का एक अद्भुत भंडार है जहाँ अनेक स्तनधारी और पक्षी प्रजातियाँ विषम परिस्थितियों में भी जीवित रहती हैं। इनमें सबसे प्रमुख है।
1. ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (Great Indian bustard)– यह एक बड़ा, उड़ने में सक्षम और संकटग्रस्त पक्षी है, जो खुले मैदानों में पाया जाता है। यह कीड़े, चूहे और बीज खाकर जीवित रहता है।
2. काला हिरन (Blackbuck)– इसकी आंखों के चारों ओर सफेद घेरे होते हैं और नर के सर्पिल सींग इसे विशिष्ट बनाते हैं। ये झुण्ड में रहते हैं और खुले मैदान पसंद करते हैं।
3. चिंकारा (Indian Gazelle) – यह हल्के भूरे रंग की, खूबसूरत प्रजाति है जो बिना पानी के भी कई दिन रह सकती है। यह ओस और पौधों के रस से तरल ग्रहण करता है।
4. भारतीय जंगली गधा (Onager) – यह औसत गधे से बड़ा होता है और इसके रंग मौसम के अनुसार बदलते हैं।
5. डेजर्ट कैट (Desert Cat) और रेगिस्तानी लोमड़ी (Desert fox) – ये छोटी और फुर्तीली शिकारी प्रजातियाँ हैं, जो रात में सक्रिय रहती हैं और छोटे जीवों का शिकार करती हैं।
इन प्रजातियों का संरक्षण ज़रूरी है ताकि थार की पारिस्थितिकी संतुलित बनी रहे।
थार मरुस्थल के शिकारी पक्षी और पारिस्थितिक संतुलन
थार मरुस्थल के आकाश में मँडराते शिकारी पक्षी न केवल दृश्यात्मक आकर्षण हैं, बल्कि पारिस्थितिक संतुलन के संरक्षक भी हैं। इन पक्षियों में ईगल्स (eagles), फाल्कन (falcon), गिद्ध, बज़र्ड (buzzard) और केस्ट्रेल (kestrel) जैसी प्रजातियाँ शामिल हैं। ये उच्च स्तरीय शिकारी जीव पारिस्थितिकी तंत्र की खाद्य श्रृंखला के शीर्ष पर होते हैं। गिद्ध मृत पशुओं को खाकर न केवल पर्यावरण को स्वच्छ रखते हैं, बल्कि संक्रामक रोगों को फैलने से भी रोकते हैं। ईगल्स और फाल्कन जैसे पक्षी छोटे स्तनधारी, सरीसृप और पक्षियों का शिकार कर उनकी आबादी को संतुलित बनाए रखते हैं।
ये शिकारी पक्षी पारिस्थितिकी की 'प्राकृतिक सफाई प्रणाली' हैं – जिनकी उपस्थिति स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र की पहचान मानी जाती है। दुर्भाग्य से, विद्युत लाइनों से टकराव, कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग और अवैध शिकार इनके लिए खतरा बन चुका है। कई क्षेत्रों में गिद्धों की आबादी में भारी गिरावट आई है, जिससे मृत जानवरों के सड़ने से संक्रमण का खतरा बढ़ा है। इनके संरक्षण के लिए विशेष अभयारण्य, निगरानी और प्रजनन कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। इन शिकारी पक्षियों का संरक्षण केवल पक्षियों के लिए नहीं, बल्कि पूरे रेगिस्तानी पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता के लिए आवश्यक है।
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