ठंडक की चुस्की या सेहत की कीमत? लखनऊ में सॉफ्ट ड्रिंक की कहानी

स्वाद - भोजन का इतिहास
20-07-2025 09:42 AM
Post Viewership from Post Date to 20- Aug-2025 (31st) Day
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Messaging Subscribers Total
2218 94 0 2312
* Please see metrics definition on bottom of this page.

लखनऊ की गलियों में चाट, कबाब और बिरयानी की खुशबू के बीच एक चीज़ जो हर नुक्कड़ पर दिखती है — वो है ठंडी सॉफ्ट ड्रिंक की बोतल। चाहे अमीनाबाद की भीड़ में थक कर बैठे हों या गोमती किनारे की गर्मी से राहत ढूंढ रहे हों, एक बोतल ठंडे पेय से जैसे पूरा शहर साँस लेता है। यहां की नवाबी तहज़ीब में भी अब ये रंग-बिरंगे पेय धीरे-धीरे अपनी जगह बना चुके हैं — लेकिन सवाल ये है कि इस ताजगी की कीमत हम अपनी सेहत से तो नहीं चुका रहे? जब मीठी चुस्कियाँ आदत बन जाएं, तो लखनऊ जैसे शहरों में भी सेहत पर असर दिखने लगता है — ख़ासतौर पर युवाओं और बच्चों में।

पहले लिंक के माध्यम से आइए देखें कि कोल्ड ड्रिंक्स कैसे बनाई जाती हैं।

सॉफ्ट ड्रिंक निर्माण की प्रक्रिया:

सॉफ्ट ड्रिंक बनाने की प्रक्रिया वैज्ञानिक और तकनीकी दृष्टि से अत्यंत सुसंगठित होती है। सबसे पहले होता है जल शुद्धिकरण (Water Treatment), क्योंकि पेय का लगभग 90% हिस्सा पानी होता है। इसे मल्टी-स्टेज फिल्ट्रेशन, रिवर्स ऑस्मोसिस, यूवी ट्रीटमेंट और डि-क्लोरीनेशन जैसी प्रक्रियाओं से इस तरह शुद्ध किया जाता है कि कोई अशुद्धि या जीवाणु शेष न रहे।

इसके बाद आता है मिक्सिंग और ब्लेंडिंग (Mixing and Blending), जिसमें शुद्ध पानी में मीठास (शुगर या कृत्रिम स्वीटनर), एसिड (जैसे साइट्रिक या फॉस्फोरिक) और फ्लेवर एजेंट्स को बड़े मिक्सिंग टैंकों में नियंत्रित तापमान और pH पर मिलाया जाता है। एगिजीटेटर मिश्रण को पूरी तरह एकसमान बनाते हैं।

फिर होता है कार्बोनेशन (Carbonation), जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) को उच्च दबाव में तरल में घोला जाता है, जिससे उसमें फिज़ (Fizz) या बुलबुले बनते हैं। CO₂ की मात्रा ड्रिंक की प्रकृति के अनुसार तय की जाती है — जैसे कोला में अधिक और फ्लेवर्ड वॉटर में कम।

तैयार पेय को भराई और पैकेजिंग (Filling and Packaging) के लिए सेनेटाइज़ की गई बोतलों या कैनों में हाई-स्पीड मशीनों से भरा जाता है। फिर इन्हें एयरटाइट सील, लेबलिंग, और श्रिंक रैपिंग या पैलेटाइजेशन के ज़रिए बाज़ार में भेजा जाता है।

अंत में होता है गुणवत्ता नियंत्रण (Quality Control), जिसमें हर बैच का स्वाद, रंग, मिठास, कार्बोनेशन, pH और ब्रिक्स स्तर जांचा जाता है। किसी भी गड़बड़ी की स्थिति में प्रक्रिया को रोका जाता है और सुधार किया जाता है ताकि उपभोक्ताओं को हमेशा एक जैसी गुणवत्ता और ताज़गी मिले।

स्वास्थ्य पर कोल्ड ड्रिंक्स के प्रभाव-

हर दिन सॉफ्ट ड्रिंक पीने वाले लोगों में टाइप-2 डायबिटीज़ का खतरा 26% तक बढ़ जाता है। इन पेयों में मौजूद चीनी अचानक इंसुलिन बढ़ाती है, जो लंबे समय में मधुमेह का कारण बनती है — और यह ख़तरा युवाओं व एशियाई आबादी में सबसे ज़्यादा होता है।

सॉफ्ट ड्रिंक्स "खाली कैलोरीज़" से भरी होती हैं। ना तो पेट भरता है, और ना ही शरीर को पोषण मिलता है। उल्टा, मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर और हार्ट अटैक जैसी बीमारियों का खतरा और बढ़ जाता है। सिर्फ इतना ही नहीं — कार्बोनेटेड ड्रिंक्स से हड्डियाँ कमजोर होती हैं, दांत सड़ते हैं और शरीर के अंदर धीरे-धीरे कैल्शियम की कमी हो जाती है। बच्चों और किशोरों के लिए ये नुकसान और भी ज़्यादा गंभीर हो सकते हैं। तो अगली बार जब आप कोई ठंडी बोतल उठाएं, एक बार सोचिए — क्या कुछ पल की ठंडक, सालों की सेहत से ज़्यादा अहम है?

नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से आइए स्वास्थ्य पर कोल्ड ड्रिंक्स के प्रभावों को समझते हैं।

संदर्भ-

https://tinyurl.com/9myhf9z4 

https://tinyurl.com/yc4dvyjs 

https://tinyurl.com/y9dckjmb