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लखनऊवासियों, हमारे जिले की प्राकृतिक विविधता और ग्रामीण जीवनशैली हमें पेड़ों, पौधों और जीव-जंतुओं के साथ घनिष्ठ रूप से जोड़ती है। खेतों में काम करते समय, बाग-बगिचों में घुमते हुए या जंगली रास्तों पर चलते हुए हम कई बार ऐसे पौधों और जीवों के संपर्क में आ जाते हैं, जो देखने में सामान्य लगते हैं, लेकिन भीतर से बेहद ज़हरीले होते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि किसी साधारण पौधे की छाल, या किसी छोटे से कीड़े के स्पर्श से जीवन को खतरा हो सकता है? आज का यह लेख हमें प्रकृति में मौजूद इन ज़हरीले तत्वों को समझने, पहचानने और उनसे बचाव करने की जानकारी देगा।
इस लेख में हम पाँच मुख्य पहलुओं पर चर्चा करेंगे: पहले, हम जानेंगे कि जहर वास्तव में क्या होता है और शरीर पर इसका कैसे असर पड़ता है। फिर, हम देखेंगे कि पशु और पौधे किस तरह विष का निर्माण करते हैं और ये कैसे चिकित्सा विज्ञान में उपयोगी हो सकते हैं। तीसरे भाग में हम समझेंगे कि पौधों में यह विष कैसे विकसित हुआ और आज यह कैसे आत्मरक्षा और औषधि दोनों का काम करता है। चौथा भाग जहरीले पौधों की पहचान से जुड़ा होगा, ताकि हम उनसे सतर्क रह सकें। अंत में, हम भारत में पाए जाने वाले दो प्रमुख जहरीले पौधों—धतूरा और मेडिकोलीगल—के बारे में जानेंगे।
जहर क्या है? प्रकृति में विषाक्तता की परिभाषा और प्रक्रिया
प्रकृति में जहर एक ऐसा रासायनिक तत्व होता है जो शरीर की सामान्य शारीरिक प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप करता है—या तो उन्हें धीमा करता है, रोकता है या बिल्कुल उल्टा कर देता है। "जहर क्या है?"—इस प्रश्न का उत्तर देते हुए न्यूयॉर्क (New York) के 'द पावर ऑफ पॉइज़न' (The Power of Poison) संग्रहालय के क्यूरेटर मार्क सिडल (curator - Mark Siddall) बताते हैं कि जहर और दवाओं के बीच का अंतर सिर्फ मात्रा और उपयोग का है। उदाहरण के लिए, कैफीन और निकोटीन जैसे तत्व, जो हमें ऊर्जा और आनंद देते हैं, अधिक मात्रा में लेने पर जानलेवा साबित हो सकते हैं।
दरअसल, दवाएं भी ज़हर की तरह ही कार्य करती हैं—फर्क सिर्फ इतना है कि दवाएं शरीर के लिए लाभकारी दिशा में असर करती हैं जबकि ज़हर इसका विपरीत करता है। यही कारण है कि कई औषधीय तत्वों की सीमारेखा बहुत पतली होती है। एस्पिरिन (aspirin) में मौजूद सैलिसिलिक एसिड (Salicylic acid) इसका एक बेहतरीन उदाहरण है—जो कम मात्रा में दर्द निवारक है, लेकिन ज़्यादा मात्रा में शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है।

प्रकृति में ज़हर का विशाल भंडार: पशु और पौधों की भूमिका
प्रकृति में लगभग 1 लाख ऐसे जीव-जंतु हैं—जिनमें जहर उत्पन्न करने की क्षमता है। इनमें छिपकलियाँ, सांप, बिच्छू, जेलिफ़िश, समुद्री एनीमोन (Jellyfish, Sea Anemone) और कई कीट शामिल हैं। वैज्ञानिकों ने अब तक केवल 10,000 प्रकार के पशु विषों की पहचान की है, जिनमें से 1,000 का उपयोग औषधीय अनुसंधान में किया गया है। उदाहरण के लिए, अमेरिका और मैक्सिको में पाए जाने वाले 'गिला मॉन्स्टर' (Gila Monster) नामक छिपकली की लार में पाया गया एक रसायन, मधुमेह की दवा "एक्सैनाटाइड" (Exenatide) के निर्माण में उपयोग किया गया है।
सिर्फ पशु ही नहीं, बल्कि कवक, शैवाल, बैक्टीरिया और फफूंद भी विषैला तत्व उत्पन्न करते हैं। इनमें से कई विषों को शोधकर्ता नई औषधियों में बदलने की संभावनाएं तलाश रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, बैक्टीरिया और फफूंद द्वारा उत्पन्न कुछ विष, एंटीबायोटिक की तरह कार्य करते हैं, और रोगाणुओं के खिलाफ कारगर सिद्ध होते हैं। यह पूरी प्रक्रिया जैविक प्रतिस्पर्धा की परिणति है, जिसमें हर जीव अपने अस्तित्व के लिए नए हथियार विकसित करता है।

पौधों में विष का विकास: आत्म-संरक्षण से औषधि तक का सफर
धरती पर 400,000 से भी अधिक पौधों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से बहुत-से पौधे किसी न किसी रूप में विषैले होते हैं। यह विषाक्तता प्राकृतिक रूप से उत्पन्न हुई 'रासायनिक सुरक्षा प्रणाली' है, जिसका उद्देश्य कीड़ों, शाकाहारी जीवों और प्रतिस्पर्धी पौधों से आत्म-संरक्षण करना है। यह प्रक्रिया करोड़ों वर्षों के विकास का परिणाम है। उदाहरण के लिए, कैफीन और निकोटीन (Caffeine and Nicotine) जैसी विषाक्त रासायनिक यौगिकों का विकास पौधों ने कीड़ों को दूर रखने के लिए किया, लेकिन इन्हीं यौगिकों का मानव शरीर पर सुखद या उत्तेजक प्रभाव भी देखा गया। यह दोहरी प्रकृति हमें यह सिखाती है कि एक ही पदार्थ विष और औषधि दोनों हो सकता है—फर्क सिर्फ उसकी मात्रा और प्रयोजन में होता है। एक अन्य उदाहरण है सैलिसिलिक एसिड (Salicylic acid), जो 'विलो ट्री' (Willow Tree) में पाया जाता है और बाद में इसे औषधीय रूप में एस्पिरिन (Aspirin) के तौर पर उपयोग किया गया। इसका मतलब यह है कि कई बार प्रकृति में पाया गया विष, चिकित्सा विज्ञान में वरदान भी साबित हो सकता है।
जहरीले पौधों की पहचान: चित्र, लक्षण और सावधानियाँ
प्रकृति में पाए जाने वाले सभी जहरीले पौधों की पहचान आसान नहीं होती। अलग-अलग क्षेत्रों में यह विभिन्न स्वरूपों में उगते हैं। जैसे—'पॉइज़न आइवी' (Poison Ivy) लताओं के रूप में, 'पॉइज़न ओक' (Poison Oak) झाड़ी के रूप में और 'हेमलॉक' (Hemlock) अजमोद जैसे पौधे के रूप में दिखाई देता है। इन पौधों की एक सामान्य पहचान यह है कि इनकी पत्तियाँ तीन पत्रकों में बंटी होती हैं, जो एक ही तने से निकलती हैं। हालांकि, सभी जहरीले पौधे सिर्फ छूने से नुकसान नहीं पहुंचाते। कुछ पौधों का विष शरीर के अंदर जाकर ही असर करता है—जैसे जड़ों, छाल या बीजों का सेवन करने पर। इसलिए ज़रूरी है कि हम अपने आसपास के वातावरण में उगने वाले पौधों की तस्वीरों और पहचान के लक्षणों से परिचित हों। यह जानकारी विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक महत्वपूर्ण है, जहाँ बच्चे और बुज़ुर्ग कभी-कभी अनजाने में इनका सेवन कर लेते हैं।

भारत के प्रमुख जहरीले पौधे: धतूरा और मेडिकोलीगल का वर्णन
भारत में कई जहरीले पौधे पाए जाते हैं, लेकिन 'धतूरा' और 'मेडिकोलीगल' (Medicolegal) पौधे विशेष रूप से खतरनाक माने जाते हैं। धतूरा, जो आमतौर पर कचरा डंप क्षेत्रों में उगता है, पूरे पौधे के रूप में विषैला होता है, लेकिन इसके बीज और फल सबसे अधिक जहरीले होते हैं। पारंपरिक रूप से इसे बेहोश करने वाले पदार्थों में मिलाया जाता रहा है और आज भी कभी-कभी अपराधों में इसका दुरुपयोग होता है। दूसरा पौधा है 'मेडिकोलीगल', जो परित्यक्त खेतों में उगता है। इसकी जड़ की छाल और फूल अत्यंत विषैले होते हैं। हालांकि, सही मात्रा और विशेषज्ञता के साथ इसका उपयोग औषधि के रूप में भी किया जाता है। ये पौधे ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष चिंता का विषय हैं, जहाँ कृषि के दौरान अनजाने में इनके संपर्क में आकर विषाक्तता की घटनाएँ हो जाती हैं। बच्चों में यह समस्या और भी गंभीर होती है, क्योंकि वे रंग-बिरंगे फल या फूलों को खेल-खेल में खा लेते हैं, जिससे गंभीर परिणाम हो सकते हैं।
संदर्भ-