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लखनऊवासियो, नवाबी तहज़ीब और सांस्कृतिक समृद्धि के लिए प्रसिद्ध हमारा शहर, अब डिजिटल (digital) और आर्थिक प्रगति की ओर तेज़ी से बढ़ रहा है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि चमचमाते बाज़ारों, कैफ़े (café) और मॉल्स (malls) के इस शहर में भी ऐसे कोने मौजूद हैं, जहाँ हर रात कुछ लोग भूखे पेट सो जाते हैं? भुखमरी की समस्या सिर्फ़ दूरदराज़ के इलाक़ों तक सीमित नहीं है — यह एक ऐसी सच्चाई है जो लखनऊ जैसे विकसित होते शहरों में भी मौजूद है, बस हमारे नज़रअंदाज़ कर देने के कारण यह उतनी स्पष्ट नहीं दिखती। आज हम इस लेख में विस्तार से समझेंगे कि भारत में भुखमरी की स्थिति कितनी गंभीर है और क्यों हम सभी को इसकी ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। हम जानेंगे कि देश में खाद्य सुरक्षा के लिए कृषि क्षेत्र की क्या भूमिका है, भुखमरी के मुख्य कारण कौन-कौन से हैं, अल्पपोषण की स्थिति क्या है, और अंत में, सरकार द्वारा इस दिशा में किए गए प्रयास कौन से हैं।
भारत में भुखमरी की वर्तमान स्थिति और वैश्विक भूख सूचकांक में स्थान
भारत, जो एक उभरती हुई वैश्विक आर्थिक शक्ति है, वहाँ भुखमरी जैसी समस्या का अस्तित्व होना अपने आप में एक विडंबना है। 2024 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स (Global Hunger Index) में भारत 127 देशों में 105वें स्थान पर है। यह सिर्फ़ एक आँकड़ा नहीं, बल्कि उस असमानता का परिचायक है जो हमारे समाज में गहराई से जमी हुई है। देश की विशाल जनसंख्या के चलते खाद्यान्न की मांग अत्यधिक है, लेकिन भोजन की उपलब्धता और पहुँच समान रूप से नहीं हो पा रही है। अनुमान है कि भारत की 74.1% आबादी ऐसा भोजन नहीं कर पा रही है जो पोषण के मानकों पर खरा उतरता हो। इसका सीधा असर सबसे पहले उन वर्गों पर पड़ता है जो हाशिए पर हैं — जैसे गरीब मज़दूर, आदिवासी समुदाय, झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोग और शहरों के छिपे हुए ग़रीब तबके। शहर जो बाहर से समृद्ध और व्यवस्थित दिखते हैं, वहाँ भी कई इलाक़े ऐसे हैं जहाँ भूख रोज़मर्रा की सच्चाई है। रेलवे ट्रैक (railway track) के किनारे बसे अनौपचारिक घरों, शहरी झुग्गियों और बेघर बच्चों की स्थिति भूख और कुपोषण के शिकार भारत की सच्ची तस्वीर सामने लाती है। इस स्थिति को सुधारने के लिए नीतियाँ जितनी ज़रूरी हैं, उतनी ही ज़रूरी है ज़मीन पर उनकी निष्पक्ष पहुँच।

राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और कृषि क्षेत्र की भूमिका
भारत जैसे कृषि-प्रधान देश में खाद्य सुरक्षा का सबसे गहरा संबंध कृषि क्षेत्र की स्थिति और उत्पादकता से है। कृषि न केवल रोज़गार देती है, बल्कि यह देश की खाद्य आपूर्ति की रीढ़ है। लेकिन आज यह क्षेत्र कई तरह की चुनौतियों से जूझ रहा है — जैसे उर्वरता की कमी, मानसून (monsoon) पर निर्भरता, सीमित सिंचाई संसाधन और किसान आय में अस्थिरता। खाद्य सुरक्षा (Food Security) का अर्थ है कि हर व्यक्ति को हर समय पर्याप्त, सुरक्षित और पोषणयुक्त भोजन मिले। लखनऊ और आस-पास के जिलों में कृषि भूमि के शहरीकरण, बिचौलियों के हस्तक्षेप और उपज का उचित मूल्य न मिलने के कारण कई छोटे किसान खेती छोड़ने पर मजबूर हो रहे हैं। इसका सीधा असर खाद्य आपूर्ति श्रृंखला पर पड़ता है। अगर कृषि को तकनीक, ऋण और बाज़ार तक सीधी पहुँच से जोड़ा जाए तो उत्पादन तो बढ़ेगा ही, साथ ही यह सुनिश्चित होगा कि ज़रूरतमंदों तक खाद्य वस्तुएँ समय पर और उचित मूल्य पर पहुँचें। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम इसी दिशा में एक बड़ा क़दम है, लेकिन इसके कार्यान्वयन की निगरानी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। सरकार, किसान और उपभोक्ता — तीनों की एक साझी ज़िम्मेदारी है इस चक्र को सशक्त बनाने की।
भुखमरी और कुपोषण को बढ़ाने वाले प्रमुख कारण
भुखमरी की समस्या केवल खाद्यान्न की कमी से नहीं, बल्कि उससे जुड़ी हुई संरचनात्मक कमजोरियों से भी पैदा होती है। सबसे पहली चुनौती है — कृषि उत्पादन का असंतुलन। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के चलते बार-बार बेमौसम बारिश, सूखा या अत्यधिक तापमान जैसी स्थितियाँ किसानों की फसलों को सीधे तौर पर नुकसान पहुँचा रही हैं। इससे देश के खाद्य भंडार पर भी असर पड़ता है।
दूसरी ओर, भंडारण और वितरण प्रणाली का अभाव भी एक गंभीर समस्या है। अनुमान है कि हर साल लाखों टन (ton) अनाज गोदामों में खराब हो जाता है या माफ़ियाओं के नियंत्रण में चला जाता है। वहीं दूसरी ओर, गरीबों को आवश्यक मात्रा में राशन (ration) तक नहीं मिल पाता। यह एक विडंबना है कि जहाँ एक ओर अनाज बर्बाद हो रहा है, वहीं दूसरी ओर करोड़ों लोग भूख से जूझ रहे हैं। इसके अलावा, असंगठित रोज़गार, महँगाई, शिक्षा की कमी और सरकारी योजनाओं की जानकारी के अभाव से भी खाद्य सुरक्षा प्रभावित होती है। हमें समस्या की जड़ तक जाकर इसके हल खोजने होंगे।

अल्पपोषण और किफ़ायती पोषण की चुनौतियाँ
भारत में भुखमरी का एक बड़ा चेहरा है — अल्पपोषण (Malnutrition)। इसका अर्थ यह नहीं कि व्यक्ति भूखा है, बल्कि यह कि उसका भोजन पोषक तत्वों से रहित है। आज देश में लाखों लोग ऐसे हैं जो सिर्फ़ पेट भरने लायक भोजन कर पा रहे हैं, लेकिन वह शरीर के विकास और स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त नहीं है। एक रिपोर्ट (report) के अनुसार, भारत की 16.6% आबादी कुपोषण का शिकार है और 2030 तक 600 मिलियन (million) लोगों के भूखे रहने की संभावना जताई गई है। ये आंकड़े डराने वाले इसलिए भी हैं क्योंकि इनमें सबसे अधिक संख्या बच्चों और महिलाओं की है। गर्भवती महिलाओं को यदि पर्याप्त पोषण न मिले तो उनके बच्चों का विकास भी प्रभावित होता है। लखनऊ में बाल विकास योजनाएँ चल रही हैं, लेकिन इनमें वास्तविक सफलता तब ही मुमकिन है जब इन योजनाओं की पहुँच ज़रूरतमंद वर्ग तक नियमित हो और पोषण स्तर का मूल्यांकन समय-समय पर हो। किफ़ायती और पौष्टिक भोजन की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय स्तर पर सामुदायिक किचन, पोषण आहार जागरूकता अभियान और स्कूल स्तर पर भोजन की गुणवत्ता पर निगरानी अनिवार्य है।

भारत सरकार की प्रमुख योजनाएँ और प्रयास
भारत सरकार ने भुखमरी से लड़ने के लिए कई योजनाएँ बनाई हैं, जो अगर सही ढंग से लागू हों तो यह समस्या काफ़ी हद तक नियंत्रित की जा सकती है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) और लक्षित PDS के ज़रिए गरीबों को सस्ता राशन उपलब्ध कराया जाता है। लेकिन कई बार राशन दुकानों में भ्रष्टाचार, कालाबाज़ारी और वितरण में देरी जैसी समस्याएँ सामने आती हैं। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA 2013) ने खाद्य अधिकार को एक कानूनी रूप दिया है, जिससे लगभग 80 करोड़ लोगों को सब्सिडी (subsidy) वाला अनाज मिलता है। मिड-डे मील (Mid-day Meal) योजना, स्कूली बच्चों (school children) को न केवल भोजन देती है, बल्कि उन्हें स्कूल में बनाए रखने का भी एक ज़रिया बनती है।
लखनऊ में चल रही आँगनबाड़ी सेवाएँ, पोषण अभियान (Poshan Abhiyan) और मनरेगा (MGNREGA) जैसी योजनाओं को और पारदर्शी और ज़मीनी स्तर पर प्रभावी बनाने की आवश्यकता है। इसके अलावा, अंत्योदय अन्न योजना जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से सरकार सबसे गरीब परिवारों को भी समर्थन दे रही है। इन सभी योजनाओं की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि शासन व्यवस्था में कितनी पारदर्शिता और जवाबदेही है, और आम लोग कितने जागरूक होकर अपने अधिकारों की माँग करते हैं।
संदर्भ-