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लखनऊवासियो, अगर आपने कभी चारबाग रेलवे स्टेशन से यात्रा की है, तो आप जानते होंगे कि यह सिर्फ एक स्टेशन नहीं, बल्कि हमारे शहर की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान का अटूट हिस्सा है। यह वही जगह है जहाँ इतिहास ने करवटें लीं, आधुनिकता ने पंख फैलाए, और आज भी हज़ारों यात्रियों की गंतव्य यात्रा यहीं से शुरू होती है। पर क्या आप जानते हैं कि यह भव्य स्टेशन कभी एक बाग़ हुआ करता था?
पहले वीडियो और नीचे दिए गए वीडियो की मदद से हम लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन को देखेंगे और इसके बारे में जानने का प्रयास करेंगे।
चारबाग रेलवे स्टेशन का इतिहास 19वीं सदी के मध्य से शुरू होता है। वर्ष 1867 में जब लखनऊ-कानपुर रेल लाइन का उद्घाटन हुआ, तब यह क्षेत्र एक बाग़ हुआ करता था, जहाँ चार अलग-अलग उद्यान थे — जिनसे इसका नाम 'चारबाग' पड़ा। यह स्टेशन "औध एंड रोहिलखंड रेलवे" (Oudh and Rohilkhand Railway - O&RR) का मुख्यालय बना और दिल्ली के बाद उत्तरी भारत का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण रेलवे केंद्र बन गया। वर्तमान में यह 'नॉर्दर्न रेलवे' का हिस्सा है, और उसके समीप स्थित लखनऊ जंक्शन 'नॉर्थ-ईस्टर्न रेलवे' के अंतर्गत आता है। दोनों स्टेशन एक ही परिसर में स्थित होने के बावजूद, उनकी पहचान और टर्मिनल भवन (Terminal Building) अलग हैं। चारबाग स्टेशन की मौजूदा इमारत का निर्माण 1926 में हुआ था, और इसकी वास्तुकला मुग़ल एवं राजपूत शैली की मिश्रित छवि प्रस्तुत करती है। कहा जाता है कि अगर इसे ऊपर से देखा जाए तो यह एक विशाल शतरंज की बिसात जैसा दिखाई देता है — जहाँ गुंबद और स्तंभ मोहरों की तरह प्रतीत होते हैं। इसकी एक और विशेष बात यह है कि ट्रेनों के आने-जाने की आवाज़ स्टेशन परिसर के बाहर नहीं सुनाई देती, जो इसकी बेजोड़ वास्तुकला का प्रमाण है। यह न केवल यात्रियों को भव्यता का अनुभव देता है, बल्कि लखनऊ की विरासत को जीवित भी रखता है।
चारबाग रेलवे स्टेशन को भारत के उन कुछ चुनिंदा स्टेशनों में गिना जाता है जिन्हें 'बालश्रम मुक्त स्टेशन' का दर्जा प्राप्त हुआ है। वर्ष 2002 से 2014 तक चले प्रयासों के परिणामस्वरूप यह सुनिश्चित किया गया कि स्टेशन परिसर में किसी भी विक्रेता या दुकानदार द्वारा बालश्रम का प्रयोग न हो।
नीचे दिए गए वीडियो लिंक (video link) की मदद से हम भारत के 10 सबसे बड़े रेलवे स्टेशनों के बारे में विस्तार से जानेंगे।