ओडिशा के तट पर जीवन की वापसी: ऑलिव रिडली कछुओं की अद्भुत अरिबाडा यात्रा

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ओडिशा के तट पर जीवन की वापसी: ऑलिव रिडली कछुओं की अद्भुत अरिबाडा यात्रा

भारत का ओडिशा तट हर साल एक अद्भुत प्राकृतिक चमत्कार का गवाह बनता है, जब लाखों ऑलिव रिडली (Olive Ridley) समुद्री कछुए एक साथ समुद्र से बाहर आकर रेतीले तटों पर अंडे देने के लिए जमा होते हैं। यह दृश्य इतना अनोखा और आकर्षक होता है कि इसे देखने के लिए दुनियाभर के वैज्ञानिक, पर्यावरणविद और प्रकृति प्रेमी यहां खिंचे चले आते हैं। लखनऊ जैसे उत्तर भारत के इलाकों में रहने वाले हम लोगों के लिए यह घटना शायद रोज़मर्रा की खबरों से दूर हो, लेकिन यह भारत की जैव विविधता और समुद्री पारिस्थितिकी का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा है। लिव रिडली कछुए, जो दुनिया की सबसे छोटी समुद्री कछुआ प्रजातियों में से एक हैं, हजारों किलोमीटर की यात्रा कर ओडिशा के तट पर आते हैं और सामूहिक घोंसले बनाकर एक आश्चर्यजनक ‘अरिबाडा’ (Arribada) प्रक्रिया को जन्म देते हैं। ऑलिव रिडली कछुए आकार में छोटे होते हैं लेकिन इनका सामूहिक व्यवहार ‘अरिबाडा’, जिसमें हजारों मादा कछुए एक ही समय पर घोंसला बनाने के लिए समुद्र तट पर आती हैं, विश्व के सबसे बड़े प्राकृतिक आयोजनों में गिना जाता है। ये कछुए हर साल नवंबर से मई तक ओडिशा के विशिष्ट तटीय क्षेत्रों, जैसे गहिरमाथा, देवी और रुशिकुल्या में आते हैं और उसी स्थान पर अंडे देने के लिए लौटते हैं, जहां उन्होंने पहले अंडे दिए थे।  
इस लेख में हम जानेंगे कि ऑलिव रिडली कछुए कौन होते हैं, इनकी बनावट और जीवन चक्र कैसा होता है, और भारत विशेषकर ओडिशा तट इनके लिए क्यों इतना महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही हम यह भी देखेंगे कि इन कछुओं को किस प्रकार के खतरों का सामना करना पड़ रहा है, और भारत सरकार तथा संस्थानों द्वारा इनके संरक्षण हेतु कौन-कौन सी योजनाएं चलाई जा रही हैं, जैसे ऑपरेशन ऑलिविया (Operation Olivia), समुद्री अभयारण्यों की स्थापना, और टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइसेज़ (Turtle Excluder Device) का उपयोग। यह लेख कछुओं की एक अद्भुत यात्रा और मानव की भूमिका के बारे में गहराई से समझने का एक प्रयास है।

ऑलिव रिडली कछुओं का परिचय, बनावट और जीवनचक्र 
ऑलिव रिडली कछुए (लेपिडोचेलिस ओलिवेसिया - Lepidochelys olivacea) समुद्री कछुओं की सबसे छोटी और प्रचुर मात्रा में पाई जाने वाली प्रजाति हैं। इनका नाम इनके जैतूनी (ऑलिव) रंग के कारण पड़ा है। एक वयस्क ऑलिव रिडली की लंबाई लगभग 2 फीट और वजन 35–50 किलोग्राम तक हो सकता है। इनके फ्लिपर्स (flippers) पर एक या दो पंजे स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। मादा और नर कछुए लगभग समान दिखते हैं, लेकिन मादा का कवच कुछ अधिक गोल होता है। ये कछुए पूरी तरह मांसाहारी होते हैं और जेलीफ़िश (jellyfish), झींगा, केकड़े, घोंघे, मछलियाँ और उनके अंडों को अपना भोजन बनाते हैं। इनका पूरा जीवन समुद्र में बीतता है और वे प्रजनन और भोजन के लिए हज़ारों किलोमीटर की यात्रा करते हैं।
ऑलिव रिडली की सबसे अद्भुत विशेषता है “अरिबाडा”, यानी जब हजारों मादाएं एक साथ एक ही समुद्र तट पर घोंसले बनाकर अंडे देती हैं। घोंसले बनाने के लिए वे 1.5 फीट गहरे गड्ढे खुदती हैं और एक बार में 100 से 140 अंडे देती हैं। 45–65 दिनों के बाद अंडों से बच्चे निकलते हैं, जो समुद्र तक रेंगते हैं। दुखद रूप से, अनुमान है कि 1000 बच्चों में से केवल 1 ही वयस्क अवस्था तक जीवित रह पाता है।

भारत में ऑलिव रिडली कछुओं का सबसे बड़ा घोंसला स्थल: ओडिशा तट
भारत में ऑलिव रिडली कछुओं के सबसे बड़े सामूहिक घोंसला स्थल के रूप में ओडिशा तट को विशेष मान्यता प्राप्त है। विशेषकर गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य, जो केंद्रपाड़ा जिले में स्थित है, दुनिया का सबसे बड़ा अरिबाडा स्थल माना जाता है। यहां हर साल नवंबर-दिसंबर के दौरान लाखों मादा कछुए आते हैं और अप्रैल तक यहीं रुकते हैं। 1974 में गहिरमाथा किश्ती के पास पहला अरिबाडा दर्ज हुआ। इसके बाद 1981 में देवी नदी के मुहाने और 1994 में रुशिकुल्या नदी के पास अन्य बड़े घोंसला स्थलों की खोज की गई।
इन कछुओं को नदी के डेल्टा क्षेत्र और रेतीले तट अत्यंत पसंद हैं। यह भी देखा गया है कि वे अपने पहले अंडा देने वाले स्थल पर ही लौटना पसंद करते हैं। इनमें पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र को महसूस करने की एक असाधारण क्षमता होती है, जिससे वे नेविगेशन (navigation) करते हैं। वे सूरज, चंद्रमा, समुद्री धाराओं और हवाओं का उपयोग करके अपने मार्ग का निर्धारण करते हैं।

ऑलिव रिडली कछुओं को होने वाले खतरे और मानवीय प्रभाव
हालांकि ऑलिव रिडली कछुए समुद्रों में बड़ी संख्या में पाए जाते हैं, लेकिन पिछले कुछ दशकों में इनकी संख्या में तेज़ी से गिरावट देखी गई है। इसका सबसे बड़ा कारण मानवीय गतिविधियाँ हैं।

  • मछली पकड़ने के दौरान जाल में फँसना: ट्रॉलिंग (trolling) के दौरान बड़ी संख्या में वयस्क कछुए मर जाते हैं। पिछले 13 वर्षों में 1.3 लाख से अधिक कछुओं की मृत्यु इसी कारण मानी गई है।
  • आवास विनाश: पर्यटन, बंदरगाह और रियल एस्टेट विकास ने समुद्र तटों को नुकसान पहुँचाया है, जिससे घोंसले बनाने की जगहें घटती जा रही हैं।
  • अवैध शिकार और व्यापार: मांस, अंडे, खोल और चमड़े के लिए इनका अवैध शिकार जारी है, जबकि अंतरराष्ट्रीय कानूनों द्वारा इसे प्रतिबंधित किया गया है।
  • प्राकृतिक शत्रु: अंडों और बच्चों को समुद्री पक्षी, केकड़े और मछलियाँ खा जाती हैं। यह प्राकृतिक चक्र है, लेकिन मानवजनित खतरों ने मृत्यु दर को और बढ़ा दिया है।

भारत में ऑलिव रिडली कछुओं के संरक्षण की प्रमुख पहलें
भारत सरकार और विभिन्न संस्थानों ने ऑलिव रिडली कछुओं की सुरक्षा के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं।

  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत ये कछुए अनुसूची I में आते हैं, जिसका अर्थ है कि इन्हें सबसे उच्च स्तर की कानूनी सुरक्षा प्राप्त है।
  • साइट्स (CITES)  कन्वेंशन के परिशिष्ट I में भी ये सूचीबद्ध हैं, जिससे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार निषिद्ध है।
  • गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य की स्थापना 1997 में की गई थी ताकि इन कछुओं के घोंसला और प्रजनन स्थलों को संरक्षित किया जा सके।
  • टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइस (TED): यह एक विशेष प्रकार का मछली पकड़ने का जाल है, जिससे कछुए मछली पकड़ने वाले जाल से बाहर निकल सकते हैं। इसे अनिवार्य बनाया गया है।
  • "नो फिशिंग जोन" (No Fishing Zone): ओडिशा सरकार ने प्रजनन काल में देवी और रुशिकुल्या नदी के आसपास के समुद्र को मछली पकड़ने के लिए प्रतिबंधित क्षेत्र घोषित किया है।

ऑपरेशन ऑलिविया और तटरक्षक बल की भूमिका
ऑलिव रिडली कछुओं के संरक्षण के लिए भारत की तटरक्षक बल (Coast Guard) हर साल एक विशेष मिशन चलाती है, "ऑपरेशन ऑलिविया"। यह 8 नवम्बर 2014 को शुरू किया गया था।
इस ऑपरेशन के अंतर्गत:

  • समुद्र में गश्त की जाती है ताकि मछली पकड़ने वाली नावें निर्धारित क्षेत्र में प्रवेश न करें।
  • टर्टल एक्सक्लूडर डिवाइस (TED) के उपयोग की निगरानी की जाती है।
  • स्थानीय मछुआरों को जागरूक किया जाता है कि कछुओं की रक्षा करने से समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र बना रहेगा।
  • वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं और वन विभाग के साथ सहयोग किया जाता है ताकि डेटा (data) एकत्र किया जा सके और संरक्षण नीतियाँ प्रभावी बन सकें।

ऑपरेशन ऑलिविया, भारत के समुद्री संरक्षण प्रयासों का एक मजबूत स्तंभ बन चुका है। यह दिखाता है कि सतर्कता, विज्ञान और नीति मिलकर भी संकटग्रस्त प्रजातियों को संरक्षित कर सकते हैं।

संदर्भ-

https://shorturl.at/UdngQ