लखनऊ की रोटियों का छिपा सच: ग्लूटेन हमारे लिए स्वाद या संकट?

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लखनऊ की रोटियों का छिपा सच: ग्लूटेन हमारे लिए स्वाद या संकट?

लखनऊवासियों, कभी जब गेहूं की बालियाँ खेतों में लहराती थीं, तो वो सिर्फ़ अन्न नहीं देती थीं, बल्कि ज़िंदगी की एक सादगी भरी तस्वीर भी साथ लाती थीं। घरों में पकती रोटियों की सोंधी खुशबू, मिट्टी की गर्माहट और परिवार की मुस्कान, सब कुछ उस खाने से जुड़ा होता था। वह भोजन सिर्फ़ शरीर नहीं, आत्मा को भी पोषण देता था। लेकिन आज, पैकिंग (packing) की चमक, विज्ञापनों की चतुराई और विज्ञान की प्रयोगशालाओं ने हमारी थाली में बदलाव ला दिए हैं। हम जो खा रहे हैं, उसमें ग्लूटेन (gluten) जैसे प्रोटीन (protein) या जेनेटिकली मॉडिफाइड (genetically modified) अनाज जैसे तत्व छिपे हैं, जिनके असर को हम पूरी तरह नहीं समझते। क्या ये तकनीकी बदलाव हमारे शरीर के लिए सही हैं? क्या ये धीरे-धीरे हमारी पाचन शक्ति, इम्युनिटी (immunity) या मानसिक स्थिति को प्रभावित कर रहे हैं?
इस लेख में हम दो प्रमुख मुद्दों की पड़ताल करेंगे, पहला, ग्लूटेन नामक प्रोटीन जो आजकल कई रोगों का कारण बताया जा रहा है; और दूसरा, आनुवंशिक रूप से संशोधित भोजन (जीएमओ) जो वैज्ञानिक प्रगति के नाम पर हमारी थालियों में पहुंच रहा है। हम जानेंगे कि ग्लूटेन क्या है और इसका शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है, जीएमओ खाद्य पदार्थ कितने सुरक्षित हैं, और किन सामान्य चीज़ों में ये छिपे होते हैं। अंत में हम यह भी समझेंगे कि इस बदलती खाद्य दुनिया में हम खुद को कैसे सुरक्षित रख सकते हैं।

ग्लूटेन: हर रोटी में छिपा एक अनदेखा जोखिम?
ग्लूटेन एक स्वाभाविक रूप से पाया जाने वाला प्रोटीन है जो गेहूं, जौ और राई जैसे अनाजों में होता है। यह आटे को लचीला बनाता है और रोटियों या ब्रेड (bread) को वह स्वादिष्ट बनावट देता है जिसे हम बचपन से पहचानते आए हैं। परंतु आज यही ग्लूटेन कुछ लोगों के लिए परेशानी का सबब बन गया है। 'सीलिएक डिज़ीज़' (Celiac Disease) जैसी गंभीर बीमारियां ग्लूटेन के कारण होती हैं, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली छोटी आंत को नुकसान पहुँचाती है। लक्षणों में लगातार पेट दर्द, दस्त, थकान और त्वचा पर चकत्ते शामिल हैं। हैरानी की बात ये है कि जिन लोगों को यह बीमारी नहीं भी है, वे भी ग्लूटेन से संबंधित 'नॉन-सीलिएक ग्लूटेन सेंसिटिविटी' (Non-Celiac Gluten Sensitivity) से जूझ सकते हैं। इसमें पेट फूलना, अपच, मानसिक थकान और चिड़चिड़ापन जैसी समस्याएं देखी जाती हैं। इसलिए अब बहुत से लोग “ग्लूटेन-फ्री डाइट” (gluten-free diet) को अपनाने लगे हैं, पर क्या यह हर किसी के लिए ज़रूरी है? इसका जवाब सरल नहीं, लेकिन सतर्कता ज़रूरी है।

आनुवंशिक रूप से संशोधित भोजन: विज्ञान की देन या स्वास्थ्य का संकट?
आनुवंशिक रूप से संशोधित भोजन आधुनिक कृषि विज्ञान की एक ऐसी खोज है जिसने फसलों को कीड़ों, सूखे और रोगों से लड़ने में सक्षम बना दिया है। वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा पौधों के डीएनए को बदल कर इन्हें ज़्यादा उपजाऊ और टिकाऊ बनाया गया है। यह तकनीक विशेष रूप से उन देशों के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है जहाँ भूख और खाद्य संकट एक बड़ा मुद्दा है। लेकिन हर तकनीकी चमत्कार के साथ कुछ अनदेखी चुनौतियाँ भी आती हैं। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि इन जीएमओ उत्पादों का लंबे समय तक सेवन करने से एलर्जी, पाचन समस्याएं, हार्मोन असंतुलन (hormone imbalance) और यहां तक कि कैंसर (cancer) तक की संभावना हो सकती है। डब्ल्यू.एच.ओ. (WHO - विश्व स्वास्थ्य संगठन) और एफ.ए.ओ. (FAO - खाद्य और कृषि संगठन) जैसी संस्थाएं लगातार निगरानी कर रही हैं, पर आम जनता के पास पर्याप्त जानकारी का अभाव है। यही कारण है कि आम आदमी दुविधा में है, क्या यह वैज्ञानिक तरक्की है या एक धीमी जहर की शुरुआत?

संशोधित भोजन के छिपे खतरे: वैज्ञानिक चिंताएँ और दुविधाएँ
जीएमओ खाद्य पदार्थों के लाभों के साथ-साथ उनके जोखिम भी कम नहीं हैं। कई वैज्ञानिक शोधों में यह सामने आया है कि कुछ संशोधित फसलों में ऐसे जीन (gene) डाले गए हैं जो कीटनाशकों के प्रति प्रतिरोधी बनाते हैं, लेकिन ये जीन मानव शरीर में पहुँच कर प्रतिरक्षा प्रणाली को भ्रमित कर सकते हैं। कुछ विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि लंबे समय तक ऐसे भोजन का सेवन शरीर में एलर्जी, आंतों की समस्या, यहां तक कि कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है। इसके अतिरिक्त, जब फसलों में ऐसे जीन जोड़े जाते हैं जो एंटीबायोटिक (antibiotic) को निष्क्रिय कर देते हैं, तो इससे भविष्य में एंटीबायोटिक दवाएं असरहीन हो सकती हैं, जिसे हम 'एंटीबायोटिक रेसिस्टेंस' (antibiotic resistance) कहते हैं। यानी आज जो खाना हमें मजबूत बनाने के लिए खाया जा रहा है, वह कल हमारी चिकित्सा को असहाय बना सकता है। यह सोचने वाली बात है कि लाभ और हानि के इस संतुलन में हम किस ओर खड़े हैं?

ग्लूटेन और आनुवंशिक हस्तक्षेप: क्या समाधान है CRISPR?
जैसे-जैसे ग्लूटेन से जुड़ी समस्याएं सामने आने लगीं, वैज्ञानिकों ने इनसे निपटने के लिए नई राहें तलाशनी शुरू कर दीं। हाल ही में क्रिस्पर (CRISPR) नामक जीन-संपादन तकनीक ने आशा की किरण जगाई है। इस तकनीक से वैज्ञानिक गेहूं के डीएनए को इस प्रकार संशोधित कर रहे हैं कि उसमें से ग्लूटेन उत्पन्न करने वाले तत्व हटा दिए जाएं, जिससे रोटियां उसी स्वाद और पोषण के साथ, ग्लूटेन-फ्री बन सकें। पहले आरएनएआई (RNAi) तकनीक का उपयोग होता था, पर क्रिस्पर अधिक तेज़, सटीक और असरदार साबित हो रही है। हालांकि यह तकनीक सुनने में आशाजनक लगती है, लेकिन इससे जुड़ी नैतिक और स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं अभी भी बरकरार हैं। क्या हम भोजन के प्राकृतिक स्वरूप से खिलवाड़ कर रहे हैं, या यह इंसान की बुद्धिमत्ता का अगला चरण है? इस प्रश्न का उत्तर आने वाले वर्षों में ही स्पष्ट होगा।

रोज़मर्रा की थाली में छिपे संशोधित खाद्य: जानिए 10 आम स्रोत और बचाव के उपाय
हम में से अधिकतर लोग रोज़ कुछ न कुछ ऐसा खा रहे हैं जिसमें जीएमओ शामिल हो सकते हैं, और हमें इसका अंदाज़ा तक नहीं होता। आपके नाश्ते की सीरियल से लेकर मिठास देने वाले सिरप, तेल, टॉफी (toffee), चॉकलेट (chocolate), फास्ट फूड (fast food), और यहां तक कि बच्चों के फ़ॉर्मूला दूध (formula milk) में भी ये संशोधित तत्व मौजूद हो सकते हैं। विशेषकर, कार्बोनेटेड पेय (carbonated drinks), टोफू (tofu), वनस्पति तेल, डिब्बाबंद सूप (canned soup), जमे हुए भोजन और प्रोटीन शेक्स (protein shakes) जैसी चीज़ें इनसे भरपूर होती हैं। इनसे बचने के लिए सबसे पहला उपाय है - "100% ऑर्गैनिक" (100% Organic) लेबल (label) देखना। दूसरा, पैकेटबंद और प्रोसेस्ड फूड (processed food) को कम से कम करना। तीसरा, जिन चीज़ों पर "बायोइंजीनियर्ड" (Bioengineered) लिखा हो, उनसे सावधानी बरतना। और चौथा - स्थानीय मंडियों और किसानों से खरीदी करना, जहां पारंपरिक खेती की संभावना अधिक होती है। यह न केवल स्वास्थ्य के लिए बेहतर है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती देता है।

संदर्भ-

https://shorturl.at/57oeV