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लखनऊवासियो, जब हम प्रकृति की सुंदरता और उसकी धरोहर की बात करते हैं, तो आमतौर पर हमारी नज़र जंगलों, नदियों या पहाड़ों पर ठहरती है। लेकिन ज़रा ठहरकर सोचिए, क्या आपने कभी समुद्र तटों पर फैले मैंग्रोव वनों (Mangrove Forests) के महत्व के बारे में गहराई से विचार किया है? ये वन केवल पेड़-पौधों का समूह नहीं हैं, बल्कि धरती के लिए ढाल की तरह काम करने वाले अनमोल पारिस्थितिक तंत्र हैं। हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन - IUCN) ने अपनी विस्तृत रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि दुनिया के लगभग आधे मैंग्रोव वन अब ख़तरे में हैं। इनमें से कई तो ‘गंभीर रूप से लुप्तप्राय’ श्रेणी तक पहुँच चुके हैं। लखनऊ जैसे स्थलीय शहर में रहते हुए, हमें अक्सर लगता है कि मैंग्रोव वनों का हमसे कोई सीधा संबंध नहीं है। लेकिन सच्चाई यह है कि ये वन समुद्री तूफ़ानों और चक्रवातों को रोककर तटीय इलाकों की रक्षा करते हैं, जिनसे अप्रत्यक्ष रूप से हम सभी सुरक्षित रहते हैं। यही वन असंख्य समुद्री जीवों, मछलियों, झींगों, कछुओं और मगरमच्छों, का घर हैं, और यही हमारी थाली तक समुद्री भोजन पहुँचाने में भी मददगार हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि ये प्राकृतिक रूप से कार्बन (carbon) को अपने अंदर संचित करके जलवायु परिवर्तन की रफ्तार धीमी करते हैं, जिसका असर हर शहर और हर इंसान तक पहुँचता है। इसलिए लखनऊवासियो के लिए भी यह ज़रूरी है कि हम मैंग्रोव वनों के महत्व को समझें और उनके संरक्षण के प्रयासों से जुड़ें। जब हम पेड़ों को बचाने या पर्यावरणीय अभियानों में हिस्सा लेते हैं, तो यह समझना चाहिए कि हमारे छोटे-छोटे कदम दूर बैठे समुद्र तटों पर खड़े मैंग्रोव वनों की रक्षा में भी योगदान दे सकते हैं। प्रकृति की यह जादुई कड़ी हमें यह सिखाती है कि पर्यावरण संरक्षण केवल तटीय इलाकों की ज़िम्मेदारी नहीं, बल्कि पूरे देश और हर नागरिक की साझा जिम्मेदारी है।
इस लेख में हम मैंग्रोव वनों की दुनिया को पाँच मुख्य पहलुओं से समझने की कोशिश करेंगे। सबसे पहले हम देखेंगे कि वैश्विक स्तर पर इन वनों की स्थिति क्या है और आईयूसीएन की ताज़ा रिपोर्ट हमें क्या चेतावनी देती है। इसके बाद भारत की तरफ़ रुख करेंगे और जानेंगे कि हमारे देश में मैंग्रोव कहाँ-कहाँ फैले हैं और उनका वितरण किस तरह है। आगे हम इन वनों के असली महत्व पर बात करेंगे, कैसे ये तटीय सुरक्षा, जैव विविधता और जलवायु संतुलन में योगदान करते हैं। इसके बाद हम मैंग्रोव के अलग-अलग प्रकारों और उनकी विशिष्टताओं को समझेंगे, जो इन्हें धरती के सबसे अनोखे पारिस्थितिक तंत्रों में जगह दिलाते हैं। अंत में हम उन प्रमुख पहलों और योजनाओं पर चर्चा करेंगे जो भारत में इन वनों की रक्षा और संवर्धन के लिए चलाई जा रही हैं।

मैंग्रोव वनों की वैश्विक स्थिति और IUCN का आकलन
मैंग्रोव वन धरती पर उन दुर्लभ पारिस्थितिक तंत्रों में आते हैं, जो समुद्र और ज़मीन के बीच पुल का काम करते हैं। हाल ही में आईयूसीएन ने 44 देशों और 36 क्षेत्रों में फैले मैंग्रोव पारिस्थितिक तंत्र का विस्तृत आकलन किया। इस रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 20% मैंग्रोव उच्च जोखिम की श्रेणी में हैं। इनमें से कई क्षेत्रों को ‘लुप्तप्राय’ और ‘गंभीर रूप से लुप्तप्राय’ घोषित किया गया है। विशेष रूप से दक्षिण भारत, श्रीलंका और मालदीव जैसे क्षेत्रों में मैंग्रोव की स्थिति बेहद चिंताजनक बताई गई है। ग्लोबल मैंग्रोव एलायंस (Global Mangrove Alliance) जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठन लगातार इन वनों के संरक्षण और पुनर्जीवन के लिए कार्य कर रहे हैं। यह आकलन हमें यह संदेश देता है कि अगर अभी ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में मैंग्रोव का बड़ा हिस्सा विलुप्त हो सकता है, जिसका असर केवल पर्यावरण पर ही नहीं, बल्कि लाखों लोगों की आजीविका पर भी पड़ेगा।

भारत में मैंग्रोव वनों की उपस्थिति और वितरण
भारत के लिए मैंग्रोव वन केवल जैव विविधता का हिस्सा नहीं, बल्कि तटीय जीवन की सुरक्षा ढाल भी हैं। वर्तमान समय में भारत में मैंग्रोव वनों का कुल क्षेत्रफल लगभग 4,975 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का मात्र 0.15% है। इन वनों का सबसे बड़ा विस्तार पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में है, जो अकेले देश के लगभग 42.45% मैंग्रोव का घर है। गुजरात में 23.66%, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में 12.39%, और आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु तथा केरल में भी इनका महत्वपूर्ण विस्तार मिलता है। वहीं पुडुचेरी में मात्र 2 वर्ग किलोमीटर मैंग्रोव क्षेत्र है, जो पूरे भारत में सबसे कम है। इनका यह भौगोलिक वितरण भारत के तटीय पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूती देता है और यह दर्शाता है कि देश का हर क्षेत्र अपने-अपने स्तर पर इन वनों की महत्ता को वहन कर रहा है।
मैंग्रोव वनों का पारिस्थितिक महत्व
मैंग्रोव वन असली मायनों में प्रकृति के प्रहरी हैं। ये घने वन अपनी जड़ प्रणाली के माध्यम से मिट्टी को पकड़कर रखते हैं और तटों को कटाव से बचाते हैं। यही नहीं, जब समुद्र में तूफ़ान, चक्रवात या सुनामी जैसी आपदाएँ आती हैं, तो मैंग्रोव वन एक प्राकृतिक ढाल की तरह काम करते हैं और तटीय बस्तियों को बड़े नुकसान से बचाते हैं। ये वन केवल सुरक्षा ही नहीं, बल्कि जीवन भी देते हैं। मछलियाँ, झींगे, केकड़े, कछुए, मगरमच्छ और अनगिनत समुद्री जीव इन्हीं वनों में पनपते और अपना आश्रय पाते हैं। पक्षियों के लिए भी यह क्षेत्र सुरक्षित घर बन जाता है। पर्यावरण की दृष्टि से देखें तो मैंग्रोव वन कार्बन को संचित करने में बेहद सक्षम हैं। इन्हें "ब्लू कार्बन" स्टोर ("Blue Carbon" Store) भी कहा जाता है, क्योंकि ये महासागरीय पारिस्थितिकी में कार्बन को लंबे समय तक सुरक्षित रखने की क्षमता रखते हैं। इस तरह, मैंग्रोव वन जलवायु परिवर्तन की रफ्तार को कम करने में भी योगदान देते हैं।

मैंग्रोव वनों के प्रकार और उनकी विशेषताएं
मैंग्रोव वनों को मुख्यतः तीन प्रमुख प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है, जिनकी अपनी-अपनी अनूठी विशेषताएं हैं:
इन वनों की अनुकूलन क्षमता अद्वितीय है। समुद्र के खारे पानी में भी जीवित रहना और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना इन्हें धरती के सबसे विशिष्ट और वैज्ञानिक पारिस्थितिक तंत्रों में स्थान दिलाता है।
भारत में मैंग्रोव संरक्षण के लिए प्रमुख पहलें
भारत सरकार और कई संगठन मिलकर मैंग्रोव वनों के संरक्षण और पुनर्जीवन के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं।
संदर्भ-