
समय - सीमा 259
मानव और उनकी इंद्रियाँ 1048
मानव और उनके आविष्कार 827
भूगोल 241
जीव-जंतु 303
लखनऊवासियो, जब भी हम वायु प्रदूषण की चर्चा करते हैं तो हमारी नज़र अक्सर सिर्फ सांस लेने में कठिनाई, खांसी, अस्थमा या दिल की बीमारियों तक ही जाती है। लेकिन सच्चाई इससे कहीं आगे है। प्रदूषित हवा का असर सिर्फ हमारे फेफड़ों या दिल तक सीमित नहीं रहता, बल्कि यह हमारे भीतर की उस अदृश्य दुनिया को भी प्रभावित करता है, जिसे हम माइक्रोबायोटा (microbiota) कहते हैं। माइक्रोबायोटा वे खरबों सूक्ष्मजीव हैं, जो हमारे शरीर के अलग-अलग हिस्सों - आंतों, त्वचा, श्वसन तंत्र और यहां तक कि गर्भाशय के ऊतकों - में मौजूद रहते हैं। यही अदृश्य साथी हमारे पाचन को दुरुस्त रखते हैं, प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत बनाते हैं, हार्मोन का संतुलन संभालते हैं और यहां तक कि हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालते हैं। लेकिन जब यह संतुलन बिगड़ता है, तो शरीर कमजोर हो जाता है और कई गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाता है। लखनऊ जैसी तेज़ी से बढ़ती शहरी आबादी वाले शहरों में, जहां हवा में प्रदूषकों की मात्रा लगातार बढ़ रही है, वहां माइक्रोबायोटा का असंतुलन एक छिपा हुआ खतरा बन चुका है। इसलिए यह समझना बेहद ज़रूरी है कि वायु प्रदूषण हमारे भीतर की इस अदृश्य परत को कैसे बदल देता है और इसके नतीजे कितने व्यापक हो सकते हैं।
इस लेख में हम सबसे पहले समझेंगे कि माइक्रोबायोटा क्या है और इसकी हमारे शरीर में क्या भूमिका है। फिर देखेंगे कि वायु प्रदूषण किस तरह माइक्रोबायोटा के संतुलन को बिगाड़ देता है। इसके बाद जानेंगे कि यह असंतुलन अलग-अलग अंगों और स्वास्थ्य पर क्या असर डालता है। अगले भाग में नज़र डालेंगे कि विश्व और भारत में यह समस्या कितनी गंभीर है। और अंत में समझेंगे कि पीएम10 (PM10)और पीएम2.5 (PM2.5) जैसे सूक्ष्म कण किस तरह सबसे बड़े खतरे बन चुके हैं, खासकर बच्चों और बुज़ुर्गों के लिए।
माइक्रोबायोटा क्या है और इसकी भूमिका
हम अक्सर सोचते हैं कि हमारा शरीर सिर्फ हमारी कोशिकाओं से बना है, लेकिन हकीकत इससे कहीं आगे है। मानव शरीर खरबों सूक्ष्मजीवों का घर है - जिनमें बैक्टीरिया, वायरस (virus), आर्किया (Archaea) और प्रोटिस्ट (Protist) शामिल हैं। इन सबको मिलाकर माइक्रोबायोटा कहा जाता है। ये अदृश्य साथी हमारे शरीर के हर हिस्से में मौजूद होते हैं - आंतों में, त्वचा पर, श्वसन तंत्र में और यहां तक कि गर्भाशय के ऊतकों तक में। यही सूक्ष्मजीव हमारी सेहत का आधार हैं। ये न सिर्फ हमारे भोजन को पचाने में मदद करते हैं बल्कि प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत रखते हैं, हार्मोन (hormone) का संतुलन बनाए रखते हैं और मानसिक स्वास्थ्य तक को प्रभावित करते हैं। माइक्रोबायोटा का संतुलन बिगड़ जाए तो शरीर कमजोर हो जाता है और रोगजनक जीवाणुओं का हमला ज्यादा असरदार हो जाता है। इस तरह, यह कहना गलत नहीं होगा कि हमारी सेहत की जड़ें हमारी नंगी आंखों से न दिखने वाली इस अदृश्य दुनिया में छिपी हैं।
वायु प्रदूषण और माइक्रोबायोटा का असंतुलन
जब हम सांस लेते हैं तो हर श्वास के साथ सिर्फ ऑक्सीजन (Oxygen) ही नहीं, बल्कि हवा में मौजूद प्रदूषक भी हमारे भीतर जाते हैं। यही प्रदूषक धीरे-धीरे माइक्रोबायोटा की संरचना को बदल देते हैं। वैज्ञानिक भाषा में इस बदलाव को डिस्बायोसिस (Dysbiosis) कहा जाता है। इसका अर्थ है कि शरीर में अच्छे और बुरे सूक्ष्मजीवों का संतुलन बिगड़ जाता है। खास बात यह है कि यह असर सिर्फ लंबे समय तक रहने से नहीं होता, बल्कि वायु प्रदूषकों के अल्पकालिक संपर्क से भी सूक्ष्मजीवों की परस्पर क्रियाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जब यह संतुलन टूटता है, तो शरीर संक्रमणों के प्रति ज्यादा असुरक्षित हो जाता है। यही कारण है कि तपेदिक (tuberculosis), मेनिनजाइटिस (meningitis) और कोविड-19 (Covid-19) जैसी बीमारियां प्रदूषण से प्रभावित वातावरण में ज्यादा आसानी से फैलती हैं और गंभीर रूप ले लेती हैं।
स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के बहु-अंग प्रभाव
माइक्रोबायोटा का असंतुलन सिर्फ पाचन या आंत तक सीमित नहीं रहता, इसका असर पूरे शरीर पर दिखाई देता है। आंतों में यह असंतुलन सूजन आंत्र रोगों (Inflammatory bowel diseases) जैसे अल्सरेटिव कोलाइटिस (ulcerative colitis) और क्रोहन डिजीज (Crohn's disease) को जन्म देता है। इसके अलावा, वायु प्रदूषण के कारण श्वसन संबंधी रोग जैसे अस्थमा और ब्रोंकाइटिस (bronchitis) बढ़ जाते हैं। यह समस्या सिर्फ सांस तक नहीं रहती - न्यूरोलॉजिकल विकार (neurological disorders), डायबिटीज (diabetes) और यहां तक कि कैंसर (cancer) तक का खतरा बढ़ा देती है। गर्भवती महिलाओं के लिए प्रदूषित हवा विशेष रूप से खतरनाक है क्योंकि इसका सीधा असर भ्रूण पर पड़ता है और नवजात शिशु का स्वास्थ्य लंबे समय तक प्रभावित हो सकता है। वास्तव में, वायु प्रदूषण हमारे शरीर की कोशिकाओं में सूजन और ऑक्सीडेटिव (oxidative) तनाव बढ़ाता है, जिससे अंग-प्रत्यंग धीरे-धीरे कमजोर हो जाते हैं।
वैश्विक व क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य
यह समस्या सिर्फ भारत या हमारे आसपास के शहरों तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया इससे जूझ रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया की लगभग 99% आबादी प्रदूषित हवा में सांस ले रही है। यूरोप और उत्तरी अमेरिका जैसे विकसित देशों में सूजन आंत्र रोगों के मामले सबसे अधिक पाए गए हैं। वहीं एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका जैसे नवऔद्योगीकृत देशों में भी ऐसे रोग तेजी से बढ़ रहे हैं। भारत जैसे देश में दिल्ली और मुंबई जैसे महानगर पहले से ही इस संकट की चपेट में हैं। ग्रामीण इलाकों की तुलना में शहरी इलाकों में वायु प्रदूषण कहीं ज्यादा खतरनाक साबित हो रहा है और इसकी वजह से जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां और संक्रमण दोनों बढ़ रहे हैं।
पार्टिकुलेट मैटर (PM10 और PM2.5) का खतरा
वायु प्रदूषण का सबसे गंभीर पहलू है पार्टिकुलेट मैटर (Particulate Matter) यानी पीएम10 और पीएम2.5। ये सूक्ष्म कण इतने छोटे होते हैं कि हमारी सांस के जरिए सीधे फेफड़ों और फिर रक्तप्रवाह तक पहुंच जाते हैं। वहां जाकर ये कोशिकाओं में सूजन, ऑक्सीडेटिव तनाव और यहां तक कि डीएनए (DNA) में बदलाव यानी उत्परिवर्तन पैदा कर सकते हैं। इस वजह से हृदय रोग और कैंसर तक का खतरा बढ़ जाता है। खासतौर पर बच्चे और बुजुर्ग इस जोखिम के प्रति सबसे ज्यादा संवेदनशील होते हैं। बच्चे वयस्कों की तुलना में ज्यादा सांस लेते हैं और उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली भी पूरी तरह विकसित नहीं होती। इसलिए, पीएम10 और पीएम2.5 का असर उन पर ज्यादा गहरा पड़ता है। यही वजह है कि आज वायु प्रदूषण को कैंसर और समय से पहले मृत्यु के सबसे बड़े कारणों में गिना जा रहा है।
संदर्भ-
https://shorturl.at/nXs9Y
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Messaging Subscribers - This is the total viewership from City Portal subscribers who opted for hyperlocal daily messaging and received this post.
D. Total Viewership - This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
E. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.